एकात्मता मंत्र

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एकात्मता मन्त्र एक संस्कृत मन्त्र है जिसका वाचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में किया जाता है। इस मन्त्र का मूल भाव यह है कि प्रभु एक ही है उसको लोग अलग-अलग नामों से जानते हैं।

मन्त्र[संपादित करें]

यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणा

इन्द्रं यमं मातरिश्वानमाहु:।

वेदान्तिनोऽनिर्वचनीयमेकं

यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिशन्ति॥१॥


शैवायमीशं शिवइत्यवोचन्

यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति।

बुद्धस्तथाऽर्हन्निति बौद्धजैनाः

सत्-श्री-अकालेति च सिक्खसन्तः॥२॥


शास्तेति केचित् प्रकृतिः कुमारः

स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या।

यं प्रार्थयन्ते जगदीशितारं

स एक एव प्रभुरद्वितीयः॥३॥

अर्थ[संपादित करें]

प्राचीन काल के मन्त्रद्रष्टा ऋषियों ने जिसे इन्द्र, यम, मातरिश्वा (वैदिका देवता) कहकर पुकारा, जिस एक अनिर्वचनीय को वेदान्ती ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं॥१॥
शैव जिसकी शिव और वैष्णव जिसकी विष्णु कहकर स्तुति करते हैं। बौद्ध और जैन जिसे बुद्ध और अर्हत् कहते हैं तथा सिक्ख सन्त जिसे सत् श्री अकाल कहकर पुकारते हैं॥२॥
जिस जगत् के स्वामी को कोई शास्ता, तो कोई प्रकृति, कोई कुमारस्वामी कहते हैं तो कोई जिसको स्वामी, माता, पिता कहकर भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हैं, वह प्रभु एक ही है और अद्वितीय है॥३॥

इन्हें भी देखें[संपादित करें]