गिरगिट
गिरगिट Chameleon सामयिक शृंखला: Middle Paleocene-Holocene | |
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मनगाँव, महाराष्ट्र, भारत में भारतीय गिरगिट (Chamaeleo zeylanicus) | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी (Chordata) |
वर्ग: | सरीसृप (Reptilia) |
गण: | स्क्वमाटा (Squamata) |
उपगण: | लैसर्टिलिया (Lacertilia) |
अधःगण: | इगुआनिया (Iguania) |
कुल: | कैमिलिओनिडाए (Chamaeleonidae) राफ़िनेस्क, १८१५ |
जीववैज्ञानिक वंश | |
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गिरगिट की प्राकृतिक विस्तार |
गिरगिट एक प्रकार का पूर्वजगत छिपकली का क्लेड है जिसकी जून २०१५ तक २०२ जीववैज्ञानिक जातियाँ ज्ञात थी।[1] गिरगिटें कई रंगों की होती हैं और उनमें से कई में रंग बदलने की क्षमता होती है।
गिरगिट को चढ़ाई और दृश्य शिकार के लिए अनुकूलित किया जाता है। उनकी जकड़ने योग्य पुच्छ का उपयोग स्थिरता प्रदान करता है जब वे वृक्षाच्छादन में एक शाखा पर चलते या आराम कर रहे होते हैं; इस वजह से, उनकी पुच्छ को अक्सर "पंचम अंग" कहा जाता है। एक अन्य चरित्र जो वृक्षारोपण के लिए लाभदायक है, वह यह है कि उनके शरीर पार्श्व रूप से कैसे संकुचित होते हैं; उनके लिए अपने वजन को यथासंभव समान रूप से वितरित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पेड़ों में टहनियों और शाखाओं पर स्थिरता प्रदान करता है। वे गर्म आवासों में रहते हैं जो वर्षावन से लेकर मरुस्थलीय परिस्थितियों तक, अफ़्रीका, मेडागास्कर, दक्षिणी यूरोप और दक्षिण एशिया में श्रीलंका तक विभिन्न प्रजातियों के साथ होते हैं।
शरीर[संपादित करें]
गिरगिट के पैर पक्षियों की तरह होते है जिसमें दो पंजे आगे की ओर और दो पंजे पीछे कि ओर सज्जित होते हैं और जिन पर यह दाएँ-बाएँ झुलती हुई चलती है।[2] इनकी जीभ बहुत लम्बी और तेज़ी से बाहर आने वाली होती हैं जिनसे यह कीट व अन्य ग्रास पकड़ते हैं। इनके माथे और थूथन पर कांटे-जैसे सींग और चोटियाँ (क्रेस्ट) होते हैं और बड़ी गिरगिटों की पूँछ अक्सर लम्बी और लचकीली होती है जिस से वह टहनियाँ पकड़कर चढ़ने में निपुण होती हैं। इनकी आँखें अलग-अलग नियंत्रित होती हैं लेकिन शिकार करते हुए संगठित रूप से एक साथ काम करती हैं।
विस्तार[संपादित करें]
गिरगिट वर्षावनों से लेकर रेगिस्तानों तक विश्व के कई गरम क्षेत्रों में पाई जाती है। इनकी जातियाँ अफ़्रीका, माडागास्कर, स्पेन, पुर्तगाल, दक्षिण एशिया आदि में पायी जातीं हैं। इन्हें मानवों द्वारा उत्तर अमेरिका में हवाई, कैलिफ़ोर्निया और फ़्लोरिडा भी ले जाया गया है और अब यह वहाँ भी पाई जाती हैं।
भारत की संस्कृति में[संपादित करें]
मारवाड़ी भाषा में इसे "किरग्याटों" कहा जाता है। जब इसकी गर्दन का रंग गहरा लाल हो जाता है तो राजस्थान के निवासी इसे वर्षा के आने का शुभ संकेत मानते हैं।