नेपाल का भूगोल
नेपाल | |
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महाद्वीप | एशिया |
अञ्चल | दक्षिण एशिया |
स्थिति | 28°00′N 84°00′E / 28.000°N 84.000°E |
क्षेत्रफल | क्रम {{{क्रम}}} 1,47,516 km² (56,956.2 sq mi) 92.94% स्थलभाग 7.06 % जलभाग |
सीमान्त | धरातल पर कुल सिमा: 2,926 कि॰मी॰ (1,818 मील) चीन: 1,236 कि॰मी॰ (768 मील) भारत: 1,690 कि॰मी॰ (1,050 मील) |
सर्वोच्च बिन्दु | माउंट एवरेस्ट 8,848 मी॰ (29,029 फीट) |
सबसे लम्बी नदी | कर्णाली |
सबसे बड़ी झील | रारा ताल |
स्थिति
[संपादित करें]26° 20' से 30° 10' उत्तरी अक्षांश तथा 80° 15' से 88° 10' पू.दे.। यह स्वतंत्र राष्ट्र मध्य एशिया में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 147,516 वर्ग किलोमिटर है। इसके दक्षिण में भारत के बिहार एवं उत्तर प्रदेश राज्य, पश्चिम में उत्तराखण्ड, पूर्व में पश्चिमी बंगाल राज्य एवं सिक्किम राज्य तथा उत्तर में तिब्बत है। हिमालय की 500 मील लंबी शृंखला इसकी लंबाई में पड़ती है, अत: नेपाल की सीमा के अंदर या सीमा पर कई ऊँची चोटियाँ हैं। इसकी औसत लंबाई पूर्व से पश्चिम 530 मील और उत्तर से दक्षिण इसकी चौड़ाई 156 से 89 मील तक है।
प्रकृतिक क्षेत्र
[संपादित करें]नेपाल के दो प्राकृतिक क्षेत्र हैं :
- (1) दक्षिण का तराई क्षेत्र, इसमें कृषियोग्य भूमि तथा घने जंगल हैं। इन जंगलों में हाथी, चीते तथा अन्य भारतीय जंगली पशु पाए जाते हैं। इन जंगलों से बहुमूल्य इमारती लकड़ी प्राप्त होती है। तराई का यह क्षेत्र नेपाल के कुल क्षेत्रफल का एक चौडाई है। नेपाल की जनसंख्या का एक तिहाई भाग यहाँ निवास करता है।
- (2) नेपाल का दूसरा प्राकृतिक क्षेत्र पर्वतीय क्षेत्र है, जो उत्तर में तिब्बत तक फैला हुआ है।
पर्वत तथा नदियाँ
[संपादित करें]उत्तरी सीमा में संसार की सर्वोच्च चोटी माउंट एवरेस्ट (29,241') है। इसके अतिरिक्त कांचनजुंगा (28,140'), मकालू (27,790'), धौलागिरी (26,800') गोसाईथान (26,305'), मनसालू (26,698'), हिमा लचुली (25,801') एवं गौरीशंकर (23,440') चोटियाँ भी इसी क्षेत्र में हैं।
इन पर्वतों से जा नदियाँ निकलती हैं उन्हें चार समूहों में विभक्त किया गया है। प्रथम समूह में काली (शारदा), सरजू, कुरनाली, पूर्वी सरजू तथा राप्ती नदियाँ हैं। यह सब मिलकर घाघरा नदी बनाती हैं और गंगा में मिल जाती हैं। दूसरे समूह में सप्त गंडकी नदी आती है, जो धौलागिरि एवं गोसाईथान नामक चोटियों के मध्य से निकलकर त्रिवेणीघाट पर गंडक में परिवर्तित हो जाती है। नदियों के तीसरे समूह में बड़ी, गंडक, छोटी राप्ती, बागमती तथा कुमला नदियाँ हैं। इनसे नेपाल घाटी का जलनि:सारण होता है। चौथे समूह की नदियों को नेपाली में सप्तकोसी कहते हैं। ये गोसाईथांन और कंचनजुंगा चोटियों के मध्य से निकलकर सनकोसी नदी बनाती हैं, जो गंगा में मिल जाती हैं। हिमालय एवं महाभारत श्रेणी के मध्य की घाटी, काठमांडू घाटी कहलाती है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 230 वर्ग मील है। इस घाटी का जलवायु शीतोष्ण, मिट्टी उपजाऊ है, अत: यह कृषि में समृद्ध है। इसी घाटी में इस राष्ट्र की राजधानी काठमांडू समुद्रतल से 4,700फ़ की ऊँचाई पर स्थित है, इसके चारों ओर 9,000फ़ से लेकर 10,000फ़ फुट तक ऊँचे पर्वत हैं। नगर की जनसंख्या 1,22,510 (1961) थी। इसी घाटी में गिरिपाद पर भटगांव एवं पाटननगर है। नेपाल राज्य की घनी आबादी इस क्षेत्र में निवास करती हैं।
हिमालय की एवरेस्ट चोटी 28 मई 1953 तक अविजित रही। 29 मई 1953 को न्यूजीलैंड के निवासी श्री एडमंड हिलैरी तथा नेपाल के निवासी शेरपा तेजिंग नोरके पथप्रदर्शक ने इस पर विजय प्राप्त की। सन् 1965 में चार भारतीय दलों ने क्रम से इसके अभियान में विजय प्राप्त की।
जलवायु
[संपादित करें]संपूर्ण तराई एवं काठमांडू घाटी के नीचे का क्षेत्र उपोष्ण कटिबंधीय है। नेपाल में वर्षाऋतु जुलाई से अक्टूबर तक होती है और औसत वार्षिक वर्षा लगभग 60mm.होती है। अक्टूबर के मध्य से लेकर अप्रैल के मध्य तक शीतकाल रहता है। अप्रैल से वर्षा के आरंभ तक ग्रीष्म ऋतु रहती है। यहाँ का ताप 38डिग्री सें. से कभी ऊँचा नहीं जाता। यहाँ का औसत ताप 16 डिग्री सें. रहता है। यहाँ समय समय पर भूकंप आते रहते हैं। वज्रझंझावात नेपाल के लिए साधारण घटना है।
पशु एवं वनस्पतियाँ
[संपादित करें]पशु एवं वनस्पति की दृष्टि से नेपाल को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है :
- (1) तराई और 4,000' की ऊँचाई वाली श्रेणियाँ,
- (2) मध्य एवं 10,000' ऊँचाईवाली श्रेणियाँ तथा
- (3) 10,000' से लेकर 29,000' तक ऊँचा पर्वतीय क्षेत्र।
तराई की निचली जलोढ़ भूमि नेपाल का सबसे अधिक उपजाऊ भूभाग है। इसमें गेहूँ, धान, दलहन, गन्ना, तंबाकू, कपास तथा कुछ शाक एवं फलों की खेती होती है। तराई के इस भाग का अधिकांश जंगलों एवं दलदली भूमि से घिरा हुआ है। इन जंगलों में साल, सिसू (Sisu), कीकर, माइमोसा (Mimosa), सेमल, पलाश, बड़े बड़े बाँस, फर्न एवं आर्किड की कई जातियाँ मिलती हैं। 2,000' से 4,000' की ऊँचाई पर चाय उगाई जा सकती है। चड़िया घाटी श्रेणी में चीड़ बहुतायत से उगता है। यहाँ तेंदुआ, हाथी, गीदड़, जंगली भैंसा, हरिण, गैंडा, भालू, लकड़बग्घा, तीतर, मोर इत्यादि जीवजंतु पाए जाते हैं।
मध्यक्षेत्र में धान, गेहूँ, मक्का, जौ, जई, ज्वार, अदरख, हल्दी, लाल मिर्च, आलू, अनन्नास तथा अन्य बहुत से यूरोपीय फल एवं शाक उगाए जाते हैं। इस क्षेत्र के जंगलों में रोडोडेंड्रान, चीड़, बांज (oak), हार्स, चेस्टनट, अखरोट, मैपिल, जंगली मकोय, नाशपाती तथा उपोष्णकटिबंधीय अन्य वनस्पतियाँ मिलती हैं। यहाँ चीता, काला हरिण, खरगोश, हरिण की कुछ अन्य जातियाँ, जंगली कुत्ते तथा बिल्लियाँ, साही, चकोर, उकाब, गृध्र, इत्यादि पशुपक्षी पाए जाते हैं।
10,000' से लेकर 29,000' फुट तक की ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्र में कई जाति के कॉनिफर, नुकीली पत्तियों की सदाबहार झाड़ियाँ, सदाबहार के बौने वृक्ष (Box), भोज वृक्ष, शूलपर्णी तथा अन्य पहाड़ी वनस्पतियाँ मिलती हैं। यहाँ भूरे रंग की भालू, याक, कस्तूरी मृग, जंगली बकरी एवं भेड़, हिममूष (marmot), लाल एवं श्वेत चकोर, श्वेत तीतर आदि पाए जाते हैं।
यातायात
[संपादित करें]नेपाल में आवागमन का मुख्य साधन सड़कें हैं जिनमें से 500 मील लंबी सड़कें मोटर चलने योग्य हैं। इनमें से 158 मील लंबा त्रिभुवन राजपथ है, जो प्रत्येक ऋतु में खुला रहता है। इसे भारत सरकार ने कोलंबों योजनांतर्गत बनवाया है। संयुक्त राज्य ने राप्ती घाटी में 50 मील लंबी सब ऋतुओं में खुली रहने योग्य सड़क बनवायी है। रक्सौल (भारत) से अमलेखगंज तक तथा जयनगर (भारत) से जनकपुर एवं बिजुलपुर तक रेल की दो छोटी लाइने हैं। काठमांडू घाटी में 28 मील लंबा विद्युतचालित रज्जुमार्ग है जिसकी भार ढोने की क्षमता 25 टन प्रति घंटा है। यह 4,500 फुट ऊँचाई तक जाता है।
खनिज एवं उद्योग
[संपादित करें]यहाँ पहले ताँबा, कोबाल्ट और सोने का उत्खनन होता था। संप्रति यहाँ लोहा, सीसा, जस्ता, लिगनाइट, ग्रेफाइट निकल, अभ्रक, मैंगनीज, कोयला, टाल्क, चीनी मिट्टी, संगमरमर इत्यादि खनिजों का पता लगा है पर अभी इनका उत्खनन नहीं हो रहा है। पेट्रोलियम एवं सोने की खानों का भी पता लगा है।
विराटनगर में दो जूट के एवं एक दियासलाई का, एक सिगरेट का और एक चीनी का कारखाना है। काठमांडू एवं वीरगंज में भी सिगरेट के कारखाने हैं। यहाँ तेल पेरना, धान कूटना, हथकरघे पर कपड़ा बुनना इत्यादि कार्य घरेलू उद्योग के रूप में विकसित हैं। यहाँ भेड़ों का पालन होता है, जो अपने ऊन के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ धातुओं के सामान और घंटियों का भी निर्माण होता है। यहाँ से ऊन और ऊनी वस्त्र, लकड़ी, चावल, जूट आदि का निर्यात होता है।
कृषि
[संपादित करें]धान नेपाल का प्रमुख कृषि उत्पाद है। इसके अतिरिक्त यहाँ मक्का, ज्वार, गेहूँ, आलू, गन्ना, तंबाकू, कपास, तिलहन एवं जूट की खेती होती है। ज्यों ज्यों परिवहन के साधनों में वृद्धि हो रही है, अनाज के स्थान पर कपास, गन्ना, जूट तथा तिलहन इत्यादि नगद धन देनेवाली फसलों उत्पन्न होता है और यहाँ के लोग इसका उपयोग अधिक करते हैं। इसके अतिरिक्त सेब, नाशपाती तथा खूबानी इत्यादि भी बड़ी मात्रा में होते हैं।
भाषा
[संपादित करें]नेपाल में अब शिक्षा का भी उत्तरोत्तर प्रसार हो रहा है। यहाँ 26 प्रकार की बोलियाँ बोली जाती हैं। 50% लोग नेपाली भाषा बोलते हैं। यही नेपाल की राष्ट्रभाषा भी है, जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
पर्यटन
[संपादित करें]काठमांडू का पशुपतिनाथ का मंदिर हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है और शिवरात्रि को यहाँ बड़ा मेला लगता है। काष्ठमंडप, बसंतपुर दरबार, तालेजूमंदिर, सिंह दरबार, स्वयंभूनाथ मंदिर, न्यतापोला मंदिर, महाबौद्ध मंदिर, नेपाली वास्तु के अद्भुत नमूने हैं। काष्ठ पर की गई नेपाल की नक्काशी विश्वप्रसिद्ध है।
अर्थव्यवस्था
[संपादित करें]लगभग 95% नेपाली पशुपालन और कृषि में संलग्न हैं। उद्योगों के नाम पर छोटे मोटे कारखाने हैं, जो संपूर्ण उत्पादन में बहुत न्यून योग देते हैं। हिमालय की ढाल पर औषध बहुत उत्पन्न होती है, जिसका बाहर निर्यात होता है, जिसका बाहर निर्यात होता है। वनज और खनिज उपलब्धियों के लिए नेपाल में व्यापक सर्वेक्षण चल रहा है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में संतुलन लाया जा सके।
1953 से आर्थिक उन्नयन का कार्य तेजी से आरंभ हुआ। अनेक क्षेत्रों में सामुदायिक विकास योजनाओं को लागू किया गया। कृषिगत उत्पादन में वृद्धि के लिए सिंचाई योजनाओं को लागू किया गया। 1956 में इन सभ येजनाओं को पंचवर्षीय कार्यक्रम का रूप दे दिय गया। प्रथम योजना (1956-61) में, जिसके अतर्गत बड़े उद्योगों की सहायता, कुटीर उद्योगों का विकास और विस्तार, वयक्तिगत व्यापार को प्रोत्साहन और टेकनिकल प्रशिक्षण आदि कार्यक्रम संमिलित थे, 33 करोड़ व्यय किया गया था।
मार्च 1962 में नेपाल ने 36 करोड़ 50 लाख रुपए (नेपाली सिक्का) के व्यय से त्रिवर्षीय योजना का सूत्रपात किया। 30 करोड़ रुपए विदेशों से ऋण के रूप में प्राप्त हुए।