शहीद स्मारक , रायबरेली

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भारत के उत्तर प्रदेश , राज्य के रायबरेली जिले में सई नदी के तट पर स्थित यह स्मारक अंग्रेजो के विरुद्ध शहादत में शहीद हुए किसानों को एक अमूर्त श्रद्धांजलि है। यह स्मारक इस बात का प्रतीक है की जिला रायबरेली भी जंगे आजादी में अपना नाम दर्ज करा चुका है। यह प्रतीक है उन सभी शहीदों के अदम्य साहस और वीर शौर्य की जिन्होंने अपने रक्त से आजादी के पूर्व ही आजादी की पट कथा लिख दी थी। यह स्मारक उन्हीं अमर शहीदों की शहादत की अमर गाथा को चित्रित करता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि[संपादित करें]

जब अखण्ड भारत अंग्रेजो का गुलाम हुआ करता था, उस दौरान ज़मींदारी प्रथा का बोलबाला था। जमींदार किसानों को जमीन मुहैया कराकर उनसे अंग्रेजो के लिए मनमाने तरीके से मोटी रकम (कर) वसूला करते थे। तत्कालीन ताल्लुकेदार के शोषण तथा अत्याचारों से से तंग आकर 5 जनवरी 1921 के दिन अमोल शर्मा , बाबा जानकीदास , बाबा रामचंद्र , चंद्रपाल सिंह व अन्य नेताओं की अगुवाई में कई किसान मिल कर एक साधारण जनसभा कर रहे थे। इस जनसभा में भाग लेने के लिए आस - पास के गांवों के भी किसान आए थे। जनसभा के उद्देश्यों को विफल करने के लिए तत्कालीन ताल्लुकेदार ने जिलाधिकारी से मिलकर दो नेताओं ( अमोल शर्मा और बाबा जानकीदास ) को गिरफ्तार कर लखनऊ जेल भिजवा दिया। नेताओं के गिरफ्तारी के अगले ही दिन जिले रायबरेली में लोगो के बीच ये अफ़वाह आग की लपट की तरह फ़ैल गई कि लखनऊ जेल प्रशासन ने दोनों नेताओं की जेल में ही हत्या करवा दी है। अपने नेताओं की हत्या की खबर सुनते ही रायबरेली के किसान आगबबूला हो उठे और उनके अंदर आक्रोश की लहर दौड़ पड़ी। इसके विरोध में 7 जनवरी 1921 को रायबरेली के मुंशीगंज में पवित्र सई नदी के तट पर अपने नेताओं के समर्थन में किसानों का विशाल जन समूह एकत्रित होने लगा तथा प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लगा। किसानों के इसी विरोध प्रदर्शन को देखते हुए अग्रेज़ी हुकूमत ने घटना स्थल पर दमनकारी निति अपनाते हुए पुलिस बलों की कई टुकड़ियां तैनात कर दी। इसी बीच पंडित जवाहरलाल नेहरू को इस बात की खबर लगी। दुर्भाग्यवश पंडित जवाहरलाल नेहरू, रायबरेली नहीं पहुंच सके। बाद में कोशिश करते हुए आनन - फानन में पंडित जवाहरलाल नेहरू रायबरेली के रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां उन्हें प्रशासन द्वारा घटना स्थल पर पहुंचने से पूर्व ही रोक दिया गया। शायद अंग्रेज पहले ही गोली चलाने का निर्णय ले चुके थे। इसी कारण वे पंडित जवाहरलाल नेहरू को घटना स्थल पर पहुंचने से पहले ही नजर बंद कर लिए थे। क्योंकि उन्हे डर था,कि अगर कहीं गोली गलती से पंडित जवाहरलाल नेहरू को लग गई तो मामला और गर्म हो जाएगा। किसानों के इस विरोध प्रदर्शन को देखते हुए तथा उसे जल्द से जल्द दबाने के लिए प्रशासन के आदेश पर ही पुलिस बलों ने हजारों निहत्थे किसानों पर गोलियां की अंधाधुन बौछार शुरू कर दी , जिससे वहां पर लाशों का ढेर जमा हो गया और पवित्र सई नदी की जलधारा हजारों निहत्थे किसानों के रक्त से रंजित हो गई। कहते हैं, सई नदी का जल किसानों के खून से लाल रंग में तब्दील हो गया था। इस गोलीकाण्ड में लगभग 800 किसान शहीद हो गए तथा लगभग हजारों से ज्यादा किसान घायल हो गए थे।

विवरण[संपादित करें]

गुलाम भारत की कई दास्तां है, जो इतिहास के पन्नो में दर्ज हैं, जिनका जिक्र होने पर कभी हमारे रगों में खून दौड़ जाता है, तो कभी गर्व से हमारा सीना चौड़ा हो जाता है , कुछ ऐसी ही दास्तां है जिले रायबरेली में हुए मुंशीगंज गोलीकांड की जब किसानों ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था। इस अंदोलन में सैकड़ों किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी और अपना नाम शहीद स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में शामिल कर लिया , जो की हमेशा - हमेशा के लिए अमर हो गए। रायबरेली की पावन धरती जिसमें किसानों के आंदोलन की आजादी की वो खुशबू है,जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला कर रख दी थी। रायबरेली में हुआ यह गोलीकांड गुलाम भारत में 1919 में हुऐ जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद दूसरा सबसे बड़ा हत्याकांड था। जिसे दूसरा जलियाँवाला बाग हत्याकांड की संज्ञा दी जाती है।

पर्यटक स्थल[संपादित करें]

रायबरेली का शहीद स्मारक , यहां के पर्यटन स्थल के सूची में भी शामिल है, जहां बहुत से लोग घूमने के लिए आते है तथा शहीद किसानों को श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं। इसी के पास में भारत माता मन्दिर भी बनाया गया है। हर वर्ष 7 जनवरी को यहां पर शहीद किसानों की याद में श्रृद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमे भाग लेने के लिए जिले के बड़े अधिकारी आते है और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह स्मारक हमें आज भी अमर शहीद किसानों की याद दिलाता हैं, जिन्होंने स्वतन्त्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी और हमेशा - हमेशा के लिए अमर हो गए।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

https://www.amarujala.com/amp/uttar-pradesh/raebareli/independence-day-raibaraily-news-lko590775457 https://www.bhaskar.com/local/uttar-pradesh/lucknow/news/75-independence-day-this-movement-of-farmers-had-changed-the-attitude-of-the-freedom-struggle-instead-of-being-limited-to-talukdars-and-zamindars-congress-had-formed-annadata-workers-partymunshig-128817370.html https://www.bhaskar.com/local/uttar-pradesh/news/nehru-wept-after-seeing-the-massacre-of-munshiganj-even-after-102-years-the-marks-of-bullets-did-not-disappear-130770178.html https://raebareli.nic.in/hi/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9F%E0%A4%A8/ https://www.jansatta.com/crime-news-hindi/raebarali-munshiganj-massacre-which-reminded-of-jallianwala-bagh/2067619/ https://www.abplive.com/states/up-uk/raebareli-news-when-the-british-fired-bullets-at-the-agitating-unarmed-farmers-the-water-of-the-sarai-river-had-turned-red-ann-2190962