सदस्य:Hemant wikikosh
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प्रेक्ष्य जिज्ञासितान् लोकान्, अविद्यात्रासिताँस्तथा।
काँश्चन तत्र अज्ञान् नितरां, काँश्चन च स्वल्पविद्यकान् ॥१॥
- संसार के लोगों को जिज्ञासा से पूर्ण देखकर, और अविद्या से तंग आया देखकर। कुछ को निरा नादान और कुछ को अल्पज्ञान वाला देखकर...
धनाभावे ज्ञानतृषितान्, सधनानपि साधनाद्विना।
दृष्ट्वा लोकजनान् भ्रान्तान्, विद्यानीरपिपासितान् ॥२॥
- [कुछ को] धन के अभाव में ज्ञान के लिए तरसता देखकर और धनवानों को भी उचित साधन के अभाव में [ज्ञान की तलाश में देखकर]। इस प्रकार इस लोक में लोगों को भ्रान्त (confused) और विद्यारूपी जल का प्यासा जानकर।
सर्वस्य तुष्टिकामेन, शान्तिकामेन तथैव च।
प्रकल्पोऽयं सदारम्यः कृतो वेल्सेन सूरिणा ॥३॥
- सभी की सन्तुष्टि की कामना से और [इस प्रकार अशान्त मन वालों की] शान्ति की कामना से, वेल्स नामक विद्वान् ने इस सदा रमणीय प्रकल्प (विकिपीडिया) की रचना की।
सैङ्गरेण लेरिणा तद्वद् आनीतः लक्ष्यकं प्रति।
नमस्ताभ्याम् उभाभ्यां च सर्वलेखकेभ्यस्तथा ॥४॥
- इसी प्रकार लैरी सेंगर ने इसे लक्ष्य की ओर पहुँचाया। उन दोनों के लिए नमस्कार है, साथ ही सभी लेखकों के लिए भी।
येषां नित्यप्रयासेभ्यः, वर्धते ज्ञानकोशकः।
व्ययतोऽपि वर्धमानोऽयं, भारत्याः कोश एव हि ॥५॥
- जिनके लगातार प्रयासों से यह ज्ञानकोश बढ़ता जाता है। खर्च करते हुए भी यह बढ़ता रहता है, इसलिए निश्चय ही माँ सरस्वती का कोश है।
हृदयपीडाहरः सततम्, अयं विकिपीडियानामकः।
स्वतन्त्रो विश्वकोशस्तु, सर्वज्ञानस्य सिन्धुवत् ॥६॥
- इस हृदयपीड़ाहारी कोश का नाम विकिपीडिया है। यह स्वतन्त्र विश्वकोश है, और सारे ज्ञान के समुद्र के समान है।
पठन्ति वा लिखन्ति वा, जनेषु कीर्तयन्ति वा।
ज्ञानरत्नाकरं येऽप्येतं, तेषां भ्रान्तिर्न जायते ॥७॥
- जो लोग इस ज्ञानरत्नाकर (ज्ञान के समुद्र) को पढ़ते हैं (reading), या इसमें लिखते हैं (editing), अथवा लोगों के बीच इसकी कीर्ति फैलाते हैं (outreaching), उन्हें [कहीं भी] भ्रान्ति (confusion or doubts) का सामना नहीं करना पड़ता।
उपपृष्ठ
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मेरे विषय में
[संपादित करें]नमस्कार, मेरे सदस्य पृष्ठ पर आपका हार्दिक स्वागत है। मेरा नाम हेमन्त है। मैं सामान्यतः हिन्दी व संस्कृत विकिपीडिया पर कार्य किया करता हूँ, परन्तु आवश्यकतानुसार अंग्रेजी विकिपीडिया पर भी कार्य करता हूँ।
मुझे प्रारंभ से ही संस्कृत, संस्कृति व प्राचीन ज्ञान में रुचि रही है। इसके लिए मैंने कुछ मात्रा में तमिल(लिपि, तथा कुछ भाषा), तेलुगु (लिपि व भाषित भाषा), मलयालम (लिपि), कन्नड़ (लिपि) तथा पालि भी सीखीं। अतः इनसे संबंधित समस्या आप मेरे वार्तापृष्ठ पर रख सकते हैं। यदि मैं सुलझा सका तो मुझे प्रसन्नता होगी। यद्यपि कभी-कभी संदेश चेक(check) करने में समय लग सकता है, उसके लिए क्षमा चाहूँगा।
इसके अलावा शब्दों की व्युत्पत्ति में मेरी विशेष रुचि है। विकिपीडिया पर भाषा की गुणवत्ता सुधारने में योग देना मैं अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ। मेरे विचार से हिन्दी विकिपीडिया पर विभिन्न पहलुओं (भाषा व अन्य पहलू) के मानकीकरण की महती जरूरत है।
कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानों पर मेरे द्वारा किये गये प्रामाणिक सुधार
[संपादित करें]मैं नये लेख कम बनाता हूँ। परन्तु विद्यमान लेखों की भाषा व शैली को मानक/प्रामाणिक बनाने में मेरी दिलचस्पी है। यह कार्य प्रथमदृष्ट्या अनुपयोगी लग सकता है। परन्तु यह अत्यन्त आवश्यक है, तथा किसी भी विश्वकोश की रीढ़ है। कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानों पर मेरे द्वारा किये गये प्रामाणिक सुधार इस प्रकार हैं -
शीर्षकों में किये गये सुधार
[संपादित करें]कल्पना कीजिये यदि किसी विश्वकोश में लेख का शीर्षक ही गलत हो। यह उस लेख की प्रासंगिकता का ही हरण कर लेगा। ऐसा लेख पढ़ने वाले को दिग्भ्रमित कर सकता है। हाँ इस भ्रम से पाठक तब बच जायेगा, जब गलत शीर्षक होने के कारण वह लेख उसे मिल ही न सके। सच तो यह है कि वर्तनीगत अशुद्धि वाला शीर्षक पाठक का लेख पर से विश्वास उड़ा देता है।
पूर्व का नाम | बाद का नाम |
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अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिकरण | अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण |
कॉपीराइट | प्रतिलिप्यधिकार |
विष्णु श्रीधर वाकङ्कर | विष्णु श्रीधर वाकणकर |
हरमट्टम | हरमट्टन |
फाँन | फॉन |
सिराँको | सिरोको |
स्वतंत्र राष्ट्र राष्ट्रमंडल | स्वतंत्र देशों का राष्ट्रकुल |
परीक्षित् | परीक्षित |
काशार्पण | कार्षापण |
हनुमान | हनुमान् |
व्युत्पत्ति | व्युत्पत्तिशास्त्र |
हास्य | परिहास |
वैंकटरमन रामाकृष्णन | वेंकटरामन् रामकृष्णन् |
..... | निर्माणाधीन |
सामान्य भाषिक गलतियाँ जो सबसे पहले दूर की जानी चाहिये
[संपादित करें](इस और आगे के प्रभागों को मैं यथासंभव नये व जरूरी शब्दों व जानकारी से अपडेट करता रहूँगा। कृपया इन तथ्यों को मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण न समझें, क्योंकि जिन तथ्यों में मुझे संदेह होता है, उन्हें या तो मैं पुनःप्रमाणित करके लिखता हूँ, या फिर लिखता ही नहीं हूँ। यदि आपको कोई जानकारी गलत लगे, या कोई संदेह हो तो मेरे वार्तापृष्ठ पर प्रश्न उठा सकते हैं।)
शब्दों के सही रूप याद रखने का सबसे अच्छा तरीका है कि उनकी व्युत्पत्ति को समझ लिया जाये, इससे गलती होने की संभावना बहुत घट जाती है।
कृप्या नहीं कृपया - बहुत से जन (प्रायः "मानक" पटों पर भी) 'कृप्या' लिखना पसंद करते हैं, जो कि पूर्णतया गलत है। कृपया शब्द संस्कृत में 'कृपा' शब्द का तृतीया विभक्ति एकवचन का रूप है, और "please" का हिन्दी प्रतिशब्द है।
प्रशंसनीय - यही इसका सही रूप है। 'प्रशंसा' शब्द से संस्कृत के अनीयर् प्रत्यय (योग्य के अर्थ में) के साथ यह शब्द बना है (प्र + शंस् धातु + अनीयर् प्रत्यय)। इस शब्द में अक्सर गलती हो जाया करती है।
"महती जिम्मेदारी" परन्तु "महती दायित्व" नहीं - इसमें आश्चर्य हो सकता है। उर्दू शब्द 'जिम्मेदारी' के साथ तो फिर भी 'महती' विशेषण सही है, परन्तु संस्कृत शब्द 'दायित्व' के साथ कतई नहीं। बात भाषिक मूल की नहीं है, लिंग की है। महती शब्द स्त्रीवाचक है, और स्त्रीवाचक शब्दों का ही विशेषण हो सकता है। फिर भी टीवी. पर भी कुछ संचालक यह महती भूल कर देते हैं। .... और अगर पुरुषवाचक शब्द पर यह विशेषण लगाना ही हो तो? अजी उसके लिए 'महान्' शब्द है न। 'महती' शब्द 'महान्' का ही स्त्रीवाचक है। "महान् दायित्व" सही है।
मंत्रिमंडल न कि मंत्रीमंडल - बात यह नहीं कि मंत्री शब्द गलत है। परन्तु जब समास में मंत्री शब्द के बाद कोई शब्द आता है, तो मंत्रि- रह जाता है। कारण यह है कि संस्कृत में इसका मूलशब्द मंत्रिन् है और इन् पर खत्म होने वाले शब्दों के समास में बाद में कोई शब्द आने पर इ शेष रह जाता है। जैसे योगी सही है, परन्तु योगीराज की जगह योगिराज सही होगा। इसी तरह मंत्रिपरिषद् सही शब्द है।
संयुक्ताक्षर - द्ध, द्व, द्य आदि ये संयुक्ताक्षर हैं। ध्यान दें, ये नये अक्षर नहीं हैं, पुराने अक्षरों के मिलने से बने हैं, और इनमें पहला अक्षर आधा होता है अंतिम अक्षर पूरा। कभी कभी दो से ज्यादा अक्षरों के मिलने से भी संयुक्त अक्षर बन जाते हैं, जैसे गीताप्रेस गोरखपुर की श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों में ऐसे अक्षर देखे जा सकते हैं, उस स्थिति में अंतिम अक्षर को छोड़कर बाकी सब आधे होते हैं। यूनीकोड फॉन्ट्स में ये अक्षर वर्तनी की जरूरत के अनुसार स्वतः जुड़ते जाते हैं, जैसे द ् ध लगातार लिखने पर द्ध बन जाता है। अतः विकिपीडिया पर बाइ-डिफॉल्ट संयुक्ताक्षर ही दिखाई देंगे।
परन्तु यदि आप पढ़ने की स्पष्टता के लिए किसी संयुक्ताक्षर को तोड़कर लिखना चाहते हैं, तो उसके लिए भी सुविधा है (हालाँकि विकिपीडिया पर इसकी जरूरत नहीं के बराबर है)। यूनीकोड इसके लिए नॉन-जॉइनर (यानी जोड़ने से रोकने वाला) कैरैक्टर देता है, जिसका कोड है U+200C. इस कैरैक्टर को यदि हलन्त के बाद लिख दिया जाये तो अक्षर जुड़ेंगे नहीं और स्पष्ट दिखेंगे जैसे उद्धार और उद्धार में अन्तर देखिये। यहाँ पहले वाले शब्द में द् के बाद नॉन-जॉइनर टाइप किया गया है, जो अदृश्य रहकर काम करता है।
सावधानी- विकिपीडिया पर नॉन-जॉइनर का उपयोग न ही करें तो अच्छा है, क्योंकि इससे पाठ की सर्चेबिलिटी घट जाती है। केवल ऐसी जगहों पर जहाँ अक्षरों की ही बात हो रही हो वहाँ इसकी जरूरत पड़ सकती है। इसके अलावा यदि आप किसी कलात्मक पाठ (जैसे बीएमपी चित्र बनाते समय) में सुन्दरता चाहते हैं, तब यह काम आ सकता है।
इस प्रभाग को धैर्यपूर्वक पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
व्युत्पत्ति-संबंधी आवश्यक न्यूनतम नियमों का संग्रह
[संपादित करें]संस्कृत में (और अतः हिन्दी के तत्सम रूप में) सारे शब्द कुछ बहुत थोड़े मूल शब्दों से उत्पन्न हुए हैं। चाहे वे कितने भी लंबे दिखें, नियमों द्वारा टूटकर छोटे, मूल व सरल शब्दों में विभक्त हो जाते हैं। (बहुत थोड़े ही शब्द हैं जिनकी उत्पत्ति वर्तमान में अज्ञात है।)
प्रायः सारे शब्द मूलतः २००० के लगभग क्रियाओं से उत्पन्न हुए हैं, जिन्हें संस्कृत में 'धातु' कहा जाता है। अतः किसी शब्द की मूल धातु जान लेने से उस शब्द से संबंधित अन्य सारे शब्दों पर पकड़ बनायी जा सकती है। जैसे- "भाषा" शब्द को ही लें। यह भाष् धातु से बना है। इससे इन शब्दों को समझना आसान हो जाता है- भाषण (भाष्+ अन प्रत्यय), भाषित (भाष्+क्त प्रत्यय), भाष्य (भाष्+ यत् प्रत्यय), भाषी (भाष्+ इन् प्रत्यय) तथा इन कम प्रचलित शब्दों को भी जरूरत पड़ने पर खेल-खेल में व्युत्पन्न करके प्रयुक्त किया जा सकता है- भाष्+अनीयर् प्रत्यय= भाषणीय (अर्थात् बोलने योग्य), सम्+भाषण= संभाषण, सम्+(भाष्+अक)=संभाषक, आदि आदि। लेकिन...., लेकिन रुकिये, ये नियम हर बार सीधे-सीधे नहीं लगाये जा सकते, कई बार छोटे मोटे अन्य नियम भी पालन करने पड़ते हैं। जैसे- अभी-अभी हमने भाष् शब्द पर अन प्रत्यय लगाकर भाषन नहीं भाषण बनाया, कारण यह है कि संस्कृत में ऋ,र,ष आदि के साथ वाले 'न' का 'ण' हो जाता है। ये सारे नियम भाषा की स्वाभाविकता व उच्चारण की सरलता को संरक्षित करते हैं, क्योंकि वैसे भी ऋ, र और ष के तुरंत बाद 'न' बोलना कठिन है अपेक्षाकृत 'ण' के।
क्त प्रत्यय- नाम पर मत जाइये, संस्कृत में प्रत्ययों के नाम अलग हो सकते हैं काम अलग। क्त प्रत्यय में प्रायः इत या त जुड़ता है। यह क्रिया के साथ जुड़ता है। जैसे- भाष् से भाषित। इस प्रत्यय का अर्थ होता है - "क्रिया किया हुआ" यानी बहुत कुछ अंग्रेजी की third form के समकक्ष है, जैसे - 'done' यानी कृ+ क्त= कृत, 'spoken' यानी भाष्+ क्त= भाषित।
अनीयर् प्रत्यय- इसमें क्रिया के साथ 'अनीय' जुड़ता है। इसका अर्थ है 'के योग्य'। जैसे- भाषणीय = बोलने योग्य (वचन आदि)। यह अंग्रेजी के '-able' या '-worthy' प्रत्यय के समकक्ष है। जैसे- respectable (=आदरणीय; देखिये यहाँ फिर र आने के कारण नीय की जगह णीय हो गया), changeable (परिवर्तनीय), trustworthy (=विश्वसनीय, विश्वासनीय इसलिए नहीं आया क्योंकि मूल धातु श्वस् है श्वास् नहीं, तथा उसपर वि उपसर्ग लगा है।)
ल्युट् (अन) प्रत्यय - यहाँ भी ल्युट् केवल नाम है, जुड़ता 'अन' है। धातु + 'अन' का अर्थ है क्रिया स्वयं, यानी उसका कोई modified उत्पाद नहीं, बल्कि क्रिया को ही address करना है, या क्रिया ही हमारा मन्तव्य है। जैसे- श्वस्+ अन =श्वसन। देखिये यह वही श्वस् धातु है, जिसपर वि जोड़कर हम विश्वास शब्द बनाते हैं। उपसर्ग क्रिया के अर्थ को कहीं से कहीं ले जाता है, और इसी जादू की छड़ी से सीमित संख्या में धातुएँ असंख्य क्रियाओं को उत्पन्न कर देती हैं।
ण्वुल (अक) प्रत्यय - इसमें अक जुड़ता है। यह बहुत काम का प्रत्यय है। यह क्रिया से कर्ता बना देता है। अतः अपने मित्रों और शत्रुओं को जितने विशेषण देने हों, इस प्रत्यय में उनकी खान है :-) । हाँ नियमों के प्रति थोड़ी सावधानी अवश्य रखनी होगी। इस प्रत्यय के उदाहरण हैं - पाल् से पालक (पालने वाला)( अन प्रत्यय से पालन), सं+गण् से संगणक (अन प्रत्यय से संगणन), धार् से धारक (अन प्रत्यय से धारण, न कि धारन, कारण पूर्वोक्त), उद्+घट् से उद्घाटक (अन प्रत्यय से उद्घाटन), इत्यादि।
क्तिन् प्रत्यय - यह बहुत काम का प्रत्यय है, और यदि क्त प्रत्यय (पूर्वोक्त) का ज्ञान हो तो यह बहुत आसान है। इसका व्यावहारिक नियम यह है, कि क्त प्रत्यय लग चुके शब्दों के अन्त में अ की जगह इ की मात्रा लगा देने से क्तिन् प्रत्यय वाला शब्द बन जाता है। अब इसके अर्थ की बात करते हैं। यह "क्रिया द्वारा प्रभावित होने का भाव" है, या यह वे शब्द बनाता है जो क्रियाकृत होने के भाव को दर्शाता है। अरेरे... शब्द तो उलझा रहे हैं। आइये उदाहरण से समझें। जैसे स्थित से स्थिति (स्था धातु + क्तिन्), गत से गति (गम् धातु + क्तिन्)। स्थित का एक अर्थ है जमा हुआ या डटा हुआ अतः स्थिति का अर्थ है- अविचलता, डटे हुए रहने का गुण, जैसे- "इस संसार में केवल कीर्ति की कुछ स्थिति है, शेष सब अस्थायी है।" अब 'गति' को देखें। गत का अर्थ है, गया हुआ या गमन किया हुआ। तथा गति का अर्थ है "गये हुए का गुण"। जैसे- "आलस्य की अंतिम गति है असफलता, उद्यम की अंतिम गति है सफलता।"
ऐसे महत्त्वपूर्ण नियमों का अंदाजा होने पर, तथा अपने लेखन कार्य में ऐसे शब्द आने पर उनका कभी-कभी इस प्रकार विश्लेषण करते रहने से इनका अभ्यास बढ़ाया जा सकता है, तथा इससे शब्द-चयन की क्षमता में भी सुधार होता है। इसके लिए सरल-संस्कृत-शिक्षण संबंधी वेबसाइटों की मदद भी ली जा सकती है।
इस प्रभाग को धैर्यपूर्वक पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।