सूर्या प्रक्षेपास्त्र
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अप्रसार समीक्षा (द नॉन प्रोलिफरेशन रिव्यू) में छपे एक प्रतिवेदन के अनुसार सूर्य भारत द्वारा विकसित किए जा रहे प्रथम अन्तरमहाद्वीपीय प्राक्षेपिक प्रक्षेपास्त्र का कूटनाम है।[1] माना जाता है कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ) ने १९९४ में इस परियोजना को आरम्भ कर दिया था। इस प्रतिवेदन की २००९ तक किसी अन्य स्रोत से पुष्टि नहीं की गई है। भारत सरकार के अधिकारियों ने बार-बार इस परियोजना के अस्तित्व का खण्डन किया है।
प्रतिवेदन के अनुसार, सूर्य एक अन्तरमहाद्वीपीय-दूरी का, सतह पर आधारित, ठोस और तरल प्रणोदक (प्रोपेलेंट) प्रक्षेपास्त्र है। प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि सूर्य भारत की सबसे महत्वाकांक्षी एकीकृत नियन्त्रित प्रक्षेपास्त्र विकास परियोजना है। सूर्य तक मारक क्षमता ८,००० से १२,००० किलोमीटर तक अनुमानित है।[2]
अनुमानित विशिष्टियाँ
[संपादित करें]- वर्ग: अन्तरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र
- प्रक्षेपण आधार: भूतल पर आधारित और कभी-कभी गम्भीर स्थिति में पानी के नीचे से उपयोग करने योग्य
- लम्बाई: ४०.०० मीटर
- व्यास: २.८ मीटर
- प्रक्षेपण भार: ८०,००० किग्रा
- प्रणोदन: पहला/दूसरा चरण ठोस, तीसरा तरल
- हथियार क्षमता: २५० किलोटन प्रत्येक के २-३ परमाणु हथियार
- स्तर: विकास/विकसित परीक्षित होना शेष
- सेवा में: २०१५
- मारक दूरी: ८,००० - १२,००० किमी
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ सूर्य आईसीबीएम Archived 2017-05-09 at the वेबैक मशीन, अभिगमित १४ जून २००७
- ↑ "सूर्या की अनुमानित मारक क्षमता". मूल से 14 जुलाई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 सितंबर 2009.