नव्य न्याय

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नव्य न्याय, भारतीय दर्शन का एक सम्प्रदाय (school) है जो मिथिला के दार्शनिक गंगेश उपाध्याय द्वारा तेरहवीं शती में प्रतिपादित किया गया। इसमें पुराने न्याय दर्शन को ही आगे बढ़ाया गया है। नवद्वीप के रघुनाथ शिरोमणि ने इसे आगे बढ़ाया। १०वीं शताब्दी की अन्तिम बेला के दार्शनिक वाचस्पति मिश्र तथा उदयन आदि का भी इस दर्शन के विकास में प्रभाव है।

गंगेश उपाध्याय ने श्रीहर्ष के खण्डनखण्डखाद्यम् नामक पुस्तक के विचारों के विरोध में अपनी पुस्तक तत्वचिन्तामणि की रचना की। खण्डनखण्डखाद्यम् में अद्वैत वेदान्त का समर्थन एवं न्याय दर्शन के कतिपय सिद्धान्तों का खण्डन किया गया था।

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