केरल का संगीत

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तानपुरा बजाती हुई संगीतकार

संगीत का श्रव्यकला के रूप में महत्वपूर्ण स्थान है। इसके दो पक्ष हैं लोकगीत तथा शास्त्रीय संगीत। अनुष्ठान कलाओं से जुडे लोकगीत, देवता स्तुतिपरक गीत, श्रम से जुडे गीत, तिरुवातिरक्कळी, कुम्मि, कोलाट्टम और मनोरंजन केलिए पुराण कथागीत, वंचिप्पाट्टुकल आदि लोकगीतों के भेद हैं। केरल में अनेक वाद्ययंत्र है जो लोक संगीत से जुडे हैं।

यहाँ संगीत शास्त्र नियमों के आधार पर शास्त्रीय गीतों की रचना हुई। वाद्य संगीत तथा वाद्य रहित संगीत दोनों इस विभाग में आते हैं। सोपान संगीत, कथकळि गीत, पंचवाद्य, चेण्डमेलम इत्यादि शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत आते हैं।

कर्नाटक संगीत[संपादित करें]

कर्नाटक संगीत को भी केरल की महत्वपूर्ण देन है। केरल में अनेक गान रचयिता हुए हैं जिनमें प्रमुख हैं - स्वाति तिरुनाळ, इरयिम्मन तंपि, कुट्टिक्कुंञु तंकच्चि, के. सी. केशव पिळ्ळै आदि। यहाँ प्रसिद्ध गायकों की संख्या भी कम नहीं है - षट्काल गोविंदमारार, चेंपै वैद्यनाथ भागवतर, के. वी. नारायण स्वामी, के. एस. नारायण स्वामी, एम. डी. रामनाथन, टी. एन. कृष्णन, एम. एस. गोपाल कृष्णन, टी. एस. मणि अय्यर, येशुदास आदि। अनेक केरलीय संगीतज्ञों ने शास्त्रीय संगीत पर ग्रंथ रचे हैं।