बटुकेश्वर दत्त
बटुकेश्वर दत्त | |
---|---|
![]() महान क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त (सन १९२९ में) | |
जन्म |
18 नवम्बर 1910 ओँयाड़ि ग्राम, बर्धमान जिला, ब्रितानी भारत[1] |
मौत |
20 जुलाई 1965 नई दिल्ली, भारत | (उम्र 54 वर्ष)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
प्रसिद्धि का कारण | भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन |
बटुकेश्वर दत्त (१८ नवंबर १९१० - २० जुलाई १९६५)[2] भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त को देश ने सबसे पहले ८ अप्रैल १९२९ को जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केन्द्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होनें आगरा में स्वतंत्रता आन्दोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था।
जीवनी
[संपादित करें]बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को ग्राम-ओँयाड़ि, जिला - नानी बेदवान (बंगाल) में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रान्त के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। इनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।
8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुँचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।
इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहाँ पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।

भारत की स्वतंत्रता के बाद नवम्बर, 1947 में अंजलि दत्त से विवाह करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बिहार विधान परिषद ने बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव 1963 में प्राप्त किया। दत्त की मृत्यु 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती हैं। बटुकेश्वर दत्त के विधान परिषद में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार कहते हैं कि 'स्व॰ दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित्त एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे। मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवानों का इतिहास भारतवर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं है।'
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Batukeshwar Dutta". Archived from the original on 7 मार्च 2019. Retrieved 7 अगस्त 2019.
- ↑ Khanna, Kumkum (100). Batukeshwar Dutt (in अंग्रेज़ी). Prabhat Prakashan. ISBN 9789351861195. Archived from the original on 20 जुलाई 2018. Retrieved 20 जुलाई 2018.
{{cite book}}
: ISBN / Date incompatibility (help)
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- बटुकेश्वर दत्त: एक महान स्वतंत्रता सैनानी जिन्हें आजाद भारत में भी करना पड़ा था संघर्ष
- देशभक्त बटुकेश्वर दत्त : जिन्हें आजादी के बाद मिली गुमनाम जिंदगी
- बटुकेश्वर दत्त, वह स्वतंत्रता सेनानी जिसने आजादी के बाद जी गुमनामी की जिन्दगी!
- बर्धमान स्टेशन का नाम बटुकेश्वर दत्त पर होगा, पटना में उनके घर जाकर केंद्रीय मंत्री ने की घोषणा