हरी सिंह थापा
हरि सिंह थापा भारतीय अन्तरराष्ट्रीय बक्सर एवम् राष्ट्रिय कोच हैं। हरि भारतीय बक्सिंग के पितामह उपाधि से परिचत हैं। भारत के ललात हिमालय के वृक्षस्थल एवं कूमार्चल की वीर प्रसविनी श्स्य श्यामला भूमी अनंत काल से ही देश भक्तो, वैज्ञानिको तथा वीर सेनानियो की जन्मदात्री रही है। इसी उत्तरांचल कि पावन धरती ने क्रीड़ा क्ष्रेत्र मै भी ऐसे अनेक ज्वाज्वल्यमान रत्नों को जन्म दिया है जिनकी आभा ने देश ही नहीं बाल्कि विदेशो को भी आलोकित किया है। जहां एक ओर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद चीन और पाकिस्तान से युध मै एवं उसके बाद बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई के मैदान में यहां के जांबांजो ने अपने अद् भुत यूध कौशल एंव शोर्य से जनपद का नाम रोशन किया, वहीं दूसरी ओर जनपद पिथौरागढ़ के खिलाड़ियो ने खेल के मैदनों में भी अपने उत्कृष्ट खेल क प्रदर्शन से अन्तरराष्ट्रीय खेल जगत के इतिहास में पिथौरागढ़ क नाम स्वणाक्षरों में अन्कित करवाया गया है। इन्हीं विशिष्ट खिलाड़ियो मै एक नाम है -अन्तरराष्ट्रीय मुक्केबाज श्री हरी सिंह थापा का, जिन्होने अपनी लगन एवं मेहनत से मुक्केबाज क ऊंचे सपनों को पारकर भारत का श्रेष्ठ मुक्केबाज होने क गौरव प्राप्त किया।
निजी जीवन
[संपादित करें]# कॉमनवेल्थ खेल में प्रथम पदक प्राप्तकर्ता - 1958 मिडिलवेट ग्रुप में कांस्य ।
- ऐसियाई खेल में प्रथम पदक प्राप्तकर्ता ।
- देश को बॉक्सिंग का पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक दिलाने वाले।
- प्रथम देवभूमि उत्तराखंड द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्तकर्ता - 2013
निजी जीवन
[संपादित करें]उत्तरांचल की इस विभुति का जन्म १४ अग्स्त १९३२ को झाँसी (उत्तर प्रदेश) गोदर थापा क्षत्रिय परिवार मै हुआ था। इनके पिता श्री जीत सिहं थापा ब्रिटिश इण्डियन टूप्स में सेवारत थे। माता श्रीमती सीता देवी छेत्री धार्मिक प्रवत्ति वाली एक कुशल ग्रहणी थी। इनके तीन संतानो मै पुत्र हरि, आनन्द एंव पुत्री शांति हैं। पिता श्री जीत सिहं ने सन् १९३३ मै सेना से सेवानिवृत्ति के उपारान्त मऊ (मध्य प्रदेश) मै सिविल नौकरी कर बच्चों को वहीं सिक्षा- दीक्षा देना उचित सामझा। हरि सिहं ने झान्सी से सन् १९४७ मै जुनियर हाईस्कुल की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाल्य्काल से ही आपकी खेलो मै विशेश रुचि थी। आगे पड़ाई कि इच्छा न होने क कराण हरि सिहं ने पिता क समान ही सेना मै जाकर देश सेवा का निश्चय कर लिया। शीघ्र ही उन्हे देश सेवा मै अपने आपको समर्पित करने क अवसर भी मिला गया। उनको १४ अगस्त १९४७ को सिग्नल ट्रैनिंग सेंटर की बॉय रेजिमेंट में भर्ती कर लिया गया त्तथा रेडियो मेकॅनिक का ट्रेड दिया गया।
जो खेल प्रतिभा थापा जी मै बच्पन से ही मोजूद थी, उसे सेना मै जाकर प्रस्फुटित होने क अव्सर मिला। प्रारम्भ मै सेना मै उन्होने फुटबॉल,तैराकी,मुक्केबाज़ी आदि खेलों मै भग लिया, पर अन्त्त: बॉक्सिंग कोच ड्डीमलो कि प्रेर्णा से उन्होने बॉक्सिंग को अपना मुख्य खेल बना लिया। उन्होने आच्छे मुक्केबाज़ बनने क लिये कड़ी महेनत कि थी। बाद मै यह महेनत रंग लाई क्योकि वह अपने बॅटिल्लियन चम्पिओन्शिप जीतकर यह सीध कर दिया कि उनमें श्रेस्ट मुक्केबाज़ बनने क सारे गुण मोजुद है। वह प्रतिदिन बॉक्सिंग क अभायस करते थे।
सन् १९५९ कि मीडिल वेट कि अखिल भातीय चम्पिओन्शिप मै स्वर्ण पदक की प्राप्ति के बाद हरी सिहं को सन १९६१ मै बॉक्सिंग सेर्विस टीम का राष्ट्रीय कोच नियुक्त कर दिया। इस पद पर थापा जी १९६५ तक कार्यरत रहे।
खेल यात्रा
[संपादित करें]सन् १९५० की राष्ट्रयीय प्रतियोगिता मै चँपियन।
- अगली राष्ट्रयीय चम्पीाँशिप मै फाइनल मॅच मई श्रीथापा ने रेलवे के खिलाड़ी को हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया।
- सन् १९५७ को फ़ोर्ट विलियम कॉलेज कोलकता मई आयोजित हो रही राष्ट्रीय चम्पीाँशिप के फाइनल मे हवलदार थापा ने नौसेना के विकेट को फाइनल मॅच मे मात्र ३० सेकेंड्स मे धूल चटा कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
- सन १९५८ मई टोक्यो (जापान) मई आयोजित थर्ड एशिया खेलो की मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता मे थापा को रेफ की ग़लत डिसिशन का शिकार होगार खाली रजत पदक से हे संतोष होना पड़ा।
- ५ फेरवरी सन १९५४ की राष्ट्रीय मुक्केबाज़ प्रतियोगिता के फाइनल मॅच क पूर्वी कमान खेम बहादुर क साथ श्री थापा की भिरन्त हुई, थापा ने अंको के भारी अन्तर के आधर पर इस मॅच मे स्वर्ण पदक जीता।
- हरि सिहं थापा ने ऐसे कई अन्य यात्रा मै गये थे और जीत की प्रप्ति की।
पदकों द्वारा सम्मान
[संपादित करें]श्री थापा जी को देश क प्रति समपर्ण को देखते हुए उन्हें समय- समय पर सेना द्वारा विभिन्न पदकों से सम्मानित किय गया। जिसका विवर्ण इस प्रकार है:-
- रक्षा पदक
- संग्राम पदक
- सेना मेडल
- इंडियन इंड़पेंडेंट पदक
- नाइन इयर लोंग सेवा पदक
थापा ने इन्हें गढ़ा
[संपादित करें]इनमे से कुछ लोग यह है-
- अर्जुन अवार्डी पद्म बहादुर मल्ल,
- पद्मश्री हवा सिंह,
- द्रोणाचार्य अवार्डी ओमप्रकाश भारद्वाज,
- एमके राय,
- एसके राय,
- एमएल विश्वकर्मा,
- डॉ॰ धर्मेंद्र भट्ट,
- भास्कर भट्ट,
- राजेंद्र सिंह,
- जगजीवन सिंह,
- सीएल वर्मा,
- किशन सिंह,
- प्रकाश थापा,
- संतोष भट्ट आदि
श्री थापा भारतीय सेना की सिलग्न कोर कंपनी से सन् १९७५ मे ऑनररी कॅव्प्टार्नश् के पद से सेवनिवित्त हुए। इसके उपरान्त उन्होने अपने घर जनपद पिथौरागढ़ के देव सिहं क्रीड़ा मैदान मै बच्चों को निशुल्क बॉक्सिंग ट्रैनिंग देना शुरू किया। इन्ही के कुशल प्रशिक्ष्ण के फल्सरुप आज पिथौरागढ़ क पास दर्जनों राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रात्रिय मुक्केबाज़ है और आज् भी ७२ वर्ष की उम्र मै भी वे अपने गाव मे छोटे -छोटे बच्चों को मुक्केबाज़ कि निशुल्क कोचैंग दे रहे है। श्री थापा का मुख उड्द्देश् नवयुवकों के मन खेल क प्रति रूचि उत्पन्न करना तथा नशे जैसे बुरी लतों से उन्हे दूर रखना चहाते हैं।
देश को बॉक्सिंग का पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक दिलाने वाले हरि सिंह थापा पर खेल विभाग और प्रदेश सरकार, बॉक्सिंग के पितामह माने जाने वाले थापा को पहले देवभूमि उत्तराखंड द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजा गया।[1]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ धरोहर पुस्तक