वार्ता:एजाज़ अल क़ुरआन

पृष्ठ की सामग्री दूसरी भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

रिकॉर्ड और चर्चा के लिए

कल को लेख की हालत नियोग की तरह ना हो जाये इधर रिकॉर्ड और चर्चा के लिए दे रहा हूँ[संपादित करें]

विचार और प्रतिक्रिया[संपादित करें]

  • मुहम्मद के जीवन के अंत में और उनकी मृत्यु के बाद कई पुरुष और एक महिला अरब के विभिन्न हिस्सों में प्रकट हुए और पैगंबर होने का दावा किया। मुसैलिमाह, मुहम्मद के समकालीन, ने दावा किया कि उन्हें रहस्योद्घाटन प्राप्त हुआ अर्थात खुद को पैगम्बर कहता था। अपनी किताबों को कुरआन से बहतर कहने वाले भी इतिहास में मिलते हैं।
  • कुरआन की इस सूरा बना लाने की चुनौती पर स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में 14 सम्मुल्लास की 8 नंबर की समीक्षा में लिखा था की 'अकबर के समय में मौलवी फ़ैज़ी ने बिना नुक्ते का कुरआन बना लिया था'। इस पर अपनी प्रतिक्रिया में मौलाना सनाउल्‍लाह अमृतसरी ने अपनी पुस्तक 'हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश' में लिखा कि उसने कुरआन नहीं बल्कि टीका (भाष्य) लिखा था अगर फैजी ऐसा करता तो वो इस्लाम से विमुख क्यूं नहीं हुआ?[1]
  • स्वामी जी की इसी बात पर डॉक्टर अनवर जमाल ने समीक्षा करते हुए अपनी पुस्तक 'स्वामी दयानंद ने क्या खोजा क्या पाया' में लिखा की स्वामी जी के अरबी भाषा के कुरआन और तफ्सीर अर्थात भाष्य में अंतर न समझने पर हैरत है।[2]
  • स्वामी जी की इसी बात पर मौलाना सनाउल्‍लाह अमृतसरी ने आर्य समाजी विद्वान मास्टर आत्मा राम से अपनी चर्चा को 'इल्हामी किताब'[3] में दिया है। आत्माराम अमृतसरी फ़ैज़ी के बिना नुक्ते कुरआन को इल्हाम (ईश्वरीय प्रेरणा) समझा था। उस पर आगे भी एतराज़ होते रहे कि फैज़ी ने कुरआन का भाष्य तो बिना नुक्ते का लिख दिया स्वयं कुरआन का नाम और अपना लेखक का नाम भी बिना नुक्ते के नहीं लिख सके। चुनौती सूरा बनाने की है, फैजी ने नुक्तों पे अधिक धियान अधिक दिया जिस से यह उपयोगी ना रहा और गायब होता गया,अगले ज़माने में तो बिना नुक्ते की किताबों की लाइन लग़ गयी।
  • पंडित महेंद्र पाल आर्य ने डॉक्टर असलम कासमी के अनुसार चुनौती सूरा बनाने की पर कुरआन के कुछ शब्द ले कर उस में ओम शब्द घुसा कर कहते हैं की मैंने इस चुनौती को पूरा कर दिया। डॉक्टर असलम कासमी ने अपनी पुस्तक में इस बार पर चर्चा कि के इन को अरबी का बहुत मामूली सा ज्ञान है।[4]
  • पूर्व में बांकेलाल जियाउर्रहमान आज़मी अरबी भाषा के भारतीय मूल के सऊदी अरब में इस्लामी विद्वान थे, जिन्होंने हदीस विभाग के डीन के रूप में कार्य किया था ने अपनी किताब में इस सूरा चुनौती पर लिखा है की 'कुरआन एक ऐसा धर्मशास्त्र है कि सारे मनुष्य मिल कर भी वैसा ग्रन्थ नहीं बना सकते।'[5]

📚 M. Umar kairanvi (वार्ता) 06:22, 5 फ़रवरी 2024 (UTC)[उत्तर दें]

  1. मौलाना, सनाउल्‍लाह अमृतसरी. "पुस्तक:हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश": प. 52. Cite journal requires |journal= (मदद)
  2. डॉक्टर, अनवर जमाल. "पुस्तक:स्वामी दयानंद जी ने किया खोजा किया पाया": 101 से १०३. Cite journal requires |journal= (मदद)
  3. sanaullah amritsari. mubahisa e ilhami.
  4. "'महेन्द्र पाल आर्य बनाम कथित महबूब अली के द्वारा उठाई गयी आपत्तियों की विश्लेषणात्मक समीक्षा,लेखकः डा. मुहम्मद असलम कासमी, प 38". www.archive.org.
  5. Quran Ki Sheetal Chaya (THE PURE SHADE OF QURAN IN HINDI BY The great scholar SHAYKH DHIAURRAHMAN AZAMI) || Australian Islamic Library (English में).सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)