"१ − २ + ३ − ४ + · · ·": अवतरणों में अंतर

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लेकिन इस समीकरण की सार्थकता बहुत समय बाद तक स्पष्ट नहीं हो पाई। 1980 के पूर्वार्द्ध में [[अर्नेस्टो सिसैरा]], [[एमिल बोरेल]] और अन्यों ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए [[सुपरिभाषित]] विधि प्रदान की—जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} का "योग" {{frac|1|4}} लिखा जा सकता है। [[सिसैरा-संकलन]] उन विधियों में से एक है जो {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा [[अपसारी श्रेणी#हाबिल संकलन|हाबिल संकलन]] विधि की आवश्यकता होती है।
लेकिन इस समीकरण के की सार्थकता बहुत समय बाद तक स्पष्ट नहीं हो पाई।

श्रेणी {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}}, [[ग्रांडी श्रेणी]] {{nowrap|1 − 1 + 1 − 1 + ...}} से अतिसम्बद्ध है। आयलर ने इन दोनों श्रेणियों को श्रेणी {{nowrap|1 − 2<sup>''n''</sup> + 3<sup>''n''</sup> − 4<sup>''n''</sup> + ...}} जहाँ ''n'' यदृच्छ है, की विशेष अवस्था के रूप में अध्ययन किया और अपने शोध कार्य को [[बेसल समस्या]] तक विस्तारित किया। बाद में उनका ये कार्य बाद में [[फलनिक समीकरण]] के रूप में परिणत हुआ जिसे अब [[डीरिख्ले ईटा फलन]] और [[रीमान जीटा फलन]] के नाम से जाना जाता है।

==अपसरण==
==अपसरण==
श्रेणी के पद (1, −2, 3, −4, ...) [[शून्य|0]] की ओर अग्रषर नहीं हैं; अतः {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} [[पद परीक्षण]] विधि से अपसारी प्रतीत होती है। बाद में सन्दर्भ के तौर पर यह भी आवश्यक हो गया कि श्रेणी का अपसरण का मूलभूत स्तर क्या है। परिभाषा के अनुसार किसी अनन्त श्रेणी का अपसरण या अभिसरण को उस अनुक्रम के आशिंक योग के अपसरण या अभिसरण द्वारा ज्ञात किया जाता है<ref>Hardy p.8</ref>
श्रेणी के पद (1, −2, 3, −4, ...) [[शून्य|0]] की ओर अग्रषर नहीं हैं; अतः {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} [[पद परीक्षण]] विधि से अपसारी प्रतीत होती है। बाद में सन्दर्भ के तौर पर यह भी आवश्यक हो गया कि श्रेणी का अपसरण का मूलभूत स्तर क्या है। परिभाषा के अनुसार किसी अनन्त श्रेणी का अपसरण या अभिसरण को उस अनुक्रम के आशिंक योग के अपसरण या अभिसरण द्वारा ज्ञात किया जाता है<ref>हार्डी पृ॰ 8</ref>
:1 = '''1''',
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:1 − 2 = '''−1''',
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:1 − 2 + 3 − 4 + 5 − 6 = '''−3''',
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इस अनुक्रम की विशिष्टता यह है कि इसमें प्रत्येक पूर्णांक ठीक एक बार आता है—जिसमें शून्य भी शामिल है यदि खाली आंशिक संकलन किया जाए—जिससे [[पूर्णांक|पूर्णांकों]] के समुच्चय <math>\mathbb{Z}</math> की [[गणनीय समुच्चय|गणनीयता]] की स्थापना की जाती है।<ref>बील्स पृ॰ 23</ref> आंशिक योग से यह स्पष्ट होता है कि श्रेणी किसी विशिष्ट संख्या पर अभिसरण नहीं करती (किसी प्रस्तावित सीमा ''x'' के लिए एक ऐसा बिन्दु प्राप्त किया जा सकता है जिसके उत्तरवर्ती सभी संकलन अन्तराल [''x''-1, ''x''+1] के बाहर होंगे।) अतः {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} अपसारी है।

==संकलन के लिए अन्वेषण==
===स्थिरता एवं रैखिकता===
चूँकि पद 1, −2, 3, −4, 5, −6, ... एक सरल पद्धति के अनुरूप हैं, श्रेणी {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} स्थान परिवर्तन कर पदवार संकलित करके एक संख्यातमक मान प्राप्त किया जा सकता है। यदि किस साधारण संख्या ''s'' के लिए {{nowrap|1=''s'' = 1 − 2 + 3 − 4 + ...}} लिखना सम्भव हो तो श्रेणी का योग {{nowrap|1=''s'' = {{frac|1|4}}:}}सिद्ध किया जा सकता है:<ref>हार्डी (पृ॰6) ने [[ग्रांडी श्रेणी]] {{nowrap|1 − 1 + 1 − 1 + ...}} के परिगणन के साथ संयोजन में इसकी व्युत्पति की है।</ref>

: <math>
\begin{array}{rclllll}
4s&=& &(1-2+3-4+\cdots) & {}+(1-2+3-4+\cdots) & {}+(1-2+3-4+\cdots) &{}+(1-2+3-4+\cdots) \\
&=& &(1-2+3-4+\cdots) & {}+1+(-2+3-4+5+\cdots) & {}+1+(-2+3-4+5+\cdots) &{}+(1-2)+(3-4+5-6\cdots) \\
&=& &(1-2+3-4+\cdots) & {}+1+(-2+3-4+5+\cdots) & {}+1+(-2+3-4+5+\cdots) &{}-1+(3-4+5-6\cdots) \\
&=&1+&(1-2+3-4+\cdots) & {}+(-2+3-4+5+\cdots) & {}+(-2+3-4+5+\cdots) &{}+(3-4+5-6\cdots) \\
&=&1+[&(1-2-2+3) & {}+(-2+3+3-4) & {}+(3-4-4+5) &{}+(-4+5+5-6)+\cdots] \\
&=&1+[&0+0+0+0+\cdots] \\
4s&=&1
\end{array}
</math>

[[चित्र:Pm1234 linearity.svg|thumb|right|श्रेणी {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...,}} की 4 प्रतियों का पदवार स्थानांतरण करके योग करने पर 1 प्राप्त होता है। वाम हस्थ और दक्षिण हस्त दिशा मे {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} की दो प्रतियाँ प्रत्येक को {{nowrap|1 − 1 + 1 − 1 + ....}} से जोड़ते हुए दिखाया गया है।]] अतः <math>s=\frac{1}{4}</math> का ज्यामितिय निरुपण दायीं ओर के चित्र में दर्शाया गया है।

यद्यपि 1 − 2 + 3 − 4 + ... सामान्य अर्थों में संकलनीय नहीं है, अतः समीकरण {{nowrap|1=''s'' = 1 − 2 + 3 − 4 + ... = {{frac|1|4}}}} को कथन 'यदि इस तरह का योग परिभाषित किया जाता है' के साथ समर्थित किया जा सकता है। किसी अपसारी श्रेणी के "योग" की [[सामान्यीकरण|व्यापक]] परिभाषा को [[संकलन विधि]] या [[संकलनीयता विधि]] कहते हैं, जो सभी सम्भव श्रेणियों के कुछ उपसमुच्चयों का योग करती हैं। साधारण संकलनों को प्रदर्शित करने वाली विभिन्न विधियाँ (जिनमें से कुछ का विवरण [[#विशिष्ट पद्धतियाँ|नीचे]] दिया गया है।) हैं। उपरोक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि किसी दी गई संकलनीयता विधि से जो [[अपसारी श्रेणी#संकलनीयता के गुणधर्म|स्थिरता एवं रैखिकता]] और श्रेणी {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} को योग करे, तो इसका परिणामी मान {{frac|1|4}} होगा।<ref>हार्डी पृ॰6</ref> इसके अतिरिक्त, चूँकि

: <math>
\begin{array}{rcllll}
2s & = & &(1-2+3-4+\cdots) & + & (1-2+3-4+\cdots) \\
& = & 1 + &(-2+3-4+\cdots) & {} + 1 - 2 & + (3-4+5\cdots) \\
& = & 0 + &(-2+3)+(3-4)+ (-4+5)+\cdots \\
2s & = & &1-1+1-1\cdots
\end{array}
</math>

ऐसी पद्धतियों से ग्रांडी श्रेणी {{nowrap|1=1 − 1 + 1 − 1 + ... = {{frac|1|2}}.}} का भी योग किया जा सकता है।<ref>हार्डी पृ॰6</ref>

===कोशी गुणनफल===


==विशिष्ट पद्धतियाँ==
==व्यापकीकरण==
==सन्दर्भ==
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
{{टिप्पणीसूची}}
==पादटिप्पणी==
{{refbegin}}
*{{cite book |last=बील्स |first=रिचर्ड |title=Analysis: an introduction |trans_title=विश्लेषण: एक परिचय |year=2004 |publisher=कैम्ब्रिज यूपी |language=अंग्रेज़ी |isbn= 0-521-60047-2}}
*{{cite book |last=Davis |first=Harry F. |title=Fourier Series and Orthogonal Functions |publisher=Dover |isbn= 0-486-65973-9|date=May 1989}}
*{{cite web |author=Euler, Leonhard; Lucas Willis; and Thomas J Osler |title=Translation with notes of Euler's paper: Remarks on a beautiful relation between direct as well as reciprocal power series |year=2006 |publisher=The Euler Archive |url=http://www.math.dartmouth.edu/~euler/pages/E352.html |accessdate=2007-03-22}} Originally published as {{cite journal |last=Euler |first=Leonhard |title=Remarques sur un beau rapport entre les séries des puissances tant directes que réciproques |journal=Memoires de l'academie des sciences de Berlin |year=1768 |volume=17 |pages=83–106}}
*{{cite journal |last=Ferraro |first=Giovanni |title=The First Modern Definition of the Sum of a Divergent Series: An Aspect of the Rise of 20th Century Mathematics |journal=Archive for History of Exact Sciences |volume=54 |issue=2 |pages=101–135 |doi=10.1007/s004070050036|date=June 1999}}
*{{cite book |last=Grattan-Guinness |authorlink=Ivor Grattan-Guinness |first=Ivor |year=1970 |title=The development of the foundations of mathematical analysis from Euler to Riemann |publisher=MIT Press |isbn= 0-262-07034-0}}
*{{cite book |last=हार्डी |first=जी॰एच॰ |authorlink=गॉडफ्रे हेरोल्ड हार्डी |title=Divergent Series |trans_title=अपसारी श्रेणी |year=1949 |publisher=क्लेरेंडॉन प्रेस|language=अंग्रेज़ी |lccn=9175377}}
*{{cite journal |doi=10.2307/2690371 |last=Kline |first=Morris |authorlink=Morris Kline |title=Euler and Infinite Series |journal=Mathematics Magazine |volume=56 |issue=5 |pages=307–314 |jstor=2690371|date=November 1983}}
*{{cite book |first=Shaughan |last=Lavine |title=Understanding the Infinite |year=1994 |publisher=Harvard UP |isbn= 0-674-92096-1}}
*{{cite book |last=Markushevich |first=A.I. |title=Series: fundamental concepts with historical exposition |year=1967 |edition=English translation of 3rd revised edition (1961) in Russian |publisher=Hindustan Pub. Corp. |lccn=6817528}}
*{{cite book |author=Saichev, A.I., and W.A. Woyczyński |title=Distributions in the physical and engineering sciences, Volume 1 |publisher=Birkhaüser |year=1996 |isbn= 0-8176-3924-1}}
*{{cite journal |last=Tucciarone |first=John |title=The development of the theory of summable divergent series from 1880 to 1925 |journal=Archive for History of Exact Sciences |volume=10 |issue=1–2 |pages=1–40 |doi=10.1007/BF00343405|date=January 1973}}
*{{cite book |first=Anders |last=Vretblad |title=Fourier Analysis and Its Applications |year=2003 |publisher=Springer |isbn= 0-387-00836-5}}
*{{cite book |last=Weidlich |first=John E. |title=Summability methods for divergent series |publisher=Stanford M.S. theses |oclc=38624384|date=June 1950}}
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{{श्रेणी (गणित)}}
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[[श्रेणी:अपसारी श्रेणी]]
[[श्रेणी:अपसारी श्रेणी]]

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0 + 1 − 2 + 3 − 4 + ... के प्रथम 15,000 आंशिक योग

गणित में, 1 − 2 + 3 − 4 + ··· एक अनन्त श्रेणी है जिसके व्यंजक क्रमानुगत धनात्मक संख्याओं होते हैं जिसके एकांतर चिह्न होते हैं अर्थात प्रत्येक व्यंजक में इसके पूर्व चिह्न से विपरीत होते हैं। श्रेणी के प्रथम m पदों का योग सिग्मा योग निरूपण की सहायता से निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है

अनन्त श्रेणी के अपसरण का मतलब यह है कि इसके आंशिक योग का अनुक्रम (1, −1, 2, −2, ...) किसी परिमित मान की और अग्रसर नहीं होता है। बहरहाल, 18वीं शताब्दी के मध्य में लियोनार्ड आयलर ने विरोधाभासी समीकरण में लिखा

लेकिन इस समीकरण की सार्थकता बहुत समय बाद तक स्पष्ट नहीं हो पाई। 1980 के पूर्वार्द्ध में अर्नेस्टो सिसैरा, एमिल बोरेल और अन्यों ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए सुपरिभाषित विधि प्रदान की—जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा 1 − 2 + 3 − 4 + ... का "योग" 14 लिखा जा सकता है। सिसैरा-संकलन उन विधियों में से एक है जो 1 − 2 + 3 − 4 + ... का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा हाबिल संकलन विधि की आवश्यकता होती है।

श्रेणी 1 − 2 + 3 − 4 + ..., ग्रांडी श्रेणी 1 − 1 + 1 − 1 + ... से अतिसम्बद्ध है। आयलर ने इन दोनों श्रेणियों को श्रेणी 1 − 2n + 3n − 4n + ... जहाँ n यदृच्छ है, की विशेष अवस्था के रूप में अध्ययन किया और अपने शोध कार्य को बेसल समस्या तक विस्तारित किया। बाद में उनका ये कार्य बाद में फलनिक समीकरण के रूप में परिणत हुआ जिसे अब डीरिख्ले ईटा फलन और रीमान जीटा फलन के नाम से जाना जाता है।

अपसरण

श्रेणी के पद (1, −2, 3, −4, ...) 0 की ओर अग्रषर नहीं हैं; अतः 1 − 2 + 3 − 4 + ... पद परीक्षण विधि से अपसारी प्रतीत होती है। बाद में सन्दर्भ के तौर पर यह भी आवश्यक हो गया कि श्रेणी का अपसरण का मूलभूत स्तर क्या है। परिभाषा के अनुसार किसी अनन्त श्रेणी का अपसरण या अभिसरण को उस अनुक्रम के आशिंक योग के अपसरण या अभिसरण द्वारा ज्ञात किया जाता है[1]

1 = 1,
1 − 2 = −1,
1 − 2 + 3 = 2,
1 − 2 + 3 − 4 = −2,
1 − 2 + 3 − 4 + 5 = 3,
1 − 2 + 3 − 4 + 5 − 6 = −3,
...

इस अनुक्रम की विशिष्टता यह है कि इसमें प्रत्येक पूर्णांक ठीक एक बार आता है—जिसमें शून्य भी शामिल है यदि खाली आंशिक संकलन किया जाए—जिससे पूर्णांकों के समुच्चय की गणनीयता की स्थापना की जाती है।[2] आंशिक योग से यह स्पष्ट होता है कि श्रेणी किसी विशिष्ट संख्या पर अभिसरण नहीं करती (किसी प्रस्तावित सीमा x के लिए एक ऐसा बिन्दु प्राप्त किया जा सकता है जिसके उत्तरवर्ती सभी संकलन अन्तराल [x-1, x+1] के बाहर होंगे।) अतः 1 − 2 + 3 − 4 + ... अपसारी है।

संकलन के लिए अन्वेषण

स्थिरता एवं रैखिकता

चूँकि पद 1, −2, 3, −4, 5, −6, ... एक सरल पद्धति के अनुरूप हैं, श्रेणी 1 − 2 + 3 − 4 + ... स्थान परिवर्तन कर पदवार संकलित करके एक संख्यातमक मान प्राप्त किया जा सकता है। यदि किस साधारण संख्या s के लिए s = 1 − 2 + 3 − 4 + ... लिखना सम्भव हो तो श्रेणी का योग s = 14:सिद्ध किया जा सकता है:[3]

श्रेणी 1 − 2 + 3 − 4 + ..., की 4 प्रतियों का पदवार स्थानांतरण करके योग करने पर 1 प्राप्त होता है। वाम हस्थ और दक्षिण हस्त दिशा मे 1 − 2 + 3 − 4 + ... की दो प्रतियाँ प्रत्येक को 1 − 1 + 1 − 1 + .... से जोड़ते हुए दिखाया गया है।

अतः का ज्यामितिय निरुपण दायीं ओर के चित्र में दर्शाया गया है।

यद्यपि 1 − 2 + 3 − 4 + ... सामान्य अर्थों में संकलनीय नहीं है, अतः समीकरण s = 1 − 2 + 3 − 4 + ... = 14 को कथन 'यदि इस तरह का योग परिभाषित किया जाता है' के साथ समर्थित किया जा सकता है। किसी अपसारी श्रेणी के "योग" की व्यापक परिभाषा को संकलन विधि या संकलनीयता विधि कहते हैं, जो सभी सम्भव श्रेणियों के कुछ उपसमुच्चयों का योग करती हैं। साधारण संकलनों को प्रदर्शित करने वाली विभिन्न विधियाँ (जिनमें से कुछ का विवरण नीचे दिया गया है।) हैं। उपरोक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि किसी दी गई संकलनीयता विधि से जो स्थिरता एवं रैखिकता और श्रेणी 1 − 2 + 3 − 4 + ... को योग करे, तो इसका परिणामी मान 14 होगा।[4] इसके अतिरिक्त, चूँकि

ऐसी पद्धतियों से ग्रांडी श्रेणी 1 − 1 + 1 − 1 + ... = 12. का भी योग किया जा सकता है।[5]

कोशी गुणनफल

विशिष्ट पद्धतियाँ

व्यापकीकरण

सन्दर्भ

  1. हार्डी पृ॰ 8
  2. बील्स पृ॰ 23
  3. हार्डी (पृ॰6) ने ग्रांडी श्रेणी 1 − 1 + 1 − 1 + ... के परिगणन के साथ संयोजन में इसकी व्युत्पति की है।
  4. हार्डी पृ॰6
  5. हार्डी पृ॰6

पादटिप्पणी

  • बील्स, रिचर्ड (2004). Analysis: an introduction (अंग्रेज़ी में). कैम्ब्रिज यूपी. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-60047-2. नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
  • Davis, Harry F. (May 1989). Fourier Series and Orthogonal Functions. Dover. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-486-65973-9.
  • Euler, Leonhard; Lucas Willis; and Thomas J Osler (2006). "Translation with notes of Euler's paper: Remarks on a beautiful relation between direct as well as reciprocal power series". The Euler Archive. अभिगमन तिथि 2007-03-22.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link) Originally published as Euler, Leonhard (1768). "Remarques sur un beau rapport entre les séries des puissances tant directes que réciproques". Memoires de l'academie des sciences de Berlin. 17: 83–106.
  • Ferraro, Giovanni (June 1999). "The First Modern Definition of the Sum of a Divergent Series: An Aspect of the Rise of 20th Century Mathematics". Archive for History of Exact Sciences. 54 (2): 101–135. डीओआइ:10.1007/s004070050036.
  • Grattan-Guinness, Ivor (1970). The development of the foundations of mathematical analysis from Euler to Riemann. MIT Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-262-07034-0.
  • हार्डी, जी॰एच॰ (1949). Divergent Series (अंग्रेज़ी में). क्लेरेंडॉन प्रेस. LCCN 9175377 |lccn= के मान की जाँच करें (मदद). नामालूम प्राचल |trans_title= की उपेक्षा की गयी (|trans-title= सुझावित है) (मदद)
  • Kline, Morris (November 1983). "Euler and Infinite Series". Mathematics Magazine. 56 (5): 307–314. JSTOR 2690371. डीओआइ:10.2307/2690371.
  • Lavine, Shaughan (1994). Understanding the Infinite. Harvard UP. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-674-92096-1.
  • Markushevich, A.I. (1967). Series: fundamental concepts with historical exposition (English translation of 3rd revised edition (1961) in Russian संस्करण). Hindustan Pub. Corp. LCCN 6817528 |lccn= के मान की जाँच करें (मदद).
  • Saichev, A.I., and W.A. Woyczyński (1996). Distributions in the physical and engineering sciences, Volume 1. Birkhaüser. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-8176-3924-1.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  • Tucciarone, John (January 1973). "The development of the theory of summable divergent series from 1880 to 1925". Archive for History of Exact Sciences. 10 (1–2): 1–40. डीओआइ:10.1007/BF00343405.
  • Vretblad, Anders (2003). Fourier Analysis and Its Applications. Springer. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-387-00836-5.
  • Weidlich, John E. (June 1950). Summability methods for divergent series. Stanford M.S. theses. OCLC 38624384.