सामग्री पर जाएँ

समुद्री प्रदूषण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
अक्सर प्रदूषण के कारण ज्यादातर नुकसान को देखा नहीं जा सकता है, जबकि समुद्री प्रदूषण को स्पष्ट किया जा सकता है जैसा कि समुद्र के ऊपर दिखाए गए मलबे को देखा जा सकता है।

समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि और रिहायशी कचरा, शोर या आक्रामक जीव महासागर में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव, या संभवतः हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। समुंद्री प्रदूषण के ज्यादातर स्रोत थल आधारित होते हैं। प्रदूषण अक्सर कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए कचरे जैसे अस्पष्ट स्रोतों से होता है।

कई सामर्थ्य ज़हरीले रसायन सूक्ष्म कणों से चिपक जाते हैं जिनका सेवन प्लवक और नितल जीवसमूह जन्तु करते हैं, जिनमें से ज्यादातर तलछट या फिल्टर फीडर होते हैं। इस तरह ज़हरीले तत्व समुद्री पदार्थ क्रम में अधिक गाढ़े हो जाते हैं। कई कण, भारी ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुई रसायनिक प्रक्रिया के ज़रिए मिश्रित होते हैं और इससे खाड़ियां ऑक्सीजन रहित हो जाती हैं।

जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिए जाते हैं। एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं, जो इंसानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और समूचे फूड वेब के लिए भी.

ज़हरीली धातुएं भी समुद्री फूड वेब में शामिल हो सकती हैं। ये उत्तकों, जीव रसायन, व्यवहार, प्रजन्न में परिवर्तन ला सकती है और समुद्री जीवन के विकास को दबा सकती हैं। साथ ही कई जीव खाद्यों में मछली भोजन या फिश हायड्रोलायसेट तत्व होते हैं। इस तरह समुद्री विषाणु भू-थल जीवों में स्थानांतरित हो जाते हैं और बाद में मांस और अन्य डेरी उत्पादों में पाए जाते हैं।

समुद्री प्रदूषण पर MARPOL 73/78 कन्वेंशन के लिए दल

हालांकि समुद्री प्रदूषण का काफी लंबा इतिहास रहा है, लेकिन इससे निपटने के लिए सार्थक अंतर्राष्ट्रीय कानून बीसवीं सदी में ही बनाए गए। 1950 के दशक की शुरुआत में समुद्र के कानून को लेकर हुए संयुक्त राष्ट्र के कई सम्मेलनों में समुद्री प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की गई। ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना था कि महासागर इतने विशाल हैं कि उनमें विरल करने की अपार क्षमता है और इसलिए प्रदूषण हानिरहित हो जाएगा.. 1950 के दशक के अंत और 1960 के दशक के शुरुआती दौर में, अमेरिका में परमाणु ऊर्जा आयोग से लाइसेंस प्राप्त कंपनियों द्वारा तटीय इलाकों में, विंडस्केल स्थित ब्रिटिश संवर्धन संयंत्र द्वारा आईरिश सागर में, फ्रांस के कमीशरेट अ ला एनर्जी एटॉमीक द्वारा भूमध्यसागर में रेडियोधर्मी कचरा फेंकने को लेकर कई विवाद हुए. भूमध्यसागर विवाद के बाद, उदाहरण के तौर पर, जेक्स कॉस्तेऊ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समुद्री प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने वाली एक नामी हस्ती बन गए। 1967 में टॉरी कैन्यन नाम के ऑयल टैंकर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने और 1967 में कैलिफोर्निया के तटीय इलाके में सैंटा बारबरा के तेल रिसाव बाद समुद्री प्रदूषण ने अंतर्राष्ट्रीय मीडीया का ध्यान अपनी ओर और खींचा। 1972 में स्टॉकहॉम में मानव पर्यावरण पर हुए संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में समुद्री प्रदूषण पर खूब चर्चा हुई। इसी साल समुद्री प्रदूषण रोकने के लिए कचरे और अन्य पदार्थों के समुद्र में फेंके जाने को लेकर संधिपत्र पर हस्ताक्षर हुए, इसे लंदन समझौता भी कहा जाता है। लंदन समझौते ने समुद्री प्रदूषण पर प्रतिबंध नहीं लगाया, अपितु इसने काली और स्लेटी दो सूचियां तैयार कीं जिसके तहत प्रतिबंधित पदार्थो को काली सूची में रखा गया और राष्ट्रीय प्राधिकरणों द्वारा नियंत्रित पदार्थों को स्लेटी (ग्रे) सूची में डाला गया। उदाहरण के तौर पर सायनाइड और उच्च कोटि के रेडियोधर्मी पदार्थों को काली सूची में रखा गया। लंदन समझौता सिर्फ जहाज़ों द्वारा कचरा फेंके जाने से संबंधित था और इसलिए पाइपलाइनों द्वारा फेंके जा रहे कचरे को नियंत्रित करने के लिए कुछ कदम नहीं उठाए गए।[1]

प्रदूषण के रास्ते

[संपादित करें]
सेप्टिक नदी.

समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में प्रदूषण के रास्तों के वर्गीकरण और परीक्षण करने के विभिन्न तरीके हैं। पैटिन (एन.डी) लिखते हैं कि आम तौर पर महासागरों में प्रदूषण के तीन रास्ते हैं: महासागरों में कचरे का सीधा छोड़ा जाना, बारिशों के कारण नदी नालों में अपवाह से और वातावरण में छोड़े गए प्रदूषकों से.

समुद्र में संदूषकों के प्रवेश का सबसे आम रास्ता नदियां हैं। महासागरों से पानी का वाष्पीकरण, वर्षण/अवक्षेपण से ज्यादा होता है। संतुलन की बहाली महाद्वीपों पर बारिश के नदियों में प्रवेश और फिर समुद्र में वापस मिलने से होती है। न्यू यॉर्क स्टेट में हडसन और न्यू जर्सी में रैरीटेन, जो स्टेटन द्वीप के उत्तरी और दक्षिणि सिरों में समुद्र में मिलती हैं, समुद्र में प्राणीमन्दप्लवक (कोपपॉड) के पारा संदूषण का मुख्य स्रोत हैं। फिल्टर-फीडिंग कोपपॉड में सबसे ज्यादा मात्रा इन नदियों के मुखों में नहीं बल्कि 70 मील दक्षिण में, एटलांटिक सिटी के नज़दीक है, क्योंकि पानी तट के बिल्कुल नज़दीक बहता है। इससे पहले कि प्लवक विषाणुओं का सेवन करें, कई दिन बीत जाते हैं। [2]

प्रदूषण अमूमन तयपॉइंट और अज्ञात नॉनपॉइंट स्रोत प्रदूषण में वर्गीकृत किया जाता है। तयपॉइंट स्रोत प्रदूषण तब होता है जब प्रदूषण का इकलौता, स्पष्ट और स्थानीय स्रोत मौजूद हो। इसका उदाहरण महासागरों में औद्योगिक कचरे और गंदगी का सीधे तौर पर छोड़ा जाना है। इस तरह का प्रदूषण खासतौर पर विकासशील देशों में देखने को मिलता है। नॉनपॉइंट स्रोत प्रदूषण तब घटित होता है जब प्रदूषण अस्पष्ट और बिखरे हुए स्रोतों से होता है। इन्हें नियंत्रित करना बहुत मुश्किल हो सकता है। कृषि अपवाह और वायु प्रवाह से पैदा हुआ कचरा इसके मुख्य उदाहरण हैं।

सीधा निस्सरण

[संपादित करें]
रियो टिंटो नदी में एसिड खान निकासी जल.

प्रदूषक नदियों और सागरों में शहरी नालों और औद्योगिक कचरे के निस्सरण से सीधे प्रवेष करते हैं, कभी-कभी हानिकारक और ज़हरीले कचरे के रूप में भी.

अंदरूनी भागों में तांबे, सोने इत्यादि का खनन, समुद्री प्रदूषण का एक और स्रोत है। ज्यादातर प्रदूषण महज़ मिट्टी से होता है, जो नदियों के साथ बहते हुए समुद्र में प्रवेश करती है। हालांकि खनन के दौरान खनिजों के निस्सरण से कई समस्याएं हो सकती है, जैसे की तांबा, जो एक आम औद्योगिक प्रदूषक है, मूंगा के जीवन वृत और विकास को हानि पहुंचा सकता है।[2] खनन का बहुत घटिया पर्यावरण ट्रैक रिकॉर्ड है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मुताबिक, खनन ने पश्चिमी महाद्वीपीय अमेरीका में चालीस प्रंतिशत से ज्यादा जलोत्सारण क्षेत्रों के नदी उद्रमों के हिस्सों को प्रदूषित किया है।[3] इस प्रदूषण का ज्यादातर हिस्सा समुद्र में मिलता है।

भूमि अपवाह

[संपादित करें]

कृषि से सतह का अपवाह, साथ-साथ शहरी अपवाह और सड़कों, इमारतों, बंदरगाहों और खाड़ियों के निर्माण से हुआ अपवाह, कार्बन, नाइट्रोजन, फोसफोरस और खनिजों से लदे कणों और मिट्टी को अपने साथ ले जाता है। इस पोषक-तत्वों युक्त पानी से तटीय इलाकों में शैवाल और पादप प्लवक पनप सकते हैं, जिन्हें एल्गल ब्लूम्स कहा जाता है और जो मौजूद ऑक्सीजन का इस्तेमाल कर ऑक्सीजन की कमी वाली स्थिति पैदा करने का सामर्थ्य रखते हैं।

सड़कों और राजमार्गों से प्रदूषित अपवाह तटीय इलाकों में जल प्रदूषण का महत्वपूर्ण स्रोत है। प्यूजिट साउंड में प्रवेश करने वाले 75 प्रतिशत ज़हरीले रसायन, सड़कों, छतों, खेतों और अन्य विकसित भूमि से तूफानों के दौरान शुद्ध पानी के ज़रिए पहुंचते हैं।[4]

ज़हाज़ों द्वारा प्रदूषण

[संपादित करें]
एक मालवाहक जहाज के किनारे पर पंप गिट्टी पानी.

ज़हाज़ जलमार्गों और महासगरों को कई तरह से प्रदूषित करते हैं। तेल रिसाव के कई घातक नतीजे हो सकते हैं। समुद्री जीवन के लिए ज़हरीला होने के साथ-साथ, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हायड्रोकार्बन्स(पीएएच), जो कच्चे तेल में मौजूद होते हैं, को साफ करना बहुत मश्किल होता है और यह कई सालों तक तलछट और समुद्री वातावरण में बने रहते हैं।[5]

मालवाहक जहाज़ों द्वारा कूड़ा-कबार का छोड़ा जाना बंदरगाहों, जलमार्गों और महासागरों को प्रदूषित कर सकता है। कई बार पोत जानबूझ कर अवैध कचरे को छोड़ते हैं बावजूद इसके कि विदेशी और घरेलू नियमों द्वारा ऐसे कार्य प्रतिबंधित हैं। अनुमान लगाया गया है कि कंटेनर ढोने वाले मालवाहक जहाज़ हर साल समुद्र में दस हज़ार से ज्यादा कंटेनर समुद्र में खो देते हैं (खासकर तूफानों के दौरान)। [6] जहाज़ ध्वनि प्रदूषण भी फैलाते हैं जिससे जीव-जंतु परेशान होते हैं और स्थिरक टैंकों से निकलने वाला पानी हानिकारक शैवाल और अन्य तेज़ी से पनपने वाली आक्रमक प्रजातियों को फैला सकता है।[7]

समुद्र में लिया गया और बंदरगाहों पर छोड़ा गया स्थिरक पानी अवांछित असाधारण समुद्री जीवन का मुख्य स्रोत है। मीठे पानी में पाए जाने वाले आक्रामक ज़ेबरा शंबुक, जो मूल रूप से ब्लैक, कैस्पियन और एज़ोव सागरों में पाए जाते हैं, अमेरिका और कनाडा के बीच पाई जाने वाली पांच बड़ी झीलों (ग्रेट लेक्स) में किसी पार-महासागरीय पोत के स्थिरक पानी के ज़रिए ही पहुंचे होंगे। [8] मीनिस्ज़ मानते हैं कि पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली अकेली आक्रमक प्रजाति की बात की जाए तो सबसे बुरे उदाहरणों में से एक जैलीफिश है, जो उतनी हानिकारक प्रतीत नहीं होती. नीमियोप्सिस लीड्यी, कॉम्ब जैलीफिश की प्रजाति है जो इस कदर फैली कि आज ये दुनिया भर की कई खाड़ियों में मौजूद है। 1982 में पहली बार इसका पता चला और माना जाता है कि ये कृष्ण सागर (ब्लैक सी) में किसी जहाज़ के स्थिरक पानी के ज़रिए पहुंची होगी। जैलीफिश की तादाद एकाएक बढ़ गई और 1988 तक ये स्थानीय मत्स्य उद्योग के लिए सिरदर्द का सबब बन गई। "1984 में एंकवी मछली की पकड़ 204,000 टन थी जबकि 1993 में यह घटकर 200 टन रह गई; स्प्रैट 1984 में 24,600 टन से घटकर 1993 में 12,000 टन; और हॉर्स मैकेरल जो 1984 में 4,000 टन पकड़ी गई थी, 1993 में एक भी नहीं पकड़ी गई".[7] अब जब जैलीफिश ने मछलिओं के डिंबों सहित प्राणीमन्दप्लवकों को लगभग खत्म कर दिया है, इनकी संख्या नाटकीय ढंग से घट गई है, लेकिन यह अब भी पारिस्थितिक तंत्र के विकास को बढ़ने से रोके हुए है।

आक्रामक प्रजातियां पहले से अधिकृत क्षेत्रों पर कबज़ा कर सकती हैं, नई बीमारियों को फैलाने में मददगार साबित हो सकती हैं, नए आनुवांशिक पदार्थों की शुरूआत कर सकती है, जलमग्न समुद्री दृश्यों को बदल सकती हैं और स्थानीय प्रजातियों की भोजन प्राप्त करने की क्षमता को खतरे में डाल सकती हैं। यह आक्रमक प्रजातियां अकेले अमेरिका में ही सालाना 138 बिलियन डॉलर के राजस्व और प्रबंधन घाटे की वजह हैं।[9]

वायुमंडलीय प्रदूषण

[संपादित करें]

सम्पूर्ण कैरेबियन सागर और फ्लोरिडा में विभिन्न वायुमंडलीय धूल के प्रवाल मत्यु ग्राफ से जुड़ते हुए प्रवाल मृत्यु दर और अफ्रीकी धूल: बारबाडोस धूल रिकार्ड: 1965-1996 US भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण।10 दिसम्बर 2009 को लिया गया।

प्रदूषण के फैलने का एक और ज़रिया है वातवरण. धूल, कूड़ा-करकट, पॉलीथीन के लिफाफे हवा के साथ बहकर ज़मीन से समुद्र की और बढ़ते हैं। गर्मियों के मौसम में उपोष्णकटिबंधीय कटक आकार में बढ़ता है और उपोष्णकटिबंधीय एटलांटिक से होते हुए उत्तर दिशा की ओर बढ़ता है और इस दौरान इस कटक की दक्षिणी परिधि के इर्द-गिर्द बहने वाली सहारा से उठी धूल कैरेबियन और फ्लोरिडा की तरफ बहती है। कोरिया, जापान और उत्तरी प्रशांत से लेकर हवाई द्वीपों तक बहती हुई गोबी और टकलामकान मरुस्थलों से उड़ने वाली धूल भी प्रदूषण का अहम कारण है।[10] 1970 के उपरांत अफ्रीका में सूखा पड़ने के कारण धूल भरे तूफान और भी बदतर हो गए हैं। कैरिबियन और फ्लोरिडा की ओर होने बहने वाली धूल में हर साल भारी विषमताएं देखने को मिलती हैं;[11] हालांकि उत्तर प्रशांत दोलन के पॉसिटिव चरणों में ये प्रवाह और ज्यादा होता है।[12] USGS धूल संबंधी घटनाओं को कैरिबिनयन और फ्लोरिडा में प्रवाल-भित्तियों की घटती सेहत से ज़ोड़कर देखता है, खासतौर पर 1970 के दशक के उपरांत.[13]

जलवायु परिवर्तन महासागरों के तापमान को बढ़ा रहा है और वातावरण में कार्बन डायऑक्साईड के स्तर को बढ़ा रहा है।[14] कार्बन डायऑक्साईड के ये बढ़ते स्तर महासागरों को अम्लीय बना रहे हैं।[15] परिणामस्वरूप ये जलीय पारिस्थितिक तंत्र को बदल रहा है और मछलियों के वितरण को परविर्तित कर रहा है और ये मछली के कारोबार के बने रहने और उन समुदायों की जो इससे अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं उन्हें प्रभावित करता है।[16] जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए स्वस्थ्य महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र का होना ज़रूरी है।[17]

समुद्र तल में खनन

[संपादित करें]

समुद्र तल खनन, खनिजों के खनन की एक अपेक्षाकृत नई तकनीक है जो समुद्र तल में अमल में लाई जाती है। महासागरों में खनन के स्थान साधारणतः समुद्री सतह से 1,400-3,700 मीटर नीचे, पॉलीमैटलिक नॉड्यूल्स के बड़े हिस्सों के, या फिर सक्रीय और लुप्त हायड्रोथर्मल छिद्रों के आसपास होते हैं।[18] ये छिद्र सल्फाईड भंडार बनाते हैं जिन्में चांदी, सोना, तांबा, मैंगनीज़ और कोबाल्ट और जस्ताजैसी उत्कृष्ट धातुएं मौजूद होती हैं। इन भंडारों का खनन हायड्रॉलिक पंपों या फिर बकट प्रणाली द्वारा किया जाता है जिससे अयस्क को परिष्कृत करने के लिए ज़मीन पर लाया जाता है। जैसा सभी खनन प्रक्रियाओं के साथ है, समुद्र तल खनन से आसपास के क्षेत्र में पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर भी सवाल उठे हैं।

क्योंकि समुद्र तल खनन अपेक्षाकृत एक नया क्षेत्र है, इसलिए बड़े स्तर पर खनन की पूर्ण प्रक्रिया के नतीजे अभी अज्ञात हैं। हालांकि विषेशज्ञों को पूर्ण विश्वास है कि समुद्र तल के हिस्सों के हटाने से बेन्थिक परत में गड़बड़ी होगी, पानी स्तम्भ में विषाक्तता बढ़ेगी और सेडिमेंट प्ल्यूम्स में बढ़ौतरी होगी। [19] समुद्र तल के हिस्सों को हटाने से बेन्थित जीव-जंतुओं के प्राकृतिक वास को नुकसान पहुंचेगा, गड़बड़ी स्थायी भी हो सकती है, निर्भर करता है कि खनन का तरीका और स्थान कैसा है।[20] क्षेत्र के खनन से पड़ने वाले सीधे प्रभाव के अलावा, रिसाव और क्षय भी खनन क्षेत्र की रसायनिक बनावट को बदल सकता है।

समुद्र तल खनन के प्रभावों में, सेडिमेंट प्ल्यूम्स का सबसे ज्यादा प्रभाव हो सकता है। प्ल्यूम्स तब बनते हैं जब खनन से निकला मलबा (आम तौर पर सूक्ष्म कण) समुद्र में वापस फेंक दिया जाता है, जिससे पानी में कणों के बादल से तैरने लगते हैं। प्ल्यूम्स दो प्रकार के होते हैं: समुद्र तल पर पाए जाने वाले और सतह पर पाए जाने वाले.[21] समुद्र तल पर पाए जाने वाले प्ल्यूम्स तब बनते हैं जब मलबे को नीचे खनन स्थान में वापस पंप कर दिया जाता है। ये तैरते हुए कण पानी के गंदलेपन को बढ़ा देते हैं और बेन्थिक जीवों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फिल्टर-फीडिंग उपकरणों को अवरुद्ध कर देते हैं।[22] सतह पर पाए जाने वाले प्ल्यूम्स और भी ज्यादा गंभीर समस्या को अंजाम देते हैं। कणों के आकार और पानी के बहाव पर निर्भर करते हुए ये प्ल्यूम्स बहुत बड़े क्षेत्र में फैल सकते हैं।[23][24] ये प्ल्यूम्स प्राणीमन्दप्लवकों और प्रकाश के प्रवेश को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे क्षेत्र के फूड वेब को नुकसान पहुंच सकता है।[25][26]

अम्लीकरण

[संपादित करें]

[[चित्र:Maldives - Kurumba Island.jpg|thumb|left|मालदीव में किनारे के चट्टान के साथ द्वीप. दुनिया भर की प्रवाल भित्तियों मर रही हैं।[27][28] महासागरों के अम्लीकरण के संभावित परिणाम अभी पूरी तरह ज्ञात नहीं हुए हैं, हालांकि इस बात को लेकर चिंता ज़रूर है कि कैल्शियम कार्बोनेट से बने ढांचे आसानी से घुल सकते हैं, जिससे मूंगा-चट्टाने और साथ ही सीपदार मछलियों की घोंघा या सीप बनाने की क्षमता प्रभावित हो सकती हैं।[29].

महासागर और तटीय पारिस्थितिक तंत्र वैश्विक कार्बन चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं और इन्होंने साल 2000 से 2007 के बीच मानव गतिविधियों द्वारा स्कंदित कार्बन डायऑक्साइड को करीब 25 प्रतिशत तक हटाया है और औद्योगिक क्रांति की शुरूआत से मानवों द्वारा वायुमण्डल में छोड़ी गई CO2 की आधी मात्रा खत्म की है। महासागरों के बढ़ते तापमान और महागारों के अम्लीकरण का मतलब है कि महासागरीय कार्बन हॉद की क्षमता वक्त के साथ कम होती जाएगी,[30] जिससे मोनेको[31] और मैनेडो[32] घोषणाओं में वर्णित वैश्विक चिंताओं का जन्म होगा। घोषणाएं.

मई 2008 में प्रकाशित प्रख्यात विज्ञान पत्रिका साईंस में NOAA वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट में पाया गया कि उत्तरी अमेरिका के प्रशांत महाद्वीपीय शेल्फ क्षेत्र के चार मील के दायरे में अपेक्षाकृत अम्लीय पानी बढ़ी मात्रा में सतह पर आ रहा है। ये क्षेत्र एक नाज़ुक ज़ोन है जहां ज्यादातर समुद्री जीवन जन्म लेता है या जीता है। हालांकि ये रिपोर्ट सिर्फ वैनकुवर से उत्तरी कैलिफोर्निया तक के इलाकों के संबंधित थी, दूसरे महाद्वीपीय शेल्फ क्षेत्र भी समान प्रभाव अनुभव कर रहे होंगे। [33]

एक संबंधित मुद्दा समुद्र तल के नीचे पाए जाने वाले मीथेन क्लेथरेट भंडारों का है। ये बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस मीथेन को सोखते हैं, जो महासागरीय तापन के ज़रिए निकल सकती है। 2004 में लगाए गए अनुमान के मुताबिक विश्व में एक से लेकर पांच मिलियन क्यूबिक किलोमीटर क्षेत्र में महासागरीय मीथेन क्लेथरेट मौजूद हैं।[34] अगर ये क्लेथरेट समुद्र तल पर समरूप बिछाए जाते हैं तो इनकी परत तीन से चौदह मीटर मोटी होगी। [35] ये अनुमान 500 से 2500 गीगाटन कार्बन (Gt C) के बराबर है और इसकी तुलना दूसरे जीवाश्म ईंधन भंडारों से की जा सकती है जिनका अनुमान भी 5000 गीगाटन (Gt C) है।[34][36]

युट्रोफिकेशन

[संपादित करें]
प्रदूषित लैगून.
अपक्षरण का समुद्री जीवन पर प्रभाव

यूट्रोफिकेशन पारिस्थितिक तंत्र में रसायनिक पोषक तत्वों का बढ़ना है, खासकर वो यौगिक पदार्थ जिनमें नाईट्रोजन और फ़ोस्फोरस होता है। ये पारिस्थितिक तंत्र की मूलभूत उर्वरता को बढ़ा सकता है (पौधों का अत्यंत बढ़ना और क्षय होना) और साथ ही ये ऑक्सीजन की कमी समेत पानी की गुणवत्ता कम करता है और इससे मछलियों और दूसरे जलचर जीवों की संख्या प्रभावित होती है।

इसकी सबसे बड़ी दोषी नदियां है जो महासागरों में मिलती हैं और इसके साथ ही कृषि में इस्तेमाल किए गए कई उर्वरक और जानवरों एवं मनुष्यों का मल समुद्र में मिलता है। पानी में ऑक्सीजन घटाने वाले रसायनों का ज़रूरत से ज्यादा होना हायपोक्सिया को अंजाम देता है और डेड ज़ोन की रचना करता है।[37]

खाड़ियां स्वाभिक तौर पर यूट्रोफिक होती हैं, क्योंकि थल से आए पोषक तत्व वहां केन्द्रित होते हैं जहां अपवाह एक सीमित मार्ग से समुद्री वातावरण में प्रवेश करता है। वर्ल्ड रिसोर्सिस इंस्टिट्यूट ने दुनिया भर में 375 हायपॉक्सिक तटीय क्षेत्रों को चिह्नहित किया है जो पश्चिमी यूरोप के तटीय इलाकों, अमेरिका के पूर्वी और दक्षिणी तटों और पूर्वी एशिया, खासतौर पर जापान, में केन्द्रित हैं।[38] महासागरों में नियमित रूप से रेड टाइड एलगे ब्लूम्स उतपन्न होते हैं[39] जो मछलियों और समुद्री स्तनपायियों को मार डालते हैं और जब ये ब्लूम्स तटों के नज़दीक पहुंचते हैं तो मनुष्यों एवं पशुओं में श्वास संबंधी समस्याओं को जन्म देते हैं।

भू-अपवाह के साथ-साथ, मानव गतिविधियों द्वारा अमोनया में तब्दील हुई वायुमण्डलीय नाईट्रोजन खुले समुद्र में प्रवेश कर सकती है। 2008 में हुए एक शोध के मुताबिक ये महासागरों की बाहरी (नॉन-रीसाइकल्ड) नायट्रोजन सप्लाई का एक-तिहाई और सालाना नए समुद्री जैविक उत्पादन का तीन प्रतिशत हिस्सा है।[40] यह सुझाव दिया गया है कि वातावरण में accumulating प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में डालने के गंभीर परिणाम हो सकता है।[41]XXX

प्लास्टिक मलबा

[संपादित करें]
एक मौन हंस एक प्लास्टिक कचरे का उपयोग करते हुए घोंसला बनाता हुआ।

समुद्री मलबा मुख्यतः मानवों द्वारा फेंका गया कचरा है जो समुद्र में तैरता या झूलता रहता है। समुद्री मलबे का अस्सी प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक है- एक ऐसा अवयव जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से बहुत तेज़ी से जमा हो रहा है।[42] समुद्रों में मौजूद प्लास्टि का वज़न सौ मिलियन मेट्रिक टन के बराबर हो सकता है।[43]

त्यागे गए प्लास्टिक बैग, सिक्स पैक रिंग्स और अन्य प्लास्टिक कचरा जो समुद्रों में प्रवेश करता है, वो वन्य जीव-जंतुओं और मत्स्य उद्योग के लिए खतरा है।[44] इससे जलचर जीवन के फंसने, सांस रुकने और अंतर्रग्रहण का खतरा है।[45][46][47] मछली पकड़ने का जाल, जो आमतौर पर प्लास्टिक से बनता है, मछुवारों द्वारा समुद्रों में छोड़ा या खो सकता है। घोस्ट नेट्स के तौर पर जाने-जाने वाले इन जालों में, मछलियां, डॉल्फिन्स, समुद्री कछुएं, शार्क्स, ड्यूगॉन्ग्स, मगरमच्छ, सीबर्ड्स, केकड़े और दूसरे जंतु फंस सकते हैं, उनका आवागमन बाधित होता है, जिससे भुखमरी, मांस या अंग कटना और संक्रमण हो सकता है और जो जीव सांस लेने के लिए समुद्री सतहों पर आते हैं वो दम घुटने से मर जाते हैं।

बहते हुए बचे हुए कचरे में एक विशालकाय पक्षी का अवशेष

कई जंतु जो समुद्र में जीते हैं या फिर इन पर निर्भर करते हैं, बहते हुए कचरे को निगल सकते हैं, क्योंकि वो अक्सर उनके शिकार की तरह दिखता है।[48] प्लास्टिक कचरा, जब स्थूल और उलझा हुआ हो तो इसे निगलना मुश्किल होता है और ये इन जंतुओं के पेट या आंत में स्थायी तौर पर जमा रह सकता है, इससे भोजन का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है और भूख और संक्रमण से मौत हो सकती है।[49][50]

प्लास्टिक एकत्र होता रहता है क्योंकि वो दूसरे पदार्थों की तरह बायोडीग्रेडेबल यानि स्वाभिक तरीके से सड़नशील नहीं होता है। सूर्य किरणों के संपर्क में आने से वो ज़रूर फोटोडीग्रेड होते हैं लेकिन वो ऐसा सिर्फ सूखी परिस्थितियों में करते हैं, क्योंकि पानी इस प्रक्रिया को रोकता है।[51] समुद्री वातावरण में फोटोडीग्रेडिड प्लास्टिक और भी छोटे टुकड़ों में विघटित होता है, जबकि बचे हुए पॉलीमर, आणविक स्तर तक विघटित होते हैं। जब तैरते हुए प्लास्टिक कण प्राणीमन्दप्लवकों के आकार में फोटोडीग्रेड होते हैं, जैलीफिश उन्हें निगले की कोशिश करती हैं और इस तरह प्लास्टिक समुद्री खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करता है। [52] [53] इनमें से कई लंबे समय तक बने रहने वाले प्लास्टिक समुद्री पक्षियों और जानवरों[54] के पेट में प्रवेश कर जाते हैं, इनमें समुद्री कछुए और ब्लैक-फुटेड एल्बट्रॉस भी शामिल है।[55]


प्लास्टिक कचरे की समुद्री भंवरों के बीच में इकट्ठा होने की प्रवृति है। खासतौर पर ग्रेट पैसेफिक गारबेज पैच में पानी के ऊपरी हिस्से में तैरते प्लास्टिक कणों की मात्रा बहुत ज्यादा है। 1999 में लिए गए नमूनों में, इस क्षेत्र में प्लास्टिक का भार प्राणीमन्दप्लवकों (जो इस क्षेत्र में प्रमुख तौर पर पाए जाते हैं) के भार से छह गुना ज्यादा पाया गया।[42][56] सभी हवाई द्वीपों के बीच मिडवे एटॉल में इस गारबेज पैज से काफी मात्रा में कचरा आता है। इस कचरे का नब्बे प्रतिशत प्लास्टिक है जो मिडवे के तटों पर इकट्ठा होता है जहां ये द्वीप के पक्षियों के लिए खतरा बन जाता है। लेसेन एल्बट्रॉस की वैश्विक संख्या का दो-तिहाई (1.5 मिलियन) हिस्सा मिडवे एटॉल में पाया जाता है।[57] यहां पाए जाने वाले करीबन हर एल्बट्रॉस के पाचन तंत्र[58] में प्लास्टिक मौजूद है और इनके एक-तिहाई चूज़े मर जाते हैं।[59]

प्लास्टिक पदार्थों के उत्पादन में इस्तेमाल किए जाने वाले ज़हरीले योगज जब पानी के संपर्क में आते हैं तो वो आसपास के वातावरण में घुल कर बह जाते हैं. जलप्रसारित जल विरोधी प्रदूषक प्लास्टिक कचरे की सतह पर इकट्ठा और आवर्धन होते हैं[43] और प्लास्टिक को समुद्र में उससे और भी ज्यादा खतरनाक बना देते हैं, जितना वो ज़मीन पर होते हैं।[42] जल विरोधी संदूषक प्राकृतिक रूप से वसा ऊतकों में बायोएक्युम्यूलेट के रूप में जाने जाते हैं और भोजन श्रृंखला को प्राकृतिक रूप से और भी बड़ा बना देते हैं जिससे शीर्ष परभक्षियों पर दबाव पड़ता है। कुछ प्लास्टिक योगज ग्रहण होने पर अंतःस्त्रावी तंत्र को भी अस्त-व्यस्त कर देते हैं, जबकि कुछ प्रतिरक्षी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं या फिर प्रजनन दर को घटा सकते हैं।[56] तैरता मलबा समुद्री पानी से PCBs, DDT और PAHs जैसे दीर्घस्थायी जैविक प्रदूषकों को सोख सकता है।[60] विषैले प्रभावों के अलावा,[61] जब इनमें से कुछ ग्रहण कर लिए जाते हैं तो जानवरों का मस्तिष्क इन्हें एस्ट्राडियोल समझ सकता है, जिससे जीव-जंतुओं में हॉर्मोन प्रभावित हो सकते हैं।[55]

प्लास्टिक के अलावा, वो अन्य विषैले पदार्थ जो समुद्री वातावरण में तेज़ी से विघटित नहीं होते, उनकी अलग समस्या है। PCBs, DDT, कीटनाशक, फ्यूरन्स, डायऑक्सिन्स, फिनोल्स और रेडियोधर्मी कचरा ऐसे दीर्घस्थायी विष के उदाहरण हैं। भारी धातुएं वो रसायनिक तत्व होती हैं जिनका घनत्व अपेक्षाकृत ज्यादा होता है और कम सघनता में भी ज़हरीली होती हैं। पारा, सीसा, निकल, आर्सेनिक और केडमियम इसके उदाहरण हैं। ऐसे विष जलचर प्रजातियों के ऊतकों में बायोएक्युमुलेशन नाम की प्रक्रिया से इकट्ठा हो जाते हैं। ये नितल जीवसमूही वातावरण में एकत्र होते हैं, खासकर खाड़ियों में और इन खाड़ियों के तल में पाई जाने वाली मिट्टी में: ये पिछली शताब्दी में मानव गतिविधियों का भूवैज्ञानिक रिकॉर्ड है।

विशिष्ट उदाहरण
  • चीनी और रूसी औद्योगिक प्रदूषण द्वारा आमुर नदी में छोड़े गए फिनोल और भारी धातुओं ने मछलिओं का भंडार नष्ट कर दिया है और खाड़ी की मिट्टी को बर्बाद कर दिया है।[62]
  • कनाडा में एल्बर्टा की वाबामन झील कभी इलाके की सबसे बढ़िया वाइटफिश झील हुआ करती थी, लेकिन अब इसमें और यहां पाई जाने वाली मछलियों में भारी धातुओं की मात्रा बेहिसाब तरीके से बढ़ चुकी है।
  • अत्यधिक और दीर्घकालिक प्रदूषण गतिविधियों ने दक्षिणी कैलिफोर्निया के केल्प जंगलों को प्रभावित किया है, हालांकि इस प्रभाव की तीव्रता संदूषकों के स्वभाव और उनके संपर्क में रहने की समयसीमा, दोनों पर निर्भर करता है।[63][64][65][66][67]
  • भोजन श्रृंखला में सबसे ऊपर होने के नाते और अपने आहार से भारी धातुओं के एकत्र होने से, ब्लूफिन और एल्बाकोर जैसी बड़ी प्रजातियों में पारे का स्तर बहुत ज्यादा हो सकता है। नतीजतन, मार्च 2004 में संयुक्त राज्य FDA ने दिशानिर्देश जारी करते हुए सलाह दी कि गर्भवती महिलाएं, नर्सिग माएं और बच्चे ट्यूना मछली और अन्य परभक्षी मछलिओं का आहार सीमित करें। [68]
  • कुछ सीपदार मछलिआं और केंकड़े प्रदूषित वातावरण, भारी धातुओं और विष के ऊतकों में एकत्र होने से बचे रह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर मिटन केंकड़े, जिनके अंदर प्रदूषित पानी जैसे बेहद बदले हुए जलचर माहौल में बचे रहने की अनूठी क्षमता है। इन प्रजातियों का पालन अत्यंत सावधान प्रबंधन मांगता है, अगर इन्हें भोजन के तौर पर इस्तेमाल किया जाना हो। [69][70]
  • कीटनाशकों भू-अपवाह मत्स्य प्रजातियों के लिंग को आनुवांशिक तौर पर बदल सकता है, जिससे नर मछली मादा मछली में तब्दील हो जाती है।[71]
  • 2005 में इटली के माफिया गिरोह, एनड्रंघेटा, पर विषैले कचरे से लैस करीब तीस पोतों को डुबाने का आरोप लगा, जिसमें से ज्यादातर रेडियोधर्मी था। इससे रेडियोधर्मी कचरे को फेंकने वाले गिरोहों के खिलाफ व्यापक जांच की शुरुआत हुई। [73]
  • द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद, कई राष्ट्रों ने, जिसमें सोवियत संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और जर्मनी शामिल हैं, रसायनिक हथियारों को बाल्टिक समुद्र में फेंक दिया, जिससे वातावरण प्रदूषण को लेकर चिंता बढ़ी.[74][75]

ध्वनि प्रदूषण

[संपादित करें]

समुद्री जीवन ध्वनि प्रदूषण से आसानी से प्रभावित हो सकता है, खासकर गुज़रते हुए जहाज़ों, तेल अन्वेषण भूकंपीय सर्वेक्षणों और नेवल लो-फ्रीक्वेंसी एक्टीव सोनार से. समुद्र में ध्वनि की गति वायुमण्डल से कहीं ज्यादा होती है और ये ज्यादा दूरी तय करती है। समुद्री जीवों की, जैसे की सेटेशियन्स, देखने की क्षमता अक्सर कम होती है और ये ध्वनि के ज़रिए ही जानकारी हासिल करते हैं। ये बात गहराई में रहने वाली समुद्री मछलियों पर भी लागू होती है, जो अंधेरे में रहती हैं।[76] 1950 से 1975 के बीच समुद्र में परिवेशी शोर का स्तर करीबन दस डेसीबल तक बढ़ गया (ये दस गुना बढ़ौतरी है)। [77]

शोर से प्रजातियों को ऊंचे स्वर में संचार करना पड़ता है, जिसे लॉम्बार्ड वोकल रिस्पॉन्स कहा जाता है।[78] व्हेल मछली की आवाज़ लंबी होती है जब पनडुब्बी संसूचक चालू होते हैं।[79] अगर जीव ज्यादा ऊंचे स्वर में "संवाद" नहीं करते तो उनकी आवाज़ मानवजनित ध्वनियों के नीचे दब जाती है। ये अनसुनी आवाज़ें चेतावनी, शिकार की खोज या फिर नेट-बब्लिंग की तैयारियां हो सकती हैं। जब एक प्रजाति ऊंचा बोलने लगती है तो ये दूसरी प्रजातियों की आवाज़ को दबा देती है, जिससे पूरा पारिस्तितिक तंत्र ऊंचा बोलने लगता है।[80]

समुद्र वैज्ञानिक सिल्विया अर्ल के मुताबिक, "समुद्री के अंदर ध्वनि प्रदूषण, हज़ार घावों के साथ मरने के बराबर है। हर ध्वनि भले ही बड़ी चिंता का विषय ना हो, लेकिन अगर जहाज़ों के शोर, भूकंपीय सर्वेक्षण और सैन्य गतिविधियों को एक साथ लिया जाए तो एक बिल्कुल ही अलग माहौल तैयार हो जाता है जो पचास साल पहले भी मौजूद था। ध्वनि प्रदूषण का ये बढ़ा हुआ स्तर, समुद्री जीवन पर कड़ा और व्यापक असर डालेगा ही."[81]

अनुकूलन और शमन

[संपादित करें]
एयरोसोल एक समुद्री तट को प्रदूषित कर सकते हैं।

ज्यादतर मानवजनित प्रदूषण समुद्र में प्रवेश करता है। ब्यॉर्न जेनसन (2003) ने अपने लेख में लिखा है, "मानवजनित प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की जैव-विविधता और उत्पादकता को घटा सकता है, जिससे मानव के समुद्री भोजन संसाधन कम और खत्म हो सकते हैं" (p. A198)। प्रदूषण के इस समग्र स्तर को कम करने के दो तरीके हैं: या मानव जनसंख्या घटा दी जाए, या फिर एक आम इंसान द्वारा छोड़े गए पारिस्थितिक पदचिह्नों को कम करने का रास्ता खोजा जाए. अगर ये दूसरा रास्ता नहीं अपनाया गया, तो फिर पहला रास्ता थापना पड़ सकता है, क्योंकि दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ा रहे हैं।

दूसरा रास्ता मनुष्यों के लिए है कि वो व्यक्तिगत तौर पर कम प्रदूषण फैलाएं. इसके लिए सामाजिक और राजनीतिक इच्छा की ज़रूरत है, साथ ही जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि ज्यादा लोग पर्यावरण की इज्ज़त करें और इसे कम हानि पहुंचाए. परिचालन स्तर पर, नियम और अंतर्राष्ट्रीय सरकारों के हिस्सा लेने की ज़रूरत है। समुद्री प्रदूषण को नियंत्रित करना अक्सर मुश्किल होता है क्योंकि प्रदूषण अंतर्राष्ट्रीय सरहदों को लांघता है, जिससे नियम बनाना और उन्हें लागू करना कठिन होता है।

कदाचित समुद्री प्रदूषण को कम करने की सबसे महत्वपूर्ण सामरिक नीति शिक्षा है। ज्यादातर लोग स्रोतों और समुद्री प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों से अनजान हैं और इसलिए इस स्थिति से निपटने के लिए कम कदम ही उठाए जा सके हैं। जनता को सभी तथ्यों की जानकारी देने के लिए, गहन शोध की ज़रूरत है ताकि स्थिति का पूरा ब्यौरा दिया जा सके। और फिर इस जानकारी को जनता तक पहुंचाना चाहिए।

दाओजी और डैग के शोध में लिखा गया है कि,[82] एक मुख्य कारण जिसकी वजह से चीनियों में पर्यावरण को लेकर चिंता नहीं है, वो यह है कि जनमें जागरुकता की कमी है और उन्हें जागरूक बनाना होगा। इसी तरह, नियम, जो गहन शोध पर आधारित हों, लागू किए जाएं. कैलिफोर्निया में ऐसे नियम मौजूद हैं जिन्हें कैलिफोर्निया के तटों को कृषि अपवाह से बचाने के लिए लागू किया गया है। इसमें कैलिफोर्निया वॉटर कोड सहित कई दूसरे स्वैच्छिक कार्यक्रम शामिल हैं। इसी तरह भारत में समुद्री प्रदूषण को रोकने के लिए कई नीतियां अपनाई गईं हैं, हालांकि ये समस्या से उल्लेखनीय ढंग से नहीं निपटतीं. भारत के चैन्नई शहर में गटर खुले पानी में खाली किए जा रहे हैं।

फेंके जा रहे कचरे के भार को देखते हुए खुला समुद्र तनुकरण और प्रदूषकों के बिखराव के लिए उत्कृष्ट हैं और ऐसा करने से वो समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए कम हानिकारक बन जाते हैं।

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]
  1. हम्ब्लिन, जेकोब डार्विन (2008) पोयज़न इन द वेल: रेडियोएक्टिव वेस्ट इन द ओसियन एट द डाउन ऑफ द न्यूक्लियर एज रट्गर्स विश्वविद्यालय प्रेस. ISBN 1448-2924
  2. Emma Young (2003). "Copper decimates coral reef spawning". मूल से 15 अप्रैल 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अगस्त 2006.
  3. Environmental Protection Agency. "Liquid Assets 2000: Americans Pay for Dirty Water". मूल से 15 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जनवरी 2007.
  4. वाशिंगटन राज्य पारिस्थितिकीय विभाग. "Control of Toxic Chemicals in Puget Sound, Phase 2: Development of Simple Numerical Models" Archived 2017-03-02 at the वेबैक मशीन, 2008
  5. पनेत्ता, LE (चेयर) (2003) अमेरिका लिविंग ओशियन: चार्टिंग ए कोर्स फॉर सी चेंज [इलेक्ट्रॉनिक संस्करण, CD] पिउ ओशियन कमीशन.
  6. Janice Podsada (19 जून 2001). "Lost Sea Cargo: Beach Bounty or Junk?". National Geographic News. मूल से 27 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2008.
  7. मेनेस्ज, A. (2003) Deep Sea Invasion: The Impact of Invasive Species Archived 2010-02-19 at the वेबैक मशीन PBS: नोवा. 26 नवम्बर 2009 को लिया गया
  8. एक्वाटिक इनवेसिव स्पेसिस. ए गाइड टू लिस्ट-वांटेड एक्वाटिक ओर्गानिज्म ऑफ द पेसिफिक नोर्थवेस्ट. 2001. वाशिंगटन विश्वविद्यालय [1] Archived 2008-07-25 at the वेबैक मशीन
  9. Pimentel, D. (2005). "Update on the environmental and economic costs associated with alien-invasive species in the United States". Ecological Economics. 52: 273–288. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  10. डूस, R.A., उन्नी, C.K., रे, B.J., प्रोस्पेरो, J.M., मेरिल, J.T. 1980. लाँग-रेंज एटमोस्फेरिक ट्रांसपोर्ट ऑफ सोएल डस्ट फ्रॉम एशिया टू द ट्रोपिकल नोर्थ पेसिफिक: टेम्पोरल वेरिएबिलिटी. साइंस 209:1522-1524.
  11. Usinfo.state.gov. Study Says African Dust Affects Climate in U.S., Caribbean Archived 2012-03-12 at the वेबैक मशीन. 10 जून 2009 को लिया गया।
  12. प्रोस्पेरो, J.M., नीज, R.T. 1986. इंपेक्ट ऑफ द नोर्थ अफ्रीकन ड्रॉट एण्ड इए निनो ऑन मिनरल डस्ट इन द बोर्बोडोज ट्रेड विंड्स. नेचर 320:735-738.
  13. U. S. भूगर्भीय सर्वेक्षण. Coral Mortality and African Dust.. Archived 2012-05-02 at the वेबैक मशीन 10 जून 2007 को लिया गया
  14. Observations: Oceanic Climate Change and Sea Level Archived 2017-05-13 at the वेबैक मशीन में: क्लाइमेट चेंज 2007: द फिजिकल साइंस बेसिस जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की चौथी आकलन रिपोर्ट में वर्किंग ग्रुप I का योगदान. (15MB).
  15. डोने, S. C. (2006) "The Dangers of Ocean Acidification Archived 2016-03-04 at the वेबैक मशीन" साइंटिफिक अमेरिकन, मार्च 2006.
  16. चेउंग, W.W.L., एट एल. (2009) "Redistribution of Fish Catch by Climate Change Archived 2011-07-26 at the वेबैक मशीन.A Summary of a New Scientific Analysis Archived 2011-07-26 at the वेबैक मशीन" पिउ ओशियन साइंस सीरीज़. अक्टूबर 2009
  17. PACFA Archived 2009-12-15 at the वेबैक मशीन (2009) Fisheries and Aquaculture in a Changing Climate Archived 2009-11-10 at the वेबैक मशीन
  18. अहनर्ट, A., & बोरोस्की, C. (2000). एन्वायरनमेंटल रिस्क एसेसमेंट ऑफ एन्थ्रोपोजेनिक एक्टिविटी इन द डिप सी जर्नल ऑफ एक्वाटिक इकोसिस्टम स्ट्रेस & रिकवरी, 7(4), 299. अकादमिक सर्च कम्प्लीट डेटाबेस से लिया गया। http://web.ebscohost.com/ehost/pdf?vid=5&hid=2&sid=4b3a30cd-c7ec-4838-ba3c-48ce12f26813%40sessionmgr12
  19. हल्फर, जोचेन और रॉडने M. फ्यूजिटा. 2007. "डेंजर ऑफ डिप-सी माइनिंग." साइंस 316, नम्बर. 5827: 987. अकादमिक सर्च कम्प्लीट, EBSCOhost (19 जनवरी 2010 से एक्सेस) <http://www.sciencemag.org/cgi/content/full/316/5827/987 Archived 2008-12-08 at the वेबैक मशीन>
  20. अहनर्ट, ए, A., & बोरोस्की, C. (2000). एन्वायरनमेंटल रिस्क एसेसमेंट ऑफ एन्थ्रोपोजेनिक एक्टिविटी इन द डिप सी जर्नल ऑफ एक्वाटिक इकोसिस्टम स्ट्रेस & रिकवरी, 7(4), 299. अकादमिक सर्च कम्प्लीट डेटाबेस से लिया गया। http://web.ebscohost.com/ehost/pdf?vid=5&hid=2&sid=4b3a30cd-c7ec-4838-ba3c-48ce12f26813 40sessionmgr12%
  21. अहनर्ट, A., & बोरोस्की, C. (2000). एन्वायरनमेंटल रिस्क एसेसमेंट ऑफ एन्थ्रोपोजेनिक एक्टिविटी इन द डिप सी जर्नल ऑफ एक्वाटिक इकोसिस्टम स्ट्रेस & रिकवरी, 7(4), 299. अकादमिक सर्च कम्प्लीट डेटाबेस से लिया गया। http://web.ebscohost.com/ehost/pdf?vid=5&hid=2&sid=4b3a30cd-c7ec-4838-ba3c-48ce12f26813 40sessionmgr12%
  22. शर्मा, R. (2005). डिप-सी इम्पेक्ट एक्सपेरीमेंट एण्ड दियर फ्यूचर रिक्वायरमेंट मरीन जिओरिसौरसेस और जिओटेक्नोलॉजी, 23 (4), 331-338. doi: 10.1080/10641190500446698. <http://web.ebscohost.com/ehost/pdf?vid=7&hid=13&sid=cd55f6a4-c7f2-45e4-a1da-60c85c9b866e%40sessionmgr10>
  23. नाथ, B., & शर्मा, R. (2000). एन्वायरनमेंट एण्ड डिप-सी माइनिंग: ए पर्स्पेकटिव मरीन जिओरिसौरसेस और जिओटेक्नोलॉजी, 18 (3), 285-294. doi: 10.1080/10641190051092993. http://web.ebscohost.com/ehost/detail?vid=5&hid=2&sid=13877386-132b-4b8c-a81d-787869ad02cc%40sessionmgr12&bdata=JnNpdGU9ZWhvc3QtbGl2ZQ%3d%3d#db=a9h&AN=4394513
  24. अहनर्ट, A., & बोरोस्की, C. (2000). एन्वायरनमेंटल रिस्क एसेसमेंट ऑफ एन्थ्रोपोजेनिक एक्टिविटी इन द डिप सी जर्नल ऑफ एक्वाटिक इकोसिस्टम स्ट्रेस & रिकवरी, 7(4), 299. अकादमिक सर्च कम्प्लीट डेटाबेस से लिया गया। http://web.ebscohost.com/ehost/pdf?vid=5&hid=2&sid=4b3a30cd-c7ec-4838-ba3c-48ce12f26813 40sessionmgr12%
  25. अहनर्ट, A., & बोरोस्की, C. (2000). एन्वायरनमेंटल रिस्क एसेसमेंट ऑफ एन्थ्रोपोजेनिक एक्टिविटी इन द डिप सी जर्नल ऑफ एक्वाटिक इकोसिस्टम स्ट्रेस & रिकवरी, 7(4), 299. अकादमिक सर्च कम्प्लीट डेटाबेस से लिया गया http://web.ebscohost.com/ehost/pdf?vid=5&hid=2&sid=4b3a30cd-c7ec-4838-ba3c-48ce12f26813 40sessionmgr12%
  26. नाथ, B., & शर्मा, R. (2000). एन्वायरनमेंट एण्ड डिप-सी माइनिंग: ए पर्स्पेकटिव मरीन जिओरिसौरसेस और जिओटेक्नोलॉजी, 18 (3), 285-294. doi: 10.1080/10641190051092993. http://web.ebscohost.com/ehost/detail?vid=5&hid=2&sid=13877386-132b-4b8c-a81d-787869ad02cc%40sessionmgr12&bdata=JnNpdGU9ZWhvc3QtbGl2ZQ%3d%3d#db=a9h&AN=4394513
  27. दुनिया भर में प्रवाल रीफ़ Guardian.co.uk 2 सितम्बर 2009<ref>. ]] महासागर आमतौर पर प्राकृतिक कार्बन सिंक होते हैं, जो वायुमण्डल से कार्बन डायऑक्साइड से सोखता है। क्योंकि वायुमण्डलीय कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, महासागर भी ज्यादा अम्लीय हो रहे हैं।<ref name="orr05">Orr, James C. (2005). "Anthropogenic ocean acidification over the twenty-first century and its impact on calcifying organisms" (PDF). Nature. 437 (7059): 681–686. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0028-0836. डीओआइ:10.1038/nature04095. मूल से 25 जून 2008 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 3 जून 2010. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  28. Key, R.M. (2004). "A global ocean carbon climatology: Results from GLODAP". Global Biogeochemical Cycles. 18: GB4031. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0886-6236. डीओआइ:10.1029/2004GB002247. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  29. रेवेन, J. A. एट अल. (2005). Ocean acidification due to increasing atmospheric carbon dioxide. Archived 2007-09-27 at the वेबैक मशीन रॉयल सोसायटी, लंदन, ब्रिटेन.
  30. UNEP, FAO, IOC (2009) Blue Carbon Archived 2011-09-05 at the वेबैक मशीन.The role of healthy oceans in binding carbon Archived 2011-09-05 at the वेबैक मशीन
  31. Monaco Declaration Archived 2009-02-06 at the वेबैक मशीन और Ocean Acidification Archived 2010-09-23 at the वेबैक मशीन ए समरी फॉर पोलिसीमेकर्स फ्रॉम द सेकंड सिम्पोजियम ऑन द ओशियन इन ए हाई-CO2 वर्ल्ड.] युनेस्को की अंतर सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग, अंतर्राष्ट्रीय जीओस्फेयर-बायोस्फेयर कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के समुद्री पर्यावरण लैबोरेटरीज (MEL), समुद्री अनुसंधान पर वैज्ञानिक समिति. 2008.
  32. Manado Ocean Declaration Archived 2013-11-03 at the वेबैक मशीन विश्व महासागर सम्मेलन मंत्रिस्तरीय/उच्च स्तरीय बैठक. मनाडो, इंडोनेशिया, 11-14 मई 2009.
  33. Feely, Richard (2008). "Evidence for Upwelling of Corrosive "Acidified" Seawater onto the Continental Shelf". Science. 10. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  34. Milkov, AV (2004). "Global estimates of hydrate-bound gas in marine sediments: how much is really out there?". Earth-Sci Rev. 66 (3–4): 183–197. डीओआइ:10.1016/j.earscirev.2003.11.002.
  35. इस महासागर ने 361 मिलियन sq km पर कब्जा किया है
  36. USGS वर्ल्ड एनर्जी एसेसमेंट टीम, 2000. अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विश्व पेट्रोलियम मूल्यांकन 2000 - वर्णन और परिणाम. USGS डिजिटल डाटा श्रृंखला DDS-60.
  37. गेरलाच: मरीन पोल्यूशन, स्प्रिंजर, बर्लिन (1975)
  38. सेलमन, मिंडे (2007) यूट्रोफिकेशन: एन औवरव्यू ऑफ स्टेटस, ट्रेंड्स, पोलिसिस, एम्ड स्ट्रेटिजिस विश्व संसाधन संस्थान.
  39. "The Gulf of Mexico Dead Zone and Red Tides". मूल से 7 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसंबर 2006.
  40. ड्यूस, R A और 29 अन्य (2008) इम्पेक्ट्स ऑफ एटमोस्फेरिक एन्थ्रोपोजेनिक नाइट्रोजन ऑन द ओपन ओशियन साइंस . (Vol 320, pp 893–89
  41. Addressing the nitrogen cascade Archived 2016-08-23 at the वेबैक मशीन यूरेका अलर्ट, 2008.
  42. Alan Weisman (2007). The World Without Us. St. Martin's Thomas Dunne Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0312347294.
  43. "Plastic Debris: from Rivers to Sea" (PDF). Algalita Marine Research Foundation. मूल (PDF) से 19 अगस्त 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 मई 2008.
  44. "Research | AMRF/ORV Alguita Research Projects" Archived 2017-03-13 at the वेबैक मशीन अलगलिता मरीन रिसर्च फाउंडेशन. मेकडोनाल्ड डिजाइन. एक्सेस तिथि: 6 मई 2008.
  45. UNEP (2005) Marine Litter: An Analytical Overview Archived 2007-07-17 at the Library of Congress Web Archives
  46. "Six pack rings hazard to wildlife". मूल से 13 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2010.
  47. "Louisiana Fisheries - Fact Sheets". मूल से 14 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2010.
  48. Kenneth R. Weiss (2 अगस्त 2006). "Plague of Plastic Chokes the Seas". Los Angeles Times. मूल से 25 मार्च 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 अप्रैल 2008.
  49. Charles Moore (2003). "Across the Pacific Ocean, plastics, plastics, everywhere". Natural History. मूल से 30 दिसंबर 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2008. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  50. शिएवली और रजिस्टर, 2007, p. 3.
  51. Alan Weisman (Summer 2007). "Polymers Are Forever". Orion magazine. मूल से 2 नवंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2008.
  52. Thompson, Richard C. (7 मई 2004), "Lost at Sea: Where Is All the Plastic?", Science, 304 (5672): 843, डीओआइ:10.1126/science.1094559, मूल से 28 जून 2008 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 19 जुलाई 2008 |periodical= और |journal= के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद)
  53. Moore, Charles; Moore, S. L.; Leecaster, M. K.; Weisberg, S. B. (4), "A Comparison of Plastic and Plankton in the North Pacific Central Gyre" (PDF), Marine Pollution Bulletin (प्रकाशित 1 दिसंबर 2001), 42 (12): 1297–1300, डीओआइ:10.1016/S0025-326X(01)00114-X, मूल से 19 दिसंबर 2008 को पुरालेखित (PDF) |periodical= और |journal= के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद); |date=, |year= / |date= mismatch में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  54. Moore, Charles (November 2003). "Across the Pacific Ocean, plastics, plastics, everywhere". Natural History Magazine. मूल से 30 दिसंबर 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2010.
  55. Moore, Charles (2 अक्टूबर 2002). "Great Pacific Garbage Patch". Santa Barbara News-Press. मूल से 12 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2010. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "mindfully" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  56. "Plastics and Marine Debris". Algalita Marine Research Foundation. 2006. मूल से 11 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2008.
  57. "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2010.
  58. Chris Jordan (नवम्बर 11, 2009). "Midway: Message from the Gyre". मूल से 30 मार्च 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2009.
  59. "संग्रहीत प्रति". मूल से 6 फ़रवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2010.
  60. Rios, L.M. (2007). "Persistent organic pollutants carried by Synthetic polymers in the ocean environment". Marine Pollution Bulletin. 54: 1230–1237. डीओआइ:10.1016/j.marpolbul.2007.03.022. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  61. Tanabe, S. (2004). "PCDDs, PCDFs, and coplanar PCBs in albatross from the North Pacific and Southern Oceans: Levels, patterns, and toxicological implications". Environmental Science & Technology. 38: 403–413. डीओआइ:10.1021/es034966x. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  62. "Indigenous Peoples of the Russian North, Siberia and Far East: Nivkh" Archived 2009-08-07 at the वेबैक मशीन रूसी आर्कटिक के देशी लोग के सहायता के लिए आर्कटिक नेटवर्क द्वारा
  63. ग्रिग्ग, R.W. और R.S. किवाला. 1970. सम इकोलॉजिकल इफेक्ट्स ऑफ डिस्चार्जड वेस्ट्स ऑन मरीन लाइफ. कैलिफोर्निया के फिश और गेम विभाग : 145-155.
  64. स्टल, J.K. 1989 कंटामिनेन्ट्स इन सेडिमेंट नियर ए मेजर मरीन आउटफॉल: हिस्ट्री, इफेक्ट्स, एण्ड फ्यूचर. OCEANS '89 प्रोसेडिंग 2: 481-484.
  65. नोर्थ, W.J., D.E. जेम्स L.G. जोन्स. 1993. कैलिफोर्निया, के ऑरेंज और सैन डिएगो काउंटी के समुद्री घास की राख बेड (मेक्रोसाइटिस) का इतिहास . हाइड्रोबाइलॉजिया 260/261 : 277-283.
  66. टेगनर, M.J., P.K. डेटॉन, P.B. एडवर्ड्स, K.L. रिसर, D.B. चाडविक, T.A. डीन और L. डेशेर. 1995. इफेक्ट्स ऑफ ए लार्ज सेवेज स्पिल ऑन ए केल्प फॉरेस्ट कम्यूनिटी: काटास्ट्रॉफी ओर डिस्टर्बेंस? समुद्री पर्यावरण अनुसंधान 40: 181-224.
  67. कारपेंटर, S.R., R.F. सराको, D.F. कॉर्नेल, R.W. हॉवर्थ, A.N. शार्पले और V.N. स्मिथ. 1998. नॉनप्वोइंट पोल्यूशन ऑफ सरफेश वाटर्स विथ फोस्फोरस एण्ड नाइट्रोजन इकोलॉजिकल अप्लीकेशन 8: 559-568.
  68. "What You Need to Know About Mercury in Fish and Shellfish". 2004-03. मूल से 19 मई 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2007. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  69. Hui, Clifford A.; एवं अन्य (2005). "Mercury burdens in Chinese mitten crabs (Eriocheir sinensis) in three tributaries of southern San Francisco Bay, California, USA". Environmental Pollution. Elsevier. 133 (3): 481–487. डीओआइ:10.1016/j.envpol.2004.06.019. अभिगमन तिथि 12 नवम्बर 2007. Explicit use of et al. in: |first= (मदद)
  70. Silvestre, F.; एवं अन्य (2004). "Uptake of cadmium through isolated perfused gills of the Chinese mitten crab, Eriocheir sinensis". Comparative Biochemistry and Physiology - Part A: Molecular & Integrative Physiology. Elsevier. 137 (1): 189–196. डीओआइ:10.1016/S1095-6433(03)00290-3. Explicit use of et al. in: |first= (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद); |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)
  71. साइंस न्यूज़ "DDT treatment turns male fish into mothers." Archived 2012-09-26 at the वेबैक मशीन 2000/02/05. (केवल सदस्यता द्वारा)
  72. पेरेज़-लोपेज एट अल. 2006
  73. (इतालवी) Parla un boss: Così lo Stato pagava la 'ndrangheta per smaltire i rifiuti tossici Archived 2020-06-06 at the वेबैक मशीन, रिकार्डो बोक्का द्वारा, लेएस्प्रेसो, अगस्त 5, 2005
  74. 3102728,00.html Chemical Weapon Time Bomb Ticks in the Baltic Sea[मृत कड़ियाँ] ड्यूशे वेले 1 फ़रवरी 2008.
  75. Activities 2006: Overview बाल्टिक सी एनवायरनमेंट प्रोसेडिंग नम्बर 112. हेलसिंकी आयोग.
  76. Noise pollution Archived 2016-12-07 at the वेबैक मशीन Sea.org . 23 अक्टूबर 2004 को लिया गया।
  77. रॉस, (1993) ऑन ओशियन अंडरवाटर एम्बिएंट नोएज इंस्टिट्यूट ऑफ अकौस्टिक बुलेटिन, सेंट अल्बंस, हर्ट्स, ब्रिटेन: इंस्टिट्यूट ऑफ अकौस्टिक
  78. Glossary Archived 2017-06-29 at the वेबैक मशीन डिस्कवरी ऑफ साउंड्स इन द सी 31 दिसम्बर 2008 को लिया गया।
  79. फ्रिस्टरप KM, हैच LT एण्ड क्लार्क CW (2003) Variation in humpback whale (Megaptera novaeangliae) song length in relation to low-frequency sound broadcasts Archived 2008-01-16 at the वेबैक मशीन अकौस्टिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका जर्नल 113 (6) 3411-3424.
  80. Effects of Sound on Marine Animals Archived 2010-01-13 at the वेबैक मशीन डिस्कवरी ऑफ साउंड्स इन द सी 31 दिसम्बर 2008 को लिया गया।
  81. नेचुरल रिसौर्सेस डिफेंस काउंसिल प्रेस रिलीज़ (1999) साउंडिंग द डेप्थ्स: सुपरटेंकर्स, सोनर, एण्ड राइज ऑफ अंडर सी नोएज, एक्जीक्युटिव समरी. न्यूयॉर्क, N.Y: www.nrdc.org.
  82. डाओजी & डेग (2004)

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  • Ahn, YH, हांग, GH; नीलमणी, S; फिलिप, L और षणमुगम, P (2006) एसेसमेंट ऑफ लेवल्स ऑफ कोस्टल मरीन पोल्यूशन ऑफ चेन्नई सिटी, साउदर्न इंडिया . जल संसाधन प्रबंधन, 21 (7), 1187-1206.
  • डाउजी, L और डाग (2004) ओशियन पोल्यूशन फ्रॉम लैंड-बेस्ड सोर्सेस: इस्ट चाइना सी . AMBIO - मानव पर्यावरण का एक जर्नल, 33 (1 / 2), 107-113.
  • डोर्ड, BM: प्रेस, D और लॉस हुएर्टस, M (2008) एग्रीकल्चर्ल नॉन-प्वोइंट सोर्सेस: वाटर पोल्यूशन पोलिसी: द केस ऑफ केलिफोर्नियास सेन्ट्रल कोस्ट .एग्रीकल्चर, इकोसिस्टम & एनवायर्नमेंट, 128 (3), 151-161.
  • लॉज, एडवर्ड A (2000) Aquatic Pollution जॉन वेले एण्ड संस. ISBN 978-0-471-34875-7
  • शेवली, SB और रजिस्टर, KM (2007) मरीन डेबरिज एण्ड प्लास्टिक: एनवायर्लमेंटल कंसर्न्स, सोरसेस, इंपेक्ट एण्ड सोलुशन्स . पॉलिमर और पर्यावरण के जर्नल 15 (4), 301-305.
  • स्लेटर, D (2007) एफ्लुएंस एण्ड एफ्लुएंट्स . सियरा 92(6), 27
  • UNEP (2007) Land-based Pollution in the South China Sea . UNEP/GEF/SCS तकनीकी प्रकाशन No 10.

बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें]