लुईस माउंटबेटन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
एडमिरल ऑफ द फ्लीट द राइट ऑनरेबल

लुईस माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन
KG GCB OM GCSI GCIE GCVO DSO PC FRS

लुईस माउंटबेटन


कार्यकाल
15 अगस्त 1947 – 21 जून 1948
शासक जॉर्ज षष्ठम
प्रधान  मंत्री जवाहरलाल नेहरू
पूर्व अधिकारी स्वयं (भारत के वाइसरॉय)
उत्तराधिकारी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

कार्यकाल
21 फ़रवरी 1947 – 15 अगस्त 1947
शासक जॉर्ज षष्ठम
पूर्व अधिकारी आर्चीबाल्ड वावेल, फर्स्ट अर्ल वावेल
उत्तराधिकारी स्वयं (भारत के गवर्नर जनरल),
मुहम्मद अली जिन्ना (पाकिस्तान के गवर्नर जनरल)

जन्म 25 जून 1900
विंड्सर, इंग्लैंड
मृत्यु 27 अगस्त 1979(1979-08-27) (उम्र 79)
काउंटी सिल्गो, आयरलैंड
जीवन संगी एडविना एशले
संतान पेट्रीसिया नैचबुल
लेडी पामेला हिक्स
विद्या अर्जन क्राइस्ट कॉलेज, कैम्ब्रिज
पेशा एडमिरल ऑफ द फ्लीट (रॉयल नेवी)
धर्म ऐंग्लिकन समुदाय

लुइस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस जॉर्ज माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन, बेड़े के एडमिरल, केजी, जीसीबी, ओएम, जीसीएसआई, जीसीआईई, जीसीवीओ, डीएसओ, पीसी, एफआरएस (पूर्व में बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस, 25 जून 1900 - 27 अगस्त 1979), एक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और नौसैनिक अधिकारी व राजकुमार फिलिप, एडिनबर्ग के ड्यूक (एलिजाबेथ II के पति) के मामा था। वह भारत के आखिरी वायसरॉय (1947) था और स्वतंत्र भारतीय संघ के पहले गवर्नर-जनरल (1947-48) था, जहां से 1950 में आधुनिक भारत का गणतंत्र उभरेगा। 1954 से 1959 तक वह पहले सी लॉर्ड था, यह पद उनके पिता बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस ने लगभग चालीस साल पहले संभाला था। 1979 में उनकी हत्या प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) ने कर दी, जिसने आयरलैंड रिपब्लिक की स्लीगो काउंटी में मुल्लाग्मोर में उनकी मछली मरने की नाव, शैडो V में बम लगा दिया था।[1] वह बीसवीं सदी के मध्य से अंत तक ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के समय के सबसे प्रभावशाली और विवादित शख्सियतों में से एक था। लार्ड माउंटबॅटन भारत के आखिरी वायसराय था।

वंशानुक्रम[संपादित करें]

लॉर्ड माउंटबेटन का जन्म हिज सीरीन हाइनेस बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस के रूप में हुआ, हालांकि उनके जर्मन शैलियां और खिताब 1917 में खत्म कर दिए गए थे। वह बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस और उनकी पत्नी हीसे व राईन की राजकुमारी विक्टोरिया के दूसरे पुत्र और सबसे छोटी संतान थे। उनके नाना नानी लुडविग चतुर्थ, हीसे व राईन के ग्रांड ड्यूक और ब्रिटेन की राजकुमारी ऐलिस थे, जो महारानी विक्टोरिया और प्रिंस कंसोर्ट अल्बर्ट की बेटी थी। उनके दादा दादी हीसे के राजकुमार अलेक्जेंडर और बैटनबर्ग की राजकुमारी जूलिया थे। उसके दादा दादी की शादी असमान थी, क्योंकि उनकी दादी शाही वंश की नहीं थी, परिणामस्वरुप, उन्हें और उनके पिता को सीरीन हाइनेस की उपाधि दी गयी न की ग्रांड ड्युकल हाइनेस, वे हीसे के राजकुमार कहलाने के अयोग्य थे और उन्हें कम वांछनीय बैटनबर्ग उपाधि दी गयी। उसके भाई-बहन ग्रीस और डेनमार्क की राजकुमारी एलिस (राजकुमार फिलिप, एडिनबर्ग के ड्यूक), स्वीडन की रानी लुईस और मिल्फोर्ड हैवेन के मार्क्वेश जॉर्ज माउंटबेटन थे।[2]

उनके पिता का पैंतालीस साल का कैरियर 1912 में अपने शिखर पर पहुंच गया जब उन्हें पहली बार नौवाहनविभाग में फर्स्ट सी लॉर्ड नियुक्त किया गया। हालांकि, दो साल बाद 1914 में, विश्व युद्ध के पहले कुछ महीनों के दौरान यूरोप भर में बढती जर्मन विरोधी भावनाओं और कई हारी हुई समुद्र लड़ाइयों के कारण, राजकुमार लुईस को लगा कि इस पद से हट जाना उनका कर्तव्य था।[3] 1917 में, जब शाही परिवार ने जर्मन नाम और खिताब का उपयोग बंद कर दिया तो बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस, लुइस माउंटबेटन बन गए और उन्हें मिल्फोर्ड हैवेन का मार्क्वेश बनाया गया। उसके दूसरे बेटे को लॉर्ड लुईस माउंटबेटन की शिष्टाचारस्वरुप उपाधि मिली और वह अनौपचारिक रूप से उनकी मौत तक लॉर्ड लुईस कहा जाता रहा, भले ही बाद में उन्हें सुदूर पूर्व में युद्घकालीन सेवा के लिए वाइसकाउंट बनाया गया और फिर भारत के एक ब्रिटिश शासित देश से एक संप्रभु राज्य बनने में उनकी भूमिका के लिए अर्ल की उपाधि दी गयी। .

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

जीवन के पहले दस वर्षों के लिए माउंटबेटन की पढाई घर पर ही हुई. उसके बाद उन्हें हर्टफोर्डशायर के लाकर्स पार्क स्कूल भेजा गया और अंततः अपने बड़े भाई का अनुसरण करते हुए वह वह नौसेना कैडेट स्कूल गए। बचपन में उन्होंने रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के दरबार का दौरा किया और रूसी शाही परिवार के अंतरंग बन गए। राजपरिवार की हत्या के बाद बाद में उन्हें बची हुई ग्रांड डचेस अनास्तासिया होने का दावा करने वालो को गलत साबित करने के लिए बुलाया जाता रहा. युवावस्था में उनमे अनास्तासिया की बहन ग्रांड डचेस मारिया के प्रति रोमांटिक भावनाए थी और जीवन के अपने अंत तक वह बिस्तर के पास उसकी तस्वीर रखते रहे. कहा जाता है कि अपने भांजे के नाम बदलने और भविष्य की रानी के साथ सगाई के बाद उन्होंने यूनाइटेड किंगडम के वंश को भविष्य का 'माउंटबेटन घराना' कह दिया था, जबकि राजमाता रानी मेरी ने 'बैटनबर्ग बकवास' के साथ कुछ भी करने से इनकार कर दिया. एक आदेश के बाद शाही घराने का नाम विंडसर बना जो अभी भी कायम है। वैसे यह नाम सम्राट की इच्छा पर बदला जा सकता है। राजकुमार फिलिप और एलिजाबेथ II की शादी के बाद यह फैसला सुनाया गया था कि उनके गैर-शाही अविवाहित वंशज "विंडसर-माउंटबेटन' उपनाम धारण करेंगे. सम्राट के अंतिम संस्कार के एक सप्ताह बाद ही नई रानी के चाचा डिकी (लॉर्ड माउंटबेटन) ने ब्रोडलैंड्स में मेहमानों के सामने घोषणा की कि "माउंटबेटन का घराना अब राज कर रहा hai![4]

करियर[संपादित करें]

प्रारंभिक कैरियर[संपादित करें]

लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले विश्व युद्ध के समय शाही नौसेना में एक मिडशिपमैन के रूप में सेवा दी. सेवा के बाद वह दो सत्रों के लिए कैम्ब्रिज के क्राईस्ट्स कॉलेज में रहे जहाँ उन्होंने पूर्व सैनिकों के लिए विशेष रूप से डिजाइन एक कार्यक्रम में इंजीनियरिंग की पढाई की. कैम्ब्रिज में अपने समय के दौरान, माउंटबेटन को क्राईस्ट्स कॉलेज के एक सदस्य के रूप में एक व्यस्त सामाजिक जीवन और पढाई को संतुलित करना पड़ता था। 1922 में माउंटबेटन भारत के एक शाही दौरे पर प्रिंस ऑफ़ वेल्स एडवर्ड के साथ आये. इसी यात्रा के दौरान वह अपनी होने वाली पत्नी एडविना से मिले और उन्हें शादी का प्रस्ताव दिया. उन्होंने 18 जुलाई 1922 को शादी की. यात्रा के दौरान एडवर्ड और माउंटबेटन में करीबी दोस्ती हो गई पर पद त्याग के संकट के समय यह रिश्ता बिगड़ गया। यह माउंटबेटन की वफादारी की परीक्षा थी जहां एक ओर व्यापक शाही परिवार और सिंहासन थे और दूसरी ओर तत्कालीन राजा. माउंटबेटन मजबूती से उसके भाई प्रिंस अल्बर्ट, ड्यूक ऑफ यॉर्क के पक्ष में आए जिसे अपने भाई की जगह जॉर्ज छठे के रूप में गद्दी संभालनी थी। .

उपकरणों और प्रौद्योगिकीय के विकास में अपनी रुचि का अनुसरण करते हुए माउंटबेटन 1924 में पोर्ट्समाउथ सिग्नल स्कूल में शामिल हो गए और फिर सैन्य सेवा में लौटने से पहले कुछ दिनों के लिए ग्रीनविच में इलेक्ट्रॉनिक्स का अध्ययन किया। माउंटबेटन इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स संस्थान (आईईई), जो अब इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी संस्थान (आईईटी) है के सदस्य थे, जो हर साल इलेक्ट्रॉनिक्स या सूचना प्रौद्योगिकी और उनके प्रयोग में उत्कृष्ट योगदान या लंबे योगदान के लिए माउंटबेटन पदक का वार्षिक पुरस्कार देती है।[5]

सन 1926 में, माउंटबेटन को एडमिरल सर रोजर कीज के कमान वाले भूमध्य बेड़े के सहायक फ्लीट वायरलेस और सिग्नल अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया। लॉर्ड माउंटबेटन 1929 में वरिष्ठ वायरलेस प्रशिक्षक के रूप में सिग्नल स्कूल को लौटे. 1931 में, उन्हें फिर सैन्य सेवा के लिए बुलाया गया जब उन्हें भूमध्य बेड़े का फ्लीट वायरलेस अधिकारी नियुक्त किया गया। यही वह समय था जब उन्होंने माल्टा में एक सिग्नल स्कूल की स्थापना की और बेड़े के सभी रेडियो ऑपरेटरों के साथ परिचित हुए.

सन् 1934 में माउंटबेटन अपने पहले कमान पर नियुक्त किया गया। उनका जहाज एक नया विध्वंसक था जिसे एक पुराने जहाज के बदले सिंगापुर जाना था। वह उस पुराने जहाज को सफलतापूर्वक माल्टा में बंदरगाह में वापस लाये. 1936 तक माउंटबेटन को व्हाइटहॉल में नौसेना विभाग की एयर बेड़े की शाखा के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।[6]

पेटेंट (एकस्वाधिकार)[संपादित करें]

1930 के दशक में माउंटबेटन को उनका दूसरा पेटेंट (यूके संख्या 508956) जारी किया गया जो एक युद्धपोत को दूसरे जहाज के सापेक्ष एक स्थिर स्थिति में बनाये रखने की प्रणाली के लिए था।[7]

द्वितीय विश्व युद्ध[संपादित करें]

जब 1939 में जंग छिड़ी, तो माउंटबेटन को सक्रिय रूप से सेना में भेजते हुए उन्हें पांचवीं डिस्ट्रोयर फ्लोटिला के कमांडर के तौर पर एचएमएस केली में मौजूद उनके पोत/जहाज़ पर तैनात कर दिया गया, जो अनेक साहसिक कारनामों के लिए प्रसिद्ध था।[6] मई 1940 के शुरुआती दिनों में, एक ब्रिटिश दल की अगुवाई करते हुए माउंटबेटन ने नम्सोस अभियान में लड़ रही मित्र देशों की सेनाओं को धुंध में से भी निकल लिया था। 1940 में ही उन्होंने सेना के काम आने वाले एक छलावरण का अविष्कार किया था, जिसका नाम था ‘माउंटबेटन पिंक नेवल केमोफ्लाज पिगमेंट’. 1941 में क्रीट की लड़ाई के दौरान उनकी जहाज़ डूब गई।

अगस्त 1941 में, माउंटबेटन को नोरफ्लोक, वर्जीनिया में स्थित एचएमएस इल्सट्रियस का कप्तान नियुक्त कर दिया गया, जिसका मकसद जनवरी के दौरान भूमध्य सागर में माल्टा पर हुए हमले के नुकसान की मरम्मत करना था। इस दौरान उनके पास अपेक्षाकृत ज्यादा खाली समय था, तो उन्होंने पर्ल हार्बर का अचानक ही मुआयना किया। यहां वो तत्परता की कमी, अमेरिकी थलसेना तथा अमेरिकी फ़ौज में सहयोग की कमी और एक साझा मुख्यालय न होने से नाराज़ थे।

माउंटबेटन विंस्टन चर्चिल के चहेते थे (भले ही 1948 के बाद चर्चिल ने कभी भी माउंटबेटन से बात नहीं की, क्योंकि वे भारत और पाकिस्तान की आज़ादी में उनकी भूमिका से काफ़ी नाराज़ थे) और 27 अक्टूबर 1941 को रॉजर केयेस के स्थान पर माउंटबेटन को साझी कार्रवाई का प्रमुख बना दिया गया। इस भूमिका में उनके मुख्य काम थे इंग्लिश चैनल में कमांडो हमले की योजना बनाना और विरोधी देशों में कार्रवाई के सहयोग के लिए नई तकनीक का अविष्कार करना.[6] 1942 के मध्य में सेंट नज़ैरे में हुए हमले की योजना बनाने और इसे कार्यान्वित करने में माउंटबेटन की बहुत बड़ी भूमिका थी: एक हमला जिसके कारण नाज़ी कब्ज़े वाली फ़्रांस में सबसे ज़्यादा अच्छी तरह बचाई गयी एक नाव का युद्ध के अंत तक उपयोग नहीं हुआ, जिसका अटलांटिक की लड़ाई में मित्र देशों की सफलता में बहुत बड़ा योगदान था। 19 अगस्त 1942 को उन्होंने निजी तौर पर डिएपे का विनाशाकरी हमला करवाया (जिस पर मित्र देशों की सेना, खास तौर पर फ़ील्ड मार्शल मोंटगोमरी ने बाद में दावा किया कि यह हमला शुरू से ही एक गलत विचार था। हालांकि, 1942 के शुरू में, अमेरिका में एक बैठक के दौरान यह फ़ैसला किया गया था की डिएपे की बंदरगाह पर हमले से पहले बमबारी नहीं की जाएगी, क्योंकि इससे गलियों में अवरोध हो जाएगा, मोंटगोमरी, जिनकी अगुवाई में बैठक चल रही थी, उन्होंने कुछ नहीं कहा.[उद्धरण चाहिए] सबने डिएपे पर हुए हमले को एक त्रासदी माना, जिसमें हजारों लोग मरे गए थे (जिनमें ज़ख़्मी और/या ले जाये गए कैदी भी शामिल हैं) और इनमें ज़्यादा तादाद कनाडा के लोगों की थी। इतिहासकार ब्रायन लोरिंग विला ने इसका यह निष्कर्ष निकाला कि माउंटबेटन ने बिना किसी अधिकार के यह हमला किया था, परन्तु कई वरिष्ठ लोगों को उनके इस इरादे की जानकारी थी लेकिन उन्होंने माउंटबेटन को रोकने की कोई कोशिश नहीं की.[8] माउंटबेटन और उनके सहयोगियों की तीन प्रमुख तकनीकी उपलब्धियां हैं: 1) इंग्लैंड के तट से नोर्मंडी तक पानी के नीचे से तेल की पाईप-लाइन का निर्माण करना, 2) बारूद के बक्सों और डूबे हुए जहाजों से एक कृत्रिम बंदरगाह बनाना और 3) धरती और पानी, दोनों जगह चलने वाले टैंक (ज़मीन पर आ सकने वाले पोत) का निर्माण.[6] माउंटबेटन ने एक और परियोजना, हाबाकुक परियोजना का प्रस्ताव चर्चिल को दिया था। यह था वायुयान को ले जाने वाला 600 मीटर का एक बड़ा और अभेद्य वाहक, जो भूसी और बर्फ़ से मिश्रित "पाय्क्रेट" से बनता था। बेहद खर्चीली होने के कारण हाबाकुक परियोजना कभी भी अमल में नहीं आ पाई.[6]

लॉर्ड लुइस माउंटबेटन, सुप्रीम एलाइड कमांडर, फरवरी 1944 में उनके अराकान मोर्चे के दौरे के दौरान देखे गए।

माउंटबेटन दावा था कि जो सबक डिएपे की विनाशक कार्रवाई से सीखे गए थे वो आने वाले दो साल बाद डी-डे पर नॉर्मेंडी आक्रमण के लिए आवश्यक थे। हालांकि, पूर्व रॉयल मरीन जूलियन थॉम्पसन जैसे इतिहासकारों ने लिखा है कि सबक सिखाने कि लिए डिएपे की विनाशनक कार्रवाई की जरूरत नहीं थी।[9] फिर भी, डिएपे की कार्रवाई की असफलताओं से सीख लेते हुए अंग्रेजों ने कई नए तरीके आजमाए - जिनमें सबसे उल्लेखनीय हैं होबार्ट फन्नीज़ - नवाचार, जिसकी वजह से नॉर्मेंडी उतरने के दौरान निसंदेह राष्ट्रमंडल देशों के सिपाहियों ने तीन बीच (गोल्ड बीच, जूनो बीच और स्वॉर्ड बीच) पर कई जानें बचाईं.[उद्धरण चाहिए][मूल शोध?]

डिएपे की कार्रवाई की वजह से माउंटबेटन कनाडा में विवादास्पद व्यक्ति एक बन गए, उनके बाद के करियर में रॉयल कनाडियन लीजियन ने उनसे दूरी बनाए रखी और कनाडा के अनुभवी सिपाहियों से भी उनके रिश्ते "ठंडे ही रहे".[10][11] फिर भी, 1946 में उनके नाम पर एक शाही कनाडाई समुद्र कैडेट कोर (RCSCC #134 एडमिरल माउंटबेटन सडबरी, ऑन्टारियो) बनाया गया।

अक्टूबर 1943 में, चर्चिल ने माउंटबेटन को दक्षिण पूर्वी एशिया कमान का प्रधान संबद्ध कमांडर नियुक्त किया। उनके कम व्यवहारिक विचारों को लेफ़्टिनेंट कर्नल जेम्स एलासन के नेतृत्व में योजना बनाने वाले अनुभवी कर्मचारियों ने दरकिनार कर दिया, हालांकि उनमें से कुछ प्रस्ताव को, जैसे कि रंगून के निकट जल और थल से हमला करना, चर्चिल के अंत के पहले, उनके समान ही पाया गया।[12] वे, 1946 में दक्षिण पूर्वी एशिया कमान (SEAC) के भंग होने तक उस पद पर बने रहे.

उत्तर पूर्वी एशिया थियेटर के प्रधान संबद्ध कमांडर होने के दौरान, उनके आदेश के विरुद्ध जनरल विलियम स्लिम द्वारा बर्मा पर फिर से अधिकार कर लिया। जनरल “विनेगर जो” स्टिलवेल – उनके प्रतिनिधि और साथ ही अमेरिकी चीन बर्मा भारत थियेटर के कमांडिंग अधिकारी – और जनरेलिसिमो चिआंग काई-शेक, चीनी राष्ट्रवादी बल के नेता, के साथ उनका कूटनीतिक रवैया वैसा ही था जैसा जनरल मॉन्टगमरी और विंस्टन चर्चिल का जनरल इसेनहोवर के साथ था।[उद्धरण चाहिए] एक व्यक्तिगत उच्च बिंदू वह था जब जापानियों ने सिंगापुर में आत्मसमर्पण किया, जब ब्रिटिश फ़ौज 12 सितंबर 1945 को जनरल इतागाकी सीशीरो के नेतृत्व वाले क्षेत्रों में जापानी बलों द्वारा औपचारिक आत्मसमर्पण के लिए द्वीप पर वापस पहुंची, जिसका कोड नाम ऑपरेशन टिडरेस था।

अंतिम वायसराय[संपादित करें]

क्लीमेंट एटली को इस भूखंड में मिले अनुभव और उनके लेबर समर्थन की समझ के चलते लड़ाई के बाद उन्हें भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। सन १९४८ तक उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र हो रहे भारत के निरीक्षक पद का कार्यभार सौंपा गया। माउंटबेटन के निर्देशों ने इस पर जोर दिया की सत्ता हस्तांतरण में भारत संगठित रहे, लेकिन यह भी निर्देश दिया कि तेज़ी से परिवर्तित हो रही स्थिति पर अनुकूल रवैया रखें ताकि ब्रिटेन की वापसी में उसके यश को क्षति न पहुंचे।[13] जब स्वतंत्रता का मसौदा और प्रारूप तैयार हुआ तो दोनों पक्षों, हिन्दू और मुसलमानों, के बीच इन्ही प्राथमिकताओं के चलते ही मूल प्रभाव दिखा.

माउंटबेटन कांग्रेसी नेता नेहरु के निकटवर्ती थे, उन्हें उनकी भारत के लिए उदारपंथी सोच पसंद थी। वह मुस्लिम नेता जिन्ना के प्रति अलग विचार रखते थे लेकिन वह जिन्ना की ताकत भलीभांति पहचानते थे। उनके शब्दों में "अगर कहा जा सकता हो की १९४७ में एक व्यक्ति के हाथों में भारत का भविष्य था तो वह आदमी मोहम्मद अली जिन्ना था।[14] मुसलमानों के संगठित भारत में प्रतिनिधित्व के लिए जिन्ना के विवादों से नेहरु और ब्रिटिश थक चुके थे, उन्होंने सोचा की बेहतर होगा अगर मुसलमानों को अलग राष्ट्र दिया जाए बजाय इसके की किसी तरह का समाधान ढूंडा जाये जिसपर जिन्ना और कांग्रेसी दोनों राज़ी हों.[15]

यह देखते हुए कि ब्रिटिश सरकार तुरंत आजादी देने के लिए आग्रही है,[16] माउंटबेटन ने निष्कर्ष निकाला कि स्वतन्त्र भारत एक अप्राप्य लक्ष्य है और उन्होंने स्वतन्त्र भारत और पाकिस्तान के विभाजन की योजना मान ली.[6] माउंटबेटन ने मांग की कि एक तय दिन पर ब्रिटिश द्वारा भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण होना चाहिए, मसलन एक समयसीमा से भारतीयों को विश्वास दिलाया जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार निष्कपटता से इस जल्द मिलने वाली और कुशल स्वतंत्रता की ओर प्रयासरत है और किसी कारणवश ये प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए.[17] उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि इस अनसुलझी स्थिति से निबटने के लिए वह १९४७ से आगे का इंतज़ार नहीं करेंगे. इसके विनाशकारी परिणाम भारतीय उपमहाद्वीप पर रहने वाले लोगों पर होने वाले थे। जल्दबाजी में हस्तांतरण की प्रक्रिया एक विध्वंस को सामने लाकर खड़ी करेगी जिसमे ऐसे उत्पात का व्यभिचार और प्रतिशोध उत्पन्न होगा जो भारतीय उपमहाद्वीप ने कभी न देखा हो.

भारतीय नेताओ में गांधी ने बलपूर्वक एक एकजुट भारत के सपने का समर्थन किया और कुछ समय तक लोगों को इस उद्देश्य के लिए एकत्र किया। लेकिन जब माउंटबेटन की सीमा ने जल्द स्वतंत्रता प्राप्त करने की सम्भावना पर मुहर लगायी तब लोगों के मत बदल गए। माउंटबेटन के निश्चय की दृढ़ता देखते हुए, मुस्लिम लीग से किसी भी तरह के समझौते में नेहरु और पटेल की असफलता और जिन्ना की जिद्द के चलते सभी नेताओ (गांधी को छोड़कर) ने जिन्ना के विभाजन के प्लान को मान लिया, जिसने माउंटबेटन के नियुक्त काम को आसान बना दिया.[18] इससे एक ऐसे प्रतिकूलता का असर पहुंचा की जिन्ना का सौदेकारी दर्ज़ा ऊंचा हो गया जो अंत में अपने आप में उसको मिली ज्यादा रियायतों का कारण बना.

माउंटबेटन ने उन भारतीय राजकुमारों के साथ मजबूत रिश्ता भी बनाया, जो भारत के उन हिस्सों पर राज कर रहे थे जो सीधे ब्रिटिश शासन के अंतर्गत नहीं आते थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी पुस्तक ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में कहते हैं कि माउंटबेटन का हस्तक्षेप उन राजकुमारों के एक बड़े बहुमत को भारतीय संघ में शामिल होने का विकल्प अपनाने के लाभ दिखाने में निर्णायक रहा. इसलिए विभिन्न रजवाडों की एकता को उनके योगदान के सकारात्मक पहलू के रूप में देखा जा सकता है।

जब भारत और पाकिस्तान ने 14 से 15 अगस्त 1947 की रात स्वतंत्रता प्राप्त की, तो माउंटबेटन जून 1948 तक भारत के पहले गवर्नर जनरल के रूप में कार्य करते हुए दस महीने तक नई दिल्ली में रहे.

भारत की स्वतंत्रता में अपनी स्वयं की भूमिका के आत्म-प्रचार—विशेषकर अपने दामाद लॉर्ड ब्रेबोर्न और डोमिनिक लापियर व लैरी कॉलिंस की अपेक्षाकृत सनसनीखेज पुस्तक फ्रीडम एट मिडनाइट में (जिसके मुख्य सूचनाकार वे स्वयं थे)—के बावजूद उनका रिकार्ड बहुत मिश्रित समझा जाता है। एक मुख्य मत यह है कि उन्होंने आजादी की प्रक्रिया में अनुचित और अविवेकपूर्ण जल्दबाजी कराई और ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें यह अनुमान हो गया था कि इसमें व्यापक अव्यवस्था और जनहानि होगी और वे नहीं चाहते थे कि यह सब अंग्रेजों के सामने हो और इस प्रकार वे वास्तव में उसके, विशेषकर पंजाब और बंगाल में घटित होने का कारण बन गए।[19] इन आलोचकों का दावा है कि आजादी की दौड़ में और उसके बाद घटनाएं जिस रूप में उत्तरोत्तर बढ़ीं, उसकी जिम्मेदारी से माउंटबेटन बच नहीं सकते.

1950 के दशक में भारत सरकारों के सलाहकार रहे कनाडियन-अमेरिकी हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री जॉन केनेथ गालब्रेथ, जो नेहरू के आत्मीय बन गए थे और जिन्होंने 1961-63 में अमेरिकी राजदूत के रूप में कार्य किया, इस संबंध में माउंटबेटन के विशेष रूप से कड़े आलोचक थे। पंजाब-विभाजन की भयंकर दुर्घटनाओं का सनसनीखेज विवरण कॉलिंस और लापियर की पुस्तक फ्रीडम एट मिडनाइट, जिसके माउंटबेटन स्वयं मुख्य सूचनाकर थे और उसके बाद बापसी सिधवा के उपन्यास आइस कैंडी मैन (संयुक्त राज्य में क्रैकिंग इंडिया के रूप में प्रकाशित), जिस पर अर्थ फिल्म बनी, में दिया गया है। 1986 में आईटीवी ने अंतिम वायसराय के रूप में माउंटबेटन के दिनों का अनेक भागों में नाट्य रूपांतर प्रसारित कियाLord Mountbatten: The Last Viceroy .

भारत और पाकिस्तान के बाद करियर[संपादित करें]

भारत के बाद, माउंटबेटन ने 1948–1950 तक भूमध्य बेड़े में एक क्रूजर स्क्वाड्रन के कमांडर के रूप में कार्य किया। उसके बाद वे नौवाहन विभाग में 1950-52 चौथे समुद्र रक्षक के रूप में कार्य करने गए और फिर तीन सालों तक भूमध्य सागर के बेड़े में कमांडर-इन-चीफ के रूप में कार्य करने के लिए भूमध्य सागर लौटे. माउंटबेटन ने 1955-59 तक नौवाहन विभाग में पहले समुद्र रक्षक के रूप में अपनी अंतिम पोस्टिंग में सेवा दी, उसी पोजीशन पर जहां करीब चालीस साल पहले उनके पिता नियुक्त थे। शाही नौसेना के इतिहास में यह पहलीबार था कि बाप और बेटे ने समान रैंक हासिल की थी।[20]

माउंबेटन की आत्मकथा में फिलिप जिएगलर ने अपने महत्वाकांछी चरित्र पर टिप्पणी की है:

"उनका घमंड बच्चों की तरह लेकिन शरारती और महत्वाकांक्षा बेलगाम थी। उनके हाथों से सत्य का स्वरूप बड़ी आसानी से इस तरह बदल जाता था जैसा न वह पहले था और न ही हो सकेगा. अपनी उपलब्धियों को और उन्नत बनाने के लिए अपनी स्वाभाविक उदासीनता के साथ उन्होंने इतिहास को पुन: लिखने की अनुमति मांगी. एक वक्त था जब मैं काफी गुस्से में था और मुझे महसूस हुआ कि उसकी प्रवृत्ति मुझे धोखा देने की है, तब मुझे लगा कि अपनी डेस्क पर यह संदेश लिखना जरूरी है, जिसमें कहा गया है: “सबकुछ होने के बावजूद वह एक महान व्यक्ति था।"[21]

पहले समुद्री रक्षक के रूप में काम करते हुए उसकी प्राथमिकता यह देखना थी कि अगर ब्रिटेन पर परमाणु हमला हो तो उससे निपटने के लिए उसकी शाही नौसेना के पास रणनीति होगी तथा उन्हें अपना नौवाहन रास्ता खुला रखना चाहिए या नहीं. आज यह समस्या भले ही अधिक महत्वपूर्ण न हो लेकिन उस समय कुछ लोग परमाणु हथियारों के जरिए तबाही मचाने में लगे हुए थे और इसके भयंकर परिणाम सामने आए थे। नौसैना अधिकारी परमाणु विस्फोटों में इस्तेमाल होने वाले भौतिक विज्ञान से अनभिज्ञ थे। इससे स्पष्ट था कि माउंटबेटन इस बात से पूरी तरह आश्ववस्त था कि बिकनी एटोल परीक्षण की विखंडन प्रतिक्रियाओं का प्रभाव न तो समुद्र पर पड़ेगा और न ही इस ग्रह पर विस्फोट होगा.[22] जैसे ही माउंटबेटन इस नए प्रकार के हथियार का जानकार हो गया, उसने युद्ध में इसके इस्तेएमाल का विरोध करना शुरू किया, दूसरी तरफ उसे समुद्री क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा की ताकत का एहसास हो चुका था, खासकर पनडुब्बियों के संबंध में. माउंटबेटन ने अपने आलेख में स्पष्ट रूप से युद्ध में परमाणु हथियारों के संबंध में अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं "परमाणु हथियारों की दौड़ में एक सैन्य अधिकारी का सर्वेक्षण" जो इनकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा में शीत ऋतु में 1979–80 में प्रकाशित हुआ था।[23] नौसेना छोड़ने के बाद, लॉर्ड माउंटबेटन ने रक्षा प्रमुख का पद ग्रहण किया। इस पद पर रहने के छह वर्षों के दौरान उन्होंने तीनों रक्षा विभागों को संगठित करके एक मंत्रालय विभाग बनाया.

माउंटबेटन 1969 से 1974 तक आइल ऑफ वाइट के गर्वनर मनोनीत रहे फिर 1974 में आइल ऑफ वाइट के पहले लॉर्ड लेफ्टिनेंट बने. अपनी मृत्यु तक वो इसी पद पर रहे.

1967 से 1978 तक माउंटबेटन संयुक्त विश्व महाविद्यालय संगठन के अध्यक्ष रहे, जो दक्षिण वेल्स के एकमात्र महाविद्यालय अटलांटिक महाविद्यालय का प्रतिनिधित्व‍ करता था। माउंटबेटन ने संयुक्त विश्व महाविद्यालय का समर्थन किया और राज्य के प्रमुखों, राजनीतिज्ञों और विश्व की प्रमुख हस्तियों को अपनी-अपनी रुचियां बांटने के लिए प्रेरित किया। माउंटबेटन की अध्यक्षता और व्यक्तिगत सहभागिता के चलते ही 1971 में दक्षिण-पूर्वी एशिया में सिंगापुर में संयुक्त विश्व महाविद्यालय की स्थापना हुई थी, जो बाद में प्रशांत का संयुक्त विश्व महाविद्यालय (अब प्रशांत के लेस्टर बी पीयर्सन संयुक्त विश्व महाविद्यालय के नाम से जाना जाता है) विक्टोरिया, कनाडा में 1974 में स्थापित हुआ। 1978 में, बर्मा के लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी सत्ता वेल्स के युवराज एवं अपने महान भतीजे एचआरएच को सौंप दी.[24]

हेरोल्ड विल्सन के खिलाफ कथित षड्यंत्र[संपादित करें]

अपनी पुस्तक स्पाईकैचर में, पीटर राइट ने दावा किया है कि 1967 में माउंटबेटन ने प्रेस व्यापारी और MI5 एजेंट सेसिल किंग और सरकार प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार, सोली ज़करमैन के साथ एक निजी बैठक की थी। किंग और पीटर राइट तीस M15 अधिकारियों के समूह के सदस्य थे, जो उस समय के हेरोल्ड विल्सन संकट-पीड़ित श्रम सरकार का तख्तापलट करना चाहते थे और किंग ने कथित रूप से बैठक का उपयोग माउंटबेटन से यह आग्रह करने के लिए किया था कि वे नेशनल साल्वेशन के सरकार के नेता बन जाएं. सोली ज़करमैन ने इसे राजद्रोह बताते हुए कहा था कि यह विचार माउंटबेटन की अनिच्छा के कारण कारगर सिद्ध नहीं हुआ।[25]

2006 में बीबीसी के वृत्तचित्र हेरोल्ड विल्सन के खिलाफ साजिश में आरोप लगाया गया कि माउंटबेटन ने अपने दूसरे कार्यकाल (1974-1976) के दौरान विल्सन को बेद्खल कर दिया था। अवधि को उच्च मुद्रास्फीति, बढ़ती बेरोजगारी और व्यापक औद्योगिक अशांति द्वार वर्गीकृत किया जाता था। कथित साजिश दक्षिणपंथी पूर्व सैन्य सेना के दिग्गज जो ट्रेड यूनियन और सोवियत संघ से होने वाले अनुमानित खतरे से बचने के लिए कथित रूप से अपनी निजी आर्मी बना रहे थे, पर केन्द्रित था। वे मानते थे कि लेबर पार्टी, जो आंशिक रूप से है संबद्ध ट्रेड यूनियन द्वारा वित्त पोषित था, इन विकासों को करने में असमर्थ और अनिच्छुक था और विल्सन या तो सोवियत एजेंट था या साम्यवाद का समर्थक था, इन दावों का विल्सन ने पुरजूर खंडन किया था। वृत्तचित्र में आरोप लगाया था कि विल्सन का तख्तापलट करके, उसके स्थान पर माउंटबेटन को बिठाने के लिए सेना और MI5 में निजी आर्मी और समर्थकों का उपयोग कर एक घातक षड्यंत्र रचा गया था। वित्तचित्र में कहा गया था कि षड्यंत्र को माउंटबेटन और ब्रिटिश शाही परिवार के अन्य सदस्यों का असमर्थन प्राप्त था।[26]

विल्सन लंबे समय से मानते थे कि उनके तख्तापलट करने के लिए MI5 द्वारा प्रायोजित कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है। 1974 में यह संदेह बढ़ गया था जब सेना ने यह कहते हुए हीथ्रो हवाई अड्डे पर कब्जा कर लिया था कि यहां संभावित IRA हमले से बचने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मेरिको फाल्केंडर वरिष्ठ सहयोगी और विल्सन के करीबी दोस्त, ने कहा था कि प्रधानमंत्री को इस अभ्यास की कोई सूचना नहीं दी गई थी और फिर भी इसे अभ्यास करने के लिए सैन्य अधिग्रहण का आदेश बताया गया था। विल्सन को भी यकीन हो गया था कि दक्षिणपंथी MI5 अधिकारियों का एक छोटा समूह उनके खिलाफ एक स्मियर अभियान चला रहा है। ऐसे आरोप विल्सन के संविभ्रम को पहले से जिम्मेदार ठहराया गया था, कम से कम एक बार 1988 में, पीटर राइट ने स्वीकार किया था कि उनकी किताब में आरोप "अविश्वसनीय" और बहुत अतिरंजित थे।[27][28] हालांकि बीबीसी वृत्तचित्र में कई नए गवाहों का साक्षात्कार किया गया, जिन्होंने इन आरोपों को नई विश्वसनीयता दी थी।

अत्यावश्यक रूप से, MI5 की पहली आधिकारिक इतिहास, द डिफेंस ऑफ द रीयल्म 2009 में प्रकाशित की गई थी, अकथित रूप से इसकी पुष्टि की गई थी कि विल्सन के खिलाफ साजिश रची जा रही है और MI5 के पास उनके नाम की एक फ़ाइल थी। अभी तक यह भी स्पष्ट कर दिया था कि षड्यंत्र आधिकारिक नहीं था और सभी गतिविधियां असंतुष्ट अधिकारियों के एक छोटे समूह के आसपास केंद्रित है। पूर्व केबिनेट सेकरेटरी लॉर्ड हंट ने पहले ही इतना खुलासा कर दिया था, जिन्होंने 1996 में आयोजित गुप्त पूछताछ में कह दिया था कि, " इसमें कोई संदेह नहीं है कि MI5 में कुछ, बहुत कम असंतुष्ट लोग.... पीटर राइट की तरह उनमें से कई जो दक्षिणपंथी, द्रोही थे और जिनके पास गंभीर व्यक्तिगत शिकायतें थी - ने इसका आधार रखा और उस लेबर सरकार के खिलाफ कई घातक हानिकारक कहानियों का दुष्प्रचार कर रहे हैं "[29]

साजिश में माउंटबेटन की भूमिका अस्पष्ट बनी हुई है। ऐसे लोगों से उनके बहुत कम संबद्ध थे जो 1970 के दशक में देश के बारे में चिंतित थे और सरकार के खिलाफ कुछ आक्रामक करने की सोच रहे थे। ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी चिंताओं को साझा किया था। हालांकि, भले ही बीबीसी वृत्तचित्र ने आरोप लगाया था कि उन्होंने तख्तापलट के षड्यंत्रकारियों के लिए अपनी सेवाओं की पेशकश की थी, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती कि उन्होंने वास्तव में तख्तापलट के इस षड्यंत्र का नेतृत्व किया था। यह उल्लेखनीय है कि कोई भी षड्यंत्र, जिसकी कभी चर्चा नहीं की गई थी वास्तव में घटित हुआ था, शायद क्योंकि अत्यधिक संख्या में लोग इसमें शामिल थी इसलिए इसके सफल होने की उम्मीद बहुत कम थी।[मूल शोध?]

निजी जीवन‍[संपादित करें]

विवाह[संपादित करें]

लुई और एड्विना माउंटबेटन
लॉर्ड माउंटबेटन ऑफ बर्मा, 1976, एलेन वारेन द्वारा लिखित.

परिवार और दोस्तों के बीच माउंटबेटन का उपनाम "डिकी" था, उल्लेखनीय है कि "रिचर्ड" नाम उन्हें कभी नहीं दिया गया था। ऐसा इसलिए था, क्योंकि उनकी परदादी, महारानी विक्टोरिया, ने उपनाम 'निकी' सुझाया था, हालांकि यह रूसी शाही परिवार के कई निकी नामों से मेल खाता था (विशेष रूप से "निकी" का उपयोग निकोलस द्वितीय, अंतिम सार), इसलिए उन्होंने इसे डिकी से बदल दिया. माउंटबेटन का विवाह विल्फ्रेड विलियम एश्ले, माउंट टेंपल के पहले बैरोन, साफ्ट्सबरी के सातवें अर्ल के पोते, की बेटी एड्विना सिंथिया एश्ले, के साथ 18 जुलाई 1922 में हुआ था। वह एदवार्डियन मैगनेट सर अर्नस्ट कैसल की सबसे प्यारी पोती और अपने भाग्य की मुख्य वारिस थी। इसके बाद वे ग्लैमरस हनीमून पर यूरोपीय कोर्ट और अमेरिका की यात्रा पर गए, इस दौरान उन्होंने डगलस फेयरबैंक्स, मैरी पिकफोर्ड और चार्ली चैपलिन के साथ हॉलीवुड की यात्रा की, चैपकलीन उस दौरान अपनी फिल्म "नाइस एंड ईजी", को फिल्मा रहे थे, इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में फेयरबैंक्स, पिकफ़ोर्ड, चैपलिन और माउंटबेटन परिवार शामिल थे।. उनकी दो बेटियां थी: पेट्रीसिया माउंटबेटन, बर्मा की दूसरी माउंटबेटन काउंटेस (जन्म 14 फ़रवरी 1924) और लेडी पामेला कारमेन लुईस (हिक्स) (जन्म 19 अप्रैल 1929).[उद्धरण चाहिए]

कुछ मायनों में, शुरुआत से यह जोड़ा असंगत प्रतीत होता था। लॉर्ड माउंटबेटन व्यवस्थित रहने के अपने जुनून के कारण एदविना पर हमेशा कद्ा नज़र रखते थे और उनका निरंतर ध्यान चाहते थे। कोई शौक या जुनून न होने के कारण शाही जीवनशैली अपनाने के लिए, एड्विना अपना खली समय ब्रिटिश और भारतीय कुलीन वर्ग के साथ पार्टियों में, समुद्री यात्रा करके और सप्ताहांतो में अपने कंट्री हाउस में बिताती थी। दोनों ओर से बढ़ती अप्रसन्नता के बावजूद, लुईस से तलाक देने से इंकार कर दिया क्योंकि उसे लगता था कि इससे वह सैन्य कमान श्रृंखला में आगे नहीं बढ़ पाएगा. एड्विना के कई बाहरी संबधों ने लुईस को योला लेतेलियर नामक फ्रेंच महिला से संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया।[उद्धरण चाहिए] इसके बाद उनकी शादी लगातार आरोपों और संदेह से विघटित होती रही. 1930 के दशक के दौरान दोनों बाहरी संबंध रखने के पक्ष में थे। द्वितीय विश्व युद्ध ने एड्विना को 'लुईस की बेवफाई के अलावा कुछ अन्य चीजों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया. वे प्रशासक के रूप में सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड में शामिल हो गईं. इस भूमिका ने एड्विना को विभाजन अवधि के दौरान पंजाब के लोगों के दुख और दर्द को कम करने का उनके प्रयासों के कारण नायिका[कौन?] के रूप में स्थापित कर दिया.[उद्धरण चाहिए]

यह प्रलेखित है कि भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत की पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ उनके अंतरंग संबंध थे। गर्मियों के दौरान, वह अक्सर प्रधानमंत्री निवास आया जाया करती थीं ताकि दिल्ली में गर्मियों के दौरान उनके बरामदे का आन6द ले सके. दोनों के बीच निजी पत्राचार संतोषजनक, लेकिन निराशात्मक रहा. एड्विना ने एक पत्र में कहा है कि " हमने जो भी किया है या महसूस किया है, उसका प्रभाव तुम पर या तुम्हारे कार्य अथवा मैं या मेरे कार्य पर नहीं पड़ना चाहिए -- क्योंकि यह सबकुछ खराब कर देगा. "[30] इस के बावजूद, यह अब भी विवादास्पद है कि उनके बीच शारीरिक संबंध बने थे या नहीं. माउंटबेटन की दोनों बेटियों खुलकर स्वीकार किया है कि उनकी माँ एक उग्र स्वभाव की महिला थी और कभी भी अपने पति का पूरा समर्थन नहीं करती थीं, क्योंकि वह उनके उच्च प्रोफ़ाइल से ईर्ष्या करती थी और कुछ सामान्य कारण भी थे। लेडी माउंटबेटन की मृत्यु नॉर्थ बोर्नियो में चिकेतसकीय देखभाल में रहते हुए 21 फ़रवरी 1960 को हुई, तब वे 58 साल की थीं। ऐसा माना जात अहै उनकी मृत्यु दिल की बीमारी के कारण हुई.[उद्धरण चाहिए]

1979 में उनकी हत्या किए जाने तक, माउंटबेटन अपनी कजिन रूस की ग्रैंड डचेच मारिया निकोलावेना अपने बिस्तर के पास रखते थे, ऐसा माना जाता है कि कभी वे उनके दीवाने हुआ करते थे।[31]

उत्तराधिकारी के रूप में बेटी[संपादित करें]

चूंकि माउंटबेटन का कोई बेटा नहीं था, इसलिए जब 23 अगस्त 1946 को उन्होंने विसकाउंट बनाया था, उसके बास 28 अक्टूबर 1947 को अर्ल और बेरोन बनाया था, तब पत्र के पारूप कुछ इस प्रकार तैयार किए गए थे कि उनका शीर्षक किसी पुरूष के बजाय महिला को सम्बोधित करे. ऐसा उनकी दृढ़ आग्रह पर किया गया था: अपने बड़ी बेटी के साथ उनके रिश्ते हमेशा निकटतम रहे थे और यह उनकी विशेष इच्छा थी कि वह अपने दम पर खिताब की हकदार बने. सैन्य कमांडरों के लिए ऐसे मिसालों का पुराना इतिहास है: पूर्व के उदाहरणों में पहले विसकाउंट नेल्शन और पहले अर्ल रॉबर्ट्स शामिल हैं।

अवकाश के क्षण[संपादित करें]

शाही परिवार के कई सदस्यों की तरह, माउंटबेटन पोलो के बहुत बड़े प्रशंसक थे और 1931 में एक पोलो स्टीक के लिए उन्हें यू.एस. पेटेंट 1,993,334 भी मिला था।[32]

प्रिंस ऑफ वेल्स के गुरू के रूप में[संपादित करें]

लॉर्ड माउंटबेटन इन 1976, एलेन वारेन द्वारा लिखित.
लॉर्ड माउंटबेटन की स्मृति में सेंट जॉर्ज कैथेड्रल, केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका, में गैबरियल लोइरे की क्राइस्ट इन ट्रिम्फ ओवर डार्कनेस एंड एविल (1982).

माउंटबेटन का अपने महान भतीजे, प्रिंस ऑफ वेल्स की परवरिश में अत्यधिक प्रभाव था और बाद में वे उसके गुरू बनें -- जोनाथन डिम्बलेबी के प्रिंस की जीवनी के अनुसार इन्हें एक साथ "होनोररी ग्रैंडफादर" और " होनोररी ग्रैडसन"" के रूप में जाना जाता था - हालांकि ज़िगलर के माउंटबेटन की r जीवनी और डिम्बलेबी के प्रिंस की जीवनी मिश्रित हैं। उन्होंने समय समय पर प्रिंस ऑफ वेल्स किंग एडवर्ड VIII जिन्हें बाद में ड्यूक ऑफ विंडसर के नाम से जाना जाने लगा, जिन्हें माउंटबेटन अपनी युवावस्था में जानते थे, के रूप में उसके पूर्वजों के आदर्श शांति देने वाले कलाप्रेम के प्रवृति को दिखाते हुए बड़ा किया। यहां तक कि उन्होंने प्रिंस को युवा जीवन का आनंद लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया ताकि जब वह युवा और अनुभवहीन लड़की से शादी करें, तो एक स्थिर दांपत्य जीवन जी सके.[33]

माउंटबेटन की सिंहासन के वारिस को विशेष सलाह देने की योग्यता अद्वितीय थी; 22 जुलाई 1939 को डार्टमाउथ रॉयल नेवल कॉलेज में किंग जॉर्ज VI और क्वीन एलिजाबेथ की यात्रा अयोजित करने के पीछे इन्हीं का हाथ था, इस बात का भी विशेष ध्यान रखा गया था कि इस यात्रा में युवा राजकुमारी एलिजाबेथ और मार्गरेट को भी आंमत्रित किया जाए, लेकिन जब उनके माता पिता कॉलेज की सुविधाओ6 को जायजा ले रहे हो6, उस दौरान उनके भतीजे, कैडेट प्रिंस फिलीप ऑफ ग्रीस, को इनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी दी गई थी। . चार्ल्स के भविष्य के माता पिता की यह पहली बैठक थी।[34] लेकिन कुछ महीने बाद, माउंटबेटन के प्रयास लगभग शून्य होने वाले थे, जब उन्हें एथेंस में उनकी बहन एलिस का पत्र मिला जिसमें लिखा था कि फिलीप उसके पास आए थे और उसे ग्रीस वापस लौटने के लिए सहमत कर लिया है। कुछ दिनों के भीतर, फिलिप को उनके चचेरे भाई और राजा, ग्रीस के किंग जॉर्ज II का आदेश प्राप्त हुआ, जिसमें ब्रिटेन में उसके उसके नेवल कैरियर को जारी रखने के लिए कहा गया था, हालांकि को स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया था लेकिन प्रिंस ने आज्ञा का पालन किया।[35]

1974 में माउंटबेटन चार्ल्स के साथ उनकी पोती, माननीय अमांडा नैचबुल के साथ करवाने का प्रयास करने लगे.[36] इसी समय उन्होंने 25 वर्षीय राजकुमार के लिए कुछ जंगली जई की बुवाई की अनुशंसा की थी।[36] चार्ल्स ने अमांडा की माता (जो उनकी दादी थी), लेडी ब्रेबॉर्न, को अपनी रुचि के बारे में पत्र लिखा. उनका उत्तर पक्ष में था, लेकिन उन्होंने सलाह दी थी कि उनके हिसाब से उनकी बेटी राजगृह में जाने के लिए अभी छोटी हैं।[37]

चार साल बाद माउंटबेटन ने 1980 की उनकी भारत की योजनाबद्ध यात्रा के लिए स्वंय और चार्ल्स का साथ देने के लिए अमांडा का आंमत्रण सुरक्षित कर लिया।[38] उनके पिताओं ने आपत्ति जताई. प्रिंस फिलिप ने सोचा कि भारतीय जनता का स्वागत भतीजे से ज्यादा चाचा के होने की संभावना है। लॉर्ड ब्रेबॉर्न ने सलाह दी कि माउंटबेटन के धर्म-पुत्र और पोती को एक साथ के बजाय अकेले होने पर प्रेस का ध्यान उन पर अधिक जाएगा.[37]

चार्ल्स की भारत की यात्रा को पुनः निर्धारित की गई, लेकिन प्रस्थान के योजना की तिथि तक माउंटबेटन जीवित नहीं रहे. जब 1979 में, चार्ल्स ने अंततः अमांदा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन उस समय तक परिस्थितियां नाटकीय रूप से बदल गई थीं और अमांडा ने चार्ल्स का विवाह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया.[37]

टेलीविज़न प्रस्तुतियां[संपादित करें]

1969 में, अर्ल माउंटबेटन ने 12-भागों वाले आत्मकथात्मक टेलीविजन श्रृंखला लॉर्ड माउंटबेटन: ए मैन फ़ोर द सेंचुरी में हिस्सा लिया, जिसे द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ लॉर्ड माउंटबेटन जे नाम से भी जाना जाता है, इसके निर्माता एसोसिएटेड-रेडिफशन थे और इसकी पटकथा इतिहासकार जॉन टेराइन ने लिखी थी।[39][40] एपिसोड की सूची:[41]

  1. द किंग्स शिप्स वर एट सी (1900-1917)
  2. द किंग्स डिपार्ट (1917-1922)
  3. एज़ुरे मेन (1922-1936)
  4. द स्टोमी विंड्स (1936-1941)
  5. यूनाइटेड वी कॉनकार (1941-1943)
  6. द इम्पीरियल एनेमी
  7. द मार्च टू विक्टरी
  8. द मीनिंग ऑफ विक्टरी (1945-1947)
  9. द लास्ट वायसराय
  10. फ़्रेश फील्ड्स (1947-1955)
  11. फुल सर्किल (1955-1965)
  12. ए मैन ऑफ दिस सेंचुरी (1900-1968)

अपने जन्मदिन 77 कुछ ही अरसे पहले, 27 अप्रैल 1977 को, माउंटबेटन टीवी अतिथि शो दिस इज योर लाइफ में दिखाई देने वाले रॉयल परिवार के पहले सदस्य थे।[42]

हत्या[संपादित करें]

माउंटबेटन आमतौर पर छुट्टियां मनाने मुलघमोर, काउंटी सिल्गो के अपने ग्रीष्मकालीन घर जाते थे, यह आयरलैंड के उत्तरी समुद्री तट बुंड्रोन, काउंटी डोनेगल और सिल्गो, काउंटी सिल्गो के बीच बसा एक छोटा समुद्रतटीय गांव है। बुंड्रोन मुलघमोर आईआरए के स्वयंसेवकों में बहुत लोकप्रिय अवकाश गंतव्य था, उनमें से कई वहां माउंटबेटन की उपस्थिति और मुलघमोर के आंदोलनों से अवगत हो सकते हैं।[उद्धरण चाहिए] गार्डा सिओचना के सुरक्षा सलाह और चेतावनियों के बावजूद, 27 अगस्त 1979 को, माउंटबेटन एक तीस फुट (10 मीटर) लकड़ी की नाव, शेडो वी में लॉबस्टर के शिकार और टुना मछली पकड़ने के लिए potting बंदरगाह पर और टूना मछली पकड़ने गए, जो मुलघमोर के बंदरगाह में दलदल में फंस गया था। थॉमस मैकमोहन नामक एक आईआरए सदस्य उस रात सुरक्षा रहित नाव से फिसल कर गिरते गिरते एक रेडियो नियंत्रित पचास पाउंड (२३ किग्रा) का बम नाव में लगा गया। जब माउंटबेटन नाव पर डोनेगल बे जा रहे थे, एक अज्ञात व्यक्ति ने किनारे से बम को विस्फोट कर दिया. मैकमोहन को लॉगफ़ोर्ड और ग्रेनार्ड के बीच गार्डा नाके पर पहले ही गिरफ्तार किया गया था। माउंटबेटन, उस समय 79 वर्ष के थे, गंभीर रूप से घायल हो गए थे और विस्फ़ोट के तुरंत बाद बेहोश होकर गिर गए और उनकी मृत्यु हो गई। विस्फ़ोट में मरने वाले अन्य लोगों में निकोलस नैचबुल, उनकी बरी बेटी का 14 साल का बेटा; पोल मैक्सवेल, काउंटी फेर्मानघ का 15 वर्षीय युवा जो क्रू सदस्य के रूप में कार्य कर रहा था; और बैरोनेस ब्रेबॉर्न, उनकी बड़ी बेटी की 83 वर्षीय सास जो कि विस्फ़ोट में गंभीर रूप से घायल हुई थीं और विस्फ़ोट के दूसरे दिन चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई।[43] निकोलस नैचबुल के माता और पिता, उसके जुड़वें भाई तीमुथि सहित, विस्फ़ोट में बच गए थे लेकिन गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

सिन फेन के उपाध्यक्ष गेर्री एडम्स ने माउंटबेटन की मृत्यु पर कहा:

आईआरए ने निष्पादन के लिए स्पष्ट कारण दिए हैं। मुझे लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने लोग मारे गए, लेकिन माउंटबेटन की मृत्यु पर हंगामा मीडिया की स्थापना के कपटी प्रवृति को दर्शाता है। हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य के रूप में, माउंटबेटन ब्रिटिश और आयरिश राजनीति दोनों में एक भावनात्मक व्यक्ति थे। आईआरए ने जो किया वही माउंटबेटन अपने पूरे जीवन में अन्य लोगों के साथ करते थे; और उनके युद्ध के रिकॉर्ड देखकर मुझे नहीं लगता कि युद्ध जैसी स्थिति में मरने पर उन्हें कोई आपत्ति हुई होगी. वे इस देश में आने के खतरों को जानते थे। मेरी राय में, आईआरए ने अपना उद्देश्य पूर कर लिया है: लोग अब इस पर ध्यान दे रहे हैं कि आयरलैंड में क्या हो रहा है।[44]

जिस दिन माउंटबेटन की हत्या हुई थी, उसी दिन, आईआरए भी ताक में था और अठारह ब्रिटिश आर्मी के सैनिकों को मार गिराया था, उनमें से सोलह वार्रेनपॉइंट, काउंटी डाउन के पैराशूट रेजिमेंट से थे, जिसके कारण उसे वार्रेनपॉइंट एम्ब्यूस के नाम से जाना जाती है।

प्रिंस चार्ल्स ने माउंटबेटन को गंभीर बताया और मित्रों से चर्चा की थी कि गुरू के जाने के बाद चीजें पहले जैसी नहीं रह गई हैं।[45] इस बात का खुलासा किया गया था कि माउंटबेटन आयरलैंड के संभावित एकीकरण के पक्ष में थे।[46][47]

अंतिम संस्कार[संपादित करें]

रोम्से एब्बे में माउंटबेटन का कब्र

आयरलैंड के राष्ट्रपति, पैट्रिक हिलेरी और टाओइसीच, जैक लिंच, ने डबलिन में सेंट पट्रिक के कैथेड्रल में माउंटबेटन की यादगार सेवा में भाग लिया। माउंटबेटन को वेस्टमिंस्टर एब्बे मे6 टीवे पर प्रसारित अंतिम संस्कार, जो कि पूर्ण रूप से योजनाबद्ध थी, के बाद रोम्से एब्बे में दफनाया गया था।[48]

23 नवम्बर 1979 को, थॉमस मैकमोहन को बम विस्फोट कर हत्या करने का दोषी पाया गया था। गुद फ़्राइडे समझौते की शर्तों के अंतर्गत उसे 1998 में छोड़ दिया गया।[49][50]

माउंटबेटन की हत्या की सुनवाई पर, उस समय के क्वीन्स म्युजिक के मास्टर, मैल्कम विलियमसन को बर्मा के लॉर्ड माउंटबेटन की याद में वायोलिन और स्ट्रिंग ऑर्केस्ट्रा के लिए एक शोकगीत लिखने के लिए बुलाया गया था। 11 मिनट के इस कार्य को पहली बार 5 मई 1980 को स्कोटिश बारोक्यू एंसेम्बल द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसका आयोजन लियोनार्ड फ्राइडमैन ने किया था।[51]

जन्म से मृत्यु तक की पदवी[संपादित करें]

  • 1900-1913: हिज सेरेन हाइनेस प्रिंस लुईस ऑफ बटनबर्ग (जर्मन: Seine Durchlaucht Prinz Ludwig Franz Albrecht Viktor Nicholas Georg von Battenberg)
  • 1913-1916: कैडेट हिज सेरेन हाइनेस प्रिंस लुईस ऑफ बटनबर्ग
  • 1916-1917: मिडशिपमैन हिज सेरेन हाइनेस प्रिंस लुईस ऑफ बटनबर्ग
  • 1917: मिडशिपमैन लुईस माउंटबेटन
  • 1917-1918: मिडशिपमैन लॉर्ड लुईस माउंटबेटन
  • 1918-1920: सब-लेफ्टिनेंट लॉर्ड लुईस माउंटबेटन
  • 1920-1921: लेफ्टिनेंट लॉर्ड लुईस माउंटबेटन, MVO
  • 1921-1928: लेफ्टिनेंट लॉर्ड लुईस माउंटबेटन, KCVO
  • 1928-1932: लेफ्टिनेंट कमांडर लॉर्ड लुईस माउंटबेटन, KCVO
  • 1932-1937: कमांडर लॉर्ड लुईस माउंटबेटन, KCVO
  • 1937-1941: कैप्टन लॉर्ड लुईस माउंटबेटन, GCVO
  • 1941-1943: कोमोडोर लॉर्ड लुईस माउंटबेटन, GCVO, DSO
  • 1943-1946: कमोडोर लॉर्ड लुईस माउंटबेटन, GCVO, CB, DSO
  • 1946-1947: रियर एडमिरल द राइट ऑनरेबल द विसकाउंट माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, KCB GCVO, DSO
  • 1947-1948: रियर एडमिरल हिज एक्सीलेंसी द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा KG, GCSI, GCIE, GCVO, KCB, DSO, PC
  • 1948-1949: रियर एडमिरल द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, GCSI, GCIE, GCVO, KCB DSO, PC
  • 1949-1953: वाइस एडमिरल द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, GCSI, GCIE, GCVO, KCB DSO, PC
  • 1953-1955: एडमिरल द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, GCSI, GCIE, GCVO, KCB, DSO, PC
  • 1955-1956: एडमिरल द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, GCB GCSI, GCIE, GCVO, DSO, PC
  • 1956-1965: एडमिरल ऑफ द फ़्लीट द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, GCB, GCSI, GCIE, GCVO, DSO, PC
  • 1965-1966: एडमिरल ऑफ द फ़्लीट द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, GCB, OM, GCSI, GCIE, GCVO, DSO, PC
  • 1966-1979:, एडमिरल ऑफ द फ़्लीट द राइट ऑनरेबल द अर्ल माउंटबेटन ऑफ बर्मा, KG, GCB, OM, GCSI, GCIE, GCVO, DSO, FRS[52]

रैंक पदोन्नति[संपादित करें]

  • कैडेट, आर.एन.-1913
  • मिडशिपमैन, आर.एन.-1916
  • सब-लेफ्टिनेंट, आर.एन.-1918
  • लेफ्टिनेंट, आर.एन.-1920
  • लेफ्टिनेंट कमांडर आर एन-1928
  • कमांडर, आर.एन.-1932
  • कैप्टन, -आर.एन-1937
  • कोमोडोर, आर.एन.-1941
    • सक्रिय वाइस एडमिरल, आर एन-1942
    • सक्रिय एडमिरल, आर एन-1943
  • रियर एडमिरल, आर.एन.-1946
  • वाइस एडमिरल, आर.एन. -1949
    • सक्रिय एडमिरल, आर एन-1952
  • एडमिरल, आर.एन.-1953
  • एडमिरल ऑफ द फ़्लीट, आर.एन.-1956[52]

सम्मान[संपादित करें]

ब्रिटिश[संपादित करें]

  • 1937: नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द रॉयल विक्टोरियन ऑर्डर - GCVO[53] (1920: MVO,[54] 1922: KCVO[55])
  • 1940: नाइट ऑफ़ जस्टिस ऑफ सेंट जॉन - KJStJ[56] (1929: CStJ)[57]
  • 1941: कंपेनियन ऑफ डिस्टिंगुइस्ड सर्विस ऑर्डर - DSO[58]
  • 1946: नाइट ऑफ द गार्टर - KG[59]
  • 1947: नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया - GCSI
  • 1947: नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ द इंडियन एम्पायर - GCIE
  • 1955: नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द बाथ - GCB (1943: CB, 1945: KCB[60])
  • 1965 मेंम्बर ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट - OM[61]

विदेश[संपादित करें]

  • 1922: ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ इसाबेल द कैथोलिक ऑफ स्पेन
  • 1924: ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द क्राउन ऑफ रोमानिया
  • 1937: ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ रोमानिया
  • 1941: वार क्रॉस (ग्रीस)
  • 1943: चीफ कमांडर ऑफ द लिजन ऑफ मैरिट, संयुक्त राज्य अमेरिका
  • 1945: स्पेशल ग्रैंड कार्डन ऑफ द ऑर्डर ऑफ द क्लाउड एंड बैनर ऑफ चाइना[62]
  • 1945: विशिष्ट सेवा मेडल, संयुक्त राज्य अमेरिका[63]
  • 1945: एशियाई प्रशांत अभियान पदक, संयुक्त राज्य अमेरिका
  • 1946: ग्रैंड क्रॉस ऑफ़ द लिजन द'होनेरे ऑफ़ फ्रांस
  • 1946: क्रोइक्स डी गुएरे, फ्रांस
  • 1946: ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ नेपाल
  • 1946: ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ व्हाइट एलिफेंट ऑफ़ थाईलैंड
  • 1946: नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ जॉर्ज I ऑफ ग्रीस[64]
  • 1948: ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द नीदरलैंड्स लायन[65]
  • 1951: ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ एविज ऑफ पुर्तगाल - GCA
  • 1952: [[स्वीडन|नाइट ऑफ द रॉयल ऑर्डर ऑफ़ द सेरफिम ऑफ स्वीडन - RSerafO[66][67]]]
  • 1956: ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ थिरी थुधम्मा (बर्मा)
  • 1962 : ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द डान्नेब्रोग ऑफ डेनमार्क - SKDO
  • 1965 : ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द सील ऑफ सोलोमोन ऑफ इथियोपिया

नाटकीय भूमिकाएं[संपादित करें]

लॉर्ड माउंटबेटन कई बार फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं।

इन विच वी सर्व 1942 की एक ब्रिटिश देशभक्ति युद्ध फिल्म है, जिसका निर्देशन डेविड लीन और नोएल कोवार्ड ने किया था, यह फिल्म माउंटबेटन के कमांड वाले एचएमएस केली, के डुबने से प्रेरित है। कोवार्ड माउंटबेटन के निजी दोस्त थे और फिल्म में कई भाषणों की नकल की गई थी।

माउंटबेटन इतिहासकार ब्रायन लोरिंग-विला द्वारा लिखी गई पुस्तक "अनऑथोराइज्ड एक्शन" पर बनी, सीबीकी की लघु श्रृंखला "डिएपी" में अभिनय किया है, जिसमें अगस्त 1942 की प्रसिद्ध मित्र राष्ट्रों पर की गई कंमाडो छपे में उनकी विवादित भूमिका की व्याख्या की गई थी।

पेट्रिक नोल्स1968 के युद्ध पर बनी फिल्म द डेविल्स ब्रिगेड में माउंटबेटन की छोटी सी भूमिका निभाई थी।

सर रिचर्ड एटेनबोरॉ की 1982 के महाकाव्य गांधी में पीटर हार्लो ने माउंटबेटन की भूमिका निभाई थी।

1986 में, ITV ने लॉर्ड माउंटबेटन : द लास्ट वायसराय का का निर्माण और प्रसारण किया, जिसमें निकोल विलियमसन और जेनेट सुज़मैन, क्रमशः लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन की भूमिका में नज़र आए. यह भारत में बिआताए गए वर्षों पर केंद्रित था और इसमें नेहरू के साथ लेडी माउंटबेटन के रिश्ते का संकेत दिया गया था। अमेरिका में इसे मास्टरपीस थियेटर में दिखाया गया था।

लॉर्ड माउंटबेटन (क्रिस्टोफर ओवेन द्वारा अभिनीत) {2008 के फ़िल्म द बैंक जॉब में दिखाई दिए, इसमें 1970 में सरकार-स्वीकृत बैंक डकैती की कहानी प्रदर्शित की गई है। पैडिंगटन स्टेशन पर आश्रय स्थल में, माउंटबेटन को ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित किया गया है और वे राजकुमारी मारग्रेट की नग्न तस्वीरों, जो शाही परिवार के लिए शर्मनाक थी, के बदले अभियोजन से गारंटीयुक्त मुक्ति के दस्तावेजों डकैतों के देते हैं। माउंटबेटन ने चुटकी ली "मैं नहीं युद्ध के बाद से ऐसी उत्तेजना नहीं देखी थी".[68]

2008 में टेलिविजन फिल्म इन लव विथ बारबरा, में लॉर्ड माउंटबेटन ब्रिटेन की भूमिका डेविड वार्नर ने निभाई थी, यह रोमांटिक उपन्यासकार बारबरा कार्टलैंड की एक जीवनी फिल्म थी जिसे यूके में बीबीसी फॉर पर दिखाया गया था।

लॉर्ड माउंटबेटन टेड बेल द्वारा लिखे गए उपन्यास वारलॉर्ड में एक चरित्र था।

माउंटबेटन को हाल ही में रद्द की गई फिल्म इंडियन समर में फिल्माया जाना था, जो कि उनके भारत में वायसराय के रूप में बिताए गए अवधि और उनकी पत्नी और नेहरू के बीच के स6ब6धो6 पर आधारित थी। यह एलेक्स वोन टुनजेल्मन की पुस्तकIndian Summer: The Secret history of the end of an empire पर आधारित थी।[69]

अन्य महत्वपूर्ण विरासत[संपादित करें]

1969 में इनके नाम पर माउंटबेटन स्कूल नाम एक विद्यालय खोला गया, जिसे व्हाइटनैप, रोम्से ब्रॉडलैंड्स एस्टेट की जमीन पर बनाया गया था।

हेरियट-वॉट विश्वविद्यालय, एडिनबर्ग में गणित और कंप्यूटर विज्ञान के विद्यालय का नाम इनके नाम पर रखा गया है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के अ6तर्राष्ट्रीय अध्ययन के लिए माउंटबेटन सेंटर का नाम भी इनकेनाम पर रखा गया है।

माउंटबेटन ने अंतः सांस्कृतिक समझ को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी, 1984 में, पेट्रोन के रूप मे6 अपनी सबसे बड़ी बेटी के साथ, माउंटबेटन इंटर्नशिप कार्यक्रम का निर्माण किया था, जो युवाओं की विदेशों में उनके अंत सांस्कृतिक ज्ञान और अनुभव फैलाने में सहायता करता है।[70]

अपने गीत पोस्ट वर्ड वार टू ब्लूज, 1973 से एलपी भूत, वर्तमान और भविष्य में प्रकाशित, गायक और गीतकार एल स्टीवर्ट में भारत के बारे में विंस्टन चर्चिल के साथ माउंटबेटन के विवाद का संदर्भ दिया गया है।

पादलेख[संपादित करें]

  1. ब्रेंडम ओब्रायन की द लॉन्ग वार (ISBN 978-0-8156-0319-1), पृष्ठ 55
  2. बुर्क्स गाइड टू रॉयल फैमली : ह्यूग मोंटोगोमेरी-मैसिंगबर्ड द्वारा संपादित, पी. 303.
  3. लॉर्ड ज़कर्मैन,बर्मा के अर्ल माउंटबेटन, केजी, ओ एम 25 जून 1900-27 अगस्त 1979, रॉयल सोसाइटी के सदस्यो6 की याद में, वोल. 27 (नव. 1981) पीपी 355-364. www.jstor.org/stable/769876 पर 13 मई 2009 तक पहुंचा
  4. वि6दसर का युद्ध, 2002
  5. "Mountbatten Medal". IET. मूल से 24 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-12-24.
  6. ज़कर्मैन, बर्मा के अर्ल माउंटबेटन, केजी, ओ एम 25 जून 1900-27 अगस्त 1979
  7. "Abstract of GB508956 508,956. Speed governors". Wiki Patents. मूल से 5 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-12-24.
  8. Villa, Brian Loring (1989). Unauthorized Action: Mountbatten and the Dieppe Raid. Toronto: Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0195408047.
  9. Thompson, Julian (2001) [2000]. "14. The Mediterranean and Atlantic, 1941–1942". The Royal Marines: from Sea Soldiers to a Special Force (Paperback संस्करण). London: Pan Books. पपृ॰ 263–9. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-330-37702-7.
  10. "डिपी के लिए कौन जिम्मेदार था?" Archived 2008-02-08 at the वेबैक मशीनसीबीसी अभिलेखागार, 9 सितम्बर १९६२ को प्रसारण. Archived 2008-02-08 at the वेबैक मशीन . 27 अगस्त 2007 को पुनःप्राप्त.
  11. Villa, Brian Loring (1989). Unauthorized Action: Mountbatten and the Dieppe Raid. Toronto: Oxford University Press. पपृ॰ 240–241. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0195408047.
  12. हॉट सीट ", जेम्स एलासन, ब्लेकसोर्न, लंदन 2006.
  13. ज़िग्लर, माउंटबेटन. भारत के अंतिम वाइसराय रहने के वर्षो6 सहित, पी. 359.
  14. सरदेसाई, भारत. द डेफिनेटिव हिस्टरी (बॉल्डर: वेस्टव्यूप्रेस, 2008, पी. 309-313.
  15. ग्रीनबर्ग, जोनाथन डी. "स्मृति की पीढ़ियां: भारत / पाकिस्तान और इसराइल/फिलिस्तीन के विभाजन की याद". दक्षिण एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के २५ का तुलनात्मक अध्ययन, नंबर 1 (2005): 89 . प्रोजेक्ट म्यूज़
  16. ज़िग्लर, फिलिप, माउंटबेटन. भारत में वाइसराय के रूप में बिताए गए वर्षों सहित (न्यू योर्क: नोफ, 1985)
  17. ज़िग्लर, माउंटबेटन. भारत में वाइसराय के रूप में बिताए गए वर्षों सहित, पी. 355.
  18. ज़िग्लर, माउंटबेटन. भारत में वाइसराय के रूप में बिताए गए वर्षों सहित, पी. 373
  19. देखें, उदा., वोल्पार्ट, स्टेनली (2006). शेमफुल फ्लाइट: द लास्ट ईयर्स ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया.
  20. पैटन, एल्लीसन, ब्रॉदलैंड्स: लॉर्ड माउंटबेटन्स कंट्री इन ब्रिटिश हेरिटेज, वॉल्यूम 26, अंक 1, मार्च 2005, पीपी 14-17. शैक्षिक से पहुंचा गया 13 मई 2009 को खोज पूर्ण.
  21. ज़िग्लर, 1985, फिलिप माउंटबेटन न्यूयॉर्क. 17 पीपी
  22. ज़कर्मैन, 363.
  23. माउंटबेटन, लुईस," ए मिलिट्री कमांडर सर्वेज द न्यूक्लियर आर्म्स रेस," इंटरनेशन सिक्युरटी, वॉल्यूम 4 नं. 3 1979-1980, एमआईटी प्रेस. पीपी. 3-5
  24. "History". UWC. मूल से 23 अगस्त 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2011.
  25. "House of Commons, Hansard: 10 जनवरी 1996 Column 287". मूल से 7 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2011.
  26. "Wilson 'plot': The secret tapes". बीबीसी न्यूज़. 9 मार्च 2006. मूल से 15 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2010.
  27. Rimington, Stella (11 सितंबर 2001). "Spies like us, द गार्डियन: 11 सितंबर 2001". London. मूल से 1 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2010.
  28. "Top 50 Political Scandals, The Spectator". मूल से 5 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2011.
  29. Leigh, David (10 अक्टूबर 2009). "The Defence of the Realm: The Authorized History of MI5 by Christopher Andrew". द गार्डियन. London. मूल से 14 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2010.
  30. बेली, कैथरीन, "इंडियाज़ लास्ट वॉइसराय," ब्रिटिश हेरिटेज, वॉल्यूम. 21, अंक 3, अप्रैल/ मई 2000, पीपी 16
  31. किंग एंड विल्सन (2003), पी. 49
  32. "Advanced Weaponry of the Stars". American Heritage. मूल से 14 मार्च 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-12-24.
  33. Junor, Penny (2005). "The Duty of an Heir". The Firm: the troubled life of the House of Windsor. New York: Thomas Dunne Books. पृ॰ 72. OCLC 59360110. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780312352745. अभिगमन तिथि 2007-05-13.
  34. Edwards, Phil (2000-10-31). "The Real Prince Philip" (TV documentary). Real Lives: channel 4's portrait gallery. Channel 4. मूल से 7 अप्रैल 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-05-12.
  35. Vickers, Hugo (2000). Alice, Princess Andrew of Greece. London: Hamish Hamilton. पृ॰ 281. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-241-13686-5.
  36. Dimbleby, Jonathan (1994). The Prince of Wales: A Biography. New York: William Morrow and Company. पपृ॰ 204–206. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-688-12996-X.
  37. Dimbleby, Jonathan (1994). The Prince of Wales: A Biography. New York: William Morrow and Company. पपृ॰ 263–265. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-688-12996-X.
  38. Dimbleby, Jonathan (1994). The Prince of Wales: A Biography. New York: William Morrow and Company. पृ॰ 263. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-688-12996-X.
  39. "Lord Mountbatten: A Man for the Century". Main page. IMDB. 2011. मूल से 30 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2011-05-06.
  40. "Lord Mountbatten: A Man for the Century". Full cast and crew. IMDB. 2011. मूल से 30 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2011-05-06.
  41. "Lord Mountbatten: A Man for the Century". Episode list. IMDB. 2011. मूल से 30 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2011-05-06. </
  42. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2011.
  43. पैटन, एल्लिसन, "ब्रॉदलैंड्स: लॉर्ड माउंटबेटन्स क6तरी होम," ब्रिटिश विरासत मार्च 2005, वॉल्यूम. 26 अंक 1, पीपी 14-17.
  44. Louisa Wright (19 नवम्बर 1979). "It is "Clearly a War Situation"". TIME. मूल से 23 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-09-02. Italic or bold markup not allowed in: |publisher= (मदद)
  45. 2002, रॉबर्ट लैसी द्वारा रॉयल
  46. BBQs warning. "Killing that changed the course of history - TV & Radio, Entertainment". Herald.ie. मूल से 12 जून 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-06-22.
  47. McDonald, Henry (29 दिसम्बर 2007). "Royal blown up by IRA 'backed united Ireland'". द गार्डियन. London. मूल से 13 फ़रवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2010.
  48. Hugo, Vickers (November 1989). "The Man Who Was Never Wrong". Royalty Monthly: 42.
  49. आईआरए बम किल्स लॉर्ड माउंटबेटन Archived 2008-01-21 at the वेबैक मशीन -- उस दिन का बीबीसी समाचार
  50. ए सिक्रेट हिस्टरी ऑफ आईआरए, एड मोलोनी, 2002. (PB) ISBN 0-393-32502-4 (HB) ISBN 0-7139-9665-X p.१७६
  51. मैल्कम विलियमसन मृत्युलेख द इंडिपेंडेंट, 4 मार्च 2003
  52. "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  53. London Gazette: (Supplement) no. 34365, p. 693, 29 जनवरी 1937. Retrieved 13 मार्च 2010.
  54. London Gazette: no. 32086, p. 9987, 15 अक्टूबर 1920. Retrieved 13 मार्च 2010.
  55. London Gazette: no. 32730, p. 5353, 18 जुलाई 1922. Retrieved 13 मार्च 2010.
  56. London Gazette: no. 34878, p. 3777, 21 जून 1940. Retrieved 13 मार्च 2010.
  57. London Gazette: no. 33453, p. 49, 1 जनवरी 1929. Retrieved 13 मार्च 2010.
  58. London Gazette: (Supplement) no. 35029, p. 25, 31 दिसम्बर 1940. Retrieved 13 मार्च 2010.
  59. London Gazette: (Supplement) no. 37807, p. 5945, 3 दिसम्बर 1946. Retrieved 2 अप्रैल 2010.
  60. London Gazette: (Supplement) no. 37023, p. 1893, 6 अप्रैल 1945. Retrieved 13 मार्च 2010.
  61. London Gazette: no. 43713, p. 6729, 16 जुलाई 1965. Retrieved 2 अप्रैल 2010.
  62. London Gazette: (Supplement) no. 37023, p. 1895, 6 अप्रैल 1945. Retrieved 13 मार्च 2010.
  63. London Gazette: (Supplement) no. 37299, p. 4954, 5 अक्टूबर 1945. Retrieved 13 मार्च 2010.
  64. London Gazette: (Supplement) no. 37777, p. 5418, 1 नवम्बर 1946. Retrieved 2 अप्रैल 2010.
  65. London Gazette: no. 38176, p. 274, 13 जनवरी 1948. Retrieved 13 मार्च 2010.
  66. नॉर्देनवाल, पर. कुंगल. 1748 सेराफिमेरोर्डन - 1998
  67. "Mountbatten's coat of arms as a Knight of the Royal Order of the Seraphim". मूल से 24 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-06-22.
  68. Schickel, Richard (7 मार्च 2008). "संग्रहीत प्रति". Time. मूल से 6 फ़रवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2010.
  69. Caesar, Ed (29 जून 2008). "Indian Summer story of the Mountbattens". The Times. London. मूल से 16 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2010.
  70. http://www.mountbatten.org Archived 2012-09-18 at the वेबैक मशीन, Mountbatten Internship Programme-Official Site

कुछ और संदर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें: डेविड लीघ, "द विल्सन प्लॉट: द इंटेलिजेंस सर्विसेस एंड द डिस्क्रेडिटिंग ऑफ अ प्राइम मिनिस्टर 1945 - 1976", लंदन: हैनमैन, 1988

अग्रिम पठन[संपादित करें]

  • फिलिप ज़िग्लर माउंटबेटन: आधिकारिक जीवनी, (कोलिन्स, 1985)
  • रिचर्ड हॉग, माउंटबेटन; हीरो ऑफ आवर टाइम, (विडेनफील्ड और निकोल्सन, 1980)
  • द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ लॉर्ड माउंटबेटन (हचिंसन, 1968)
  • स्मिथ, एड्रियन. माउंटबेटन: अपरेंटिस वार (आईबी टोरिश, 2010) 384 पृष्ठ, 1943 की जीवनी.
  • एंड्रयू रॉबर्ट्स एमिनेंट चर्चिलियंस, (फीनिक्स प्रेस, 1994).
  • डोमोनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस फ़्रीडम एट मिडनाइट, (कॉलिंस, 1975).
  • रॉबर्ट लैसीy रॉयल (2002)
  • ए. एन. विल्सन आफ्टर द विक्टोरिया: 1901-1953, (हचिंसन, 2005)
  • जॉन लैटिमर बर्मा: द फोरगोटन वार, (जॉन मूर्रे, 2004)
  • मोंटगोमरी-मैसिंगबर्ड, ह्यूग (संपादक), ' बुर्केस गाइड टू द फैमिली, बुर्केस पीरेज़, लंदन, 1973, ISBN 0-220-66222-3
  • टोनी हैथकोट द ब्रिटिश एडमिरल्स ऑफ द फ्लीट 1734-1995, (पेन एंड सॉर्ड लिमिटेड, 2002) ISBN 0-85052-835-6
  • क्लीयर ब्लू स्काई से टिमोथी नैचबुल: सर्वाइविंग़ द माउंटबेटन बॉम्ब, (हचिंसन 2009). माउंटबेटन के जीवित जुड़वां पोते द्वारा एक निजी खाता.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]