"शरद ऋतु": अवतरणों में अंतर

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==तुलसीदास==
तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में शरद ऋतु का गुणगान करते हुए लिखा है -
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ग्रीष्मकाल में गर्मी के कारण शरीर तप्त होता है। वर्षाकाल में शरीर ठंडक का अभ्यस्त होने लगता है। इस समय शरीर में संचित पित्त शरद में कुपित हो जाता है। अन्न सेवन की विशेष अभिलाषा होती है। अन्न मात्रापूर्वक सेवन करें। जौ, गेहूँ सेवन योग्य हैं। धूप में नहीं घूमें। पूर्व दिशा की हवा का त्याग करें। चूँकि वर्षा अभी बराबर नहीं हुई है, अतः इस समय नेत्र रोग, त्वचा संबंधी बीमारियाँ होने की ज्यादा आशंका बनती है। शारीरिक सफाई रखें। शरीर को सूखा रखें। भादौ मास में दही का सेवन नहीं करें।
ग्रीष्मकाल में गर्मी के कारण शरीर तप्त होता है। वर्षाकाल में शरीर ठंडक का अभ्यस्त होने लगता है। इस समय शरीर में संचित पित्त शरद में कुपित हो जाता है। अन्न सेवन की विशेष अभिलाषा होती है। अन्न मात्रापूर्वक सेवन करें। जौ, गेहूँ सेवन योग्य हैं। धूप में नहीं घूमें। पूर्व दिशा की हवा का त्याग करें। चूँकि वर्षा अभी बराबर नहीं हुई है, अतः इस समय नेत्र रोग, त्वचा संबंधी बीमारियाँ होने की ज्यादा आशंका बनती है। शारीरिक सफाई रखें। शरीर को सूखा रखें। भादौ मास में दही का सेवन नहीं करें।
ऋतु संहारम के अनुसार 'लो आ गई यह नव वधू-सी शोभती, शरद नायिका! कास के सफेद पुष्पों से ढँकी इस श्वेत वस्त्रा का मुख कमल पुष्पों से ही निर्मित है और मस्त राजहंसी की मधुर आवाज ही इसकी नुपूर ध्वनि है। पकी बालियों से नत, धान के पौधों की तरह तरंगायित इसकी तन-यष्टि किसका मन नहीं मोहती।' जानि सरद ऋतु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥ अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए।जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं अर्थात पुण्य प्रकट हो जाते हैं।बसंत के अपने झूमते-महकते सुमन, इठलाती-खिलती कलियाँ हो सकती हैं। गंधवाही मंद बयार, भौंरों की गुंजरित-उल्लासित पंक्तियाँ हो सकती हैं, पर शरद का नील धवल, स्फटिक-सा आकाश, अमृतवर्षिणी चाँदनी और कमल-कुमुदिनियों भरे ताल-तड़ाग उसके पास कहाँ? संपूर्ण धरती को श्वेत चादर में ढँकने को आकुल ये कास-जवास के सफेद-सफेद ऊर्ध्वमुखी फूल तो शरद संपदा है। पावस मेघों के अथक प्रयासों से धुले साफ आसमान में विरहता चाँद और उससे फूटती, धरती की ओर भागती निर्बाध, निष्कलंक चाँदनी शरद के ही एकाधिकार हैं।
ऋतु संहारम के अनुसार 'लो आ गई यह नव वधू-सी शोभती, शरद नायिका! कास के सफेद पुष्पों से ढँकी इस श्वेत वस्त्रा का मुख कमल पुष्पों से ही निर्मित है और मस्त राजहंसी की मधुर आवाज ही इसकी नुपूर ध्वनि है। पकी बालियों से नत, धान के पौधों की तरह तरंगायित इसकी तन-यष्टि किसका मन नहीं मोहती।' जानि सरद ऋतु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥ अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए।जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं अर्थात पुण्य प्रकट हो जाते हैं।बसंत के अपने झूमते-महकते सुमन, इठलाती-खिलती कलियाँ हो सकती हैं। गंधवाही मंद बयार, भौंरों की गुंजरित-उल्लासित पंक्तियाँ हो सकती हैं, पर शरद का नील धवल, स्फटिक-सा आकाश, अमृतवर्षिणी चाँदनी और कमल-कुमुदिनियों भरे ताल-तड़ाग उसके पास कहाँ? संपूर्ण धरती को श्वेत चादर में ढँकने को आकुल ये कास-जवास के सफेद-सफेद ऊर्ध्वमुखी फूल तो शरद संपदा है। पावस मेघों के अथक प्रयासों से धुले साफ आसमान में विरहता चाँद और उससे फूटती, धरती की ओर भागती निर्बाध, निष्कलंक चाँदनी शरद के ही एकाधिकार हैं।

==इन्हें भी देखें==

==सन्दर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==

== सन्दर्भ ==
== सन्दर्भ ==
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16:27, 22 अप्रैल 2018 का अवतरण

तुलसीदास

तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में शरद ऋतु का गुणगान करते हुए लिखा है - बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥ फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥

अर्थात हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना वृद्घापकाल प्रकट किया है। वृद्घा वर्षा की ओट में आती शरद नायिका ने तुलसीदास के साथ कवि कुल गुरु कालिदास को भी इसी अदा में बाँधा था।

ऋतु संहारम के अनुसार 'लो आ गई यह नव वधू-सी शोभती, शरद नायिका! कास के सफेद पुष्पों से ढँकी इस श्वेत वस्त्रा का मुख कमल पुष्पों से ही निर्मित है और मस्त राजहंसी की मधुर आवाज ही इसकी नुपूर ध्वनि है। पकी बालियों से नत, धान के पौधों की तरह तरंगायित इसकी तन-यष्टि किसका मन नहीं मोहती।' जानि सरद ऋतु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥ अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए।

जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं अर्थात पुण्य प्रकट हो जाते हैं।

बसंत के अपने झूमते-महकते सुमन, इठलाती-खिलती कलियाँ हो सकती हैं। गंधवाही मंद बयार, भौंरों की गुंजरित-उल्लासित पंक्तियाँ हो सकती हैं, पर शरद का नील धवल, स्फटिक-सा आकाश, अमृतवर्षिणी चाँदनी और कमल-कुमुदिनियों भरे ताल-तड़ाग उसके पास कहाँ? संपूर्ण धरती को श्वेत चादर में ढँकने को आकुल ये कास-जवास के सफेद-सफेद ऊर्ध्वमुखी फूल तो शरद संपदा है। पावस मेघों के अथक प्रयासों से धुले साफ आसमान में विरहता चाँद और उससे फूटती, धरती की ओर भागती निर्बाध, निष्कलंक चाँदनी शरद के ही एकाधिकार हैं।

शरद में वृष्टि थम जाती है। मौसम सुहावना हो जाता हैं। दिन सामान्य तो रात्रि में ठंडक रहती है। शरद को मनोहारी और स्वस्थ ऋतु मानते हैं। प्रायः अश्विन मास में शरद पूर्णिमा के आसपास शरद ऋतु का सौंदर्य दिखाई देता है। शरद ऋतु 23 अक्टूबर तक रहेगी। इसके बाद हेमंत का आगमन होगा।

अधिक मास और ज्योतिषिय गणना के चलते ऋतुएँ 24 दिन आगे बढ़ गई हैं। इस कारण वर्षाकाल के मध्याह्न में ही शरदारंभ हो गया है। सावन में शिव आराधना, भादौ में गणपति आराधना, अश्विन में पितृ व उसके बाद देवी आराधना क्रमबद्घ रूप से चलेंगे, जो शरद ऋतुकाल में आते हैं।

ग्रीष्मकाल में गर्मी के कारण शरीर तप्त होता है। वर्षाकाल में शरीर ठंडक का अभ्यस्त होने लगता है। इस समय शरीर में संचित पित्त शरद में कुपित हो जाता है। अन्न सेवन की विशेष अभिलाषा होती है। अन्न मात्रापूर्वक सेवन करें। जौ, गेहूँ सेवन योग्य हैं। धूप में नहीं घूमें। पूर्व दिशा की हवा का त्याग करें। चूँकि वर्षा अभी बराबर नहीं हुई है, अतः इस समय नेत्र रोग, त्वचा संबंधी बीमारियाँ होने की ज्यादा आशंका बनती है। शारीरिक सफाई रखें। शरीर को सूखा रखें। भादौ मास में दही का सेवन नहीं करें। ऋतु संहारम के अनुसार 'लो आ गई यह नव वधू-सी शोभती, शरद नायिका! कास के सफेद पुष्पों से ढँकी इस श्वेत वस्त्रा का मुख कमल पुष्पों से ही निर्मित है और मस्त राजहंसी की मधुर आवाज ही इसकी नुपूर ध्वनि है। पकी बालियों से नत, धान के पौधों की तरह तरंगायित इसकी तन-यष्टि किसका मन नहीं मोहती।' जानि सरद ऋतु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥ अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए।जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं अर्थात पुण्य प्रकट हो जाते हैं।बसंत के अपने झूमते-महकते सुमन, इठलाती-खिलती कलियाँ हो सकती हैं। गंधवाही मंद बयार, भौंरों की गुंजरित-उल्लासित पंक्तियाँ हो सकती हैं, पर शरद का नील धवल, स्फटिक-सा आकाश, अमृतवर्षिणी चाँदनी और कमल-कुमुदिनियों भरे ताल-तड़ाग उसके पास कहाँ? संपूर्ण धरती को श्वेत चादर में ढँकने को आकुल ये कास-जवास के सफेद-सफेद ऊर्ध्वमुखी फूल तो शरद संपदा है। पावस मेघों के अथक प्रयासों से धुले साफ आसमान में विरहता चाँद और उससे फूटती, धरती की ओर भागती निर्बाध, निष्कलंक चाँदनी शरद के ही एकाधिकार हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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