हर्यक वंश
हर्यक राजवंश मगध पर शासन करने वाला तीसरा राजवंश था। हर्यक राजवंश मे कुल सात राजाओं द्वारा ल. 544 से 413 ई.पू मे 131 वर्षों तक शासन किया गया था। हर्यक राजवंश की स्थापना 544 ई.पू. में बिम्बिसार के द्वारा प्रद्योत वंश के अंतिम शासक महाराजा वर्तिवर्धन की हत्या करने के बाद की गई थी। बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगृह) को राज्य की राजधानी बना कर शासन किया।[1]
हर्यक राजवंश | |||||||||||
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ल. 544 – ल. 413 ई.पू | |||||||||||
राजधानी | राजगीर (गिरिव्रज) बाद में, पाटलिपुत्र | ||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | संस्कृत (मुख्य) मागधी प्राकृत | ||||||||||
धर्म | हिंदू धर्म साथ ही जैन धर्म और बौद्ध धर्म | ||||||||||
सरकार | राजतन्त्र | ||||||||||
सम्राट | |||||||||||
• ल. 544–492 ई.पू (प्रथम) | बिम्बिसार | ||||||||||
• ल. 492–460 ई.पू (मुख्य) | अजातशत्रु | ||||||||||
• ल. 460–440 ई.पू (मुख्य) | उदयन | ||||||||||
• ल. 437–413 ई.पू (अंतिम) | नागदशक | ||||||||||
ऐतिहासिक युग | लौह युग | ||||||||||
मुद्रा | पण | ||||||||||
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अब जिस देश का हिस्सा है | भारत |
बिम्बिसार
[संपादित करें]बिम्बिसार (ल. 544 से 492 ई.पू.) हर्यक राजवंश का संस्थापक था। जैन साहित्य में बिम्बिसार का नाम श्रेणिक मिलता है। वह एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य का विस्तार किया। सबसे पहले उसने लिच्छवि गणराज्य के शासक शिवराज गोमास्ता की पुत्री चेल्लना के साथ विवाह किया। दूसरा प्रमुख वैवाहिक सम्बन्ध कोशल राजा प्रसेनजीत की बहन महाकोशला के साथ विवाह किया। इसके बाद मुद्र देश (आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह किया।
महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की ५०० रानियाँ थीं। उसने अवंति के शक्तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्त. किया था।
बिम्बिसार महात्मा बुद्धका मित्र और संरक्षक था। विनयपिटक के अनुसार बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया, लेकिन जैन और ब्राह्मण धर्म के प्रति उसकी सहिष्णुता थी। बिम्बिसार ने करीब ५२ वर्षों तक शासन किया। बौद्ध और जैन ग्रन्थानुसार उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था जहाँ उसका ४९२ ई. पू. में निधन हो गया।
विशेष
[संपादित करें]- बिम्बिसार ने अपने बड़े पुत्र दर्शक को उत्तराधिकारी घोषित किया था।
- भारतीय इतिहास में बिम्बिसार प्रथम शासक था जिसने स्थायी सेना रखी।
- बिम्बिसार ने राजवैद्य जीवक को भगवान बुद्ध की सेवा में नियुक्त किया था।
- बौद्ध भिक्षुओं को निःशुल्क जल यात्रा की अनुमति दी थी।
- बिम्बिसार की हत्या महात्मा बुद्ध के विरोधी देवव्रत के उकसाने पर अजातशत्रु ने की थी।
- बिम्बसार ने बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर वेलुबन दान में दिया जिसके वर्णन विनयपिटक से मिलता है
आम्रपाली
[संपादित करें]यह वैशाली की नर्तकी एवं परम रूपवती कला प्रवीण गणिका थी। वो बुद्ध की परम उपासक थी । आम्रपाली के सौन्दर्य पर मोहित होकर बिम्बिसार उन्हें लिच्छवि से जीतकर राजगृह ले आया। उनसे विवाह किया। दोनों के संयोग से जीवक नामक पुत्र हुआ। बिम्बिसार ने जीवक को तक्षशिला में शिक्षा हेतु भेजा ।
अजातशत्रु
[संपादित करें]अजातशत्रु (ल. 492 से 460 ई.पू.) बिम्बिसार के बाद मगध के सिंहासन पर बैठा। इसके बचपन का नाम कुणिक था। भगवान बुद्ध के विरोधी देवदत्त के उकसाने पर इन्होने अपने पिता की हत्या कर गद्दी पर बैठा। अजातशत्रु ने अपने पिता के साम्राज्य विस्तार की नीति को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया।
अजातशत्रु के सिंहासन मिलने के बाद वह अनेक राज्य संघर्ष एवं कठिनाइयों से घिर गया लेकिन अपने बाहुबल और बुद्धिमानी से सभी पर विजय प्राप्त की। महत्वाकांक्षी अजातशत्रु ने अपने पिता को कारागार में डालकर कठोर यातनाएँ दीं जिससे पिता की मृत्यु हो गई। इससे दुखित होकर कौशल रानी की मृत्यु हो गई।
मगध–कौशल संघर्ष
[संपादित करें]बिम्बिसार की पत्नी (कौशल) की मृत्यु से प्रसेनजीत बहुत क्रोधित हुआ और अजातशत्रु के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। पराजित प्रसेनजीत श्रावस्ती भाग गया लेकिन दूसरे युद्ध-संघर्ष में अजातशत्रु पराजित हो गया लेकिन प्रसेनजीत ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से कर काशी को दहेज में दे दिया।
प्रसेनजित छठी शताब्दी ई. पू. में मध्यकाल के आस-पास कोसल का राजा था। प्रसेनजित की बहन 'कौशल देवी' राजा बिम्बिसार की पत्नी थी। कौशल देवी के गर्भ से ही अजातशत्रु का जन्म हुआ था, जिसने आगे चलकर अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर दी और राजगद्दी प्राप्त की|अजातशत्रु इतिहास का पहला राजा है,जिसे राज्य दान में दिया गया था|
मगध–वज्जि संघ संघर्ष
[संपादित करें]लिच्छवि राजकुमारी चेलना बिम्बिसार की पत्नी थी जिससे उत्पन्न. दो पुत्री हल्ल और बेहल्ल को उसने अपना हाथी और रत्नों का एक हार दिया था जिसे अजातशत्रु ने मनमुटाव के कारण वापस माँगा। इसे चेलना ने अस्वीकार कर दिया, फलतः अजातशत्रु ने लिच्छवियों के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया। वस्सकार से लिच्छवियों के बीच फूट डालकर उसे पराजित कर दिया और लिच्छवि अपने राज्य में मिला लिया।
मगध–मल्ल संघर्ष
[संपादित करें]अजातशत्रु ने मल्ल संघ पर आक्रमण कर अपने अधिकार में कर लिया। इस प्रकार पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बड़े भू-भाग मगध साम्राज्य का अंग बन गया।
- अजातशत्रु ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्दी अवन्ति राज्य पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की।
- अजातशत्रु धार्मिक उदार सम्राट था। विभिन्न. ग्रन्थों के आधार पर वह बौद्ध और जैन दोनों मत के अनुयायी माने जाते हैं लेकिन भरहुत स्तूप की एक वेदिका के ऊपर अजातशत्रु बुद्ध की वंदना करता हुआ दिखाया गया है।
- उसने शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया और ४८३ ई. पू. राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया। इस संगीति में बौद्ध भिक्षुओं के सम्बन्धित पिटकों को सुतपिटक और विनयपिटक में विभाजित किया।
- सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार उसने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया और ४६० ई. पू. में अपने पुत्र उदयन द्वारा मारा गया था।
- अजातशत्रु के शासनकाल में ही महात्मा बुद्ध 483 ई. पू. महापरिनिर्वाण तथा महावीर को भी कैवल्य (४६८ ई. पू. में) प्राप्त हुआ था।
उदायिन
[संपादित करें]अजातशत्रु के बाद उदायिन (ल. 460 से 444 ई.पू.) मगध का राजा बना। बौद्ध ग्रन्थानुसार इसे पितृहन्ता लेकिन जैन ग्रन्थानुसार पितृभक्त कहा गया है। इसकी माता का नाम पद्मावती था।
उदायिन शासक बनने से पहले चम्पा का उपराजा था। वह पिता की तरह ही वीर और विस्तारवादी नीति का पालक था। इसने पाटलिपुत्र (गंगा और सोन के संगम) को बसाया तथा अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थापित की।
मगध के प्रतिद्वन्दी राज्य अवन्ति के गुप्तचर द्वारा उदयन की हत्या कर दी गई।
अन्य शासक और राजवंश का अंत
[संपादित करें]बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदयन के तीन पुत्र थे- अनिरुद्ध, मंडक और नागदशक। उदयन के तीनों पुत्रों ने राज्य किया। अन्तिम राजा नागदशक था। जो अत्यन्त विलासी और निर्बल था। शासनतन्त्र में शिथिलता के कारण व्यापक असन्तोष जनता में फैला। राज्य विद्रोह कर उनका सेनापति शिशुनाग राजा बना। इस प्रकार हर्यक वंश का अन्त और शिशुनाग वंश की स्थापना 413 ई.पू. हुई।
शासकों की सूची
[संपादित करें]क्रम-संख्या | शासक | शासन अवधि (ई.पू) | शासन वर्ष | टिप्पणी |
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1. | महाराजा बिम्बिसार | 544–492 | 52 | महाराजा वर्तिवर्धन की हत्या करने के बाद राजवंश की स्थापना की। |
2. | महाराजा अजातशत्रु | 492–460 | 32 | महाराजा बिम्बिसार का पुत्र |
3. | महाराजा उदयन | 460–444 | 16 | महाराजा अजातशत्रु का पुत्र |
4. | महाराजा अनिरुद्ध | 444–440 | 4 | |
5. | महाराजा मुंडा | 440–437 | 3 | |
6. | महाराजा दर्शक | 437 | कुछ महीने | |
7. | महाराजा नागदशक | 437–413 | 24 | हर्यक वंश का अंतिम शासक, शिशुनाग द्वारा 412 ई.पू. मगध की गद्दी से हटा दिया गया। |
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- मगध
- महाजनपद
- बृहद्रथ राजवंश (मगध)
- शिशुनाग वंश
- मगध के राजवंशों और शासकों की सूची
- भारत के राजवंशों और सम्राटों की सूची
- हिन्दू साम्राज्यों और राजवंशों की सूची
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "हर्यकवंश के शासक". मूल से 28 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 मई 2017.
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के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद)