विक्रम अंबालाल साराभाई
विक्रम अंबालाल साराभाई | |
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विक्रम साराभाई | |
जन्म |
12 अगस्त 1919 अहमदाबाद, भारत |
मृत्यु |
30 दिसम्बर 1971 Halcyon Castle,कोवलम in तिरुवनंतपुरम, केरल, भारत | (उम्र 52 वर्ष)
आवास | भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
क्षेत्र | भौतिकी |
संस्थान |
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भौति अनुसंधान प्रयोगशाला परमाणु ऊर्जा आयोग (भारत) |
शिक्षा |
गुजरात कॉलेज St. John's College, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
डॉक्टरी सलाहकार | सी. वी. रमन |
प्रसिद्धि |
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम भारत का परमाणु कार्यक्रम |
उल्लेखनीय सम्मान |
पद्म भूषण (१९६६) पद्म विभूषण (मरणोपरान्त) (१९७२) |
विक्रम अंबालाल साराभाई (१२ अगस्त, १९१९- ३० दिसंबर, १९७१) भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। इन्होंने ८६ वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं ४० संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन १९६६ में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।[1] डॉ॰ विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता। यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया।
डॉ॰ साराभाई के व्यक्तित्व का सर्वाधिक उल्लेखनीय पहलू उनकी रुचि की सीमा और विस्तार तथा ऐसे तौर-तरीके थे जिनमें उन्होंने अपने विचारों को संस्थाओं में परिवर्तित किया। सृजनशील वैज्ञानि सफल और दूरदर्शी उद्योगपति, उच्च कोटि के प्रवर्तक, महान संस्था निर्माता, अलग किस्म के शिक्षाविद, कला पारखी, सामाजिक परिवर्तन के ठेकेदार, अग्रणी प्रबंध प्रशिक्षक आदि जैसी अनेक विशेषताएं उनके व्यक्तित्व में समाहित थीं। उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे एक ऐसे उच्च कोटि के इन्सान थे जिसके मन में दूसरों के प्रति असाधारण सहानुभूति थी। वह एक ऐसे व्यक्ति थे कि जो भी उनके संपर्क में आता, उनसे प्रभावित हुए बिना न रहता। वे जिनके साथ भी बातचीत करते, उनके साथ फौरी तौर पर व्यक्तिगत सौहार्द स्थापित कर लेते थे। ऐसा इसलिए संभव हो पाता था क्योंकि वे लोगों के हृदय में अपने लिए आदर और विश्वास की जगह बना लेते थे और उन पर अपनी ईमानदारी की छाप छोड़ जाते थे।
आरम्भिक जीवन
[संपादित करें]डॉ॰ विक्रम साराभाई का अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को एक समृद्ध जैन परिवार में जन्म हुआ। अहमदाबाद में उनका पैत्रिक घर "द रिट्रीट" में उनके बचपन के समय सभी क्षेत्रों से जुड़े महत्वपूर्ण लोग आया करते थे। इसका साराभाई के व्यक्तित्व के विकास पर महत्वपूर्ण असर पड़ा। उनके पिता का नाम श्री अम्बालाल साराभाई और माता का नाम श्रीमती सरला साराभाई था। विक्रम साराभाई की प्रारम्भिक शिक्षा उनकी माता सरला साराभाई द्वारा मैडम मारिया मोन्टेसरी की तरह शुरू किए गए पारिवारिक स्कूल में हुई। गुजरात कॉलेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे 1937 में कैम्ब्रिज (इंग्लैंड) चले गए जहां 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर वे भारत लौट आए और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी करने लगे जहां वह महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन के निरीक्षण में ब्रह्माण्ड किरणों पर अनुसन्धान करने लगे।
उन्होंने अपना पहला अनुसन्धान लेख "टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़" भारतीय विज्ञान अकादमी की कार्यविवरणिका में प्रकाशित किया। वर्ष 1940-45 की अवधि के दौरान कॉस्मिक रेज़ पर साराभाई के अनुसंधान कार्य में बंगलौर और कश्मीर-हिमालय में उच्च स्तरीय केन्द्र के गेइजर-मूलर गणकों पर कॉस्मिक रेज़ के समय-रूपांतरणों का अध्ययन शामिल था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर वे कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपनी डाक्ट्रेट पूरी करने के लिए कैम्ब्रिज लौट गए। 1947 में उष्णकटीबंधीय अक्षांक्ष (ट्रॉपीकल लैटीच्यूड्स) में कॉस्मिक रे पर अपने शोधग्रंथ के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्हें डाक्ट्ररेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद वे भारत लौट आए और यहां आ कर उन्होंने कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान पर अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा। भारत में उन्होंने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर अध्ययन किया।
स्वप्न-द्रष्टा
[संपादित करें]डॉ॰ साराभाई एक स्वप्नद्रष्टा थे और उनमें कठोर परिश्रम की असाधारण क्षमता थी। फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिक पीएरे क्यूरी (1859-1906) जिन्होंने अपनी पत्नी मैरी क्यूरी (1867-1934) के साथ मिलकर पोलोनियम और रेडियम का आविष्कार किया था, के अनुसार डॉ॰ साराभाई का उद्देश्य जीवन को स्वप्न बनाना और उस स्वप्न को वास्तविक रूप देना था। इसके अलावा डॉ॰ साराभाई ने अन्य अनेक लोगों को स्वप्न देखना और उस स्वप्न को वास्तविक बनाने के लिए काम करना सिखाया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता इसका प्रमाण है।
डॉ॰ साराभाई में एक प्रवर्तक वैज्ञानिक, भविष्य द्रष्टा, औद्योगिक प्रबंधक और देश के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए संस्थाओं के परिकाल्पनिक निर्माता का अद्भुत संयोजन था। उनमें अर्थशास्त्र और प्रबन्ध कौशल की अद्वितीय सूझ थी। उन्होंने किसी समस्या को कभी कम कर के नहीं आंका। उनका अधिक समय उनकी अनुसन्धान गतिविधियों में गुजरा और उन्होंने अपनी असामयिक मृत्युपर्यन्त अनुसन्धान का निरीक्षण करना जारी रखा। उनके निरीक्षण में 19 लोगों ने अपनी डाक्ट्रेट का कार्य सम्पन्न किया। डॉ॰ साराभाई ने स्वतन्त्र रूप से और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 86 अनुसन्धान लेख लिखे।
कोई भी व्यक्ति बिना किसी डर या हीन भावना के डॉ॰ साराभाई से मिल सकता था, फिर चाहे संगठन में उसका कोई भी पद क्यों न रहा हो। साराभाई उसे सदा बैठने के लिए कहते। वह बराबरी के स्तर पर उनसे बातचीत कर सकता था। वे व्यक्तिविशेष को सम्मान देने में विश्वास करते थे और इस मर्यादा को उन्होंने सदा बनाये रखने का प्रयास किया। वे सदा चीजों को बेहतर और कुशल तरीके से करने के बारे में सोचते रहते थे। उन्होंने जो भी किया उसे सृजनात्मक रूप में किया। युवाओं के प्रति उनकी उद्विग्नता देखते ही बनती थी। डॉ॰ साराभाई को युवा वर्ग की क्षमताओं में अत्यधिक विश्वास था। यही कारण था कि वे उन्हें अवसर और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए सदा तैयार रहते थे।
महान संस्थान निर्माता
[संपादित करें]डॉ॰ साराभाई एक महान संस्थान निर्माता थे। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थान स्थापित करने में अपना सहयोग दिया। साराभाई ने सबसे पहले अहमदाबाद वस्त्र उद्योग की अनुसंधान एसोसिएशन (एटीआईआरए) के गठन में अपना सहयोग प्रदान किया। यह कार्य उन्होंने कैम्ब्रिज से कॉस्मिक रे भौतिकी में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर लौटने के तत्काल बाद हाथ में लिया। उन्होंने वस्त्र प्रौद्योगिकी में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। एटीआईआरए का गठन भारत में वस्त्र उद्योग के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। उस समय कपड़े की अधिकांश मिलों में गुणवत्ता नियंत्रण की कोई तकनीक नहीं थी। डॉ॰ साराभाई ने विभिन्न समूहों और विभिन्न प्रक्रियाओं के बीच परस्पर विचार-विमर्श के अवसर उपलब्ध कराए। डॉ॰ साराभाई द्वारा स्थापित कुछ सर्वाधिक जानी-मानी संस्थाओं के नाम इस प्रकार हैं- भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद; भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद; सामुदायिक विज्ञान केन्द्र; अहमदाबाद, दर्पण अकादमी फॉर परफार्मिंग आट्र्स, अहमदाबाद; विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, तिरुवनन्तपुरम; अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद; फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) कलपक्कम; वैरीएबल एनर्जी साईक्लोट्रोन प्रोजक्ट, कोलकाता; भारतीय इलेक्ट्रानिक निगम लिमिटेड (ईसीआईएल) हैदराबाद और भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (यूसीआईएल) जादुगुडा, बिहार।
विज्ञान और संस्कृति
[संपादित करें]डॉ॰ होमी जे. भाभा की जनवरी, 1966 में मृत्यु के बाद डॉ॰ साराभाई को परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार संभालने को कहा गया। साराभाई ने सामाजिक और आर्थिक विकास की विभिन्न गतिविधियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में छिपी हुई व्यापक क्षमताओं को पहचान लिया था। इन गतिविधियों में संचार, मौसम विज्ञान, मौसम संबंधी भविष्यवाणी और प्राकृतिक संसाधनों के लिए अन्वेषण आदि शामिल हैं। डॉ॰ साराभाई द्वारा स्थापित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद ने अंतरिक्ष विज्ञान में और बाद में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अनुसंधान का पथ प्रदर्शन किया। साराभाई ने देश की रॉकेट प्रौद्योगिकी को भी आगे बढाया। उन्होंने भारत में उपग्रह टेलीविजन प्रसारण के विकास में भी अग्रणी भूमिका निभाई।
डॉ॰ साराभाई भारत में भेषज उद्योग के भी अग्रदूत थे। वे भेषज उद्योग से जुड़े उन चंद लोगों में से थे जिन्होंने इस बात को पहचाना कि गुणवत्ता के उच्च्तम मानक स्थापित किए जाने चाहिए और उन्हें हर हालत में बनाए रखा जाना चाहिए। यह साराभाई ही थे जिन्होंने भेषज उद्योग में इलेक्ट्रानिक आंकड़ा प्रसंस्करण और संचालन अनुसंधान तकनीकों को लागू किया। उन्होंने भारत के भेषज उद्योग को आत्मनिर्भर बनाने और अनेक दवाइयों और उपकरणों को देश में ही बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साराभाई देश में विज्ञान की शिक्षा की स्थिति के बारे में बहुत चिन्तित थे। इस स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्होंने सामुदायिक विज्ञान केन्द्र की स्थापना की थी।
डॉ॰ साराभाई सांस्कृतिक गतिविधियों में भी गहरी रूचि रखते थे। वे संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कलाओं और अन्य अनेक क्षेत्रों से जुड़े रहे। अपनी पत्नी मृणालिनी के साथ मिलकर उन्होंने मंचन कलाओं की संस्था दर्पण का गठन किया। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई बड़ी होकर भारतनाट्यम और कुचीपुड्डी की सुप्रसिध्द नृत्यांग्ना बनीं।
तिरुवनन्तपुरम (केरल) के कोवलम में 30 दिसम्बर 1971 को डॉ॰ साराभाई का देहान्त हो गया। इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरुवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बद्ध अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा है। 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि 'सी ऑफ सेरेनिटी' पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा।
भारतीय डाक विभाग द्वारा उनकी मृत्यु की पहली बरसी पर 1972 में एक डाक टिकट जारी किया गया।
पुरस्कार
[संपादित करें]1. शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार (1962)
2. पद्मभूषण (1966)
3. पद्मविभूषण, मरणोपरान्त (1972)
महत्वपूर्ण पद
[संपादित करें]1.भौतिक विज्ञान अनुभाग, भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष (1962)
2.आई.ए.ई.ए., वेरिना के महा सम्मलेनाध्यक्ष (1970)
3.उपाध्यक्ष, ‘परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग’ पर चौथा संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (1971)
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Padma Awards Directory (1954–2013)" (PDF). Ministry of Home Affairs, Government of India. 14 August 2013. मूल (PDF) से 15 October 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 July 2015.