सदस्य:Shivdan deshnoke/प्रयोगपृष्ठ

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चालकनेची[1]

मामडि़या नाम के एक चारण थे। मामड़जी जी निपुतियां थे उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की थी ।

एक बार अपने घर से कही बहार जा रहे थे। उस समय चारण जाति की कन्याए जो सामने से जा रही थी,उन कन्याओ ने मामड़जी को देख रास्ते मे अपूठी खड़ी हो।गई क्योकि सुबह के समय  निपुतियें व्यक्ति का कोई मुह देखना नही चाहता। इस बात का रहस्य मामड़जी को समझ मे आ गया, वह दुखी होकर वापिस घर आ गए। मामड़जी के घर पर आदि शक्ति हिंगलाज का एक छोटा सा मन्दिर था, वहा पुत्र कामना से अनशन धारण कर सात दिन तक बिना आहार मैया की मूर्ति के आगे बेठे रहे।  

आठवे दिन उन्होंने दुखी होकर अपना शरीर त्यागने के लिए हाथ मे कटारी लेकर ज्युहीं मरने लगे उसी समय शिव अर्धांगनी जगत जननी गवराजा (हिंगलाज) प्रसन्न हुई, उन्होंने कहा - तुने सात दिन अनशन व्रत रखा हे, इसलिए मे सात रूपों मे तुम्हारे घर पुत्री रूपों मे अवतार धारण करुगी और आठवे रूप मे, भाई भैरव को प्रगट करुँगी, तुम्हे मरने की कोई आवश्यकता नही हे, इतना कह कर मातेश्वरी अंतरध्यान हो गई।

माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया।

1-आवड, आवड बाई[संपादित करें]

2-गुलो- गेल,(गुलीगुलाब बाई)

3-हुली –होल,हुल(हुलास बाई)

4-रेप्यली-रेपल,रेपली(रूपल बाई )

5-आछो- साँची,साचाई (साँच बाई )

6-चंचिक - राजू,रागली (रंग बाई) और

7-लध्वी- लंगी, खोड़ियार (लघु बाई) सबसे छोटी, आदि नामों से सातों बहनों कर जन्म हुवा।

उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी।जिसमे महामाया आवड़ व सबसे छोटी लघु बाई ,खोड़ियार सर्वकला युक्त शक्तियाँ का अवतार बताया गया है। इस प्रकार आठवे रूप मे भाई का जन्म बताया गया,जिसका, नाम मेहरखा था।

अवतरण के पश्चात् भगवती आवड़ जी ने बहुत सारे चमत्कार दिखायें तथा नगणेची, काले डूंगरराय, भोजासरी, देगराय, तेमड़ेराय व तनोट राय नाम से प्रसिद्ध हुई।

तनोट माता का मंदिर जैसलमेर से करीब 130 कि.मी. दूर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के निकट स्थित है। यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना हैं। यह मंदिर सदा ही आस्था का केंद्र रहा है पर 1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के बाद यह मंदिर देश-विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हो गया। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तों के दर्शन के लिए रखे हुए हैं।

इसी प्रकार 1971 के भारत-पाक युद्ध में माता तनोट की कृपा से शत्रु के सैंकड़ों टैंक व गाडि़यां भारतीय फौजों ने नेस्तानाबूद कर दिये और शत्रु सेना पलायन करने के लिए विवश हो गई। अतः माता श्री तनोट राय जनसमुदाय के साथ ही भारतीय सैनिकों व सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र हैं। देशनोक में करणी माता का प्रसिद्द मन्दिर है। देशनोक मे मातेश्वरी चालक नेची का मन्दिर है

चारणों में यह देवी हिंगळाज के पूर्ण अवतार के रूप में विख्यात है। बाड़मेर जिले की धोरी मन्ना तहसील से छः कोस दूर साहुवा शाखा के चारण चाळक ने अपने नाम से एक ग्राम आबाद किया जो चाळकनूं कहलाता है।

इसी चाळकनूं ग्राम में म्हादा के पुत्र मामड़ के घर महडू शाखा की चारण मोह वृत्ति की कुक्षि से आवड़ देवी का जन्म संवत् 888 वि. की चैत्र सुदी नवमी शनिवार को हुआ था ।

चाळकनूं ग्राम के पास जूंनी जाळ के नाम से विख्यात सात जाळों वाले स्थान पर आवड़ देवी के जन्म की लोक प्रचलित मान्यता है। इसीलिए इस देवी का चाळकनेची चाळकराय नाम विख्यात हुआ। कुछ लोग इनका जन्म ननिहाल माढवा में भी मानते हैं जो पहले महड़ू चारणों का शासन (स्वयं शासन जागीर) था । कुछ लोग इनका जन्म-स्थान झोकरवाड़ा नामक स्थान भी मानते हैं।

चाळकनूं ग्राम में आवड़ देवी का कलात्मक खम्भों वाला खण्डहर मन्दिर आज भी मौजूद है। वहाँ सिंह पर सवार चतुर्भुजी मूर्ति है। एक हाथ में तलवार, एक से आशीर्वाद, एक में चक्र व एक में खप्पर लिए हुए है।

जैसलमेर बाडमेर की तो ये कुलदेवी हैं। ये सात बहिनें थीं। सातों ही शक्ति का अवतार मानी जाती हैं। इसीलिए एक ही शिला पर सातों बहिनों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की हुई मिलती हैं। काष्ठ फलक पर भी सातों बहिनों की आकृतियाँ अंकित मिलती हैं। अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग बहिनों की पूजा होती है। इनकी पूजा हिन्दू-मुसलमान समान रूप से करते हैं।

आवड़ देवी ने सिंध के ऊमर सुमरा के राज्य का नाश किया जिसके बारे में यह मान्यता है कि इनके रूप पर मोहित होकर उसने विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे अस्वीकार कर वहाँ से पलायन कर जैसलमेर के पास गिरळाओं नामक पर्वत पर तेमडा नामक हूंण राक्षस को नष्ट कर वहीं निवास किया और तेमड़ा राय के नाम से प्रसिद्धी पाई। देशनोक करणी माता जी की अराध्य देव आवाड माता है।

  1. "Chalaknechi".