राम सिंह धौनी

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राम सिंह धौनी (24 फरवरी सन् 1893 ई० -- 12 नवम्बर 1930 ई०) भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी एवं समाजसेवक थे। सन् 1921 ई० सर्वप्रथम उन्होंने ही “जयहिन्द” नारे का उद्घोष किया था। वे सच्चे देशभक्त, समाज सुधारक, शिक्षाशात्री, स्वाभिमानी, निर्भीक, हिंदीप्रेमी, त्याग एवं सादगी की प्रतिमूर्ति तथा सात्विक जीवन यापन करने वाले महान कर्मयोगी थे।

रामसिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन् 1893 ई० में अल्मोड़ा जिले के तल्ला सालम पट्टी में तल्ला बिनौला गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम कुन्ती देवी तथा पिता का नाम हिम्मत सिंह धौनी था। वे बचपन से ही अति प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी थे। सन् 1908 ई० के जैती (सालम) से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अल्मोड़ा टाउन स्कूल में कक्षा 5 में प्रवेश लिया तथा हाईस्कूल तक इसी विद्यालय में विद्याध्ययन किया। मिडिल परीक्षा में सारे सूबे में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर उन्हें पाँच रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलने लगी।

सन् 1912-13 ई० के आस-पास अल्मोड़ा में देश के कई महान पुरुषों का आगमन हुआ, जिनमें काका कालेलकर, आनंद स्वामी, पं० मदनमोहन मालवीय, विनय कुमार सरकार आदि प्रमुख थे। इन महापुरुषों के दर्शन एवं उपदेशों से रामसिंह के मन में देश भक्ति एवं राष्ट्रप्रेम की भावना गहरी होती गई। सन् 1912 ई. में स्वामी सत्यदेव अल्मोड़ा आए और उन्होंने यहाँ पर ‘शुद्ध साहित्य समिति’ की स्थापना की। रामसिंह इस साहित्य समिति’ के स्थाई सदस्य बन गए। स्वामी जी के भाषणों तथा ‘शुद्ध साहित्य समिति’ के क्रियाकलापों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।

अब उनका समय हाईस्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ श्रेष्ठ ग्रंथों के गहन अध्ययन तथा अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं के पठन-पाठन में व्यतीत होने लगा। स्वामी सत्यदेव जी द्वारा अपने निवास स्थान नारायण तेवाड़ी देवाल में खोले गए ‘ग्रीष्म स्कूल’ में भी धौनी जी का आना-जाना बना रहता था. धौनी जी ने हाईस्कूल के अपने सहपाठियों के सहयोग से एक छात्र सभा सम्मेलन’ का भी गठन किया जिसमें समाज सुधार, राष्ट्रप्रेम एवं हिन्दी भाषा की उन्नति विषयक चर्चाएं होती थीं। इन्हीं दिनों धौनी जी ने डॉ. हेमचन्द्र जोशी जी से बंगला भाषा भी सीखी।

हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए धौनी इलाहाबाद (प्रयागराज) चले गए और वहां उन्होंने ‘इविन क्रिश्चियन कालेज’ में प्रवेश लिया। सन 1917 में उन्होंने एफ. ए. तथा सन् 1919 ई० में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे सालम लौट आए। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में बी. ए. उतीर्ण करने वाले पहले व्यक्ति वही थे।

विद्यार्थी जीवन से ही राजनीतिक घटना-चक्र के प्रति रामसिंह धौनी जी की गहरी रुचि थी। इलाहाबाद में विद्याध्ययन के दौरान 'फिलाडेलफिया’ छात्रावास में रहते हुए वे अपने साथियों के साथ राष्ट्रीय समस्याओं पर, विभिन्न विचार-गोष्ठियों में विचार-विमर्श किया करते थे। कालेज की ‘हिन्दी साहित्य सभा’ में वे नियमित रूप से जाया करते थे। ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग’ से भी वे सम्बद्ध थे। उनका अधिकांश समय हिंदी-अंग्रेजी के समाचार-पत्रों को पढ़ने, सभाओं एवं विचार गोष्ठियों में भाग लेने तथा छात्रों में राष्ट्रीय भावना का प्रचार करने में बीतता था।

होम रूल लीग’ का सदस्य बनकर वे देश के स्वतंत्रता आन्दोलन से सीधे जुड़ गये थे। उनमें देशभक्ति एवं स्वाभिमान की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सरकारी नौकरी न करने का पक्का निश्चय कर लिया था तथा अन्त तक उसका निर्वाह भी किया। सन् 1919 ई० में उनके बी.ए. पास करने के उपरान्त तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर बिढम (सन् 1914-1924 ई०) ने उन्हें नायब तहसीलदार के पद पर कार्य करने को कहा परन्तु धौनी जी ने अपनी निर्धनता के बावजूद उसे ठुकरा दिया, जिससे उनके निर्धन पिता को गहरा आघात भी लगा।

सन् 1920 इ० में रामसिंह राजस्थान चले गए और वहां बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में 80 रुपये मासिक वेतन पर एक वर्ष तक कार्य किया। वहां से धौनी जी फतेहपुर चले गये तथा ‘रामचन्द्र नेवटिया हाईस्कूल’ में सहायक अध्यापक तथा प्रधानाध्यापक के पदों पर कार्य किया। जब सन् 1921 ई० में सारे भारतवर्ष में कांग्रेस कमेटियां बनाई जाने लगी, तो वे ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फतेहपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना कर वहां आजादी का बिगुल बजा दिया। फतेहपुर में ही धौनी जी ने ‘युवक सभा’ की भी स्थापना की जिसके वे स्वयं संरक्षक थे। ‘युवक सभा' के सदस्यों का मुख्य कार्य अछूत बस्तियों के लोगों में शिक्षा, सफाई तथा नशाबंदी का प्रचार -प्रसार करना था। श्री गोपाल नेवटिया तथा श्री मदनलाल जालान ‘युवक सभा’ के संचालक थे। धौनी जी ने फतेहपुर (जयपुर) हाईस्कूल के छात्रों के शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास के लिए 'छात्र सभा’ की स्थापना भी की, जिसके संचालक वे स्वयं थे तथा पाँच रुपय. वार्षिक आर्थिक सहायता भी देते थे। इस बीच फतेहपुर में उन्होंने कई जनसभाओं में भाषण दिए तथा देश को आजाद करने का आह्वान किया। अपने स्कूल में फुटबॉल को विदेशी खेल समझ कर बंद करवा दिया तथा उसके स्थान पर कबड्डी एवं अन्य देशी खेलों को प्रारंभ करवाया।

भारतीय रियासतों में राजनीतिक आन्दोलनों के जन्मदाताओं में धौनी जी का नाम प्रमुख है। सन् 1921 ई० से 1922 ई. तक उनके द्वारा फतेहपुर में किए गए राजनीतिक कार्यों का विशेष महत्त्व है। उन्होंने पहली बार फतेहपुर में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए सभाओं का गठन किया तथा नगर के प्रतिष्ठित लोगों एवं नवयुवकों को अपने साथ लिया, जिसमें डॉ. रामजीवन त्रिपाठी, कुमार नारायण सिंह, युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया, गोपाल नेवटिया, श्री रामेश्वर तथा मूंगी लाल आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।

फतेहपुर में ही उन्होंने एक ‘साहित्य समिति’ की स्थापना की, जिसका कार्य लोगों में शिक्षा और एकता का प्रचार करना था। इस समिति के साप्ताहिक एवं पाक्षिक अधिवेशन हुआ करते थे. कभी-कभी कवि सम्मेलन भी हुआ करते थे। एक कवि सम्मेलन में धौनी जी ने अपनी कविता ‘सफाई की सफाई’ सुनाई थी। वह कविता लोगों को इतनी पसंद आई कि जनता के आग्रह पर धौनी जी को उसे नौ बार सुनाना पड़ा। रामसिंह ने ‘साहित्य समिति’ की ओर से ‘बधु’ नामक पाक्षिक पत्र निकलवाया तथा डॉ. रामजीवन त्रिपाठी उसके संपादक बनाए गए। इस पत्र में धौनी जी के देश भक्ति एवं राष्ट्र प्रेम संबंधी कई लेख एवं कविताएँ प्रकाशित हुईं।

राष्ट्रवादी विचारधारा का पोषक होने ने कारण ब्रिटिश सरकार ने ‘बंधु’ पत्र की सभी प्रतियां जब्त करवा कर, उसके प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया। धौनी जी की प्रेरणा से उनके शिष्य गोपाल नेवटिया तथा युधिष्ठिर प्रसाद सिंहानिया ने ‘श्री स्वदेश’ नामक उच्चकोटि का पत्र निकाला जिसके 26 अगस्त 1922 ई० के प्रथम अंक में धौनी जी की कविता ‘तेरी बारी है होली’ छापी गई, हालांकि उस समय धौनी जी बजांग (नेपाल) चले गए थे। इस कविता में अंग्रेजों को बंदर बताकर, उन्हें भारत से भागने को कहा गया है।

उपवन से भग बन्दर भोली, तेरी बारी है होली॥
दुबक-दुबक तू घुसि आया, चुपके-चुपके सब फल खाया ॥
ऐक्य पुष्प सब तोड़ि गिराए, पिक पक्षी अति ही झुंझलाए॥
सभी कहत अब ऐसी बोली, तेरी बारी है होली॥

रामसिंह धौनी के जीवन का मुख्य लक्ष्य अध्यापन के माध्यम से जनता में देशप्रेम एवं राष्ट्रीय भावनाओं का प्रचार करना था। फतेहपुर (जयपुर) में जब यह कार्य ‘युवक सभा,’ ‘छात्र सभा’ तथा ‘साहित्य समिति’ के माध्यम से होने लगा तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तथा नेपाल की रियासत बजांग गए। वहां उन्होंने राजकुमारों को शिक्षा प्रदान कर हिन्दो प्रेमी बनाया। धौनी जी के अध्यापन कार्य से प्रसन्न होकर बजांग के राजा ने उन्हें एक तलवार भेंट की। बीकानेर, जयपुर तथा बजांग (नेपाल) रियासतों में देश भक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावनाओं तथा हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार कर, धौनी जी अल्मोड़ा चले आए।

सन् 1925 ई० से सन 1926 ई. तक रामसिंह ‘शक्ति’ के संपादक रहे। अपने थोड़े से कार्यकाल में उन्होंने देश की सभी महत्वपूर्ण समस्याओं पर गंभीरतापूर्ण लेख एवं टिप्पणियां लिखीं। इन लेखों में हिंदु-मुस्लिम एकता, अछूतोद्धार, राष्ट्र संगठन, कुटीर उद्योग, राष्ट्रभाषा हिन्दी, खादीआन्दोलन, अध्यापक आन्दोलन, निःशुल्क शिक्षा, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, महात्मा गांधी तथा कांग्रेस आदि महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। ब्रिटिश सरकार की ओर से लगान बढ़ाने के लिए होने वाले बन्दोवस्त के विरोध में उन्होंने आन्दोलन चलाया। जैती (सालम) में जूनियर हाईस्कूल तथा बाँजधार में औषधालय उन्हीं के प्रयासों से खुले। अल्मोड़ा में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक कार्यों को सक्रिय करने के उपरान्त धौनी बम्बई चले गए। वहाँ उन्होंने पहाड़ के लोगों को एकजुट कर "हिमालय पर्वतीय संघ” की स्थापना की। वे ‘अखिल भारतीय मारवाड़ी अग्रवाल जाती कोष’ के मंत्री भी रहे।

1930 ई० में बम्बई में चेचक फैला। लोगों की सेवा करते हुए वे चेचक की चपेट में आ गए तथा 12 नवम्बर 1930 ई० को 37 बर्ष की अल्पायु में ही उनका निधन हो गया । जनवरी 1931 ई० को बागेश्वर में उत्तरायणी के मेले में महान स्वतन्त्रता सेनानी विक्टर मोहन जोशी ने रामसिंह धोनी की मृत्यु पर अपने शोकोद्गार व्यक्त करते हुए कहा था-

हो, हन्त बैरी, बैरीकाल ने बरबाद हमको कर दिया।
हा देव! यह क्या हो गया, भारत का रत्न खो गया॥


निर्धनता में भी देश को निःस्वार्थ सेवा करने वाले इस महान सपूत की याद में सन् 1935 ई० में सालम में "रामसिंह धौनी आश्रम" की स्थापना हुई। यही आश्रम सालम की सन् 1942 ई० को जनक्रांति का भी केन्द्र बना।

संदर्भ[संपादित करें]

1. शक्ति’ साप्ताहिक अल्मोड़ा

2. अल्मोड़ा स्मारिका 1976

3. स्वतन्त्रता संग्राम में कुमाऊँ-गढ़वाल का योगदान-डाँ० धर्मपाल सिंह मनराल

4. श्री हरदत्त उपाध्याय द्वारा लिखित एवं संग्रहीत रामसिंह धौनी जी से सम्बद्ध विभिन्न पत्र-व्यवहारादि (श्री शेर सिंह धौनी जी के संग्रह में.

5. अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की सन् 1923 से 1927 ई० तक की कार्य सूची को फाइलें।