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अरोड़ा

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अरोड़ा
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सम्बन्धित सजातीय समूह
खत्री

अरोड़ा (पंजाबी: ਅਰੋੜਾ) या अरोड़ा खत्री[1][2] पंजाब मूल की समुदाय/जाति है। अरोड़ क्षेत्र से आये हुए खत्री ही अरोड़ा या अरूट वंशी खत्री कहलाते है। राजा दाहिर के युद्ध में हार जाने के पश्चात अरोड़वंशी जाति "पंजाब की और फैल गयी और अधिकांश लोग पंजाब के सिंधु, झेलम, चेनाब और रावी तट के शहरों में बस गए।[3] अधिकांश अरोड़ा हिन्दू है, लाहौर और मुल्तान के खत्रियों के साथ पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तानी पंजाब) के मुख्य हिन्दू समूह थे। उन्नीसवीं सदी में इनका मुख्य कार्य खेती-बाड़ी और उद्योग था। [4] अरोड़ा एक उच्च जाति है। आधुनिक पंजाब में अरोड़ा बहु विस्तृत खत्री जाति के अन्तर्गत हैं।[5] अरोड़ा खत्री और अन्य खत्री एक दूसरे के काफी निकट हैं और सभी खत्रियों की आपस में शादियां भी होती है । अरोड़ा का भाटिया और सूद से भी करीब का रिश्ता है। [6] [7] ओड जाति से भी अरोड़ा का उद्भव माना जाता है। [8]

1947 में भारत के विभाजन तथा इसकी आज़ादी से पहले अरोड़ा समुदाय मुख्य रूप से पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) में सिन्धु नदी तथा इसकी सहायक नदियों के तटों; उत्तर-पश्चिम के सीमावर्ती राज्यों (एनडब्ल्यूएफपी) सहित भारतीय पंजाब के मालवा क्षेत्र; सिंध क्षेत्र में (मुख्य रूप से सिन्धी अरोड़ा पर पंजाबी तथा मुल्तानी बोलने वाले अरोड़ा समुदाय भी हैं); राजस्थान में (जोधपुरी तथा नागौरी अरोड़ा/खत्रियों के रूप में)[9]; तथा गुजरात में बसा हुआ था। पंजाब के उत्तरी पोटोहर तथा माझा क्षेत्रों में खत्रियों की संख्या अधिक थी। भारत में आजादी तथा विभाजन के बाद, अरोड़ा मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, जम्मू, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गुजरात तथा देश के अन्य भागों में रहते हैं। विभाजन के बाद, अरोड़ा भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों के साथ पूरी दुनिया में चले गए।

उत्पत्ति

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1842 में रेखाचित्र सक्कर जिले में रोहरी शहर

अरोड़ा नाम अरोड़ नामक स्थान से लिया गया है, जो पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में रोहरी तथा सक्कर नामक आधुनिक कस्बों से समीप स्थित था।[10]

अरोड़ रोहरी के 8 किलोमीटर (26,000 फीट) पूर्व में स्थित है यह सिंधु के तट पर स्थित है, जहां से नदी पश्चिम की ओर एक तेज मोड़ लेती थी और यह के व्यापारिक केंद्र तथा एक समृद्ध शहर था। यह सिंध की प्राचीन राजधानी थी तथा इसके राजा दाहिर थे। वर्ष 711 में, शहर पर अरब जनरल मोहम्मद बिन कासिम ने अधिकार कर लिया और इसकी राजधानी को कोई 300 किलोमीटर (980,000 फीट) दक्षिण की ओर हाला के निकट मंसूरा ले जाया गया। 10वीं सदी में इसे एक और झटका मिला जब सिंधु नदी ने अपना मार्ग बदल दिया और ऐसा शायद किसी बड़े भूकंप के कारण वर्ष 962 में हुआ।[11] सिंधु का वर्तमान मार्ग अरोड़ के पश्चिम में है। सक्कर और रोहरी के आधुनिक कस्बे नदी के दोनों किनारों पर स्थित हैं। अरोड़ अब एक छोटा सा धूल भरा शहर है।

अरोड़ा तीन मुख्य समूहों में बंटे हुए हैं: उत्तराधि, गुजराती तथा दखना। विभाजन के पूर्व 1947 में, वे केवल अपने समुदाय के भीतर ही विवाह करते थे; विभाजन के बाद उन्होंने अन्य अरोड़ा समुदायों के साथ साथ खत्रियों, भाटिया तथा सूद समुदायों बीच भी विवाह करने प्रारंभ कर दिए, पर उप-गोत्र (अल्ल) अलग होना आवश्यक था।[12] [13]

जनसांख्यिकी

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विभाजन से पहले

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1947 में भारत के विभाजन से पहले, अरोड़ा आमतौर से पंजाब के दक्षिण-पश्चिम भागों, डेरा गाज़ी खान जिला (तथा हाल ही में बना जिला राजनपुर), मुल्तान, बहावलपुर, उत्तरी सिंध, तथा डेरा इस्माइल खान संभाग जो कि उत्तर पश्चिम सीमान्त राज्य में हैं, में रहते थे। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा ल्हांडा है, जिसे अब पाकिस्तान में सेरैकी नाम से जाना जाता है। अरोड़ा लोग अलग अलग संख्या में उत्तर में और आगे बस गए, झांग, मिंवाली, लाहौर, अमृतसर, तथा लायलपुर (जिसे अब फैसलाबाद नाम से जाना जाता है) के जिलों में, साथ ही डेराजाट के दक्षिण में सुक्कुर, शिकारपुर जिला तथा कराची में भी रहने लगे। कोहट में, अरोड़ा वहां के मूल निवासी तथा अप्रवासी अरोड़ाओं में बंट गए; अधिकांश मूल निवासी हिन्दू थे जबकि अधिकांश अप्रवासी सिक्ख थे।[14]

पंजाब के आधे अरोड़ा दक्षिण-पश्चिम में डेरा गाज़ी खान, झांग, मिंवाली, मुज़फ्फरगढ़, मुल्तान व बहावलपुर में रहते थे।[15] भारत के इम्पीरियल गजट के अनुसार (1901), भारत के पंजाब प्रान्त में तीन मुख्य व्यापारिक समुदाय थे - अरोड़ा, बनिया तथा अहलूवालिया - ये क्रमशः दक्षिण-पश्चिम (मुल्तान प्रभाग), दक्षिण-पूर्व (वर्तमान हरियाणा को मिला कर दिल्ली प्रभाग), तथा पूर्वोत्तर (जलंधर प्रभाग) में प्रभावशाली थे; केन्द्रीय क्षेत्र (लाहौर प्रभाग) तथा उत्तर-पश्चिम (रावलपिंडी प्रभाग) में अरोड़ा तथा खत्री संख्या में लगभग बराबर थे।[15]

1901 की प्रान्त की जनगणना में (जिसमें दिल्ली शामिल है) इन समुदायों की संख्या इस प्रकार थी: अरोड़ा 653,000; बनिया 452,000; खत्री 436,000। बहावलपुर के पूर्व शाही राज्य में व्यावहारिक रूप से पूरा वाणिज्य अरोड़ा लोगों के हाथों में था, जबकि पटियाला में अहलूवालिया लोगों का वर्चस्व था। सरकारी कर्मचारियों में से अधिकांश अरोड़ा थे। 1901 की उसी जनगणना में अरोड़ा तथा खत्रियों के संख्या उत्तर-पश्चिम के सीमान्त प्रान्त में क्रमशः 69,000 व 34,000 थी; सिंध प्रान्त तथा खायरपुर के शाही राज्य में ओरडा तथा खत्री लोगों को लोहाना के रूप में गिना जाता था जिसे सिंध का व्यापारिक समुदाय माना जाता था। बहुत से अरोड़ा भारत सरकार के सभी विभागों में पदोन्नत किया गये जैसे अतिरिक्त सहायक आयुक्त, एकाउंटेंट, प्रोफेसर, डॉक्टर, सिविल सर्जन, इंजीनियर, सैन्य अधिकारियों, तथा अदालत के अधिकारियों के रूप में। 1947 में भारत में विभाजन के बाद, पाकिस्तान के अधिकांश हिंदू और सिक्ख अरोड़ा भारत पलायन कर गए।[15]

स्वतंत्रता

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अरोड़ा लोग बाकियों से मिल कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए। बहुत से लोगों को सत्याग्रह (अहिन्सत्मत प्रतिरोध) के लिए कैद किया गया। कुछ हिन्दू महासभा से जुड़ कर आज़ादी की लड़ाई की, जिसमें मदनलाल पाहवा शामिल हैं। चूंकि अरोड़ा मुख्यतः पश्चिमी पंजाब क्षेत्र से हैं, इसलिए इनमें से अधिकांश को भारत के विभाजन के समय भारत आना पड़ा।

विभाजन के बाद

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महाराजा रंजीत सिंह के समय से या उसके भी पहले से ही अरोड़ा लोग अमृतसर में आकर बस गए थे।[12] यह माना जाता है कि वे सिंध या मुल्तान से आकर लाहौर में बस गए और फिर उसके बाद अमृतसर में। यह निष्कर्ष इस बात से निकला गया है कि काफी लम्बे समय तक केंद्रीय पंजाब में रहने के बाद उन्होंने अपनी देसी भाषा ल्हांडा का प्रयोग बंद कर दिया।[12] अरोड़ा सिख अधिकतर बड़े शहरों में पाए जाते हैं, विशेषकर अमृतसर में। वे विभाजन के पूर्व से ही वहां रह रहे थे। उनके हिन्दू समकक्ष, जिनमे से अधिकांश पाकिस्तान से आकर बस गए थे, मात्र 100 से 400 मील कि दूरी को तय करने में एक महीने या उससे भी अधिक समय की यात्रा पूर्ण करके 1947 में भारत आ गए, वे भूख और प्यास से पीड़ित और बीमार थे और अधिकांशतः उनके पास वही एक मात्र वस्त्र था जिसे उन्होंने पहना हुआ था। अरोड़ा जाति के लोग न सिर्फ इन संकटों के उत्तरजीवी रहे बल्कि वे और समृद्ध भी हुए।[12] अमृतसर गैज़ेटियर यह दावा करता है कि अरोड़ा जाति के लोग बहुत ऊर्जावान और बुद्धिमान होते हैं। वे अधिकतर व्यवसाय और उद्योगों में लगे हुए हैं। एक ही शहर में बसे अपने समकक्षों की तुलना में वे व्यापारिक कौशल में उत्कृष्ट हैं। इस समुदाय के काफी लोग सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।[16] होशियापुर गैज़ेटियर कहता है "स्वतंत्रता से पूर्व, शहर में अरोड़ा जाति के लोगों की संख्या अधिक नहीं थी। 1947 में पाकिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम लोगों के साथ, वे भी यहां आकर बस गए, हालांकि वे छोटी संख्या में आये थे। अधिकतर अरोड़ा लोग पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में और फिरोजपुर नगर में बसे थे। पंजाब के पूर्वीय नगरों में उनकी संख्या उल्लेखनीय नहीं थी।

विभाजन से पूर्व, अरोड़ा सिर्फ अपनी उपजाति में या सामान भौगोलिक क्षेत्र के सदस्यों से ही विवाह करते थे, अर्थात, उत्तराधि, दक्खन या दाहरा से। लेकिन विभाजन के बाद, घर वालों की मर्जी से होने वाले विवाहों का सामाजिक दायरा पंजाबी मूल के ही अन्य समुदायों तक विस्तृत किया गया, विशेषकर खत्री, भाटिया और सूद समुदायों में।[12] पंजाबियों के अन्य समुदायों के साथ अंतर्जातीय विवाह और भारत और विश्व के अन्य भागों में विवाह करना बहुत आम बात हो गयी और दिन प्रतिदिन यह बात और भी साधारण होती जा रही है। यह सभी उपजातियां भी इतने बढ़िया ढंग से मिश्रित हो गयीं कि अब इनकी ओर समग्र रूप से पंजाबी अरोड़ा कहकर संकेत किया जाता है या मात्र 'पंजाबी' समुदाय कहकर संकेत किया जाता है। अरोड़ा लोग (और सामान्यतया सभी पंजाबी), विशेषकर बड़े शहरों में रहने वाले अरोड़ा जाति के लोग और अधिक उदारवादी होते जा रहे हैं और इसी के साथ वर्ण व्यवस्था की अधिकाधिक अवहेलना कर रहे हैं। अब पंजाबियों में, विवाह संबंधों में प्राथमिक माने जाने वाले जाति के मुद्दे का स्थान सामाजिक आर्थिक प्रतिष्ठा ने लिया है।

भारत के अधिकांश अरोड़ा हिन्दू हैं और सिख सम्प्रदाय में ये अल्पसंख्यक समूह के रूप में हैं, हालांकि सिख समुदाय के अन्दर वे काफी प्रभावशाली माने जाते हैं।[17] अपनी धार्मिक आस्था के मामले में अरोड़ा जाति के लोग बहुत ही सहिष्णु हैं। इनमे अधिकांश हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं; हालांकि, वे आर्य समाज की पवित्रता का भी आदर करते हैं और प्रायः ही आर्य समाज के मंदिरों, जैन मंदिरों और सिखों के गुरूद्वारे में जाते हैं। पिछली कई शताब्दियों से, एक हिन्दू अरोड़ा परिवार के सबसे बड़े बेटे ने 18वीं शताब्दी में सिख गुरुओं के प्रति पारिवारिक श्रद्धा के फलस्वरूप स्वेच्छा से धर्मान्तरण करके सिख धर्म को अपना लिया।[18] दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के क्षेत्रों में अधिकांश मंदिर अरोड़ा जाति के नियंत्रण में हैं। उन क्षेत्रों में जहां अरोड़ा जाति के लोगों की संख्या अधिक है, वहां पर अधिकांश शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, सनातन धर्म मंदिर, दुर्गा मंदिर और कृष्ण मंदिर का प्रबंधन अरोड़ा समुदाय द्वारा ही किया जाता है।

अरोड़ा के कई गोत्र हैं। इनका उपयोग उपनाम के रूप में भी होता है।[19] कुछ गोत्रों के नाम निम्नलिखित है:-

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Ṭaṇḍana, Sītārāma (2000). Kshatriya (Khatriya) paramparā. Śrī Khatrī Upakāriṇī Sabhā Lakhanaū kī ora se Nīlama Ejensīja. पृ॰ 163. अरोड़ा खत्री
  2. Kapūra, Navaratna (1999). Uttara Bhārata ke loka parva: eka vaijñānika viśleshaṇa. Uttara Kshetra Sāṃskr̥tika Kendra. पृ॰ 183. पाकिस्तान बन जाने के बाद बहुत से अरोड़ा खत्री परिवार स्वाधीन भारत में आ बसे हैं।
  3. हिंदी विश्वकोश. नागरीप्रचारिणी सभा. 1960. पृ॰ 237.
  4. Rose, H.A (1997). A glossary of the tribes and castes of the Punjab and North-West frontier province [पंजाब और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत के जनजातियों और जातियों की शब्दावली।] (अंग्रेज़ी में). New Delhi: Nirmal Publishers and Distributors. पृ॰ 17. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788185297699.
  5. Jain, Prem Suman (1975). Kuvalayamālākahā kā sāṃskr̥tika adhyayana. Prākr̥ta-Jaina-Śāstra evaṃ Ahiṃsā Śodha-Saṃsthāna. पृ॰ 113.
  6. B.N.Pandey (2022-07-11). Sanskritik Nibandh evam Kahaniyan. BFC Publications. पृ॰ 189. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5509-993-8. अरोड़ा, खत्री, बात्रा, भाटिया भट्टी आदि मुख्यतः क्षत्रिय हैं और सम्बंधित समूह है। अरोड़ा स्थानवाचक नाम है।
  7. McLeod, W.H. (2009). The A to Z of Sikhism (अंग्रेज़ी में). Lanham: Scarecrow Press. पृ॰ 21. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780810863446.
  8. शास्त्री, पंडित राधाप्रसाद (1943). अरोड़ वंश व्यवस्था. लाहौर: बाम्बे मैशीन प्रेस. पृ॰ 32. संस्कृत में ओड्र कहते हैं और प्राकृत में अरोड़ ।
  9. Maṇḍāvā, Devīsiṅgha (1992). Bhārata aura Bhāratīyatā ke rakshaka. Raṇabāṅkurā Prakāśana. पृ॰ 2.
  10. डेंजिल इबेट्सन, एडवर्ड मैकलगन, एच. ए. रोज़, अ ग्लौसरी ऑफ़ द ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ़ द पंजाब एंड नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस, 1911, पीपी 17 खंड द्वितीय
  11. इसोबेल शॉ, पाकिस्तान हैंडबुक, (गाइडबुक कं, हांगकांग, 1989), पीपी 117
  12. "पंजाब राजस्व". मूल से 26 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 दिसंबर 2010.
  13. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2020.
  14. सिख विरासत Archived 2010-12-20 at the वेबैक मशीन विभिन्न संप्रदाएं
  15. डी. इबेट्सन, ई.मैकलगन, एच. ए. रोज़, " अ ग्लौसरी ऑफ़ द ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ़ द पंजाब एंड नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस", 1911, पीपी 17 खंड द्वितीय
  16. "(सी) धर्म और जाति". मूल से 26 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 दिसंबर 2010.
  17. "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 दिसंबर 2010.
  18. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 दिसंबर 2010.
  19. Dictionary of American Family Names (अंग्रेज़ी में). ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. 2003. पृ॰ xcvii. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780199771691. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)

बाहरी कड़ियाँ

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