शीत ऋतु
शीत ऋतु | |
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शीतकालीन (अल्फोन मुचा, 18 9 6) |
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शीत ऋतु
सन्दर्भ
[संपादित करें]वर्षा ऋतु की समाप्ति के पश्चात् शरद् ऋतु का आगमन होता है । पंचवटी में श्रीराम-लक्ष्मण से शरदागम का वर्णन करते हुए कहते हैं:
वर्षा विगत सरद रितु आई । लछिमन देखहू परम सुहाई ।। फूले कास सकल महि छाई । जनु बरसा कृत प्रगट बुढ़ाई ।।
आश्विन और कार्तिक शरद् ऋतु के दो मास होते हैं । इस ऋतु में सूर्य पिंगल और उष्ण होता है । आकाश निर्मल और कहीं-कहीं श्वेत वर्ण मेघ युक्त होता है । सरोवर कमलों सहित हंसों से शोभायमान होते हैं । सूखी भूमि चीटियों से भर जाती है ।
वर्षा काल में भूमिस्थ जल में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ मिल जाते हैं । मल, मूत्र, कीट, कृमि उनका मल-मूत्र सब कुछ जल में आकर मिल जाता है । इसे निर्विष करने के लिए सूर्य की जीवाणु नाशक प्रखर किरणें, चन्द्रमा की अमृतमय किरणें और हवा आवश्यक है तथा यह सब शरद् ऋतु में प्राप्त होती है ।
शरद् ऋतु में रातें ठण्डी और सुहावनी हो जाती है । वन कुमुद और मालती के फूलों से सुशोभित होते हैं । अनगिनत तारों की चमक और चन्द्रमा की चांदनी से रात्रि का अन्धकार दूर हो जाता है । संसार ऐसा लगता है । मानों दूध के सागर में स्नान कर रहा हो ।
शरद् ऋतु के सुहावने मौसम में ऐसा कोई सरोवर नहीं है जिस में सुन्दर कमल न हों, ऐसा कोई पंकज नहीं है जिस पर भ्रमर नहीं बैठा हो, ऐसा कोई भौंरा नहीं है जो गूंज न रहा हो । ऐसी कोई भनभनाहट और पक्षियों का कलरव नहीं जो मन न हर रहा हो । कहने का तात्पर्य यह है कि शरद् ऋतु में कमल खिले हुए है, कमलों पर बैठे हुए भौरों की रसीली गूंज मनुष्यों के चित्त को चुरा रही हैं |
स्वास्थ्य सुरक्षा
[संपादित करें]आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार यह ऋतु सभी रोगों की माता है | रोगाणां शारदी माता |
इस समय विशेष कर पित्तजन्य बीमारियाँ होती हैं | इससे बचने के लिए खीर , गुलकंद , लौकी , पेठा जैसे पित्त शामक पदार्थ खाने चाहिए | तली हुई , मिर्च मसालेदार भोजन से बचना चाहिए |[1]
इस ऋतु में आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है | हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है |
इस दिन खीर बनाकर चन्द्रमा के किरणों में रखा जाता है | यह उत्तम पित्तशामक होता है |[2]