"शिबू सोरेन": अवतरणों में अंतर
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सन 2005 में [[झारखण्ड|झारखंड]] [[झारखंड विधान सभा|विधानसभा]] चुनावों के पश्चात वे विवादस्पद तरीक़े से झारखंड के मुख्यमंत्री बने, परंतु बहुमत साबित न कर सकने के कारण कुछ दिनो के पश्चात ही उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। |
सन 2005 में [[झारखण्ड|झारखंड]] [[झारखंड विधान सभा|विधानसभा]] चुनावों के पश्चात वे विवादस्पद तरीक़े से झारखंड के मुख्यमंत्री बने, परंतु बहुमत साबित न कर सकने के कारण कुछ दिनो के पश्चात ही उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। |
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[[झारखंड]] की राजनीति में [[शिबू सोरेन]] का कद किसी से छिपा नहीं है और यही वजह है कि लोगों ने उन्हें '''दिशोम गुरू''' का नाम दिया है।<ref>{{Cite news|url=https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/ranchi/jharkhand-cabinet-meeting-2023-shibu-soren-biography-government-schools-children-will-read-srn|title=शिबू सोरेन की जीवनी पर आधारित पुस्तकें पढ़ेंगे सरकारी स्कूलों के बच्चे, जानें क्या होगा नाम|date=26 जुलाई 2023|work=प्रभात खबर|access-date=20 दिसंबर 2023}}</ref> [[शिबू सोरेन]] का जन्म 11 जनवरी 1944 को हुआ। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत अपने पिता की हत्या के बाद शुरू किया। उन्होंने लकड़ी बेचकर अपने परिवार को पाला और महाजन प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू छेड़ा. 4 फरवरी 1973 को शिबू सोरेन ने दो अन्य साथियों के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। साल 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में कोयला मंत्री बने और साल 2005 में पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बनें। शिबू सोरेन के लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वे झारखंड से 6 बार के सांसद रहे हैं. हालांकि उनका राजनीतिक करियर विवादों में भी रहा। |
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== इन्हें भी देखें == |
== इन्हें भी देखें == |
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शिबू सोरेन | |
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Soren in 2006 | |
पदस्थ | |
कार्यालय ग्रहण 22 June 2020 | |
पूर्वा धिकारी | Prem Chand Gupta |
चुनाव-क्षेत्र | Jharkhand |
पद बहाल 30 December 2009 – 31 May 2010 | |
पूर्वा धिकारी | President's rule |
उत्तरा धिकारी | President's rule |
पद बहाल 27 August 2008 – 18 January 2009 | |
पूर्वा धिकारी | Madhu Koda |
उत्तरा धिकारी | President's rule |
पद बहाल 2 March 2005 – 12 March 2005 | |
पूर्वा धिकारी | Arjun Munda |
उत्तरा धिकारी | Arjun Munda |
पद बहाल 29 January 2006 – 28 November 2006 | |
प्रधानमंत्री | Manmohan Singh |
पूर्वा धिकारी | Manmohan Singh |
उत्तरा धिकारी | Manmohan Singh |
पद बहाल 27 November 2004 – 2 March 2005 | |
प्रधानमंत्री | Manmohan Singh |
पूर्वा धिकारी | Manmohan Singh |
उत्तरा धिकारी | Manmohan Singh |
पद बहाल 23 May 2004 – 24 July 2004 | |
प्रधानमंत्री | Manmohan Singh |
पूर्वा धिकारी | Mamata Banerjee |
उत्तरा धिकारी | Manmohan Singh |
पद बहाल 2002–2019 | |
पूर्वा धिकारी | Babulal Marandi |
उत्तरा धिकारी | Sunil Soren |
चुनाव-क्षेत्र | Dumka |
पद बहाल 1989–1998 | |
पूर्वा धिकारी | Prithvi Chand Kisku |
उत्तरा धिकारी | Babulal Marandi |
चुनाव-क्षेत्र | Dumka |
पद बहाल 1980–1984 | |
पूर्वा धिकारी | Babulal Marandi |
उत्तरा धिकारी | Prithvi Chand Kisku |
चुनाव-क्षेत्र | Dumka |
जन्म | 11 जनवरी 1944 Ramgarh, Bihar, British India (now in Jharkhand, India) |
राजनीतिक दल | JMM |
जीवन संगी | Roopi Soren |
बच्चे | |
निवास | Bokaro |
As of 25 September, 2006 Source: [1] |
शिबू सोरेन (जन्म ११ जनवरी, १९४४) एक भारतीय राजनेता है।[1] वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष है। २००४ में मनमोहन सिंह की सरकार में वे कोयला मंत्री बने लेकिन चिरूडीह कांड जिसमें 11 लोगों की ह्त्या हुई थी के सिलसिले में गिरफ़्तारी का वारंट जारी होने के बाद उन्हें केन्द्रीय मंत्रीमंडल से 24 जुलाई 2004 को इस्तीफ़ा देना पड़ा। वे झारखंड के दुमका लोकसभा सीट से छठी बार सांसद चुने गये हैं।[1]
शिबू का जन्म पुराने बिहार के हजारीबाग जिले में नामरा गाँव में हुआ था।[1] उनकी स्कूली शिक्षा भी यहीं हुई। स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद ही उनका विवाह हो गया और उन्होंने पिता को खेती के काम में मदद करने का निर्णय लिया | पिता शोभराम सोरेन कि हत्या की गयी थी । उनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत 1970 में हुई। उन्होंने 23 जनवरी, 1975 को उन्होंने तथाकथित रूप से जामताड़ा जिले के चिरूडीह गाँव में "बाहरी" लोगों (आदिवासी जिन्हें "दिकू" नाम से बुलाते हैं) को खदेड़ने के लिये एक हिंसक भीड़ का नेतृत्व किया था। इस घटना में 11 लोग मारे गये थे। उन्हें 68 अन्य लोगों के साथ हत्या का अभियुक्त बनाया गया।
शिबू पहली बार 1977 में लोकसभा के लिये चुनाव में खड़े हुये परन्तु पराजित हुए। 1980 में वे लोक सभा चुनाव जीते। इसके बाद क्रमश: 1986, 1989, 1991, 1996 में भी चुनाव जीते।[1] 10 अप्रैल 2002 से 2 जून 2002 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। 2004 में वे दुमका से लोकसभा के लिये चुने गये।
सन 2005 में झारखंड विधानसभा चुनावों के पश्चात वे विवादस्पद तरीक़े से झारखंड के मुख्यमंत्री बने, परंतु बहुमत साबित न कर सकने के कारण कुछ दिनो के पश्चात ही उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
[[श्रेणी:झारखंड मुक्ति मोर्चा के राज