सामग्री पर जाएँ

पत्थलगड़ी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

पत्थलगड़ी उन पत्थर स्मारकों को कहा जाता है जिसकी शुरुआत इंसानी समाज ने हजारों साल पहले की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है जो आदिवासियों में आज भी प्रचलित है।[1] माना जाता है कि मृतकों की याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने पत्थर स्मारकों की रचना की। पत्थलगड़ी की इस आदिवासी परंपरा को पुरातात्त्विक वैज्ञानिक शब्दावली में ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’ और मेगालिथ कहा जाता है। दुनिया भर के विभिन्न आदिवासी समाजों में पत्थलगड़ी की यह परंपरा मौजूदा समय में भी बरकरार है।[2] झारखंड के भूमिज, मुंडा और हो आदिवासी समुदाय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिनमें कई अवसरों पर पत्थलगड़ी करने की प्रागैतिहासिक और पाषाणकालीन परंपरा प्रचलित है। वर्तमान में केवल भूमिज और मुंडा आदिवासी गांवों में ही पत्थलगढ़ी परंपरा देखी जाती है।

पत्थलगड़ी परंपरा का आरंभ

[संपादित करें]

पुरातात्त्विक विद्वानों और इतिहासकारों के अनुसार पत्थलगड़ी यानी पत्थर स्मारकों की परंपरा प्रागैतिहासिक समय में आरंभ हुई। इसके निर्माता कौन थे और इस परंपरा के वास्तविक शुरुआत के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है परंतु सभी इस बात से सहमत हैं कि यह पाषाणकालीन परंपरा है। इसका आरंभ निश्चित रूप से लौह युग के पहले हुआ होगा। वैसे, दुनिया का सबसे पुराना पत्थलगड़ी Göbekli Tepe को माना जा रहा है जो कम से कम ईसा पूर्व 10वीं शताब्दी का है।[3]

पत्थलगड़ी के प्रकार

[संपादित करें]

पत्थलगड़ी, महापाषाण या पुरखा पत्थर स्मारक को अंग्रेजी में Megalith कहा जाता है। मेगालिथ दो ग्रीक शब्दों "μέγας" मेगा (महा) और "λίθος" लिथो (पत्थर) से बना है। इस शब्द का प्रयोग पहली बार अल्गर्नाेन हरबर्ट[4] ने 1849 में प्रकाशित अपनी पुस्तक Cyclops Christianus: Or an Argument to Disprove the Supposed Antiquity of the Stonehenge and Other Megalithic Erections[5] में किया था।

पुरातात्त्विकों के अनुसार पत्थलगड़ी कई प्रकार के होते हैं [6] -

[संपादित करें]
  1. पत्थर स्मारक (Menhir)[7]: ये खड़े और प्रायः अकेले होते हैं।
  2. मृतक स्मारक पत्थर (Dolmen)[8]: ये चौकोर और टेबलनुमा होते हैं। जैसे चोकाहातु (झारखंड) का ससनदिरि के पत्थर स्मारक।
  3. कतारनुमा स्मारक पत्थर(Stone Row)[9]: ये एक कतार में या फिर समान रूप से कई कतारों में होते हैं।[10]
  4. अर्द्धवृताकार स्मारक पत्थर (Semi-Circle Stone): ये अर्द्धवृताकार होते हैं।
  5. वृताकार स्मारक पत्थर (शिलावर्त) (Stone circle)[11]: ये पूरी तरह से गोल होते हैं। जैसे महाराष्ट्र के नागपुर स्थित जुनापाणी के शिलावर्त
  6. ज्यामितिक स्मारक पत्थर: ये ज्यामितिक आकार वाले होते हैं।
  7. खगोलीय स्मारक पत्थर[12]: ये अर्द्धवृताकार, वृताकार, ज्यामितिक और टी-आकार के होते हैं। जैसे पंकरी बरवाडीह (झारखंड) के पत्थर स्मारक।

भूमिज और मुंडा आदिवासियों के अनुसार पत्थलगड़ी 4 तरह के हैं [13]-

[संपादित करें]
  1. ससनदिरि: यह दो मुंडा भाषा शब्दों से बना है। ‘ससन’ और ‘दिरि’। ‘ससन’ का अर्थ श्मसान अथवा कब्रगाह है जबकि ‘दिरि’ का अर्थ पत्थर होता है। ससनदिरि में मृतकों को दफनाया जाता है और उनकी कब्र पर पत्थर रखे जाते हैं। ससनदिरि में मृतकों की याद में रखे जाने वालों पत्थरों का आकार चौकोर और टेबलनुमा होता है। झारखंड में मुंडाओं का सबसे प्राचीन और विशाल ससनदिरि चोकाहातु गांव में है। रांची से 80 किलोमीटर रांची-जमशेदपुर मार्ग पर सोनाहातु से आगे चोकाहातु[14] स्थित ‘ससनदिरि’ 7 एकड़ में फैला विशाल मेगालिथ क्षेत्र है। यहां 7600 से ज्यादा मृतक स्मारक पत्थर है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह कम से कम 2500 साल पुराना है जहां आज भी मुंडा लोग मृतकों को दफनाते हैं या फिर मृतकों के ‘हड़गड़ी’ की रस्म संपन्न करते हैं। पटमदा स्थित गांव के भूमिज हाड़शाली में प्राचीन भाषा में लिखे मेगालिथ है जहां भूमिज लोग आज भी मृतकों के हड़गड़ी का रस्म सम्पन्न करते हैं।
  2. बुरूदिरि और बिरदिरि: मुंडा भाषाओं में ‘बुरू’ का अर्थ पहाड़ और ‘बिर’ का अर्थ जंगल होता है। इस तरह के पत्थर स्मारक यानी पत्थलगड़ी क्षेत्रों, बसाहटों और गांवों के सीमांकन की सूचना के लिए की जाती है।
  3. टाइडिदिरि: ‘टाइडि’ राजनीतिक अर्थ को व्यक्त करता है। सामाजिक-राजनीतिक निर्णयों और सूचनाओं की सार्वजनिक घोषणा के रूप में जो पत्थर स्मारक खड़े किए जाते हैं उन्हें टाइडिदिरि पत्थलगड़ी कहा जाता है।
  4. हुकुमदिरि: हुकुम अर्थात दिशानिर्देश या आदेश। जब मुंडा आदिवासी समाज कोई नया सामाजिक-राजनीतिक या सांस्कृतिक निर्णय लेता है तब उसकी उद्घोषणा के लिए इसकी स्थापना की जाती है। [15]

भारत में पत्थलगड़ी के प्रकार

[संपादित करें]

भारत में प्रायः सभी तरह की पत्थलगड़ी पायी जाती है। मृतकों की याद में, आबादी और बसाहट की सूचना देने वाले, अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन और खगोल विज्ञान संबंधी जानकारी देने वाले। [16]

भारत के पत्थलगड़ी वाले क्षेत्र

[संपादित करें]

पत्थलगड़ी संपूर्ण भारत में मिलते हैं। विशेषकर उत्तर-पूर्व[17] के राज्यों, दक्षिण के महाराष्ट्र[18], उड़ीसा[19], कर्नाटक[20], आंध्र प्रदेश[21] में, मध्य भारत के राजस्थान[22], मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़[23] और झारखंड[24] में।

विश्व धरोहर सूची में नहीं हैं भारतीय पत्थलगड़ी

[संपादित करें]

दुनिया में जहां-जहां भी प्राचीन पत्थलगड़ी हैं उसे विश्व धरोहर घोषित कर संरक्षित किया गया है। लेकिन भारत के मेगालिथों को अभी तक न तो विश्व धरोहर माना गया है और न ही उनके संरक्षण के लिए कोई राजकीय पहल हुई है। आदिवासी समाज, पुरातत्ववेत्ता और मेगालिथ संरक्षण में जुटे संस्थाओं व व्यक्तियों द्वारा लगातार मांग की जाती रही है कि पुरा पाषाणकालीन पत्थर स्मारकों को विश्व धरोहर घोषित किया जाए।[25]

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/103754/11/11_chapter%204.pdf
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 2 जून 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 12 मार्च 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  4. "संग्रहीत प्रति". 8 नवंबर 2016 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  5. https://books.google.co.in/books/about/Cyclops_Christianus_Or_An_Argument_to_Di.html?id=GWYWAAAAYAAJ&redir_esc=y
  6. "संग्रहीत प्रति". 21 अप्रैल 2015 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  7. "संग्रहीत प्रति". 19 मार्च 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  8. "संग्रहीत प्रति". 8 मई 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  9. "संग्रहीत प्रति". 20 नवंबर 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  10. "संग्रहीत प्रति". 20 नवंबर 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  11. "संग्रहीत प्रति". 8 अप्रैल 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  12. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/6579/11/11_chapter%203.pdf
  13. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 13 मार्च 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  14. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 11 जनवरी 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  15. "संग्रहीत प्रति". 16 मार्च 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  16. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 8 मई 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  17. "संग्रहीत प्रति". 19 फ़रवरी 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  18. "संग्रहीत प्रति". 13 सितंबर 2016 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  19. http://www.megalithic.co.uk/article.php?sid=2146412783
  20. "संग्रहीत प्रति". 28 सितंबर 2016 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  21. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/66174/10/10_chapter%203.pdf
  22. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 8 सितंबर 2015 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  23. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 11 मार्च 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  24. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 23 मार्च 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.
  25. "संग्रहीत प्रति". मूल से से 13 मार्च 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 18 मार्च 2018.

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें]