ग्वादर

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ग्वादर
Gwadar / گوادر‎
ग्वादर is located in पाकिस्तान
ग्वादर
ग्वादर
पाकिस्तान में स्थिति
सूचना
प्रांतदेश: बलोचिस्तान प्रान्त, पाकिस्तान
जनसंख्या (२००६): ५३,०८०
मुख्य भाषा(एँ): बलोच, उर्दु
निर्देशांक: 25°12′N 62°11′E / 25.200°N 62.183°E / 25.200; 62.183
ग्वादर शहर
ग्वादर बंदरगाह

ग्वादर (बलोचउर्दु: گوادر‎) पाकिस्तान से सुदूर दक्षिण-पश्चिमी भाग में बलोचिस्तान प्रान्त में अरब सागर के किनारे पर स्थित एक बंदरगाही शहर है। यह ग्वादर ज़िले का केंद्र है और सन् २०११ में इसे बलोचिस्तान की शीतकालीन राजधानी घोषित कर दिया गया था। ग्वादर शहर एक ६० किमी चौड़ी तटवर्ती पट्टी पर स्थित है जिसे अक्सर मकरान कहा जाता है। ईरान तथा फ़ारस की खाड़ी के देशों के बहुत पास होने के कारण इस शहर का बहुत सैन्य और राजनैतिक महत्व है। पाकिस्तान प्रयास कर रहा है कि इस बंदरगाह के ज़रिये न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन, अफ़ग़ानिस्तानमध्य एशिया के देशों का भी आयात-निर्यात चले।

इतिहास[संपादित करें]

प्राचीन काल[संपादित करें]

ग्वादर और इस के आसपास के क्षेत्र की इतिहास बहुत पुरानी है। यह क्षेत्र कलानच घाटी और दश्त घाटी भी कहलाता है। इस का ज़्यादा भूभाग बंजर है। ये मकरान की इतिहास में सदैव महत्त्वपूर्ण रहा है। इतिहास की एक कथन के अनुसार हज़रत दाऊद के समय में जब सूखा पड़ा तो सेना घाटी से बहुत से लोग स्थानान्तरित हो कर के वादी मकरान के क्षेत्र में आगए।[उद्धरण चाहिए] मकरान का यह क्षेत्र हज़ारों साल तक ईरान का हिस्सा रहा है। ईरानी बादशाह काऊस और अफ़रासयाब के समय में भी ईरान की अधीन में था। 325 ईपू में सिकन्दर महान जब भारतीय उपमहाद्वीप से वापिस यूनान जा रहा था तो इस ने यह क्षेत्र अकस्मात मिल गया था। उन के नाविक सेना सेनापति Admiral Nearchos ने अपने जहाज़ इस की बंदरगाह पर रुकवाए और अपनी संस्मरण में इस क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण नगरौं में कुलमात, गवादर, पशुकान और चाह बिहार के नामों से लिखा है। महात्त्वपूर्ण समुद्री रास्ते पर होने की वजह से सिकन्दर महान ने इस इलाके को अधिग्रहण कर के अपने एक जनरल Seleukos Nikator को यहाँ का शासक बिना दिया जो 303 ईपू तक शासन करता रहा। 303 ईपू में भारतीय उपमहाद्वीप के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने सैन्य आक्रमण कर के यूनानी जनरल से यह क्षेत्र अधीग्रहण किया परन्तु एक शताब्दी पश्चात 202 ईपू में फिर यहां की शासन ईरान के बादशाहों के पास चली गई। 711 ईसवी में मुस्लमान जनरल मुहम्मद बिन क़ासिम ने यह क्षेत्र को कब्जा कर लिया। हिंदूस्तान के मुग़ल बादशाहों के समय में यह क्षेत्र मुग़लिया सल्तनत का भाग रहा जब कि 16वीं सदी में पुर्तगालियों ने मकरान के मुतअद्द इलाक़ों जिन में ये इलाका भी शामिल था पर क़ब्ज़ा कर लिया। 1581 में पुर्तगालियों ने इस इलाके के दो अहम तिजारती शहरों - पसनी और ग्वादर - को जला डाला। ये इलाका मक़ामी हुक्मरानों के दरम्यान भी तख़्ता-मशक़ बना रहा और कभी इस पर बलीदी हुक्मरान रहे तो कभी रिंदों को हुकूमत मिली कभी मुल्क हुक्मरान बन गए तो कभी गचकीयों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। मगर अहम हुक्मरानों में बलीदी और गचुकी क़बीले ही रहे हैं। बलीदी ख़ानदान को इस वक्त बहुत समर्थन मिली जब उन्होंने ज़करी फ़िर्क़े को अपना लिया अगरचे गचुकी भी ज़करी फ़िरक़े से ही ताल्लुक रखते थे। 1740तक बलीदी हुकूमत करते रहे इन के बाद गचकीयों की एक समय तक हुक्मरानी रही मगर ख़ानदानी इख़तिलाफ़ात की वजह से जब ये कमज़ोर पड़े तो ख़ान क़लात मीर नसीर ख़ान अव्वल ने कई मरत्तबा इन पर चढ़ाई की जिस के नतीजे में इन दोनों ने इस इलाके और यहां से होने वाली आमदन को आपस में तक़सीम कर लिया। 1775 के क़रीब मसक़त (ओमान) के हुक्मरानों ने मध्य एशिया के मुमालिक से तिजारत केलीये इस इलाके को मुस्तआर ले लिया और गवादर की बंदरगाह को अरब इलाक़ों से वुस्त एशिया (मध्य एशिया) के मुमालिक की तिजारत केलीये इस्तेमाल करने लगे जिन में ज़्यादा तर हाथीदाँत और इस की मसनूआत, गर्म मसाले, ऊनी लिबास और अफ़रीक़ी ग़ुलामों की तिजारत होती।

ओमान में शामिल[संपादित करें]

1783 में मसक़त (ओमान) के बादशाह क अपने भाई साद सुल्तान से झगड़ा हो गया, जिसपर साद सुल्तान ने क़लात के ख़ान मीर नसीर ख़ान को ख़त लिखा जिस में इसने यहाँ आने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की। चुनांचे ख़ान ने ना सिर्फ सुल्तान को फ़ौरन आ जाने को कहा बल्कि ग्वादर का इलाका और वहाँ की आमदन भी असीमित वक्त के लिये सुल्तान के नाम कर दिया। इसके बाद सुल्तान ने ग्वादर में आ कर रहना शुरु कर दिया। 1797 में सुल्तान वापिस मसक़त चला गया और वहाँ अपनी खोई हुई हुकूमत हासिल कर ली। 1804 में सुल्तान के देहांत के बाद इस के बेटे हुक्मरान बन गए तो इस दौर में बलीदयूं ने एक बार फिर ग्वादर पर क़ब्ज़ा कर लिया जिस पर मसक़त से फ़ौजों ने आ कर इस इलाके को बलीदयूं से मुक्त करवाया। 1838 की पहली अफ़ग़ान जंग में बरतानिया की तवज्जो इस इलाका पर हुई तो बाद में 1861 में बरतानवी फ़ौज ने मेजर गोल्ड स्मिथ की निगरानी में आकर इस इलाके पर क़ब्ज़ा कर लिया और 1863 में ग्वादर में अपना एक अस्सिटैंट पोलिटिकल एजैंट मुकर्रर कर दिया चुनांचे हिंदूस्तान में बरतानिया की ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेवीगीशन कंपनी के जहाज़ों ने ग्वादर और पसनी की बंदरगाहों को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। 1863 में ग्वादर में पहला तार-घर (टैलीग्राम आफ़िस) कायम हुआ जबकि पसनी में भी तार-घर बनाया गया। 1894 को ग्वादर में पहला डाकख़ाना खुला जबकि 1903 को पुसनी और 1904 को ओरमाड़ा में डाकख़ाने कायम किए गए। 1947 में जब भारतीय उपमहाद्वीप की तक़सीम हुई और भारत और पाकिस्तान के नाम से दो बड़ी रियासतें वजूद में आईं तो गवादर और इस के गिर्द का इलाका क़लात राज्य में शामिल था।

पाकिस्तान में शामिल[संपादित करें]

1955 में इलाके को मकरान ज़िला बिना दिया गया। 1958 में मसक़त ने एक करोड़ डालरों के बदले ग्वादर और इस के आसपास का इलाका वापिस पाकिस्तान को दे दिया जिस पर पाकिस्तान की हुकूमत ने गवादर को तहसील को दर्जा दे कर उसे ज़िला मकरान में शामिल कर दिया। प्रथम जुलाई 1970 को जब 'वन यूनिट' का ख़ात्मा हुआ और बलोचिस्तान भी एक सूबे की हैसीयत इख़्तयार कर गया तो मकरान को भी ज़िले के अधिकार मिल गए। 1977 में मकरान को डिवीज़न (विभाग) का दर्जा दे दिया गया और प्रथम जुलाई 1977 को तुरबत, पंजगुर और ग्वादर तीन ज़िले बिना दिए।

आज का ग्वादर[संपादित करें]

चित्र:File-Pasni Map.jpg
ग्वादर राजनैतिक नज़रिये से बहुत अहम जगह पर स्थित है

ग्वादर का मौजूदा शहर एक छोटा सा शहर है जिस की आबादी सरकारी गणना के मुताबिक आधा लाख और अन्य स्रोतों के मुताबिक एक लाख के आसपास है। इस शहर को समुद्र ने तीन तरफ़ से अपने घेरे में लिया हुआ है और हर वक्त समुद्री हवाएँ चलती रहती हैं जिस की वजह से ये एक ख़ूबसूरत और दिलफरेब मंज़र पेश करता है। वैसे भी गवादर का मतलब "हवा का दरवाज़ा" है। 'ग्वा' का अर्थ 'हवा' और 'दर' का मतलब 'दरवाज़ा' है। गहरे समुद्र के अलावा शहर के इर्द-गिर्द मिट्टी की बुलंद ऊँची चट्टानें मौजूद हैं। इस शहर के वासियों की ज़्यादातर गुज़र बसर मछली के शिकार पर होती है और अन्य ज़रूरतें पड़ोसी देश ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान से पूरी होती हैं।

ग्वादर शहर भविष्य में एक अंतरराष्ट्रीय शहर की हैसीयत इख़्तयार कर जाएगा और ना सिर्फ बलोचिस्तान बल्कि पूरे पाकिस्तान का आर्थिक लिहाज़ से एक अहम शहर बन जाएगा। यहाँ की बंदरगाह पाकिस्तान के अलावा चीन, अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया के मुमालिक ताजिकिस्तान, क़ाज़क़स्तान, अज़रबैजान, उज़बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कुछ रूसी रियासतों के इस्तेमाल में आएगी जिस से पाकिस्तान को बहुत किराया मिलेगा। ग्वादर की बढ़ती हुई अहमीयत की वजह से अब लोगों की तवज्जो इस तरफ़ हो चुकी है इसलिए ऐसे में बेशुमार धोखेबाज़ों ने भी जाली और दो नंबरी रिहाइशी स्कीमों और अन्य कालोनीयों की आड़ में लोगों को लूटना शुरू कर रखा है क्योंकि पाकिस्तान के दीगर शहरों से ताल्लुक रखने वाले लोग अकसर ग्वादर की असल सूरतेहाल से बेख़बर होने की वजह से इन अपराधियों की चिकनी-चुपड़ी बातों की वजह से इन के जाल में फंस कर अपनी जमा-पूंजी से महिरूम हो रहे हैं। यह जाली भूमि-विक्रेता अपने पोस्टरों और पमफ़लेटों पर दुबई और हाँग काँग के मंज़र और इमारतें दिखा कर लोगों को बेवकूफ़ बना रहे हैं। वैसे भी ग्वादर में पीने के पानी की कमी, गंदगी-सफ़ाई के इंतज़ाम की कमी और अन्य इमारती सामान की किल्ल्त की वजह से ना सिर्फ प्राईवेट सेक्टर बल्कि सरकारी सेक्टर में भी कोई ख़ास काम शुरू नहीं हो सका है, सिवाऐ बंदरगाह और चंद-एक इमारतों के। मौजूदा ग्वादर शहर में टूटी हुई सड़कें, छोटी-छोटी तंग गलियाँ और बाज़ारों में गंदगी के ढेर लगे हुऐ हैं।

गवादर डवीलपमिंट अथार्टी एक चेयरमैन, डायरेक्टर जनरल और गवरनिंग बॉडी (जिस में दो मंत्रिगण, एक सुबाई वज़ीर, डिस्ट्रिक्ट नाज़िम और एडीशनल चीफ़ सैक्रटरी होते हैं) पर मुशतमिल एक इदारा है। जी डी ए के मास्टर-प्लान के मुताबिक ग्वादर शहर का इलाका मौजूदा पूरी गवादर तहसील के बराबर है और शहर की बड़ी सड़कें 200 फुट चौड़ी और चार लेन पर मुशतमिल होंगी जबकि इन सड़कों के दोनों तरफ़ 2/2 लेन की सर्विस रोड होगी और शहर के मेन रोड का नाम 'जिन्नाह ऐवेन्यू' रखा गया है जो तक़रीबन 14 किलोमीटर लम्बी है और इसी तरह बलोचिस्तान ब्रोडवे भी 200 फुट चौड़ी और सर्विस रोड पर मुशतमिल होगी और इस की लंबाई तक़रीबन 60 किलोमीटर है जबकि समुद्र के साथ साथ तक़रीबन 24 किलोमीटर सड़क तामीर होगी और जो चौड़ाई के लिहाज़ से जिन्नाह ऐवेन्यू जैसी होगी। ये सड़कें ना सिर्फ एशिया बल्कि यूरोप के बहुत से मुमालिक के शहरों से भी बड़ी सड़कें होंगी। अबतक विकास कामों पर तक़रीबन 6 से 7 करोड़ पाकिस्तानी रुपये ख़र्च हो चुके हैं और वक्त के साथ साथ ये अख़राजात भी बढ़ते चले जाएँगे। शहर में तरक़्क़ियाती कामों में ताख़ीर और सस्ती की सब से अहम वजह सामग्री का दूर-दराज़ इलाक़ों से लाया जाना है, जैसे रेत 135 किलोमीटर दूर से लाया जाता है जबकि सीमेंट और सरिया वग़ैरा 800 किलोमीटर दूर कराची से लाया जाता है। मौजूदा ग्वादर शहर सिर्फ 800 मीटर लंबा है जबकि मास्टर-प्लान के मुताबिक आने वाले दिनों में ग्वादर तक़रीबन 40 किलोमीटर चौड़ा और 60 किलोमीटर लम्बा होगा। अब तक जी डी ए ने क़ानून के मुताबिक रिहाइशी, इंडस्ट्रीयल और कमर्शीयल महत्व की 30 से ज़ायद स्कीमों के आदेश जारी किए हैं जबकि सरकारी स्कीमें इस वक्त 2 हैं जिन में सिंगार हाऊसिंग स्कीम जो तक़रीबन 13 किलोमीटर लंबी और 4.5 किलोमीटर चौड़ी समुद्र में मिट्टी की पहाड़ी पर है जबकि दूसरी सरकारी स्कीम न्यू टाउन के नाम से होगी जिस के 4 फ़ेज़ होंगे और इस में 120 गज़ से 2000 गज़ के प्लाट होंगे। ग्वादर फ़्री-पोर्ट नहीं बल्कि टैक्स-फ़्री ज़ोन शहर होगा। जी डी ए ने 'कोई आपत्ति नहीं पत्र' जारी करते वक्त प्राईवेट इदारों को इस बात का पाबंद क्या है कि वो अपनी-अपनी स्कीमों में पीने के पानी का इंतिज़ाम करेंगे और समुद्र का पानी साफ़ करने के प्लांट लगाएँगे, जबकि सिवरेज के पानी के निकास का भी ऐसा बंदोबस्त किया जा रहा है कि गंदा पानी समुद्र में शामिल हो कर उसे ख़राब ना करे और कराची जैसी सूरत-ए-हाल पैदा ना हो। इस मक़सद के लिये हर प्राईवेट स्कीम को भी पाबंद किया है कि वो नाली के पानी को साफ़ करने के ट्रीटमेन्ट और रीसाइकलिंग प्लांट लगाएँ और इस पानी को ग्रीन-बेल्ट और पार्कों में इस्तेमाल किया जाए। अब गवादर शहर में आकड़ा बाँध से पीने का पानी आता है जो 45 हज़ार की आबादी के लिये काफ़ी था मगर अब आबादी में इज़ाफ़े की वजह से पानी का मसला पैदा हो गया और मौजूदा पानी की मात्रा कम पड़ गई क्योंकि अब ग्वादर की आबादी एक लाख के लगभग है और आने वाले दिनों में इस में इज़ाफ़ा होता चला जाएगा। इसलिये मीरानी बाँध की योजना पर काम हो रहा है मगर ये ग्वादर से 120 किलो मीटर दूर है जहाँ से पानी लाना बहुत मुश्किल काम होगा जबकि मीरानी डैम का पानी सर्दियों की बारिशों पर निर्भर है और, जैसा कि अक्सर होता है, कि कई-कई साल बारिशें नहीं होती तो डैम में पानी भी नहीं आएगा लिहाज़ा यह कहा जाए तो दरुस्त होगा कि ग्वादर में असल मसला पानी का ही होगा जो एक बहुत बड़ा चैलेंज है।

आधुनिक बंदरगाह[संपादित करें]

ग्वादर मकरान कोसटल हाई-वे के ज़रीये कराची और बलोचिस्तान के अन्य तटीय शहरों से जुड़ा हुआ है

फ़ील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान के दौर में ही ग्वादर में जदीद बंदरगाह बनाने का मनसूबा बन गया था मगर पैसे की कमी और अन्य मुल्की और अंतर्राष्ट्रीय मामलात और सयासी मसलों की वजह इस की तामीर का काम शुरू ना हो सका। मगर जब अमरीका ने तालिबान हुकूमत के ख़ातमे के लिए अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया तो इस के बाद अभी चार माह भी नहीं गुज़रे थे कि पाकिस्तान और चीन ने मिल कर ग्वादर में इक्कीसवीं सदी की ज़रूरतों के मुताबिक बंदरगाह बनानी शुरू कर दी। चीनीयों के इस शहर में दाख़िले के साथ ही शहर की अहमीयत कई गुना बढ़ गई। ग्वादर के भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय शहर और टैक्स-फ़्री (कर-मुक्त) ज़ोन बनने का ऐलान होते ही देश-भर के सरमायादार और दौलतमंद खरबों रुपये लेकर इस शहर में पहुंच गए और ज़मीनों को ख़रीदने के लिये मक़ामी शहरीयों को मुँह-मांगे रुपये देने शुरू कर दिए जिस की वजह से दो सौ रुपये किराया की दुकान तीस हज़ार रुपये तक हो गई और तीस हज़ार रुपये फ़ी-एकड़ ज़मीन की क़ीमत दो से तीन करोड़ रुपये तक पहुंच गई। ग्वादर का आम शहरी, जो चंद एकड़ का मालिक था, देखते-ही-देखते करोड़पति-अरबपति बन गया, चुनांचे अब शहर में बे-शुमार चमकती-दमकती और क़ीमती गाड़ीयों की भरमार हो गई है, जिस वजह से छोटी और तंग सड़कें और सिकुड़ गई हैं। शहर के तक़रीबन कई बेरोज़गार लोगों ने प्रॉपर्टी डीलर के दफ़्तर खोल लिए जबकि दूसरे शहरों से आए हुऐ अफ़राद ने प्रॉपर्टी को मुनाफ़ा-बख़्श कारोबार समझते हुऐ बड़े-बड़े इदारे कायम कर लिए। शहर की ख़राब हालत को बेहतर बनाने के लिये सरकार ने 2003 में 'ग्वादर डवेलपमेंट अथारटी' के नाम से एक इदारा बनाया जिसका क़ानून बलोचिस्तान की सुबाई असैंबली ने 2002 में मंज़ूर किया था। लेकिन यह इदारा शहर की हालत को सुधारने में कामयाब नहीं हो सका है।

ग्वादर बंदरगाह फ़ारस की खाड़ी, अरब सागर, हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और इसी समुद्री पट्टी में स्थित तमाम बंदरगाहों से ज़्यादा गहरी बंदरगाह होगी और इस में बड़े-बड़े माल-भरे जहाज़ आसानी से लंगर गिरा सकेंगे, जिन में ढाई लाख टन वज़नी जहाज़ तक शामिल हैं। इस बंदरगाह के ज़रीये ना सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान, चीन और मध्य एशिया के तमाम देशों की तिजारत होगी। बंदरगाह की गहराई 14.5 मीटर होगी - यह एक बड़ी और सुरक्षित बंदरगाह है। इसकी अहमीयत के पेश-ए-नज़र बहुत से देशों की इस पर नज़र है। बंदरगाह का एक निर्माण-चरण पूरा हो चुका है जिस में 3 बर्थ और एक रैम्प शामिल है। रैम्प पर कई जहाज़ लंगर-अंदाज़ हो सकेंगे जबकि 5 फिक्स क्रेनें और 2 मोबाइल क्रेनें और एक RTG क्रेन आप्रेशनल हालत में लग चुकी हैं। एक बर्थ की लंबाई 600 मीटर है जिस पर एक ही वक्त में कई जहाज़ खड़े हो सकेंगे जबकि दूसरे चरण में 10 बर्थों की तामीर होगी। बंदरगाह चलाने के लिये तमाम बुनियादी सामान भी लग चुके हैं मगर यहाँ पर काम इसलिए नहीं हो पाया है कि दूसरे इलाक़ों जैसे मध्य एशिया के देशों के लिये सड़कें (जोड़ने-वाले मार्ग) मौजूद नहीं हैं और इस मक़सद के लिये कई अंतर्राष्ट्रीय मयार (स्तर) की सड़कें बनवाई जा रही हैं, मसलन M8 राजमार्ग की तामीर पर काम शुरू हो चुका है जो तक़रीबन 892 किलोमीटर लम्बी मोटरवे होगी जो ग्वादर को तुरबत, आवारान, ख़ुज़दार और रटोडेरो से मिलाएगी जो फिर एम 7, एम 6 और ईंडस हाई-वे के ज़रीये ग्वादर का चीन के साथ ज़मीनी रास्ता कायम करने में मददगार साबित होगी। असके अलावा ग्वादर को ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के साथ मिलाने के लिये भी सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है।

मज़ीद देखें[संपादित करें]

बाहरी जोड़[संपादित करें]