क़िसास
यह लेख इस सिलसिले का हिस्सा |
इस्लामी धर्मशास्त्र (फ़िक़्ह ) |
---|
क़िसास (अंग्रेज़ी: Qisas) अरबी शब्द है जिसका अर्थ है "दयालु प्रतिशोध या न्यायसंगत प्रतिशोध", शास्त्रीय/पारंपरिक इस्लामी कानून शरियत में क़िसास का सिद्धांत अपराध के अनुरूप सजा का प्रावधान करता है। जान के बदले जान और ख़ून के बदले ख़ून लेना, यानी जितनी तकलीफ़ किसी को पहुँचाई जाए, उसके बदले में उतनी ही तकलीफ़ ज़ालिम को पहुँचाई जाए, प्रतिहिंसा|[1] क़िसास का शाब्दिक अर्थ 'बदला लेना है और ये दो प्रकार के हैं। जान-बूझकर हत्या करना और दूसरा भूल या ग़लती से हत्या हो जाना| [2] बदले में अगर धन पर समझोता हो जाये तो उस धन को दियत कहा जाता है|[3][4]
कुरआन में
[संपादित करें]मुख्य लेख: कुरआन
ऐ ईमान लानेवालो! मारे जानेवालों के विषय में हत्यादंड (क़िसास) तुमपर अनिवार्य किया गया, स्वतंत्र-स्वतंत्र बराबर है और ग़़ुलाम-ग़ुलाम बराबर है और औरत-औरत बराबर है। फिर यदि किसी को उसके भाई की ओर से कुछ छूट मिल जाए तो सामान्य रीति का पालन करना चाहिए; और भले तरीके से उसे अदा करना चाहिए। यह तुम्हारें रब की ओर से एक छूट और दयालुता है। फिर इसके बाद भो जो ज़्यादती करे तो उसके लिए दुखद यातना है (178) ऐ बुद्धि और समझवालों! तुम्हारे लिए हत्यादंड (क़िसास) में जीवन है, ताकि तुम बचो (२:178-179)
हदीस में
[संपादित करें]मुख्य लेख: हदीस
जिस किसी का क़त्ल किया गया वो उसके वारिस अगर चाहें तो क़ातिल को क़त्ल कर दें या उसके बदले दियत ले लें या क्षमा कर दें (सहीह अल-बुख़ारी, 4290, तथा सहीह मुस्लिम, 1354)
मुजाहिद से रिवायत है, वह तहते हैं कि एक आदमी ने अपने बेटे की ओर तलवार फेंकी, जो उसे लग लग गई तथा वह मर गया। यह मामला उमर बिन ख़त़्त़ाब -रज़ियल्लाहु अन्हु- के पास लाया गया, तो उन्होंने फ़रमाया : यदि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को यह फ़रमाते हुए न सुना होता कि “बेटे का क़िसास (बदला) उसके पिता से नहीं लिया जाएगा।” तो मैं तुझको यहाँ से हिलने से पहले ही क़त्ल कर देता।” [विभिन्न सनदों और शवाहिद के आधार पर सह़ीह़- इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है।]
अम्र बिन शुऐब से वर्णित है, वह अपने पिता से, तथा वह अपने दादा से रिवायत करते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने एक व्यक्ति के बारे में फैसला सुनाया, जिसके पाँव में किसी ने सींग से मारा था। निर्णय के दौरान उसने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम-! मुझे क़िसास चाहिए। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उससे कहा: “अभी जल्दी न करो और अपना घाव ठीक होने तक प्रतीक्षा करो।” वर्णनकर्ता कहते हैं : लेकिन वह क़िसास लेने पर ही अड़ा रहा, तो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उसका क़िसास दिलवा दिया। बाद में ऐसा हुआ कि क़िसास लेने वाला लंगड़ा हो गया तथा जिससे क़िसास लिया गया था वह ठीक हो गया। अतः, क़िसास लेने वाला अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आया और आपसे बोला : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं लंगड़ा हो गया हूँ तथा जिससे मेरा मामला था वह ठीक हो गया है। यह सुन अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उससे कहा: “क्या मैंने तुमको आदेश नहीं दिया था कि अभी घाव ठीक होने तक क़िसास मत लो? तुमने मेरी बात नहीं मानी। अतः अल्लाह तुम्हें दूर करे और तुम्हारा घाव व्यर्थ जाए।” फिर इस व्यक्ति के लंगड़ा हो जाने की घटना सामने आने के बाद अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने आदेश दिया कि जिसे कोई ज़ख़्म लगा हो, वह अपना ज़ख़्म ठीक होने से पहले क़िसास न ले। क़िसास तभी ले, जब उसका ज़ख़्म ठीक हो जाए।" [सह़ीह़- इसे अह़मद ने रिवायत किया है।] [5]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ क़िसास के हिंदी अर्थ https://www.rekhtadictionary.com/meaning-of-qisaas?keyword=%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B8
- ↑ प्रोफेसर जियाउर्रहमान आज़मी, कुरआन मजीद की इन्साइक्लोपीडिया (20 दिसम्बर 2021). "क़िसास". www.archive.org. पृष्ठ 225.
- ↑ Mohamed S. El-Awa (1993), Punishment In Islamic Law, American Trust Publications, ISBN 978-0892591428
- ↑ Shahid M. Shahidullah, Comparative Criminal Justice Systems: Global and Local Perspectives, ISBN 978-1449604257, pp. 370-372
- ↑ अनूदित हदीस-ए-नबवी विश्वकोश, "ज़ख़्म ठीक होने से पहले क़िसास न ले", www.hadeethenc.com