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आपूर्ति का नियम

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आपूर्ति का नियम (law of supply) आर्थिक सिद्धांत का मूलभूत सिद्धांत है जिसके अनुसार अन्य कारकों को स्थिर रखते हुए बिक्री मूल्य में वृद्धि का परिणाम आपूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है।[1] अन्य शब्दों में कीमत और मात्रा के बीच सीधा संबंध है: मात्राएँ उसी दिशा में प्रतिक्रिया करती हैं जिस दिशा में मूल्य परिवर्तन होता है।

इसका मतलब यह है कि उत्पादक और निर्माता बाजार में उत्पाद को ऊँची कीमतों पर बिक्री के लिए पेश करने की इच्छुक होती हैं, क्योंकि उत्पादन बढ़ाना मुनाफा बढ़ाने का एक तरीका है।[2]

स्टीव कीन और डर्क एहन्ट्स जैसे कुछ हेटेरोडॉक्स अर्थशास्त्री आपूर्ति के नियम को विपरीत परिभाषा देते हैं जिनके अनुसार बड़े पैमाने पर उत्पादित वस्तुओं के लिए आपूर्ति वक्र अक्सर नीचे की तरफ झुका हुआ होता है: जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है इकाई की कीमतें कम हो जाती हैं और इसके विपरीत यदि मांग बहुत अधिक है कम होती है तब इकाई कीमतें बढ़ जाती हैं।[3]

परिभाषा

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आपूर्ति ऐसी वस्तु या सेवा है जिसे निर्माता प्रदान करना चाहते हैं। आपूर्ति का नियम किसी दिए गए मूल्य पर आपूर्ति की मात्रा निर्धारित करता है।[4]

आपूर्ति और मांग के नियम के अनुसार किसी दिए गए उत्पाद के लिए, यदि मांग की गई मात्रा आपूर्ति की मात्रा से अधिक हो जाती है, तब कीमत बढ़ जाती है, उससे मांग कम हो जाती है और आपूर्ति बढ़ जाती है। इसके विपरीत आपूर्ति तब तक नहीं बढ़ाई जानी चाहिए जब तक जाए मांग स्थिर है।

सन्दर्भ

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  1. Mas-Colell, Andreu; Whinston, Michael D.; Green, Jerry R. (1995). Microeconomic theory. New York, NY: Oxford Univ. Press. पृ॰ 138. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-507340-9.
  2. "Principles of Microeconomics, v. 1.0 | Flat World Knowledge". 2012-06-23. मूल से 2012-06-23 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-04-20.
  3. Keen, Steve (2011). "Chapter 5: The price of everything and the value of nothing". Debunking Economics: The Naked Emperor Dethroned?. Zed Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1848139923.
  4. Kenton, W. "Supply". Investopedia (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-04-20.