"नीलगिरी (यूकलिप्टस)": अवतरणों में अंतर

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नीलगिरी
Buds, capsules and foliage of E. terticornis
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Plantae
अश्रेणीत: Angiosperms
अश्रेणीत: Eudicots
अश्रेणीत: Rosids
गण: Myrtales
कुल: Myrtaceae
उपकुल: Myrtoideae
वंश समूह: Eucalypteae
वंश: Eucalyptus
L'Hér.
Species

About 700; see the List of Eucalyptus species

Natural range
पर्यायवाची

Aromadendron Andrews ex Steud.
Eucalypton St.-Lag.
Eudesmia R.Br.
Symphyomyrtus Schauer[1]

नीलगिरी उच्चारित/ˌjuːkəˈlɪptəs/[2] मर्टल परिवार, मर्टसिया प्रजाति के पुष्पित पेड़ों (और कुछ झाडि़यां)की एक भिन्न प्रजाति है. इस प्रजाति के सदस्य ऑस्ट्रेलिया के फूलदार वृक्षों में प्रमुख हैं. नीलगिरी की 700 से अधिक प्रजातियों में से ज्यादातर ऑस्ट्रेलिया मूल की हैं, और इनमें से कुछ बहुत ही अल्प संख्या में न्यू गिनी और इंडोनेशिया के संलग्न हिस्से और सुदूर उत्तर में फिलपिंस द्वीप-समूहों में पाये जाते हैं. इसकी केवल 15 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया के बाहर पायी जाती हैं, और केवल 9 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया में नहीं होतीं. नीलगिरी की प्रजातियां अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, भूमध्यसागरीय बेसिन, मध्य-पूर्व, चीन और भारतीय उपमहाद्वीप समेत पूरे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उगायी जाती हैं.

नीलगिरी तीन सजातीय प्रजातियों में से एक है, जिन्हें आमतौर पर "युकलिप्ट्स" कहा जाता है, अन्य हैं कोरिंबिया और एंगोफोरा . इनमें से कुछ, लेकिन सभी नहीं, गोंद के पेड़ के रूप में भी जाने जाते हैं, क्योंकि बहुत सारी प्रजातियों में छाल के कहीं से छील जाने पर ये प्रचुर मात्रा में राल (जैसे कि, अपरिष्कृत गोंद) निकालते हैं. इसका प्रजातिगत नाम यूनानी शब्द ευ (eu ) से आया है, जिसका अर्थ "अच्छा" और καλυπτος (kalyptos ), जिसका अर्थ "आच्छादित" है, जो बाह्यदलपुंज का ऊपरी स्तर होता है जो प्रारंभिक तौर पर फूल को ढंक कर रखता है.[3]

नीलगिरी ने वैश्विक विकास शोधकर्ताओं और पर्यावरणविदों का ध्यान आकर्षित किया है. यह तेजी से बढ़नेवाली लकड़ी का स्रोत है, इसके तेल का इस्तेमाल सफाई के लिए और प्राकृतिक कीटनाशक की तरह होता है, और कभी-कभी इसका इस्तेमाल दलदल की निकासी और मलेरिया के खतरे को कम करने के लिए होता है. इसके प्राकृतिक परिक्षेत्र से बाहर, गरीब आबादी पर लाभप्रद आर्थिक प्रभाव के कारण नीलगिरी का गुणगान किया जाता है[4][5]:22 और जबरदस्त रूप से पानी सोखने के लिए इसे कोसा भी जाता है,[6] इससे इसका कुल प्रभाव विवादास्पद है.[7]

विवरण

नीलगिरी रेग्नंस, एक जंगल का पेड़, शिखर आयाम का चित्र, तस्मानिया, ऑस्ट्रेलिया
नीलगिरी कमलड्यूलेनसिस, अपरिपक्व वुडलैंड पेड़, सामूहिक शिखर प्रकृति का चित्र, मूर्रे नदी, टोकुमवल, न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया
नीलगिरी क्रेटाटा, यौवन संबंधी, झुकी शाखाओं की 'मल्ली' रूप का चित्र, मेलबोर्न, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया
नीलगिरी अंगौस्टसीमा, झाड़ी रूप का चित्र, मेलबोर्न, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया
नीलगिरी प्लाटिपस, 'मर्लोक' रूप का चित्र, मेलबोर्न

आकार और प्राकृतिक वास

एक परिपक्व नीलगिरी कम ऊंचाई वाली झाड़ी या बहुत बड़े वृक्ष का रूप ले सकता है. इसकी प्रजातियों को तीन प्रमुख प्राकृतिक वास और चार आकार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है.

"वन वृक्ष" के रूप में सामान्यीकरण किया जाए तो यह एकल तनेवाला और इसका शिखर पूरे वृक्ष की ऊंचाई के छोटे-से अनुपात में हुआ करता है. "वनस्थली वृक्ष" एकल तनेवाले होते हैं, हालांकि भू-स्तर से ऊपर कुछ दूरी पर इसकी शाखाएं भी हो सकती हैं.

"मल्ली" भू-स्तर से बहु-तनायुक्त होते हैं, आमतौर पर ऊंचाई में 10 मी॰ (33 फीट) से कम, प्रायः टहनियों के अंत में मुख्यतः इसके शीर्ष होते हैं और अकेले पौधे एक खुले या संवृत बनावट का सम्मिश्रण हो सकते हैं. कई मल्ली पेड़ इतने छोटे हो सकते हैं कि उन्हें झाड़ी कहा जा सकता है.

पेड़ के दो अन्य प्रकार पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में उल्लेखनीय हैं और देशी नाम "माल्लेट" और "मर्लोक्क" से उनका वर्णन होता है. "माल्लेट" एक छोटे से मध्यम आकार का पेड़ है जो लिग्नोट्यूबर पैदा नहीं करता है और जिसका तना अपेक्षाकृत लंबा होता है, जिसकी डालियां नीचे की ओर झुकी होतो हैं और प्रायः इसका सीमावर्ती शीर्ष सुस्पष्ट रूप से घना होता है. यह युक्लिप्टस ऑक्सीडेंटलिस , ई. एस्ट्रिंजेंस , ई. स्पाथुलता , ई. गार्डनरी , ई.डिएलसिल , ई.फॉरेस्टियाना , ई. सैल्यूब्रिस , ई. क्लिविकोला और ई. ऑर्नाटा के परिपक्व स्वस्थ नमूनों की सामान्य आदत है. माल्लेट की चिकनी छाल में अक्सर एक साटन जैसी चिकनी चमक होती है और जो सफेद, मक्खनी, धूसर या तांबई हो सकती है.

शब्द मर्लोक्क का उपयोग विविध रूप में किया जाता है; फ़ॉरेस्ट ट्री ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया में इसका वर्णन लिग्नोट्यूबर के बिना एक ऐसे छोटे वृक्ष के रूप में किया गया है जिसका तना छोटा होता है, माल्लेट की तुलना में झुकी डालियां होती हैं. वे आमतौर पर कमोबेश शुद्ध स्थानों में पनपते हैं. ई. प्लेटिपस , ई. वेसिक्युलोसा और असंबंधित ई. स्टोटेई के स्थान स्पष्ट रूप से पहचानने योग्य उदाहरण हैं.

"मोर्रेल" शब्द की उत्पत्ति कुछ हद तक अस्पष्ट है और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के गेहूं क्षेत्र और स्वर्ण क्षेत्रों के पेड़ों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है, जिसका तना लंबा, सीधा, पूरी तरह से खुरदुरी छाल होती है. अब इसका प्रयोग मुख्य रूप से ई. लौंगीकोर्निस (लाल मोर्रेल) और ई. मेलानोक्सिलोन (काला मेर्रोल) के लिए किया जाता है.

पेड़ के आकार की परिपाटी निम्न हैं:

  • लघु — ऊंचाई में 10 मी॰ (33 फीट) तक
  • मध्यम आकार — 10–30 मी॰ (33–98 फीट)
  • लंबा — 30–60 मी॰ (98–197 फीट)
  • बहुत अधिक लंबा — 60 मी॰ (200 फीट)

पत्तियां

लगभग सभी नीलगिरी सदाबहार होते हैं लेकिन कुछ उष्णकटिबंधीय प्रजातियों के पत्ते शुष्क मौसम के अंत में झर जाते हैं. मर्टल परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ जैसा होता है, नीलगिरी के पत्तों में तैल ग्रंथियां भर जाती हैं. प्रचुर तेल का उत्पादन करना इस प्रजाति की एक महत्वपूर्ण विशेषता है. हालांकि परिपक्व नीलगिरी के पेड़ आमतौर पर बहुत ऊंचे और पत्तियों से आच्छादित होते हैं, इनका रंग खासतौर पर चकतीदार होता है क्योंकि पत्तियां आमतौर पर नीचे की ओर झुकी होती हैं.

नीलगिरी एंगोफोराइड्स के पत्ती और फूलों की कलियों का गुच्छा
नीलगिरी टेट्रागोना, हलके नीले रंग के पत्तों और टनों का चित्र

परिपक्व नीलगिरी वृक्ष के पत्ते आमतौर पर बरछी के नोक के आकार के, पत्ती के डंठल की तरह, और स्पष्टतया वैकल्पिक और मोमयुक्त और चटकदार हरे होते हैं. इसके उलट, अंकुरित बीज के पत्ते अक्सर इसके विपरीत, डंठल रहित और हल्के नीले रंग के होते हैं. लेकिन इस प्रतिरूप के बहुत सारे अपवाद हैं. कई प्रजातियां जैसे कि प्रजनन लायक परिपक्व हो जाने पर भी ई. मेलनोफ्लोइया और ई. सेटोसा की पत्तियों की कोमलता बनी रहती है. कुछ प्रजातियां जैसे ई. मैक्रोकरपा , ई. रोडैनथा और ई. क्रुसिस की पत्तियां आजीवन कोमल होने के कारण सजावट के लिए इनका उपयोग होता है. कुछ प्रजातियां जैसे कि ई. पेट्रिया , ई. डुनडासी और ई. लैंसडाउनियना की पत्तियां पूरे जीवन क्रम में चटकदार हरी होती हैं. ई. कैसिया अंकुरण के चरण में चटकदार हरी और परिपूर्ण परिपक्व अवस्था में हल्के नीले रंग की पत्तियों के साथ ज्यादातर नीलगिरी की पत्तियों के विकास के विपरीत नमूना दिखाती हैं. कोमल और परिपक्व पत्तियों के चरण का निरूपण क्षेत्र की पहचान में महत्वपूर्ण है.

नीलगिरी वृक्ष के विकास की पहचान पत्तियों के चार चरणों में होती है: 'अंकुरण', 'तारूणिक', 'मध्यवर्ती' और 'परिपक्व' चरण. हालांकि चरणों के बीच कोई निश्चित संक्रमणकालीन बिंदु नहीं होता है. मध्यवर्ती चरण, प्रायः जब पत्तियां सबसे बड़ी ‍होती हैं, तारुणिक और परिपक्व चरण के बीच की कड़ी होती है.[8]

कुछ प्रजातियों को छोड़कर बाकी सभी में, एक वर्ग तना के विपरीत दिशा में पत्तियां जोड़े में बनती हैं, क्रमागत जोड़ी एक-दूसरे के समकोण (चतुष्क) में होती हैं. कुछ संकरी पत्तियोंवाली प्रजातियों, उदाहरण के लिए ई. ऑलेओसा , में पुरानी पत्तों की जोड़ी के बाद की अंकुरण पत्तियां अक्सर पांच तरफ से निकले तने के करीब से साफतौर पर घुमावदार प्रक्रिया में गुच्छा बनाती हैं. घुमावदार चरण के बाद, जिसमें कुछ से लेकर बहुत सारे गुल्म रह जाते हैं, तने से निकली हुई कुछ पत्तियों द्वारा समावेशित होने से यह व्यवस्था पलट कर चतुष्क हो जाती है. उन प्रजातियों में परिपक्व पत्तियों की जोड़ी के गुच्छे के विपरीत, जो डंठल के शीर्ष के विपरीत बन सकती हैं, डंठल के असमान वृद्धि के कारण वै‍कल्पिक परिपक्व पत्तियों के निर्माण के लिए ये अपने आधार से अलग हो जाती हैं.

नीलगिरी लयूकोक्सीलों वर.'रोसिया' ओपर्कुलम उपस्थित के साथ फूलों और कलियों का चित्र
नीलगिरी मेलिओडोरा, फूलों और फलों के बीजकोष का चित्र

फूल

इ. इरेथ्रोकोर्य्स के फूल की कलियां और ओपेरकुला

नीलगिरी की प्रजातियों को आसानी से पहचानने लायक विशेषताएं विशिष्ट फूल और फल (संपुटिका या "गमनट्स") हैं. फूलों के असंख्य रोएंदार पुंकेसर होते हैं जो सफेद, मक्खनी, पीले या गुलाबी हो सकते हैं; कली में, पुंकेसर ऑपरक्युलम नामक एक बाह्य आवरण से ढंके होते हैं, यह आवरण सेपलों या पंखुड़ियों या दोनों से बना होता है. इस प्रकार फूलों में पंखुड़ियां नहीं होती हैं, लेकिन वे खुद को कई दिखावटी पुंकेसरों से सजाते हैं. पुंकेसरों का जैसे-जैसे विस्तार होता जाता है, ऑपरक्युलम खुलता जाता है, फूल के कप की तरह के आधार से वो विभाजित हो जाता है; यह एक विशेषता है जो कि वंश को एकजुट रखती है. युक्लिप्टस शब्द यूनानी शब्दों से बना है; eu- (ईयु-), अर्थात् सुरक्षित या भली-भांति, और kaluptos (कलुप्टोस), अर्थात् आवरण; ओपरक्युलम का अर्थ हुआ "सुरक्षित आवरण". काठ फल या कैप्सूल मोटे तौर पर शंकु के आकार के होते हैं और जिनके अंत में वाल्व हुआ करते हैं जिन्हें खोलकर बीज निकाले जाते हैं. वयस्क पत्तियों के आने शुरू होने से पहले अधिकांश प्रजातियों में फूल नहीं खिलते;नीलगिरी सिनेरिया और नीलगिरी पेर्रीनियाना इसके उल्लेखनीय अपवाद हैं.

द डार्क, यूकलिप्टस साइद्रोक्सिलन के फिशर्ड 'आयरनबर्क'

छाल

बार्क डिटेल ऑफ़, नीलगिरी एंगोफ़ोरोइड्स, एप्पल बॉक्स

पेड़ की उम्र, छाल के शेड के किस्म, छाल के रेशे की लंबाई, शिकनों की दशा, मोटाई, कड़ापन और रंग के साथ नीलगिरी छाल का रूप-रंग आदि बदलता रहता है. सभी परिपक्व नीलगिरी छाल की एक वार्षिक परत डाला करते हैं, जो तने के व्यास को बढ़ाने में योगदान देता है. कुछ प्रजातियों में, सबसे बाहरी परत मर जाया करती है और सालाना झड़ जाती है, या तो लंबे-लंबे टुकड़ों में (जैसे कि नीलगिरी शीथियाना में) या अलग-अलग आकार के टुकड़ों में (ई. डायवरसीकलर , ई. कोस्मोफिल्ला या [[ई. क्लाडोकैलिक्स|ई. क्लाडोकैलिक्स ]] ). ये गोंद या चिकनी-छाल की प्रजातियां हैं. गोंद छाल फीकी, चमकीली या साटनदार (जैसे कि ई. ऑर्नाटा में) या चमकरहित (ई. कॉस्मोफिल्ला ) हो सकती हैं. कई प्रजातियों में मृत छाल पेड़ से झड़ती नहीं. तने की अनिवार्य रूप से खुरदुरी-छाल की प्रकृति में कोई फेरबदल किये बिना इसकी सबसे बाहरी परत धीरे - धीरे समय और शेड के साथ विखंडित होती है - उदाहरण के लिए ई. मार्जिनाटा , ई. जैकसनी , ई. ऑब्लीकुआ और ई. पोरोसा .

दक्षिण पूर्व एशिया के लिए असाधारण नीलगिरी डेगलुपता देशी छाल का रंग

कई प्रजातियां "हाफ बार्क" या "ब्लैकबट्ट" होती हैं, उनमें मृत छाल तने के निचले आधे हिस्से में बनी रहती है - उदाहरण के लिए ई. ब्राचीकैलिक्स , ई. ऑकरोफ्लोईया और ई. ऑक्सीडेंटलिस - या फिर एकदम नीचे आधार में सिर्फ मोटे, काले रूप में संचयित होती हैं, जैसे कि ई. क्लेलैंडी में. ई. यंगीयाना और ई. विमीनलिस जैसी कुछ प्रजातियां इस श्रेणी में आती हैं, जिनकी खुरदुरी आधारीय छाल शीर्ष में बहुत ही फीतानुमा होती हैं, जिससे ऊपरी तने को निर्विघ्न रास्ता मिलता है. हाफ-बार्क की चिकनी ऊपरी छाल और पूरी तरह से चिकनी-छाल वाले पेड़ और मल्ली वृक्ष उत्कृष्ट रंग और दिलचस्पी पैदा कर सकते हैं, उदहारणस्वरूप ई. डेगलुप्त .[8]

नीलगिरी क्वाद्रणगुलता, या सफेद बॉक्स के छाल बॉक्स

छाल की विशेषताएं

  • रेशेदार छाल — इनमें लंबे रेशे होते हैं और इन्हें लंबे टुकड़ों में खींचा जा सकता हैं. आमतौर पर स्पंजी संरचना के साथ ये मोटी होती हैं.
  • लौहछाल — सख्त, खुरदुरी और गहरे शिकनदार होती हैं. यह सूखी किनो (पेड़ से निकलनेवाले रस) से भरी-पूरी होती है, जो इसे गहरा लाल या फिर काला रंग देती है.
  • छोटे चौखानों वाली — छाल कई अलग टुकड़ों में टूट जाती है. यह कॉर्कनुमा होती है और चूर की जा सकती है.
  • बॉक्स — ये छोटे रेशे होते हैं. कुछ चौकोर-सी दिखती हैं.
  • रिबन — इसकी छाल पतले-लंबे टुकड़ों में निकलती है, लेकिन फिर भी यह कुछ जगहों में ढीली-ढाली जुड़ी रहती हैं. ये लंबे फीतेनुमा, मजबूत धारीदार या घुंघराली हो सकती हैं.

प्रजातियां और वर्णसंकरत्व

नीलगिरी की 700 से अधिक प्रजातियां होती हैं; प्रजातियों की व्यापक सूची के लिए नीलगिरी वृक्ष की प्रजातियों की सूची देखें. कुछ प्रजातियां अपने वंश की मुख्यधारा से इस हद तक भिन्न हो गयी हैं कि वे आनुवंशिक रूप से एकदम अलग-थलग पड़ गयी हैं और उन्हें कुछ अपरिवर्तनीय विशेषताओं के जरिये ही पहचाना जा सकता है. तथापि, अधिकांश को संबंधित प्रजातियों के बड़े या छोटे समूहों के सदस्य के रूप में माना जा सकता है, जो अक्सर ही एक-दूसरे के साथ भौगोलिक संपर्क में रहते हैं और जिनके बीच जीन का आदान-प्रदान अब भी होता रहता है. इन स्थितियों में कई प्रजातियां एक-दूसरे में श्रेणीबद्ध होती दिखाई देती हैं, और मध्यवर्ती रूप आम हैं. दूसरे शब्दों में, कुछ प्रजातियां अपने आकृति विज्ञान के कारण अपेक्षाकृत निश्चित आनुवंशिकी की होती हैं, जबकि अन्य अपने नजदीकी रिश्तेदारों से पूरी तरह से भिन्न नहीं होतीं.

संकर प्रजाति के सभी पेड़ को हमेशा पहली प्रजाति के रूप में मान्यता नहीं दी जाती और कुछ का नई प्रजातियों के तौर पर नामकरण किया गया है, जैसे कि ई. क्राईसंथा (ई. प्रिसियाना x ई. सेप्युक्रैलिस ) और ई. "रायवलिस" (ई. मार्जिनाटा x ई. मेगाकर्पा ). संकर संयोजन इस क्षेत्र में विशेष रूप से आम नहीं हैं, लेकिन कुछ अन्य प्रकाशित प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया में अक्सर देखी जाती हैं जो संकर प्रजाति की समझी जाती हैं. उदाहरण के लिए, ई. एरीथरानड्रा को ई. अंगुलोसा × ई. टेरापटेरा माना जाता है और क्योंकि पुस्तकों में इसके व्यापक वितरण का प्रायः उल्लेख किया जाता है.[8]

संबंधित वंश

इसी तरह के वृक्षों का एक छोटा-सा वंश, अंगोफोरा , 18वीं सदी से जाना जाता है. 1995 में नए साक्ष्य, मुख्यतः आनुवंशिक, से संकेत मिला कि कुछ प्रमुख नीलगिरी प्रजातियां वास्तव में अन्य नीलगिरी के बजाय अंगोफोरा के कहीं अधिक करीबी हैं; और वे विभाजित होकर नए कोरिंबिया वंश में शामिल हो गयी हैं. हालांकि, अलग होने के बावजूद तीनों समूह संबद्ध हैं और ये सभी तीनों वंशज अंगोफोरा , कोरिंबिया और नीलगिरी (Eucalyptus), "युक्लिप्टस" ("eucalypts") के रूप में स्वीकार्य किये जाते हैं.

तस्मानिया के एक क्षेत्र में, 80 मीटर से अधिक नीलगिरी रेग्नंस

लंबी लकड़ी

कुछ नीलगिरी की गिनती दुनिया के सबसे लंबे पेड़ों में होती है. ऑस्ट्रेलियाई पर्वतीय ऐशवृक्ष नीलगिरी रेग्नांस सभी पुष्पित पेड़ों (आवृतबीजी) में सबसे लंबा है; आज की तारीख में, सेंचुरियन नामक सबसे लंबे नमूने की ऊंचाई 99.6 मी॰ (327 फीट) मापी गयी है.[9] केवल कोस्ट रेडवुड ही इससे अधिक लंबा होता है और कोस्ट डगलस-फर लगभग एक सामान होता है; वे शंकुवृक्ष (जिम्नोस्पर्म) हैं. छह अन्य प्रजातियों के नीलगिरी 80 मीटर से अधिक ऊंचाई के होते हैं: नीलगिरी ऑब्लिक्वा , नीलगिरी डेलीगेटेंसिस , नीलगिरी डायवर्सीकलर , नीलगिरी निटेंस , नीलगिरी ग्लोब्युल्स और नीलगिरी विमिनैलिस .

सहनशीलता

अधिकांश नीलगिरी शीत बर्दाश्त नहीं करते, या सिर्फ -3 डिग्री सेल्सियस से -5 डिग्री सेल्सियस तक की हलकी ठंड ही सह पाते हैं; [[नीलगिरी पॉसीफ्लोरा|नीलगिरी पॉसीफ्लोरा ]] जैसे तथाकथित स्नो गम्स पेड़ ही सबसे अधिक सहिष्णु होते हैं जो ठंढ सहने की क्षमता रखते हैं और -20 डिग्री सेल्सियस तक की ठंड सह लेते हैं. विशेषकर ई. पॉसीफ्लोरा उप-प्रजाति निफोफिला और ई. पौसीफ्लोरा उप-प्रजाति डेब्यूज़ेविल्लेई नामक दो प्रजातियां इससे भी अधिक सहिष्णु होती हैं, जो इससे भी ज्यादा ठंड बर्दाश्त करती हैं. अन्य अनेक प्रजातियां, विशेषकर मध्य तस्मानिया के ऊंचे पठार और पहाड़ों की [[नीलगिरी कोक्सीफेरा|नीलगिरी कोक्सीफेरा ]] , [[नीलगिरी सबक्रेनुलता|नीलगिरी सबक्रेनुलता ]] , और [[नीलगिरी गुन्नी|नीलगिरी गुन्नी ]] की प्रजातियां बहुत ही शीत-सहिष्णु बीजों का उत्पादन करती हैं और आनुवंशिक रूप से बहुत ही मजबूत नस्ल के इन बीजों को विश्व के शीत प्रदेशों में सजावट के लिए ले जाया जाता है.

पशु से नाता

फास्कोलार्कटोस सिनेरियस कोआला नीलगिरी की पत्तियों को खाते हुए
सॉफ़्लाई का लार्वा नीलगिरी की पत्तियों को खाते हुए

नीलगिरी के पत्तों से एक आवश्यक तेल निकाला जाता है, जिसमें ऐसे यौगिक होते हैं जो शक्तिशाली प्राकृतिक कीटनाशक का काम करते हैं और बड़ी मात्रा में यह विषैला भी हो सकता है. कई धानी शाकाहारी, विशेष रूप से कोआला और कुछ पोसम, अपेक्षाकृत इसे सह लेते हैं. इन तेलों के साथ फोर्मीलेटेड फ्लोरोग्लुसिनोल यौगिकों जैसे अन्य अधिक शक्तिशाली विषैले तत्वों का घनिष्ठ सहसंबंध कोआला तथा अन्य धानी प्रजातियों को पत्तों की गंध के आधार पर अपना भोजन चुनने की अनुमति देता है. कोआला के लिए ये यौगिक पत्तों के चयन में सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं.

नीलगिरी फूल काफी मात्रा में रस पैदा करते हैं, जो कीट, पक्षी, चमगादड़ और पॉसम सहित अनेक सेचन करनेवालों के भोजन के काम आता है. बहरहाल, नीलगिरी के पेड़ों में तेल और फेनिलक यौगिकों के कारण शाकाहारी जीवों से बचाव में सक्षम मालूम होता है, इनमें कीटों को मारनेवाले विष होते हैं. इनमें युक्लिप्टस के लंबी सूंडवाले छिद्रक सेमीपंकटेटा फोराकेंथा और ऐफिड जैसे साइलिड जो बेल लेर्पस नाम से जाने जाते हैं, शामिल हैं, दुनिया भर में जहां कहीं भी नीलगिरी की खेती होती है ये दोनों ही कीटनाशक के रूप में स्थापित हैं.

आग

गर्मी के दिनों में ऑस्ट्रेलियाई भूभाग पर नीलगिरी के तेल वाष्पीकृत होकर झाड़ी से ऊपर उठकर विचित्र किस्म की नीली धुंध की रचना करते है. नीलगिरी तेल अत्यंत ज्वलनशील होते हैं (ये वृक्ष विस्फोट के लिए जाने जाते हैं[7][10]) और झाड़ी की आग आसानी से तेल से भरपूर हवा के जरिए पेड़ों के शिखर तक पहुंच जाते हैं. मृत छाल और गिरती हुई शाखाएं भी ज्वलनशील होती हैं. छाल के नीचे लिगनोट्यूबर्स और एपिर्कोमिक कपोल के जरिए नीलगिरी के पेड़ नियतकालिक आग के लिए बहुत ही अनुकूल हैं.

उत्थान की स्थिति में नीलगिरी का वन
अक्टूबर 2007 की कैलिफोर्निया वाइल्डफायर्स की तेज हवाओं और गर्मी के कारण झुके हुए नीलगिरी के पेड़वे सैन डिएगो काउंटी के सैन डिएगुइटो रिवर पार्क में स्थित है और पश्चिम की तरफ झुकी हुई है

नीलगिरी 35 और 50 मिलियन साल पहले उत्पन्न हुआ है, लेकिन गोंडवाना से ऑस्ट्रेलिया-न्यू गिनी के अलग होने के बहुत बाद नहीं, चारकोल (काठ कोयला) में जीवाश्म के भंडार में वृद्धि (कहते हैं उन दिनों भी आग एक कारक थी) होने के साथ इनका उगना संयोग हैं, लेकिन लगभग 20 मिलियन साल पहले तक तीसरे युग के वर्षावन में ये क्षुद्र अवयव थे, जब महाद्वीप का पानी धीरे-धीरे सूखने लगा और मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी आने से कैजुआरिना और बबूल की प्रजातियों के खुले जंगल जैसी स्थिति का विस्तार होने लगा. लगभग पचास हजार साल पहले मानव जाति के प्रथम आगमन के साथ आग बहुधा लगने लगी और आग से खासा लगाव रखनेवाले नीलगिरी के पेड़ों ने मोटे तौर पर ऑस्ट्रेलियाई जंगल के 70% को अपने चपेटे में ले लिया.

दो बहुमूल्य पेड़, एल्पाइन ऐश ई. डेलेगाटेंसिस और ऑस्ट्रेलियाई पर्वतीय ऐश ई. रेगनैंस आग से खाक हो गए हैं और अकेले ये बीज से फिर से उत्पन्न हुए. 2003 में ऐसे ही झाड़ी में आग लगी जिसका कैनबेरा के आसपास के जंगलों में इसका थोड़ा असर हुआ, इसके परिणामस्वरूप हजारों हेक्टेयर भूमि पर मृत ऐशवृक्ष के जंगल का विस्तार हुआ. बहरहाल, कुछ ऐश वृक्ष रह गए और इसी के साथ नए ऐश वृक्ष भी उग आये. यह बहस का मुद्दा है कि इन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाए या अक्षतिग्रस्त लकड़ी की कटाई का प्रयास किया जाए, जिसे एक नुकसानदेह काम समझा जा रहा है.

खेती, उपयोग और पर्यावरण संबंधी संपत्ति

नमडगी नैशनल पार्क में यूकलिप्टस निफोफिलिया

नीलगिरी के बहुत सारे उपयोग हैं, जिसने आर्थिक रूप से इसे विशिष्ट बना दिया है, और दक्षिण अफ्रीका के कुछ देशों में इस पेड़ के तेजी से बढ़ने के कारण चिंता का विषय होने के बावजूद अफ्रीका के टिंबकटू[5]:22 और पेरू के एंडीज[4] जैसे गरीब क्षेत्र में यह नकदी फसल बन गया है.[6] सबसे अधिक ख्यातिप्राप्त किस्म संभवतया कारी और एलो बॉक्स हैं. तेजी से वृद्धि को प्राप्त करने के कारण, इन पेड़ों का सबसे अधिक लाभदायक चीज इनकी लकड़ियां हैं. इन्हें जड़ से काटा जा सकता है और फिर से उग जाते हैं. इनकी कई अभीष्ट विशषेताओं के कारण सजावट, लकड़ी, जलावन और कोमल लकड़ी के रूप में ये हमारे लिए उपयोगी है. इसमें अत्यधिक मात्रा में रेशे होने के कारण नीलगिरी को दुनिया भर में सबसे उत्तम किस्म का लुगदी देनेवाली प्राजति माना जाता है. बहुत सारे उद्योगों में बाड़ लगाने और काठ कोयला से लेकर जैविक ईंधन के लिए सैलुलोज निष्कर्षण तक इसका उपयोग होता है. तेजी से बढ़ने के कारण नीलगिरी वायुरोधक के रूप में और मिट्टी के क्षरण को कम करने में भी उपयुक्त है.

वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के जरिए नीलगिरी मिट्टी से बहुत बड़ी मात्रा में पानी सोखता है. कहीं-कहीं जलस्तर और मिट्टी में लवण की मात्रा को कम करने के लिए इन्हें लगाया (या बार-बार लगाया) जाता है. अल्जीरिया, लेबनॉन, सिसली,[11], यूरोप और कैलिफोर्निया में कहीं-कहीं, मिट्टी की निकासी द्वारा मलेरिया कम करने के लिए भी नीलगिरी के पेड़ का इस्तेमाल होता है.[12] निकासी से दलदल जहां मच्छरों के लार्वा पैदा होते हैं,सूख जाता है, लेकिन ये पारिस्थितिक रूप से उपजाऊ क्षेत्र को भी नष्ट करते हैं. यह निकासी मिट्टी के ऊपरी स्तर तक ही सीमित होता है, क्योंकि नीलगिरी के जड़ ऊपर-ऊपर ही होते हैं, अधोभौम क्षेत्र तक नहीं पहुंचता; इस कारण बारिश और सिंचाई मिट्टी को फिर से गीला कर देते हैं.

नीलगिरी का तेल पत्तों से आसानी से पिघल कर टपक जाता हैं और इनका उपयोग सफाई, दुर्गंधनाशक, और बहुत ही कम मात्रा में खाद्य पूरक, खासतौर पर मिठाई, खांसी की दवा और विसंकुलक के रूप में किया जा सकता है इसमें कीट प्रतिकारक गुण भी होते हैं (जान 1991 ए, बी; 1992), और वाणिज्यिक तौर पर कुछ मच्छर प्रतिकारकों में सक्रिय संघटक होते हैं.[13]

कुछ नीलगिरी के रस से उच्चकोटि का एक-पुष्पीय शहद बनता है. नीलगिरी की लकडि़यां आमतौर पर डेगरिडू बनाने के काम आती है, यह एक ऑस्ट्रेलियाई एबोरिजिना आदिवासियों का पारंपरिक सुषिर वाद्य है. पेड़ का तना दीमकों द्वारा खोखला कर दिया जाता है, और अगर इसका माप और आकार उपयुक्त है तो काट लिया जाता है.

नीलगिरी का हरेक हिस्से का इस्तेमाल जो कि प्रोटीन रेशे जैसे (सिल्क और ऊन) का मूल होता है, पेड़ को महज पानी के साथ प्रसंस्करण द्वारा रंग बनाने में होता है इससे हरा, पीला-भूरा, चॉकलेटी और गहरे मंडुर लाल रंग के जरिए पीले और नारंगी श्रेणी के रंग प्राप्त किए जाते हैं.[14] प्रसंस्करण के बाद बची सामग्री का सुरक्षित रूप से गीले घास या उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.[उद्धरण चाहिए]

खेती और पारिस्थितिकीय समस्याएं

1770 में वनस्पतिशास्त्री सर जोसेफ बैंक्स द्वारा कुक अभियान के दौरान पहली बार पूरी दुनिया का परिचय ऑस्ट्रेलिया के नीलगिरी से हुआ. बाद में विशेष रूप से कैलिफोर्निया, ब्राजील, इक्वाडोर, कोलंबिया, इथियोपिया, मोरक्को, पुर्तगाल, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा, इसराइल, गैलिसिया और चिली सहित दुनिया के अनेक क्षेत्रों में इसे लगाया जाने लगा. स्पेन में, कोमल लकड़ी के बागान में नीलगिरी लगाये जाने लगे. आराघर, लुगदी, चारकोल और अन्य अनेक उद्योगों का आधार है नीलगिरी . मुख्यतः वन्य जीवन के गलियारों और आवर्तन प्रबंधन के अभाव से कई प्रजातियां आक्रामक हो गयी हैं और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए बड़ी समस्या बन चुकी हैं.

समान अनुकूल जलवायु परिस्थिति के लिए कैलिफोर्निया और पुर्तगाल जैसे इलाकों में अक्सर ही नीलगिरी की जगह शाहबलूत के जंगल लगाए जाते हैं. मोनोकल्चर के परिणामस्वरूप जैविक विविधता के नुकसान के बारे में चिंता व्यक्त की जाती है. शाहबलूत के पेड़ नहीं होने से स्तनपायी और पक्षियों को खाने के फल उपलब्ध नहीं होते, उनके अभाव में उनके खोखले विवरों में पशु-पक्षियों को आवास नहीं मिल पाता और मधुमक्खियों के छत्तों के लिए स्थान नहीं रहता, साथ ही साथ व्यवस्थित वन में छोटे पेड़ों का अभाव भी होता है.

शुष्क मौसम में शाहबलूत के पेड़ अक्सर ही आग-प्रतिरोधी का काम करते हैं, विशेष रूप से खुले घास के मैदानों में, क्योंकि घास की आग बिखरे हुए पेड़ों को आग लगाने के लिए अपर्याप्त होती है. इसके विपरीत नीलगिरी जंगल आग फैलाने का काम करता है, क्योंकि इसकी पत्तियां विस्फोटक और अत्यधिक दहनशील तेल उत्पादित करती हैं. साथ ही साथ यह बड़ी मात्रा में ऐसा घासफूस भी पैदा करता है जो बहुत अधिक फेनोलिक्स होता है, जो फफूंदों से होनेवाले नुकसान से खुद को बचाता है और इस तरह भारी मात्रा मी सूखा, दहनशील ईंधन जमा कर लेता है.[15] नतीजतन, घने नीलगिरी के जंगल विनाशकारी आग की आंधी का कारण हो सकते हैं. एपिकोर्मिक अंकुरों और लिग्नोट्यूबर,[15] या सेरोटेनियस फलों के उत्पादन द्वारा पुनर्जीवित होने की योग्यता से नीलगिरी लंबे समय तक आग में बचे रहने की क्षमता अर्जन करते हैं.

उत्तर अमेरिका

कैलिफोर्निया . 1850 के दशक में, कैलिफोर्निया गोल्ड रश के दौरान कैलिफोर्निया में ऑस्ट्रेलियाईयों द्वारा नीलगिरी के पेड़ से परिचय कराया गया. कैलिफोर्निया के ज्यादातर हिस्से में ऑस्ट्रेलिया के कुछ इलाकों जैसी जलवायु है. 1900 के प्रारंभिक चरण में, राज्य सरकार के प्रोत्साहन से हजारों एकड़ में नीलगिरी के पेड़ लगाए गए थे. यह आशा थी कि निर्माण, फर्नीचर और रेलमार्ग टाई के लिए लकड़ी प्रदान करने के ये अक्षय स्रोत साबित होंगे. जल्द ही यह पाया गया कि अंतिम उद्देश्य के लिए नीलगिरी की लकड़ियां अनुपयुक्त हैं, क्योंकि नीलगिरी की लकड़ियों से बनी रेलमार्ग टाई सूखने पर मुड़ जाया करती हैं, और सूखी टाई इतनी कड़ी हो जाती हैं कि उनमे रेल की कील ठोंकना लगभग असंभव है.

"ऑस्ट्रेलिया के पुराने प्राकृतिक जंगलों पर आधारित कैलिफोर्निया में नीलगिरी के फायदे की संभावनाओं के वायदे पर वे चल पड़े थे. यह एक गलती थी क्योंकि सदियों पुरानी ऑस्ट्रेलिया के नीलगिरी लकड़ी के साथ कैलिफोर्निया के नए-नए पेड़ों की लकड़ी की गुणवत्ता की तुलना नहीं की जा सकती थी. इसकी कटाई के समय इसकी प्रतिक्रिया अलग प्रकार की होती. पुराने पेड़ों में दरार नहीं पड़ती या वे नहीं मुड़ते, जबकि कैलिफोर्निया की नयी लकड़ियों में ऐसा हुआ करता था. दोनों के बीच एक विशाल अंतर था, और इस कारण कैलिफोर्निया का नीलगिरी उद्योग बर्बाद हो गया.[16]

एक दूसरी तरह से नीलगिरी, मुख्य रूप से नीली गोंद ई. ग्लोब्युलस , कैलिफोर्निया में राजमार्गों, संतरे के बागीचों और राज्य के अधिकांश वृक्षहीन मध्य भाग के अन्य फार्मों में वायुरोधी बनाने में मूल्यवान साबित हुए. कई शहरों और बागानों में छाया तथा सजावटी पेड़ के रूप में भी इनकी प्रशंसा की जाती है.

कैलिफोर्निया के जंगलों में नीलगिरी की आलोचना इसीलिए की गयी क्योंकि यह स्थानीय पेड़-पौधों से प्रतिस्पर्धा करते हैं और स्थानीय पशुओं के जीवन के अनुकूल नहीं है. आग भी एक समस्या है. 1991 में ओकलैंड हिल्स अग्नि में लगभग 3,000 घर जल गये और 25 लोग मारे गये, इसके लिए आंशिक रूप से उन घरों के पास भारी तादाद में मौजूद नीलगिरी के पेड़ भी जिम्मेवार हैं.[17]

कैलिफोर्निया के कुछ भागों में नीलगिरी जंगलों को हटाकर वहां देशी पेड़-पौधे फिर से लगाये जा रहे हैं. कुछ व्यक्ति भी अवैध रूप से कुछ पेड़ नष्ट कर रहे हैं और संदेह है कि ऑस्ट्रेलिया से ऐसे विनाशकारी कीट लाये जा रहे हैं जो पेड़ों पर हमला करते हैं.[18]

नीलगिरी के पेड़ असाधारण रूप से प्रशांत उत्तर-पश्चिम में अच्छी तरह से काम आ रहे हैं: वाशिंगटन, ऑरेगोन और ब्रिटिश कोलंबिया के भागों में.

दक्षिण अमेरिका

उरुग्वे . एंटोनियो लुस्सिच ने लगभग 1896 में उरुग्वे में नीलगिरी पेड़ों की शुरुआत की, पूरे तौर पर अब जिसे मैल्डोनाडो विभाग के नाम से जाना जाता है और यह दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी तट तक सभी जगह फैल गया है. इस क्षेत्र में कोई पेड़-पौधे नहीं थे, क्योंकि यह सूखी रेत के टीलों और पत्थरों से बना है. (लुस्सिच ने विशेष रूप से बबूल और चीड़ जैसे अन्य पेड़ भी लगाए, लेकिन वे बड़े पैमाने पर तेजी से नहीं फैलते हैं.)

ब्राजील . 1910 में ब्राजील में लट्ठे के प्रतिस्थापन और चारकोल उद्योग के लिए नीलगिरी की शुरुआत हुई. यह स्थानीय वातावरण में फलने-फूलने लगा, और आज वहां लगभग 5 लाख हेक्टेयर भूमि पर इसके जंगल हैं. काठ कोयला और लुगदी और कागज उद्योगों द्वारा इसकी लकड़ी की अत्यधिक सराहना की गयी है. लघु क्रमावर्तन से लकड़ी का भारी उत्पादन होता है और कई अन्य गतिविधियों के लिए लकड़ी की आपूर्ति होती है, इससे देसी जंगलों की रक्षा में मदद मिलती है. प्रबंधन अच्छा हो तो वृक्षारोपण टिकाऊ होते हैं और मिट्टी अंतहीन पुनर्रोपण को जारी रख सकती है. नीलगिरी वृक्षारोपण वायुरोधक का काम भी करते हैं. ब्राजील के वृक्षारोपण की वृद्धि दर दुनिया में एक रिकॉर्ड है,[19] खास तौर पर वहां प्रति वर्ष 40 क्यूबिक मीटर प्रति हेक्टेयर रोपाई होती है और वाणिज्यिक कटाई 5 साल के बाद होती है. लगातार विकास और सरकारी धन के कारण, साल-दर-साल विकास में लगातार सुधार किया जा रहा है. नीलगिरी का उत्पादन प्रति वर्ष 100 क्यूबिक मीटर प्रति हेक्टेयर तक किया जा सकता है. नीलगिरी की लुगदी और लट्ठों के निर्यात और निर्माण के मामले में ब्राजील शीर्ष पर है, और इस क्षेत्र में देश के[तथ्य वांछित] प्रतिबद्ध अनुसंधान के जरिये ब्राजील ऑस्ट्रेलियाई बाजार के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. ब्राजील के स्थानीय लौह उत्पादक चारकोल के लिए दीर्घस्थायी परिपक्व नीलगिरी पर भारी भरोसा कर रहे हैं; इससे हाल के वर्षों में चारकोल की कीमत में भारी इजाफा हुआ है. थॉम्सन फोरेस्ट्री (Thomson Forestry) जैसी टिंबर एस्सेट कंपनियां या अराक्रुज सेलूलोज़ (Aracruz Cellulose) और स्टोरा एंसो (Stora Enso) जैसे सेलूलोज़ उत्पादकों के पास आम तौर पर वनों का स्वामित्व है और वही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उद्योग को संचालित करते हैं. 1990 में, ब्राजील ने लगभग 1 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था, और 2005 तक 3.5 बिलियन डॉलर का.[तथ्य वांछित] इस व्यापार अधिशेष ने कृषि क्षेत्र में बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश को आकर्षित किया. यूरोपीय निवेश बैंक और विश्व बैंक ने ब्राजील में लुगदी और कागज उद्योग तथा सेलूलोज़ प्रसंस्करण संयंत्रों के लिए विदेशी निवेश को पूरा सार्वजनिक समर्थन दिया. 1993 से ब्राजील के निजी उद्योग ने लुगदी और कागज उद्योग में 12 बिलियन डॉलर का निवेश किया है और हाल ही में वादा किया है कि इस क्षेत्र में अगले दशक में अतिरिक्त 14 बिलियन डॉलर का निवेश किया जाएगा.[कब?] वन उत्पाद उद्योग के खाते में सभी विश्व व्यापार लेखा का 3% आता है जो प्रति वर्ष 200 बिलियन अमेरीकी डॉलर से अधिक है. अनेक विदेशी TIMO (टिंबरलैंड इंवेस्टमेंट मैनेजमेंट ऑर्गनाइजेशन) की हाल की उपस्थिति वानिकी गतिविधि की आर्थिक क्षमता का एक आश्वासन है. दुनिया भर में TIMO प्रबंधित परिसंपत्ति 52 मिलियन डॉलर से अधिक है, जिसमें से 2012 से पहले 8 बिलियन डॉलर ब्राजील के विकास में निवेश किया जाना है.

कुल मिलाकर, उम्मीद है कि 2010 तक दक्षिण अमेरिका विश्व के नीलगिरी के गोल लट्ठों के 55 प्रतिशत का उत्पादन करने लगेगा.

अफ्रीका

इथियोपिया . 1894 या 1895 में, सम्राट मेनेलिक द्वितीय के फ्रांसिसी सलाहकार मोंडॉन विडैलहेट द्वारा या अंग्रेज कैप्टन ओ’ब्रायन द्वारा नीलगिरी से इथियोपिया का परिचय कराया गया. जलावन के लिए शहर के आसपास बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई होने के कारण मेनेलिक द्वितीय ने अपनी नई राजधानी अदीस अबाबा के आसपास इसके वन लगाने को बढ़ावा दिया. रिचर्ड आर. के. पंकहर्स्ट के अनुसार, "नीलगिरी का सबसे बड़ा फायदा है कि ये तेजी से बढ़ते हैं, थोड़ी-सी देखभाल की जरूरत होती है और जब इन्हें काट लिया जाता है तो ये जड़ से वापस उग आते हैं; हर दस साल में इनकी कटाई की जा सकती है. शुरूआत से ही पेड़ की सफलता सबित हो चुकी है".[20] नीलगिरी के बाग राजधानी से लेकर शहरी क्षेत्र के केंद्रस्थल तक जैसे डेब्रे मारकोज तक फैला हुआ है. पंकहर्स्ट कहते हैं कि 1960 के दशक के मध्य में एडीज अबाबा में सबसे आम प्रजाति ई. ग्लोबुलस मिला, हालांकि उन्हें ई. मेलिओडोरा और ई. रोस्ट्राटा भी अच्छी-खासी संख्या में भी मिला. 1940 के दशक के मध्य इथियोपिया के लेख में डेविड बक्सटॉन ने पाया कि नीलगिरी के पेड़ "अभिन्न हिस्सा बन गए हैं -- और शोऑन के भूभाग का खुशगवार -- तत्व बन गया और धीमी गति से बढ़नेवाले देसी 'सीडर' जुनिपेरस प्रोसेरा की जगह बड़े पैमाने पर लगाये गए)."[21]

आम मान्यता कि नीलगिरी की प्यास नदी और कुंएं को भी सूखा देती है, के कारण इस प्रजाति का ऐसा विरोध होने लगा कि 1913 में इस मुद्दे के कारण आंशिक रूप से सभी पेड़ों को नष्ट कर कर देने की घोषणा की गयी, और उनकी जगह शहतूत के पेड़ लगाये गए. पंकहर्स्ट कहते हैं, यह घोषणा मृत पत्र बन कर रह गया; "नीलगिरी को काटे जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला, लेकिन शहतूत के पेड़ फिर भी लगाए गए."[22] नीलगिरी अदीस अबाबा का खास पहचान रह गया.

मेडागास्कर. मेडागास्कर के मूल देशी जगंल के बड़े भाग में नीलगिरी के पेड़ लगाये गए, इससे एंडासिबे मैंनटाडिया राष्ट्रीय पार्क जैसे अलग-थलग रह गए प्राकृतिक क्षेत्रों की जैव विविधता पर खतरा पैदा हो गया.

दक्षिण अफ्रीका . दक्षिण अफ्रीका में भी नीलगिरी की बहुत सारी प्रजातियों को मुख्य रूप से लट्ठ और जलावन के लिए ही नहीं, बल्कि सजावट के लिए भी लाया गया. ये शहद के लिए मधुमक्खी पालकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं[23] बहरहाल, इनके पानी को सोख लेने की क्षमता से पानी की आपूर्ति को खतरा हो जाने के कारण दक्षिण अफ्रीका में इन्हें आक्रामक माना जाता है. वे आस-पास की मिट्टी में एक ऐसा रसायन भी छोड़ते हैं जिनसे देसी प्रतिद्वंद्वी मारे जाते हैं.[6]

नीलगिरी के अंकुर आमतौर पर देसी घास को पछाड़ पाने में असमर्थ होते हैं, लेकिन जब आग लगने से घास का आवरण हट जाता है, तब बीज की क्यारी बन सकती है. निम्नलिखित नीलगिरी प्रजातियां दक्षिण अफ्रीका में रचने-बसने में सक्षम हैं: ई. कैंलड्यूलेंसिस , ई. क्लैडोकैलिक्स , ई. डायवर्सीकलर , ई. ग्रैंडिस और ई. लेहमन्नी .[23]

जिंबाब्बे . दक्षिण अफ्रीका की ही तरह, नीलगिरी की कई प्रजातियां जिम्बाब्वे लायी गयीं, मुख्य रूप से टिम्बर और जलावन के लिए, और ई. रोबुस्टा और ई. टेरेटीकोर्निस को यहां के वातावरण में रचते-बसते दर्ज किया गया है.[23][23]

यूरोप

यूरोपीय पुर्तगाल में अज़ोरेस और गैलिसिया के असंख्य शाहबलूत के जंगलों की जगह लुगदी के लिए नीलगिरी के वन लगाये गये, जिससे वन्य जीवन पर बहुत ही बुरा असर पडा.

इटली में, 19वीं सदी की समाप्ति पर ही नीलगिरी का आगमन हुआ और 20 वीं सदी की शुरुआत में मलेरिया के खात्मे के लिए वहां की दलदली भूमि को सुखाने के लिए बड़ी तादाद में इसका वृक्षारोपण शुरू हुआ. इतालवी जलवायु में उनके तेजी से विकास और वायुरोधी के रूप में उनके उत्कृष्ट कार्य के कारण सिसली और सार्डिनीया द्वीपों सहित देश के मध्य तथा दक्षिण में इन्हें बड़े पैमाने में देखा जाता है. इनसे उत्पादित विशेष खुशबू और स्वादिष्ट शहद के लिए भी इनकी कद्र की जाती है. नीलगिरी कैंलड्यूलेंसिस के विभिन्न प्रकार इटली में सबसे अधिक पाये जाते हैं.[24]

इतिहास

हालांकि नीलगिरी को पहले-पहल एकदम शुरुआती यूरोपीय खोजकर्ताओं और संग्राहकों द्वारा ही देखा गया होगा, लेकिन 1770 से पहले तक उनके किसी वनस्पति संग्रह का पता नहीं था, जब तक कि कप्तान जेम्स कुक के साथ जोसेफ बैंक्स और डैनियल सोलेंडर बॉटनी बे नहीं पहुंचे. वहां उन लोगों ने ई. गंमीफेरा और बाद में उत्तरी क्वींसलैंड में एंडेवर नदी के पास ई. प्लेटीफिल्ला के नमूने एकत्र किये; उस समय इनके नामकरण नहीं किये गये थे.

1777 में, कुक के तीसरे अभियान में, डेविड नेल्सन ने दक्षिणीतस्मानिया के ब्रुनी द्वीप से नीलगिरी का एक नमूना संग्रहित किया. यह नमूना लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय ले जाया गया था, और उस समय लंदन में कार्यरत फ्रांसीसी वनस्पतिशास्त्री एल'हेरिटियर ने उसका नाम रखा युक्लिप्टस ऑब्लीक्वा (Eucalyptus obliqua). उन्होंने यूनानी शब्द eu और calyptos को जोड़कर इस शब्द का इजाद किया, इनका अर्थ होता है "well" (भली-भांति) और "covered" (आवृत). यह कली की सुरक्षा के लिए उसके ऊपर के आवरण ऑपरक्युलम के संदर्भ में है, जो फूल बनने के समय पुंकेसर के दबाव पर खुल जाया करता है. यह बहुत संभव एक दुर्घटना जैसी ही थी कि एल'हेरीटियर ने सभी युक्लिप्टस (नीलगिरी) के लिए एक आम नाम चुना.

ऑब्लिक्वा नाम लैटिन शब्द obliquus (ऑब्लिक्यूस) से लिया गया है,जिसका अर्थ "oblique" (तिर्यक), इस वानस्पतिक शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी पत्ते के आधार पर दोनों ओर की धार असमान लंबाई की होती हैं और पर्णवृंत की एक ही जगह में आपस में नहीं जुड़तीं.

ई. ऑब्लीक्वा 1788-89 में प्रकाशित हुई थी, संयोग से उसी समय ऑस्ट्रेलिया में पहला आधिकारिक यूरोपीय वास स्थापित हुआ. इस बीच और 19वीं सदी की समाप्ति के बाद, नीलगिरी की अनेक प्रजातियों के नामकरण हुए और उन्हें प्रकाशित किया गया. इनमें से अधिकांश अंग्रेज वनस्पति विज्ञानी जेम्स एडवर्ड स्मिथ द्वारा किये गये और जैसा कि उम्मीद की जा सकती है कि इनमें से अधिकांश सिडनी क्षेत्र के पेड़ थे. इनमें आर्थिक रूप से बहुमूल्य ई.पिलुलारिस , ई. सलिगना और ई. टेरेटीकोर्निस शामिल हैं.

1792 में फ्रांसिसी वनस्पतिशास्त्री जैक्वेज लैबिलारडियेर ने जहां से पहला स्थानीय पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई ‍नीलगिरी को संग्रहित किया और उन्होंने इसका नाम येट (Yate) (ई. कोरनुटा ) दिया, वह स्थान अब एस्परेंस क्षेत्र कहलाता है.[8]

19 वीं सदी में कई नामी ऑस्ट्रेलियाई वनस्पतिशास्त्री सक्रिय थे, खासकर फेरडिनैंड वॉन मुएलर, नीलगिरी पर जिनके किये गये काम का 1867 में जॉर्ज बेनथेम के फ्लोरा ऑस्ट्रेलिएंसिस के पहले विस्तृत लेखाजोखा में बड़ा अवदान है, जो फिलहाल बाकी बचा एकमात्र संपूर्ण ऑस्ट्रेलियाई फ्लोरा है. इस वृतांत में वंश के बारे में सबसे महत्वपूर्ण आरंभिक व्यवस्थित वर्णन है. बेन्थम ने इसे पुकेसरों, विशेष रूप से पराग-कोश की विशेषताओं के आधार पर पांच श्रृंखलाओं में विभाजित किया (म्यूएलर, 1879-84), जोसेफ हेनरी मैडेन (1903-33) ने इस काम को विस्तारित किया और विलियम फारिस ब्लैकली (1934) ने इसे और आगे बढाया. पराग-कोश प्रणाली भी काम कर सकने में बहुत जटिल हो गयी थी और हाल के व्यवस्थित काम में कलियों, फल, पत्ते और छाल की विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

इन्हें भी देखें

फोटो गैलरी

नोट्स

  1. "Eucalyptus L'Hér". Germplasm Resources Information Network. United States Department of Agriculture. 2009-01-27. अभिगमन तिथि 2010-02-28.
  2. सनसेट वेस्टर्न गार्डेन बुक , 1995:606-607
  3. Gledhill, D. (2008). The Names of Plants (4 संस्करण). Cambridge University Press. पृ॰ 158. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780521866453.
  4. लुज़र जे. (2007). द पौलिटिकल इकॉलौजी ऑफ़ अ "फॉरेस्ट ट्रांजिक्शन": दक्षिणी पेरू में नीलगिरी वानिकी. एथ्नोबोटैनी रिसर्च & एप्लीकेशंस .
  5. वर्ल्डवॉच संस्थान. (2007) स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड: आवर अर्बन फ्यूचर .
  6. VOA. (2005) साउथ अफ्रीका वॉटर प्रोजेक्ट क्लियर्स वॉटर-गज्लिंग एलियन प्लांट इन्फेस्टेशन.
  7. Santos, Robert L. (1997). "Section Three: Problems, Cares, Economics, and Species". The Eucalyptus of California. California State University.
  8. ब्रूकर & क्लेंइग (2001)
  9. "Tasmania's Ten Tallest Giants". Tasmanian Giant Trees Consultative Committee. अभिगमन तिथि 2009-01-07.
  10. "Eucalytus Roulette (con't)". Robert Sward: Poet, Novelist and Workshop Leader.
  11. Mrs. M. Grieve. "A Modern Herbal:Eucalyptus". अभिगमन तिथि 2005-01-27.
  12. Santos, Robert L (1997). "Section Two: Physical Properties and Uses". The Eucalyptus of California. California State University.
  13. www.cdc.gov/od/oc/media/pressrel.r050428.htm
  14. इण्डिया फ्लिंट, वानस्पतिक कीमियागर. "नीलगिरी की महक." http://www.indiaflint.com/page6.htm
  15. रीड, जे.बी. & पोट्स, बी.एम्. (2005). यूकलिप्ट जीवविज्ञान. इन: रीड एट अल. (एड्स..) तस्मानिया के वनस्पति. पीपी. 198-223. ऑस्ट्रेलियाई सरकार.
  16. Santos, Robert L. (1997). "Seeds of Good or Seeds of Evil?". The Eucalyptus of California. California State University.
  17. Williams, Ted (2002). "America's Largest Weed". Audubon Magazine. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  18. Henter, Heather (2005). "Tree Wars: The Secret Life of Eucalyptus". Alumni. University of California, San Diego. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  19. "Brazil Eucalyptus Potential Productivity". Colorado State University.
  20. पंकहर्स्ट पृष्ठ. 246
  21. डेविड बक्सटन, ट्रेवल्स इन इथियोपिया , द्वितीय संस्करण (लंदन: बेन, 1957), पृष्ठ 48
  22. पंकहर्स्ट पृष्ठ. 247
  23. पलग्रेव, के. सी. 2002: ट्रीज़ ऑफ़ सदर्न अफ्रीका . श्र्त्रुइक प्रकाशक, केप टाउन.
  24. http://www.europaoggi.it/content/view/791/114/

संदर्भ

  • Boland, D.J. (2006). Forest Trees of Australia. Collingwood, Victoria: CSIRO Publishing. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद) 5वीं संस्करण. ISBN 0-643-06969-0
  • Brooker, M.I.H. (2006). Field Guide to Eucalyptus. Melbourne: Bloomings. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद) तीसरा संस्करण. ISBN 1-876473-52-5 खंड. 1. दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया.
  • Pankhurst, Richard (1968). Economic History of Ethiopia. Addis Ababa: Haile Selassie I University.

बाहरी लिंक

नीलगिरी (यूकलिप्टस) के बारे में, विकिपीडिया के बन्धुप्रकल्पों पर और जाने:
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पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों और सतत अल्टरनेटिव्ज सम्मेलन, जून 1996 2-6, सॉंन्कला, थाईलैंड, आरिरट किट्टीसिरी रुरल रिकंस्ट्रकशन एंड फ्रेंड्स एसोसिएशन (RRAFA) द्वारा तैयार, बैंकाक, थाइलैंड

औषधीय संसाधनों, नीलगिरी आवश्यक तेल

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