सोनार

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इण्डोनेशिया के सुमात्रा में कार्य करते सोनार

सोना (स्वर्ण) चाँदी तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं से आभूषण आदि बनाने का कार्य करने वाले और सोने-चाँदी, बहुमूल्य रत्नों के व्यापार करने वाले तथा गहना गिरवी रखकर ब्याज पर पैसा देने वाले को सोनार कहते हैं। । 'सोनार' को स्वर्णकार, सर्राफ, सोनी, जौहरी, सुनार और लाला भी कहते हैं। दूसरे देशों में भी सोनार होते हैं जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सुनार (वैकल्पिक सोनार या स्वर्णकार) भारत के स्वर्णकार समाज से सम्बन्धित जाति है जिनका मुख्य व्यवसाय स्वर्ण धातु से भाँति-भाँति के कलात्मक आभूषण बनाना, खेती करना तथा सात प्रकार के शुद्ध व्यापार करना है। यद्यपि यह समाज मुख्य रूप से हिन्दू को मानने वाला है लेकिन इस जाति का एक विशेष कुलपूजा स्थान है। सुनार अपने पूर्वजों के धार्मिक स्थान की कुलपूजा करते है। यह जाति हिन्दूस्तान की मूलनिवासी जाति है। मूलत: ये सभी क्षत्रिय वर्ण में आते हैं इसलिये ये क्षत्रिय सुनार भी कहलाते हैं। आज भी यह समाज इस जाति को क्षत्रिय सुनार कहने में गर्व महसूस करता हैं।

व्यवसाय[संपादित करें]

ये सोने-चाँदी के फैंसी आभूषण के निर्माता एवम् विक्रेता होते हैं। आभूषणों का निर्माण और बिक्री करना इनका पारम्परिक कार्य है। तथा यह दूसरे के पुराने सोने चांदी के जेवर की खरीदारी भी करते हैं और उनका सही मूल्य लगाकर ग्राहकों के जेवर के पैसे दे देते हैं

उपस्थिती[संपादित करें]

सोनार जातियाँ मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और काफी मात्रा में स्वर्णकार पाए जाते हैं यहां पर इन्हें अन्य पिछड़ा अग्रहरी वैश्य के साथ वर्ग समुदाय में रखा गया है। के कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है। जो सामान्य वर्ग ऊंची जाति के वैश्य समुदाय में रखा गया है भारत के अन्य क्षेत्रों में भी सोनार की उपस्थिती देखी जा सकती है।भारत के मध्य भाग मे भी सुनार बहुतायात मे है

प्रमुख व्यक्ति[संपादित करें]