एजाज़ अल क़ुरआन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
पवित्र कुरआन का एक पृष्ठ जो सोलहवीं शताब्दी का है। उस पर यह कविता लिखी थी: ﴿ कि क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाएँ, तो वे इस जैसी कोई चीज़ न ला सकेंगे, चाहे वे आपस में एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हों।﴾अल-इस्रा :17:88] [1]

एजाज़ या एजाज़ुल क़ुरआन: इस्लाम में कुरआन की अद्वितीयता (बेमिसाल) होने का सिद्धांत है जो मानता है कि कुरआन में सामग्री और रूप दोनों में एक चमत्कारी गुण है, जिसका कोई भी मानव भाषण मुकाबला नहीं कर सकता है। इस सिद्धांत के अनुसार अनुसार, यह ईश्वर का शब्द है और इसमें अनुमेय गुण हैं। कुरआन एक चमत्कार है और इसकी अद्वितीयता मुहम्मद को उनकी पैगम्बर की स्थिति के प्रमाणीकरण में दिया गया प्रमाण है। यह रचनाकार के स्रोत के रूप में अपनी दिव्यता की प्रामाणिकता को साबित करने के साथ-साथ मुहम्मद के भविष्यवक्ता की वास्तविकता को साबित करने के दोहरे उद्देश्य को पूरा करता है, जिनके लिए यह प्रकट किया गया था क्योंकि वह संदेश लाने वाला था।

क़ुरआनिक आधार[संपादित करें]

अद्वितीयता की अवधारणा कुरआन में उत्पन्न हुई है। पांच अलग-अलग कुरआनी आयतों में विरोधियों को कुरआन जैसा कुछ तैयार करने की चुनौती दी गई है। सुझाव यह है कि जो लोग कुरआन की ईश्वरीय रचनाकारिता पर संदेह करते हैं, उन्हें यह प्रदर्शित करके इसका खंडन करने का प्रयास करना चाहिए कि इसे किसी इंसान ने बनाया होगा:[2][3]

  • "कह दो, "यदि मनुष्य और जिन्न इसके लिए इकट्ठे हो जाएँ कि क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाएँ, तो वे इस जैसी कोई चीज़ न ला सकेंगे, चाहे वे आपस में एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हों।" (क़ुरआन, अल-इस्रा 17:88) [4][5]
  • " या वे कहते है कि "उसने इसे स्वयं घड़ लिया है?" कह दो, "अच्छा, यदि तुम सच्चे हो तो इस जैसी घड़ी हुई दस सूरतें (सूरा) ले आओ और अल्लाह से हटकर जिस किसी को बुला सकते हो बुला लो।" (क़ुरआन, हूद (सूरा) 11:13 ) [6]
  • "वे कहते है, "इस व्यक्ति (पैग़म्बर) ने उसे स्वयं ही घड़ लिया है?" कहो, "यदि तुम सच्चे हो, तो इस जैसी एक सुरा ले आओ और अल्लाह से हटकर उसे बुला लो, जिसपर तुम्हारा बस चले।" (क़ुरआन,10:38) [7]
  • "या वे कहते हैं कि उसने इसे गढ़ा है? नहीं! वे विश्वास नहीं करते! यदि वे सच बोलते हैं तो उन्हें इसके समान एक पाठ प्रस्तुत करने दें।" (क़ुरआन, 52:34) [8]
  • "और यदि तुम उस (पुस्तक) के बारे में किसी संदेह में हो, जो हमने अपने बंदे पर उतारा है, तो उसके समान एक सूरत (सूरा) ले आओ और अल्लाह के सिवा अपने समर्थकों को भी बुला लो, यदि तुम सच्चे हो।" (क़ुरआन, 2:23) [9][10]

उद्धृत छंदों/आयतों में, मुहम्मद के विरोधियों को कुरआन जैसा पाठ, या यहां तक कि दस अध्याय (सूरा ), या यहां तक कि एक अध्याय का निर्माण करने का प्रयास करने के लिए आमंत्रित किया गया है। मुसलमानों में यह धारणा है कि चुनौती पूरी नहीं हुई है।

विचार और प्रतिक्रिया[संपादित करें]

  • मुहम्मद के जीवन के अंत में और उनकी मृत्यु के बाद कई पुरुष और एक महिला अरब के विभिन्न हिस्सों में प्रकट हुए और पैगंबर होने का दावा किया। मुसैलिमाह, मुहम्मद के समकालीन, ने दावा किया कि उन्हें रहस्योद्घाटन प्राप्त हुआ अर्थात खुद को पैगम्बर कहता था। अपनी किताबों को कुरआन से बहतर कहने वाले भी इतिहास में मिलते हैं।
  • कुरआन की इस सूरा बना लाने की चुनौती पर स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में 14 सम्मुल्लास की 8 नंबर की समीक्षा में लिखा था की 'अकबर के समय में मौलवी फ़ैज़ी ने बिना नुक्ते का कुरआन बना लिया था'। इस पर अपनी प्रतिक्रिया में मौलाना सनाउल्‍लाह अमृतसरी ने अपनी पुस्तक 'हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश' में लिखा कि उसने कुरआन नहीं बल्कि टीका (भाष्य) लिखा था अगर फैजी ऐसा करता तो वो इस्लाम से विमुख क्यूं नहीं हुआ?[11]
  • स्वामी जी की इसी बात पर डॉक्टर अनवर जमाल ने समीक्षा करते हुए अपनी पुस्तक 'स्वामी दयानंद ने क्या खोजा क्या पाया' में लिखा की स्वामी जी के अरबी भाषा के कुरआन और तफ्सीर अर्थात भाष्य में अंतर न समझने पर हैरत है।[12]
  • स्वामी जी की इसी बात पर मौलाना सनाउल्‍लाह अमृतसरी ने आर्य समाजी विद्वान मास्टर आत्मा राम से अपनी चर्चा को 'इल्हामी किताब'[13] में दिया है। आत्माराम अमृतसरी फ़ैज़ी के बिना नुक्ते कुरआन को इल्हाम (ईश्वरीय प्रेरणा) समझा था। उस पर आगे भी एतराज़ होते रहे कि फैज़ी ने कुरआन का भाष्य तो बिना नुक्ते का लिख दिया स्वयं कुरआन का नाम और अपना लेखक का नाम भी बिना नुक्ते के नहीं लिख सके। चुनौती सूरा बनाने की है, फैजी ने नुक्तों पे अधिक धियान अधिक दिया जिस से यह उपयोगी ना रहा और गायब होता गया,अगले ज़माने में तो बिना नुक्ते की किताबों की लाइन लग़ गयी।
  • पंडित महेंद्र पाल आर्य ने डॉक्टर असलम कासमी के अनुसार चुनौती सूरा बनाने की पर कुरआन के कुछ शब्द ले कर उस में ओम शब्द घुसा कर कहते हैं की मैंने इस चुनौती को पूरा कर दिया। डॉक्टर असलम कासमी ने अपनी पुस्तक में इस बार पर चर्चा कि के इन को अरबी का बहुत मामूली सा ज्ञान है।[14]
  • पूर्व में बांकेलाल जियाउर्रहमान आज़मी अरबी भाषा के भारतीय मूल के सऊदी अरब में इस्लामी विद्वान थे, जिन्होंने हदीस विभाग के डीन के रूप में कार्य किया था ने अपनी किताब में इस सूरा चुनौती पर लिखा है की 'कुरआन एक ऐसा धर्मशास्त्र है कि सारे मनुष्य मिल कर भी वैसा ग्रन्थ नहीं बना सकते।'[15]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "अल इसरा 17:88".
  2. Karim, Fatima (2022-10-21). "The Challenge of The Quran Dr Philips". Medium (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-12-23.
  3. "Allah's Challenge in the Quran to produce work similar to it | IqraSense.com". www.iqrasense.com. अभिगमन तिथि 2023-12-23.
  4. "Qur'an verse 17:88".
  5. "Tanzil - Quran Navigator | القرآن الكريم". tanzil.net. अभिगमन तिथि 2023-12-23.
  6. "Qur'an verse 11:33".
  7. "Qur'an verse 10:38".
  8. "Qur'an verse 52:34".
  9. "Qur'an verse 2:23".
  10. "Translation of the meanings Surah Al-Baqarah - Hindi Translation". The Noble Qur'an Encyclopedia (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-12-23.
  11. मौलाना, सनाउल्‍लाह अमृतसरी. "पुस्तक:हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश": प. 52. Cite journal requires |journal= (मदद)
  12. डॉक्टर, अनवर जमाल. "पुस्तक:स्वामी दयानंद जी ने किया खोजा किया पाया": 101 से १०३. Cite journal requires |journal= (मदद)
  13. sanaullah amritsari. mubahisa e ilhami.
  14. "'महेन्द्र पाल आर्य बनाम कथित महबूब अली के द्वारा उठाई गयी आपत्तियों की विश्लेषणात्मक समीक्षा,लेखकः डा. मुहम्मद असलम कासमी, प 38". www.archive.org.
  15. Quran Ki Sheetal Chaya (THE PURE SHADE OF QURAN IN HINDI BY The great scholar SHAYKH DHIAURRAHMAN AZAMI) || Australian Islamic Library (English में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]