केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण
- इसके क्षेत्राधिकार में केंद्र सरकार या केंद्र शासित प्रदेश या भारत सरकार के अंतर्गत किसी स्थानीय या अन्य सरकार या केंद्र के स्वामित्व व नियंत्रण वाले निगमों के कार्मिकों के सेवा संबंधी मामले आते है।
- CAT की स्थापना 1 नवंबर, 1985 को की गई।
- इसकी 17 नियमित पीठें (Benches) हैं, जिनमें से 15 उच्च न्यायालयों की मुख्य पीठों से और शेष दो जयपुर और लखनऊ से संचालित होती हैं।
- ये पीठें उच्च न्यायालयों की अन्य सीटों पर भी सर्किट बैठक (Circuit Sittings) का आयोजन करती हैं। अधिकरण में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
- सदस्यों को न्यायिक और प्रशासनिक दोनों क्षेत्रों से चुना जाता है ताकि दोनों क्षेत्रों की विशेषज्ञताओं का लाभ मिल सके।
- प्रशासनिक अधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपील संबद्ध उच्च न्यायालय की खंडपीठ या डिविज़न बेंच के समक्ष की जा सकती है। [1]
कैट में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। न्यायिक और प्रशासनिक क्षेत्रों से कैट के सदस्यों की नियुक्ति होती है। सेवा की अवधि 5 वर्ष या अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए 65 वर्ष और सदस्यों के लिए 62 वर्ष जो भी पहले हो, तक होती है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कैट का कोई भी अन्य सदस्य अपने कार्यकाल के बीच में ही अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है।
केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के पास निम्नलिखित सेवा क्षेत्र के मामलों में अधिकार है:
- अखिल भारतीय सेवा का कोई भी एक सदस्य
- संघ के किसी भी सिविल सेवा या संघ के तहत किसी भी सिविल पद पर नियुक्त एक व्यक्ति
- रक्षा सेवाओं में नियुक्त कोई भी नागरिक या रक्षा से जुड़ा कोई भी एक पद
किन्तु रक्षा बलों के सदस्य, अधिकारी, सुप्रीम कोर्ट और संसद के सचिवालय के स्टाफ कर्मचारी कैट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।
कार्यप्रणाली
[संपादित करें]सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ की संहिता में निर्धारित प्रक्रिया के लिए कैट बाध्य नहीं है, किन्तु प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। एक अधिकरण के पास उसी प्रकार की शक्तियां होती हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की संहिता के तहत एक सिविल कोर्ट के पास होती हैं। कोई व्यक्ति अधिकरण में आवेदन कानूनी सहायता के माध्यम से या फिर स्वंय हाजिर होकर कर सकता है।
किसी न्यायाधिकरण अथवा अधिकरण के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में तो अपील की जा सकती है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में नहीं।
इतिहास
[संपादित करें]कार्मिक प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले नियमों तथा विनियमों की विस्तृत व्यवस्था के बावजूद भी कुछ सरकारी कर्मचारी कभी-कभी सरकार के निर्णयों से व्यथित हो सकते हैं। इन मामलों का निपटान करने में न्यायालयों को कई वर्ष लग जाते थे और मुकद्दमेबाजी बहुत महंगी थी। सरकार के निर्णयों से व्यथित कर्मचारियों को शीघ्र और सस्ता न्याय उपलब्ध करवाने के प्रयोजन से, सरकार ने 1985 में केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण स्थापित किया था जो अब सेवा से सम्बन्धित ऐसे सभी मामलों पर विचार करता है जिन पर पहले उच्च न्यायालयों सहित उनके स्तर तक के न्यायालयों द्वारा कार्रवाई की जाती थी।
जुलाई १९८५ में प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम पारित होने के बाद नवम्बर १९८५ में दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और इलाहाबाद में चार पीठें स्थापित हुईं। वर्तमान में जहाँ भी उच्च न्यायालय हैं वहाँ प्राधिकरण की पीठ है। इस प्रकार देश में कुल १७ मुख्य पीठें तथा ३३ डिविजन बेंच हैं। इसके अलावा नागपुर, गोवा, औरंगाबाद, जम्मू, शिमला, इन्दौर, ग्वालियर, बिलासपुर, राँची, पांडीचेरी, गंगटोक, पोर्ट ब्लेयर, शिलांग, अगरतला, कोहिमा, इम्फाल, इटानगर, ऐजवाल और नैनीताल में चल पीठें (सर्किट सिटिंग) लगतीं हैं।[2]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Home | CAT". cgat.gov.in. अभिगमन तिथि 2022-10-04.
- ↑ "Introduction to CAT". मूल से 14 फ़रवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 फ़रवरी 2016.