सिनकोना
सिनकोना | |
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Cinchona pubescens - पुष्प | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
अश्रेणीत: | एंजियोस्पर्म |
अश्रेणीत: | द्विबीजपत्री |
अश्रेणीत: | ऍस्टरिड्स |
गण: | जेन्टियैनेलिस |
कुल: | रुबीशी |
उपकुल: | सिन्कोनॉएडी |
वंश समूह: | सिन्कोनी[1] |
वंश: | चिंचोना L. |
प्रजाति | |
लगभग ३८ प्रजातियाँ; देखें पाठ |
चिंचोना (Cinchona) एक सदाबहार पादप है जो झाड़ी अथवा ऊँचे वृक्ष के रूप में उपजता है। यह रूबियेसी (Rubiaceae) कुल की वनस्पति है। इनकी छाल से कुनैन नामक औषधि प्राप्त की जाती है जो मलेरिया ज्वर की दवा है।
यह बहुवर्षीय वृक्ष सपुष्पक एवं द्विबीजपत्री होता है। इसके पत्ते लालिमायुक्त तथा चौड़े होते हैं जिनके अग्र भाग नुकीले होते हैं। शाखा-प्रशाखाओं में असंख्य मंजरी मिलती है। इसकी छाल कड़वी होती है। इस वंश में ६५ जातियाँ हैं। सिनकोना का पौधा नम-गर्म जलवायु में उगता है। उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्र जहां तापमान ६५°-७५° फारेनहाइट तथा वर्षा २५०-३२५ से.मी. तक होती है चिंचोना के पौधों के लिए उपयुक्त है। भूमि में जल जमा नहीं होना चाहिए तथा मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ अधिक होने चाहिए। मिट्टी अम्लीय तथा नाइट्रोजन का स्तर ८% से अधिक उपयुक्त है। पौधें के लिए पाला तथा तेज हवा हानिकारक है। भारत में दार्जिलिंग आदि ठंडी जगहों पर इसके पौधे देखने को मिलते हैं।[2] यूरोपीय वैज्ञानिकों को इसका पता सबसे पहले एंडीज़ पहाड़ियों में १६३० के आस-पास लगा।[3]
परिचय
सिनकोना मुख्यत: दक्षिणी अमरीका में ऐंडीज पर्वत, पेरू तथा बोलीविया के ५,००० फुट अथवा इससे भी ऊँचे स्थानों में इनके जंगल पाए जाते हैं। पेरू के वाइसराय काउंट सिंकन की पत्नी द्वारा यह पौधा सन् १६३९ ई. में प्रथम बार यूरोप लाया गया और उन्हीं के नाम पर इसका नाम पड़ा। सिनकोना भारत में पहले पहले १८६० ई. में सर क्लीमेंट मारखत द्वारा बाहर से लाकर नीलगिरि पर्वत पर लगाया गया। सन् १८६४ में इसे उत्तरी बंगाल के पहाड़ों पर बोया गया। आजकल इसकी तीन जातियाँ सिनकोना आफीसिनेलिज (C. Officinalis), सिनकोना (C. Succirubra) पर्याप्त मात्रा में उपजाई जाती हैं।
सिनकोना के १० वर्ष या उससे पुराने वृक्षों में एल्केल्वाय़ड्स का परिमाण सर्वाधिक होता है। वृक्षों के आधार से १ मीटर ऊँचाई तक की छाल को उपयोग हेतु संग्रह किया जाता है। जड़ की छाल में भी एल्केल्वाय़ड्स समान मात्रा में पाए जाते है। जब वृक्ष गिर जाते हैं तो उनकी छाल को संग्रह कर लिया जाता है। संग्रहीत छाल को छाया में सुखाया जाता है। वर्षा के दिनों में इन्हें १७५°F तक कृत्रिम रूप से सुखाया जाता है। औषधि के निर्माण के लिये छाल को महीन पीस लिया जाता है। इस चूर्ण में १/३ भाग बुझा चुना तथा ५% दाहक खार (कास्टिक सोडा) का जलीय घोल मिलाया जाता है। इस मिश्रण को उबलते हुए कैरोसिन से निस्सारित (एक्सट्रैक्ट) किया जाता है। इस निस्सारण में पर्याप्त मात्रा में गर्म तनु गंधकाम्ल मिलाने पर कुनैन (क्यूनीन) का अवक्षेप प्राप्त होता है। कुनैन के उपयोग से मलेरिया बुखार की दवा तैयार की जाती है। हैनिमैन जो कि स्वंय एलोपैथिक चिकित्सक थे, एक दिन उन्होनें देखा कि स्वस्थ शरीर में यदि सिनकोना की छाल का सेवन किया जाये, तो कम्पन ओर ज्वर पैदा हो जाता है, ओर सिनकोना ही कम्पन और ज्वर की प्रधान दवा है।[4]
प्रजातियाँ
औषधीय प्रजातियाँ
- [Cinchona calisaya] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help) Wedd. (1848).
- सिनकोना लेजेरियाना (Howard) Bern.Moens ex Trimen
- [Cinchona officinalis] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help) L. (1753): क्विनिन छाल
- [Cinchona pubescens] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help) Vahl (1790) : क्विनिन वृक्ष
- सिनकोना सुकिरुब्रा
अन्यान्य प्रजातियाँ
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सन्दर्भ
- ↑ "Genus Cinchona". Taxonomy. UniProt. अभिगमन तिथि 13 फरवरी 2010.
- ↑ "मलेरिया". पत्रिका.कॉम. मूल (एएसपीएक्स) से 20 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २९ जनवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "सिनकोना बार्क" (एचटीएमएल) (अंग्रेज़ी में). बेल लाइब्रेरी. अभिगमन तिथि २९ जनवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "महादेवी होमियोपैथी एक परिचय" (एचटीएमएल). होम्योपैथी-नई सोच/नई दिशायें. अभिगमन तिथि २९ जनवरी २००८.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ