रोनाल्ड रॉस
रोनाल्ड रॉस | |
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जन्म |
1857 अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड, भारत |
आवास | संयुक्त राजशाही (ब्रिटेन) |
राष्ट्रीयता | संयुक्त राजशाही (ब्रिटेन) |
जातियता | ब्रिटिश |
क्षेत्र | मलेरिया के परजीवी प्लास्मोडियम |
संस्थान | इंग्लैंड |
उल्लेखनीय सम्मान | मलेरिया के परजीवी प्लास्मोडियम में नोबेल पुरस्कार, 1902 |
रोनाल्ड रॉस (13 मई 1857 - 16 सितंबर 1932) एक ब्रिटिश नोबेल पुरस्कार विजेता थे। उनका जन्म भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊँ के अल्मोड़ा जिले के एक गॉंव में हुआ था। उन्हें चिकित्सा तथा मलेरिया के परजीवी प्लास्मोडियम के जीवन चक्र के अन्वेषण के लिये सन् 1902 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।
जीवन परिचय
[संपादित करें]रोनाल्ड रॉस का जन्म 13 मई, 1857 में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमांऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा जिले के एक गॉंव में हुआ था। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) के दौरान कई अंग्रेजी शासक मैदानी इलाकों से जान बचाने के लिये कुमांऊँ की पहाड़ियों की ओर चले गये थे। इसी कालचक्र के बीच रोनाल्ड रॉस के पिता सर कैम्पबैल क्लेब्रान्ट रॉस अपनी पत्नी मलिदा चारलोटे एल्डरटन के साथ अल्मोड़ा पहुँच गये थे, इस प्रवास के बीच उनकी पत्नी मलिदा चारलोटे एल्डरटन ने यहॉं पर एक शिशु को जन्म दिया जिसका नाम रोनाल्ड रॉस पड़ा। डा० रॉस अपने माता-पिता की दस सन्तानों में सबसे शीर्ष थे।[1][2][3]
शिक्षण काल एवम् सेवा काल
[संपादित करें]रोनाल्ड रॉस को लगभग आठ वर्ष की अवस्था में उनके चाचा-चाची के साथ इंग्लैंड के आइल ऑफ वाइट में भेज दिया गया था, जहॉं पर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। तदोपरांत, उनकी माध्यमिक शिक्षा इंग्लैंड के साउथऐम्पटन के निकट स्प्रिंगहिल नामक एक बोर्डिंग स्कूल में हुई। सन् 1880 में स्कूली पढ़ाई के पश्चात पिता के कथनानुसार उन्होंने लंदन के सेंट बर्थेलोम्यू मेडिकल स्कूल में अध्ययन किया। अध्ययन के पश्चात लगभग 1880-81 के दौरान भारत लौट आये। जन्मभूमि व भारत के प्रति लगाव होने के कारण, वे इंडियन मेडिकल सर्विस की परीक्षा की तैयारी में जुट गये थे। पहली बार असफलता के बाद, अगले वर्ष (सन् 1881) भारत के चौबीस सफल छात्रों में से 17वें सफल छात्र के रूप में उत्तीर्ण हुये। आर्मी मेडिकल स्कूल में चार महीने के ट्रेंनिग के बाद वे इंडियन मेडिकल सर्विस में एडमिशन लेकर, स्वेच्छानुसार कोलकाता या मुम्बई के बजाय मद्रास प्रेसिडेंसी (वर्तमान चेन्नई) में उनका चयन हुआ था। चेन्नई में उनका अधिकॉश समय व कार्य मलेरिया पीड़ित सैनिकों का इलाज करना था, जो उनके शौक व समर्पण के अनुरूप था। कारणवश 1888 में पुन: भारत छोड़कर इंगलैंड चले गये थे, जहॉं उन्होंने रॉयल कॉलेज के सर्जनों तथा प्रोफेसर ई° क्लेन के अनुसरण में जीवाणु विज्ञान का गहन अध्ययन किया। सन् 1889 में फिर भारत लौटने पर सेवा काल के दौरान मलेरिया पर थ्योरी तथा अनुसंधान किये। उनके पास बुखार का जो भी कोई रोगी आता, वे उसका खून का नमूना सुरक्षित कर, घंटों माइक्रोस्कोप के साथ अध्ययन करते थे। फलस्वरूप जिसकी उपलब्धि आज सर्वविदित है।[4]
प्रमुख विषयों के अलावा अन्य रुचियॉं
[संपादित करें]अपने प्रमुख विषय व कर्तव्यों के अलावा डा. रॉस कई अन्य पहलुओं के भी प्रतिभवान थे। उन्हें बचपन से प्रकृति-प्रेम, संगीत, कला, साहित्य, कविताऐं तथा गणित के प्रति भी गहरा लगाव था। सोलह वर्ष की उम्र में उन्होंने ड्राइंग में ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज की स्थानीय परीक्षाओं में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया था। वे पूरी प्रतिबद्धता पूर्वक संगीत-रचना, कविता और नाटकों के लेखन तथा संगोष्ठियों में समय-समय पर भाग लेते थे। उन्होंने कुछ उपन्यास तथा कविताओं की रचना भी की थी।
आविष्कार तथा उपलब्धियॉं
[संपादित करें]रोनाल्ड रॉस ने मच्छरों के जठरांत्र सम्बन्धी क्षेत्र में मलेरिया परजीवी, उनकी खोज तथा मलेरिया मच्छरों द्वारा प्रेषित अन्वेषण किया। उनकी वसूली के लिए नेतृत्व किया और मलेरिया रोग का मुकाबला करने के लिए नींव रखी। पच्चीस साल तक भारतीय चिकित्सा सेवा के दोरान अपनी कर्तव्यपरायणता का बखूबी निर्वहन के पश्चात सेवा से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद इंगलैंड के ट्रॉपिकल मेडिसिन के लिवरपूल स्कूल के संकाय में शामिल हुए और 10 साल तक उन्होंने संस्थान के ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन किया। सन् 1926 में उनके योगदान तथा उपलब्धियों के सम्मान में रॉस संस्थान और अस्पताल स्थापित किया गया था, जो उष्णकटिबंधीय रोगों के निदान का अस्पताल तथा संस्थान के रूप में स्थापित हुआ था। 16 सितम्बर, 1932 को डा० रोनाल्ड रॉस यहीं पर अपनी अन्तिम सॉंस लेने के पश्चात दुनियॉं को जीवन-रक्षक औषधि प्रदान कर हमेशा के लिए विदा हो गये थे।
सम्मान
[संपादित करें]- सन् 1902 में विश्व का नोबेल पुरस्कार चिकित्सा तथा मलेरिया के परजीवी प्लास्मोडियम के जीवन-चक्र के अन्वेषण के लिये।
- सन् 1923 में अल्बर्ट मेडल तथा मैंशन मेडल से भी सम्मानित किया गया था।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Sir Ronald Ross, (born May 13, 1857), Almora, India". Encyclopaedia Brittanica, Inc, अंग्रेजी संस्करण. मूल से 3 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसम्बर 2017.
- ↑ "Ronald Ross, a British medical doctor who linked the disease of Malaria to mosquitoes, was born in Almora, in present-day Uttarakhand". Indiatoday in Education, अंग्रेजी संस्करण. मूल से 22 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसम्बर 2017.
- ↑ "Ronald Ross was the son of C.C.G. Ross who was a general of the English Army। He was brought to this world by his mother Matilda Charlotte Elderton and his birthplace was in Almora which is now Uttarakhand in India". Famous Scientists, The Art of Genious, अंग्रेजी संस्करण. मूल से 28 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसम्बर 2017.
- ↑ "Ross is remembered for his malaria work". Centers for disease Control and Prevention, अंग्रेजी संस्करण. मूल से 9 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 दिसम्बर 2017.