बर्मी भाषा
बर्मी भाषा (बर्मी भाषा में : မြန်မာဘာသာ / म्यन्माभासा) , स्वतंत्र देश म्यांमार (बर्मा) की राजभाषा है। यह मुख्य रूप से ब्रह्मदेश (बर्मा का संस्कृत नाम) में बोली जाती है। म्यांमार की सीमा से सटे भारतीय राज्यों असम, मणिपुर एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी कुछ लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं।
भाषा परिवार
[संपादित करें]बर्मी भाषा तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार में आती है जो आर्य एवं चीनी भाषा परिवार के बीच में है। तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार में भी बर्मी शाखा एवं तिब्बती शाखा - ये दो प्रकार हैं। बर्मी भाषा में चीनी भाषा की तरह कुछ शब्द अयोगात्मक भी होते हैं तथा आर्यभाषाओं की तरह उसमें कुछ शब्द योगात्मक भी होते हैं।
म्यामार की भाषाएँ
[संपादित करें]- 1 = बर्मी भाषा बोलने वाले क्षेत्र
- 2 = तिब्बती-बर्मी भाषा भाषी क्षेत्र
- 3 = तिब्बती-बर्मी बोलने वाले क्षेत्र : अराकानी तथा बर्मी
- 4 = करेन (तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार)
- अन्य भाषा-परिवार :
- 5= शान प्रान्त थाई तथा दक्षिणी थाई
- 7 = मोन प्रान्त - मोन भाषा (मोन-खमेर भाषाएँ)
बर्मी भाषा की सामान्य विशेषताएँ
[संपादित करें]- बर्मी भाषा के अधिकांश शब्द एक या दो अक्षर (सिलैबल) के होते हैं किन्तु उनमें प्रत्यय जुड़ने के कारण उनका एकाक्षरीपन छिप जाता है।
- बर्मी भाषा एक टोनल भाषा है जिसमें तीन टोन हैं- ऊँची, मध्यम और नीची।
- बर्मी में ३३ व्यंजन और ७ स्वर हैं जो नासिक्य हो सकते हैं।
- अन्य भाषाओं की तरह बर्मी भाषा के दो रूप हैं - मौखिक तथा लिखित रूप। इन दोनों रूपों में केवल शब्दावली का ही अन्तर नहीं होता बल्कि व्याकरन में भी अन्तर हो सकता है।
लिपि
[संपादित करें]आजकल की बर्मी लिपि में पालि भाषा के प्रभाव से 33 व्यंजन और 12 स्वर माने जाते हैं। वस्तुत: बर्मी बोली में वर्ग के चतुर्थ अक्षर तथा संपूर्ण दंत्य वर्ग नहीं होता, इसलिए प्राय: बर्मी में वर्ग के तृतीय एवं चतुर्थ अक्षरों का समान उच्चारण तथा मूर्धन्य एवं दंत्य वर्गों के अक्षरों का भी समान रूप से उच्चारण होता है। वैदिक संस्कृत एवं पालि में प्रयुक्त क का बर्मी साहित्य में प्रयोग किए जाने पर भी वह बोली में नहीं होता। बर्मी भाषा में जो 64 स्वर होते हैं उन्हें 64 "कारांत" भी कहते हैं। इन स्वरों के बल पर ही संसार की भाषाओं का उच्चारण बर्मी भाषा में लिखा जा सकता है।
साहित्य
[संपादित करें]अन्य देशों की भाँति बर्मा का भी अपना साहित्य है जो अपने में पूर्ण एवं समृद्ध है। बर्मी साहित्य का अभ्युदय प्राय: काव्यकला को प्रोत्साहन देनेवाले राजाओं के दरबार में हुआ है इसलिए बर्मी साहित्य के मानवी कवियों का संबंध वैभवशाली महीपालों के साथ स्थापित है। राजसी वातावरण में अभ्युदय एवं प्रसार पाने के कारण बर्मी साहित्य अत्यंत सुश्लिष्ट तथा प्रभावशाली हो गया है।
बर्मी साहित्य के अंतर्गत बुद्धवचन (त्रिपिटक), अट्टकथा तथा टीका ग्रंथों के अनुवाद सम्मिलित हैं। बर्मी भाषा में गद्य और पद्य दोनों प्रकार की साहित्य विधाएँ मौलिक रूप से मिलती हैं। इसमें आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुवाद भी हैं। पालि साहित्य के प्रभाव से इसकी शैली भारतीय है तथा बोली अपनी है। पालि के पारिभाषिक तथा मौलिक शब्द इस भाषा में बर्मीकृत रूप में पाए जाते हैं। रस, छंद और अलंकारों की योजना पालि एवं संस्कृत से प्रभावित है।
बर्मी साहित्य के विकास को दृष्टि में रखकर विद्वानों ने इसे नौ कालों में विभाजित किया है, जिसमें प्रत्येक युग के साहित्य की अपनी विशेषता है।
- पगन युग (ई. 1100-1297)
- पिंय युग (1298-1364 ई.)
- अव युग (1364-1538)
- केतुमती युग (1530-1597)
- द्वितीय अवयुग (1597-1750)
- रतनासिंध युग (1751-1885) (कुंमो)
- अमरपूर युग (1886-1900)
- मंडले युग (1900-1940)
- आधुनिक युग (1941-)
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]बर्मी भाषा संस्करणका विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश |
- म्यांमार लिपि से देवनागरी लिपि परिवर्तक[मृत कड़ियाँ] (डाउनलोड करें और किसी भी ब्राउजर में चलाएँ)
- Grammar of the Burmese Language
- Burmese phrasebook
- Online Burmese lessons
- Omniglot: Burmese Language
- Burmese language resources from SOAS
- Myanmar NLP Research Center [1]
- Myanmar NLP Team Blogs [2]
- Myanmar Language Technology [3]
- MyMyanmar Projects - Myanmar (Burmese) Language Research and Developments for Technologies [4]
- myWin2.2
- Myanmar Character Picker
- Myanmar Script