शासन देव-देवी (जैन धर्म)

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तीर्थंकर ऋषभदेव की यक्षिणी चक्रेश्वरि

हिंदू एवं बौद्ध धर्म की भांति ही जैन धर्म में भी विभिन्न देवी एवं देवताओं का का उल्लेख आता है | इन देवी एवं देवताओं को अधिष्टायिका देव-देवी , यक्ष - यक्षिणी व शासन देव-देवी आदि नामों से जाना जाता है | जैन धर्म मे उल्लेखित प्रत्येक चौबीस तीर्थंकरों के अलग-अलग शासन देव और शासन देवियां होती है | जैन आगम के अनुसार प्रत्येक तीर्थंकर के समवशरण के उपरांत इन्द्र द्वारा प्रत्येक तीर्थंकर के सेवक देवो के रूप मे एक यक्ष -यक्षिणी को नियुक्त किया गया है | हरिवंश पुराण के अनुसार इन शासन देव-देवीयों के प्रभाव से शुभ कार्यो मे वाधा डालने वाली शक्तियाँ समाप्त हो जाती है |[1]

तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षिणी अम्बिका



चौबीस तीर्थंकरों के शासन देव और शासन देवियां[2][3][4][5][6][7][8][संपादित करें]

क्र० तीर्थंकर शासन देव शासन देवी
0१ श्री ऋषभनाथ गोमुख देव चक्रेश्वरी देवी
0२ श्री अजितनाथ महायक्ष देव रोहिणी देवी
0३ श्री संभवनाथ त्रिमुख देव प्रज्ञप्तिदेवी
0४ श्री अभिनंदननाथ यक्षेश्वर देव व्रजश्रृंखला देवी
0५ श्री सुमतिनाथ तुम्बरू देव पुरुषदत्ता देवी
0६ श्री पद्यप्रभु कुसुमदेव मनोवेगा देवी
0७ श्री सुपार्श्वनाथ वरनन्दि देव काली देवी
0८ श्री चंद्रप्रभु विजय देव ज्वालामालिनी देवी
0९ श्री पुष्पदंत (सुवधिनाथ) अजित देव महाकाली देवी
1० श्री शीतलनाथ ब्रह्मेश्वर देव मानवी देवी
1१ श्री श्रेयांसनाथ कुमार देव गौरी देवी
1२ श्री वासुपूज्य षणमुखदेव गांधारी देवी
1३ श्री विमलनाथ पाताल देव वैरोटी देवी
1४ श्री अनंतनाथ किन्नर देव अनंतमती देवी
1५ श्री धर्म नाथ किंपुरुष देव मानसी देवी
१६ श्री शांतिनाथ गरुड़ देव महामानसी देवी
१७ श्री कुंथुनाथ गंधर्व देव जया देवी
१८ श्री अरहनाथ महेंद्र देव विजया देवी
१९ श्री मल्लिनाथ कुबेर देव अपराजितादेवी
२० श्री मुनिंसुव्रतनाथ वरुण देव बहुरूपिणी देवी
२१ श्री नमिनाथ विधुत्प्रभ देव चामुण्डी देवी
२२ श्री नेमिनाथ गोमेध (श्वेताम्बर)

सर्वाण्हदेव (दिगंबर)

अंबिका देवी [9](कुषमाण्डी)
२३ श्री पार्श्वनाथ धरणेन्द्र देव पद्मावती देवी
२४ श्री महावीर मातंग देव सिद्धायनी देवी

साहित्यिक विवरण[संपादित करें]

चौबीस यक्ष -यक्षिणी युगलों की विस्तृत सूची श्वेताम्बर ग्रंन्थ कहावली व प्रवचन सारोध्दार तथा दिगंबर ग्रंन्थ त्रिलोकपण्णति मे मिलती है | एवम्ं इनके स्वरुपो का विस्तृत वर्णन प्रतिष्ठा सरोधार[5] व त्रिशस्ति श्लाका पुरुष चारित्र[10] आदि ग्रंन्थो मे मिलता है |[11]

पुरातात्विक विवरण[12][संपादित करें]

इन शासन देवी एवं देवताओं अंकन तीर्थंकर मूर्तियों के साथ एवम इनकी स्वतन्त्र मूर्तियां भी मिलती हैं। तीर्थंकरो की मूर्तियां मौर्य काल तक ही मिलती हैं, लगभग तभी से शासन देवताओं की भी मूर्तियां मिलती हैं। लोहानी पुर (पटना) मे जो मौर्य कालीन तीर्थंकर मूर्ति मिली थी, उसके साथ एक यक्षी-मूर्ति भी उपलब्ध हुई थी। ईसापूर्व प्रथम शताब्दी मे तो तीर्थंकर-मूर्तियों के समान यक्ष-यक्षियों की मूर्तियां भी बहुसंख्या मे बनने लगी थीं। उनके कलागत वैशिष्ट्य के भी दर्शन होते हैं। इस काल की शासन-देवताओं की अनेक मूर्तियां- उदयगिरि- खण्डगिरि के गुहा-मन्दिरों और मथुरा मे विभिन्न स्थानो पर उत्खनन से प्राप्त हुई हैं।

उदयगिरि (विदिशा) की गुफा क्र० १ व २० जैन धर्म से सम्बन्धित है यहा भी तीर्थंकर पार्श्वनाथ की यक्ष - यक्षिणी धरणेन्द्र देव-पद्मावती व तीर्थंकर शीतलनाथ की यक्ष - यक्षिणी ब्रह्मेश्वर देव-मानवी देवी का अंकन है |

सातवीं-आठवीं शताब्दी की शासन देवताओं की मूर्तियों की दृष्टिसे एलोरा की गुफाएं अत्यन्त समृद्ध हैं। यहां शासन देवताओ मे चक्रेश्वरी,अंबिका , पद्मावती , सिद्धयिका यक्षियों की और गोमेद, मातंग और धरणेन्द्र की मूर्तिया अधिक मिलती है। यहां की गुफा नम्बर-30 के बाह्य भाग मे द्वादश भुजी इन्द्र नृत्य मुद्रा मे अंकित है। मूर्ति विशाल है। इन्द्रअलंकार धारण किए हुए है। उसकी भुजाओ पर देवियांनृत्य कर रही हैं। देव समाज वाद्य बजा रहे है। यहां की अनेक मूर्तियों के सिर के ऊपर आम्रगुच्छक है। अम्बिका की मूर्तियों के सिर पर अथ्वा हाथ मे आम्रस्तवक है। एक बालक गोद मे है, दूसरे बालक को हाथ से पकड़े हुए है। [13]

देवगढ़ के 31 जैन मंदिरो में यक्ष-यक्षी की अलंकरण-सज्जा, सुघड़ता और सौन्दर्य की ओर शिल्पी ने विशेष ध्यान दिया है।[14]

नौवी-दसवीं शताब्दी की यक्ष-यक्षियों की मूर्तियो मे कला को अपने उत्कृष्ट रूप मे उभरने का अवसर खजुराहो मे प्राप्त हुआ है। यहां शासन देवताओं की मूर्तिया प्रायः जिनालयों की बाह्य जंघाओ और रथिकाओं की रूप-पट्टि का ओंपर उत्कीर्ण हैं। एक शिल्पी सौन्दर्य की जो ऊंची से ऊची कल्पना कर सकता है, ये मूर्तिया उसकी कल्पना के साकार रूपहैं।

जैनाश्रित कला मे तीर्थंकर के समान शासन देवी-देवताओं की मूर्तियो का भी प्रचलन रहा है। इसलिए ये प्रायः सभी प्राचीन मन्दिरो और तीर्थंक्षेत्रो पर इनकी पाषाण और धाुतु-प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। ये मूर्तिया तीर्थंकर मूर्तियों के दोनो पाश्र्वो मे अंकित मिलती है और इनकी स्वतंन्त्र मूर्तिया भी मिलती हैं। उपलब्ध यक्ष-मूर्तियो मे गोमेद, धरणेन्द्र और मातंग की मूर्तियां अधिक मिलती हैं। इसी प्रकार यक्षियो मे चक्रेश्वरी, ज्वाला मालिनी, अंबिका , पद्मावती की मूर्तिया सबसे ज्यादा मिलती है। अंबिका की ऐसी अनेक मूर्तियां मिलती है, जिनमे देवी के एक हाथ मे आम्र फल है या गोद मे बालक है और एक बालक देवी की उंगली पकड़े खडा है। पद्मावती की मूर्तियो मे पद्मावती सुखासन से बैठी है। देवी के सिर पर सर्प-फण है और फण के ऊपर पाश्र्वनाथ तीर्थंकर विराजमान है।

यक्ष-यक्षियों की स्वतन्त्र मूर्तियां तो मिलती ही है, उनके स्वतन्त्र मन्दिर भी मिलते है। जैसे कटनी के समीप विलहरी ग्राम के लक्ष्मणसागर के तट परसागर के तट पर चक्रेश्वरी देवी का एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। चक्रेश्वरी देवी गरूड़ पर विराजमान है और उनके शीर्ष पर आद्य तीर्थंकर ऋषभदेव विराजमान है। फतेहगढ़ साहिब मे भी चक्रेश्वरी देवी का एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है।[15] इसी प्रकार सतना के निकट पतियान दाई का एक मन्दिर है। एक शिला फलक मे चौबीस यक्षियों की मूर्तियां है। मध्य मे अम्बिका विराजमान है तथा दोनो पाश्र्वो मे तीर्थंकर और यक्षी मूर्तियां बनी हुई हैं। यह मूर्ति-फलक आजकल प्रयाग संग्राहलय मे सुरक्षित है; अम्बिका चतुर्भुजी है। इनके कण्ठ मे हार, मुक्ता माल, बांहो मे भुजबन्द, हाथो मे नागावलि सुशोभित है। केश-विन्यास त्रिवल्यात्मक है। देवी के मस्तक पर भगवान नेमिनाथ का अंकन हैं। कला की दृष्टि से अम्बिका और 23 यक्षियों की इतनी भव्य मूर्ति अन्यत्र कही देखने मे नही आई। संभवतः यह फलक 10-11वीं शतब्दी का है।

वर्तमान स्थापत्य कला के संन्दर्भ मे दिगंबर परंपरा की अपेक्षा श्वेताम्बर परंपरा मे इन शासन देवी एवं देवताओं अंकन अधिक मिलता है |

सन्दर्भ्[संपादित करें]

  1. Magginsenachariya (1914). Harivansh Puran Hindi Rupanter.
  2. Tiwari, Maruti Nandan Prasad (1981). Jain Pratima Vigyan.
  3. Bhattacharya B. C. (1939). The Jaina Iconography (1939).
  4. Shitalprasad. Pratishtha Saar Sangrah.
  5. Aashadhar (1917). Pratishtha Saroddhar.
  6. "दिगम्बर जैन मतानुसार शासन देव- देवी - ENCYCLOPEDIA". hi.encyclopediaofjainism.com. मूल से 3 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-04-30.
  7. "जिनागम में शासन देव-देवी - ENCYCLOPEDIA". hi.encyclopediaofjainism.com. मूल से 14 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-04-30.
  8. Shah, Umakant Premanand (1987). Jaina-rūpa-maṇḍana (अंग्रेज़ी में). Abhinav Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7017-208-6. मूल से 27 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मई 2020.
  9. Ambika In Jaina Art And Literature. मूल से 24 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2020.
  10. "Trishasti Shalaka Purusa Caritra Jain classic as PDF" (अंग्रेज़ी में). 2016-11-08. मूल से 26 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-05-01.
  11. https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/26814/12/12_chapter%205.pdf
  12. "Sashan Devatao ki Murtiya". jainpuja.com. मूल से 28 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-04-30.
  13. Pereira, Jose (2001-12). Monolithic Jinas (अंग्रेज़ी में). Motilal Banarsidass Publ. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-2397-6. मूल से 9 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मई 2020. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  14. archaeology, Universiteit van Amsterdam Institute of South Asian. studies in south asian culture (अंग्रेज़ी में). Brill Archive. मूल से 20 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मई 2020.
  15. "माता श्री चक्रेश्वरी देवी जैन मंदिर". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 2020-04-30.