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वंशीधर शुक्ल

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वंशीधर शुक्ल

पद बहाल
19571962
उत्तरा धिकारी बंसीधर मिश्रा
चुनाव-क्षेत्र श्री नगर विधानसभा क्षेत्र

जन्म 23 जनवरी 1904
मन्योरा गाँव, लखीमपुर ज़िला, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु 26 अप्रैल 1980(1980-04-26) (उम्र 76 वर्ष)
राष्ट्रीयता भारतीय
राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
व्यवसाय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक

वंशीधर शुक्ल (Pt. Vanshidhar Shukla) (जन्म: 1904; मृत्यु: 1980) एक प्रसिद्ध हिन्दी और अवधी भाषा के कवि, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे।[1][2]

उनके पिता छेदीलाल शुक्ल भी एक कवि थे। वंशीधर शुक्ल ने महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। वह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी विधानसभा क्षेत्र से 1957 से 1962 तक विधायक रहे।

वंशीधर शुक्ल को अमर राष्ट्रभक्ति गीत “कदम-कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा, ये ज़िंदगी है क़ौम की, तू क़ौम पर लुटाए जा” के सृजनकर्ता के रूप में जाना जाता है।[3] यह गीत आजाद हिंद फौज का रेजिमेंटल क्विक मार्च था, जिसे ब्रिटिश शासन ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत में प्रतिबंधित कर दिया था। स्वतंत्रता के बाद यह गीत भारत में देशभक्ति गीत के रूप में लोकप्रिय हो गया।[4][5]

उनकी प्रमुख कृतियों में ‘उठो सोने वालों सबेरा हुआ है’ और ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ शामिल हैं, जो अवधी भाषा में लिखी गई हैं। उनकी रचनावली ‘हुजूर केरी’ को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा प्रकाशित किया गया था। वंशीधर शुक्ल ने लखीमपुर खीरी के मध्य में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर 'गांधी विद्यालय' की स्थापना की।

जीवन परिचय

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वंशीधर शुक्ल का जन्म 1904 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर ज़िले के मन्यौरा गाँव में हुआ था। उनका जन्म बसंत पंचमी के दिन एक कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता पं. छेदीलाल शुक्ल एक किसान थे और आल्हा गायन के लिए जाने जाते थे। बचपन में वंशीधर शुक्ल अपने पिता के साथ आल्हा गायन में सम्मिलित होते थे, जिससे उन्हें लोकगीतों और कविता में रुचि उत्पन्न हुई।

1919 में उनके पिता का निधन हो गया, जिससे पारिवारिक उत्तरदायित्व उन पर आ गया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की ओर रुझान बढ़ाया। 1925 के आसपास वे गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए, जिनके प्रभाव में उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। इस दौरान वे कई बार जेल भी गए। वंशीधर शुक्ल की कविताएँ सामाजिक और राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित थीं। उन्होंने साहित्य और राजनीति के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए।

कृतित्व

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वंशीधर शुक्ल ने स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित साहित्य की रचना की। 1921 में वे पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए और 1928 में महात्मा गांधी के आह्वान पर कांग्रेस में शामिल हुए।[6]

दमदम कांड के बाद, उन्होंने खूनी पर्चा नामक क्रांतिकारी कविता लिखी, जो उस समय अत्यधिक लोकप्रिय हुई और 1928 में पूरे देश में प्रकाशित हुई। खीरी बम कांड के बाद पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा और क्रांतिकारी साहित्य जब्त कर लिया, जिसके चलते उन्हें छह महीने की जेल हुई। वे स्वदेशी आंदोलन और गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भी सक्रिय रूप से शामिल हुए।

आंदोलन के दौरान अनेक चुनौतियों के बावजूद वे क्रांतिकारियों की सहायता के लिए प्रतिबद्ध रहे। 1940 में उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार जेल गए।[7]

उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में उठो सोने वालों, सवेरा हुआ है, वतन के फकीरों का फेरा हुआ है, उठ जाग मुसाफिर, भोर भयो, कदम कदम बढ़ाए जा और मेरा रंग दे बसंती चोला शामिल हैं।[8] उनकी कविताओं का संकलन "वंशीधर शुक्ल रचनावली" उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया है। उन्होंने लखीमपुर खीरी शहर में महात्मा गांधी के सम्मान में "गांधी विद्यालय" की स्थापना की।[9]

राजनैतिक जीवन

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भारत की स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने 1957 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीता और श्री नगर विधानसभा क्षेत्र (लखीमपुर खीरी) से विधायक बने। उन्होंने 1957 से 1962 तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, उन्होंने विधायक के वेतन भत्ते को स्वीकार न करने का निर्णय लिया।[10][8]

पुरस्कार और सम्मान

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1978 में, वंशीधर शुक्ल को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मलिक मुहम्मद जायसी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसमें ₹5000 की नकद राशि प्रदान की गई।[11]

1977 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित एक समारोह में सम्मानित किया, जिसकी अध्यक्षता कथाकार अमृतलाल नागर ने की थी और जिसमें कई प्रमुख भारतीय लेखक शामिल हुए थे। 1953 में, उन्हें अखिल भारतीय अभिनंदन हिंदी साहित्य परिषद, लखीमपुर खीरी और हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा सम्मानित किया गया था। 1962 से 1969 के बीच, उन्हें लखनऊ की हिंदी साहित्यिक समुदाय और बहराइच की अवध अकादमी से कई सम्मान प्राप्त हुए।[11]

वंशीधर शुक्ल के साहित्यिक कार्यों पर कई विश्वविद्यालयों में शोध किया गया है, और कानपुर विश्वविद्यालय ने उनके कार्यों को हिंदी पाठ्यक्रम में शामिल किया है। उनके सम्मान में लखीमपुर खीरी में एक सड़क का नामकरण किया गया है।[8]

उनके जीवन और कृतित्व पर आधारित एक जीवनी "पंडित वंशीधर शुक्ल: व्यक्ति और रचनाकार" शीर्षक से लिखी गई है, जिसे सीमा पांडेय ने लिखा है और पिलग्रिम्स पब्लिशिंग, वाराणसी द्वारा प्रकाशित किया गया है।[12]

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने उनके सम्मान में एक पुरस्कार स्थापित किया है, जिसे "वंशीधर शुक्ल सर्जना पुरस्कार" के नाम से जाना जाता है। यह पुरस्कार हर वर्ष अवधी भाषा के साहित्य में योगदान देने वाले लेखकों को प्रदान किया जाता है।[13]

सन्दर्भ

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  1. "कविता : मंहगाई (कवि वंशीधर शुक्ल)". Awadhi.org (अवधी भाषा में). मूल से से 12 अगस्त 2014 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 7 अगस्त 2014.
  2. "When he recorded Nirala's voice clandestinely". हिंदुस्तान टाइम्स (अंग्रेज़ी भाषा में). 7 अक्टूबर 2006. 8 अगस्त 2014 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 7 अगस्त 2014.
  3. "दुर्भाग्य है कि हम जनकवि वंशीधर शुक्ल को भुला बैठे". Isahitya. मूल से से 9 अगस्त 2014 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 7 अगस्त 2014.
  4. "Qadam Qadam: the growing popularity". द ट्रिब्यून. 23 जनवरी 2022.
  5. "'Kadam Kadam' from 'Gumnaami': A song that has inspired generations". टाइम्स ऑफ इंडिया. 23 सितंबर 2019.
  6. "कविताओं से क्रांति की मशाल रोशन की बंशीधर शुक्ल ने". अमर उजाला. 13 अगस्त 2016.
  7. "स्वाधीनता आंदोलन में बंशीधर शुक्ल की रचनाओं ने क्रांतिकारियों में भरा जोश". अमर उजाला. 15 अगस्त 2021.
  8. 1 2 3 "स्वाधीनता आंदोलन में बंशीधर शुक्ल की रचनाओं ने क्रांतिकारियों में भरा जोश". अमर उजाला. 15 अगस्त 2021.
  9. "दुर्भाग्य है की हम जनकवि वंशीधर शुक्ल को भुला बैठे". Isahitya. मूल से से 9 अगस्त 2014 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 7 अगस्त 2014.
  10. "ऐसे भी विधायक : बंशीधर शुक्ल की सादगी और फक्कड़पन की दी जाती हैं मिसालें". अमर उजाला. 5 फरवरी 2022.
  11. 1 2 पांडेय, सीमा. पं. वंशीधर शुक्ल: व्यक्ति और रचनाकार। पिलग्रिम्स पब्लिशिंग, वाराणसी, 2021। ISBN 9789350762738। पृष्ठ 2।
  12. पंडित वंशीधर शुक्ल: व्यक्ति और रचनाकार. Pilgrims Book House, Varanasi. 2021. ISBN 9789350762738.
  13. "डॉ. विनय को निराला और रमाकांत को वंशीधर शुक्ल पुरस्कार" (हिंदी भाषा में). दैनिक जागरण. 27 फरवरी 2021.{{cite news}}: CS1 maint: unrecognized language (link)

बाहरी कड़ियाँ

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