"भांग": अवतरणों में अंतर

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इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रुप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। [[टनकपुर]], [[रामनगर]], [[पिथौरागढ़]], [[हल्द्वानी]], [[नैनीताल]], [[अल्मोड़ा जिला|अल्मोडा़]], [[रानीखेत]],[[ बागेश्वर]], [[गंगोलीहाट जिला|गंगोलीहाट]] में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई इत्यादि की पहुँच घर-घर में हो जाने तथा भांग की खेती पर प्रतिबन्ध के कारण इस लोक कला के समाप्त हो जाने का भय है।
इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रुप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। [[टनकपुर]], [[रामनगर]], [[पिथौरागढ़]], [[हल्द्वानी]], [[नैनीताल]], [[अल्मोड़ा जिला|अल्मोडा़]], [[रानीखेत]],[[बागेश्वर]], [[गंगोलीहाट जिला|गंगोलीहाट]] में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई इत्यादि की पहुँच घर-घर में हो जाने तथा भांग की खेती पर प्रतिबन्ध के कारण इस लोक कला के समाप्त हो जाने का भय है।


[[होली]] के अवसर पर मिठाई और ठंडाई के साथ इसका प्रयोग करने की परंपरा है।<ref>{{cite web |url= http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/utrn0046.htm|title=भंगोली शिल्प|accessmonthday=[[१३ मई]]|accessyear=[[२००९]] |format=|publisher=टीडीआईएल|language=}}</ref> भांग का इस्तेमाल लंबे समय से लोग दर्द निवारक के रूप में करते रहे हैं। कई देशों में इसे दवा के रूप में भी उपलब्ध कराया जाता है।<ref>{{cite web |url= http://www.bbc.co.uk/hindi/science/story/2007/10/071024_cannabis_pain.shtml|title='भांग दर्द बढ़ा भी सकती है'|accessmonthday=[[१३ मई]]|accessyear=[[२००९]] |format=|publisher=बीबीसी|language=}}</ref>
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==संदर्भ==
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*[http://www.rajexpress.in/news/19887.aspx भांग के रेशों से बनते हैं कपड़े] (बिजनेस स्टैण्डर्ड)
*[http://www.rajexpress.in/news/19887.aspx भांग के रेशों से बनते हैं कपड़े] (बिजनेस स्टैण्डर्ड)
*[http://www.livehindustan.com/news/1/1/1-1-10217.html भांग का अमेरिका में हो रहा है पेटेंट]
*[http://www.livehindustan.com/news/1/1/1-1-10217.html भांग का अमेरिका में हो रहा है पेटेंट]

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08:42, 7 अगस्त 2010 का अवतरण


भांग का पौधा और उसके विभिन्न भाग

भांग (वानस्पतिक नामः cannabis sativa) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है।[1] भांग की खेती प्राचीन समय में पणि कहे जानेवाले लोगों द्वारा की जाती थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुमाऊँ में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यवसाय को अपने हाथ में ले लिया था तथा काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी। दानपुर, दसोली तथा गंगोली की कुछ जातियाँ भांग के रेशे से कुथले और कम्बल बनाती थीं। भांग के पौधे का घर गढ़वाल में चांदपुर कहा जा सकता है।

भांग की दूकान

इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रुप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। टनकपुर, रामनगर, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोडा़, रानीखेत,बागेश्वर, गंगोलीहाट में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई इत्यादि की पहुँच घर-घर में हो जाने तथा भांग की खेती पर प्रतिबन्ध के कारण इस लोक कला के समाप्त हो जाने का भय है।

होली के अवसर पर मिठाई और ठंडाई के साथ इसका प्रयोग करने की परंपरा है।[2] भांग का इस्तेमाल लंबे समय से लोग दर्द निवारक के रूप में करते रहे हैं। कई देशों में इसे दवा के रूप में भी उपलब्ध कराया जाता है।[3]

चित्र

संदर्भ

  1. "होली में भांग से बनी शर्बत ठंडई". भास्कर. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. "भंगोली शिल्प". टीडीआईएल. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  3. "'भांग दर्द बढ़ा भी सकती है'". बीबीसी. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)

बाहरी कड़ियाँ