अनेकात्मवाद

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अनेकान्तवाद से भ्रमित न हों।


अनेकात्मवाद के अनुसार अनुसार भिन्न-भिन्न शरीरों में भिन्न-भिन्न आत्मायें निवास करती हैं। कई भारतीय दर्शन अनेकात्मवाद के समर्थक हैं-

न्याय दर्शन[संपादित करें]

न्याय दर्शन अनेकात्मवाद का समर्थक है। इसके अनुसार आत्मा उत्पत्ति तथा नाश से रहित, नित्य, सर्वव्यापी सत्ता है।

वैशेषिक दर्शन[संपादित करें]

वैशेषिक दर्शन जीवात्माओं को अनेक मानता है तथा कर्मफल भोग के लिए अलग-अलग शरीर मानता है।

जैन दर्शन[संपादित करें]

जैन धर्म आत्मा की एकता में विश्वास नहीं रखता है। सूत्रकृतांग में कहा गया है कि "यदि सारे जीवित प्राणियों में एकात्मता होती, तो वे, उनका रूप रंग, गतिविधि एक समान होती। पृथक-पृथक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, कीड़े-मकोड़े, पक्षी और सर्प न होते । सभी या तो मनुष्य होते या देवता।" इस प्रकार, जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है परन्तु 'परम-आत्मिकता' को अस्वीकार करता है।