बाबू गुलाबराय
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बाबू गुलाबराय | |
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मौत | 13 अप्रैल, 1963 |
पेशा | अध्यापक, लेखक |
भाषा | हिन्दी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
विधा | गद्य |
विषय | निबंध, साहित्य शास्त्र, व्यंग्य |
उल्लेखनीय कामs | हिन्दी काव्य विमर्श |
वेबसाइट | |
http://www.babugulabrai.in/ |
बाबू गुलाबराय (१७ जनवरी १८८८ - १३ अप्रैल १९६३) हिन्दी के आलोचक तथा निबन्धकार थे।।
परिचय
[संपादित करें]बाबू गुलाबराय का जन्म इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनके पिता श्री भवानी प्रसाद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनकी माता भी कृष्ण की उपासिका थीं और सूर, कबीर के पदों को तल्लीन होकर गाया करती थीं। माता-पिता की इस धार्मिक प्रवृत्ति का प्रभाव बाबू गुलाबराय जी पर भी पड़ा। गुलाब राय जी की प्रारम्भिक शिक्षा मैनपुरी में हुई। तहसीली स्कूल के पश्चात उन्हें अंग्रेज़ी शिक्षा के लिए जिला विद्यालयजा गया। एन्ट्रेस परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने आगरा कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा पास की। दर्शन शास्त्र में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात गुलाबराय जी छतरपुर चले गए और वहाँ के महाराज के निजी सचिव हो गए। इसके बाद वे वहाँ दीवान और चीफ़ जज भी रहे। छतरपुर महाराजा के निधन के पश्चात गुलाबराय जी ने वहाँ से अवकाश ग्रहण किया और आगरा आकर रहने लगे। आगरा आकर उन्होंने सेंट जॉन्स में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद पर कार्य किया। गुलाबराय जी अपने जीवन के अंतिम काल तक साहित्य-साधना में लीन रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के फलस्वरूप आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से सम्मानित किया। सन १९६३ में आगरा में उनका स्वर्गवास हो गया।
- मैनपुरी प्रारंभिक शिक्षा, बसे इटावा जाकर।
- एम०ए०, डी०लिट हुई आगरा, लिखा 'प्रबंध प्रभाकर'॥
- नवरस', 'तर्कशास्त्र', 'ठलुआ क्लब', 'कुछ उथले कुछ गहरे।
- व्यवहारिक, संस्कृत गर्भित, भाषा शब्द सुनहरे ॥
- आलोचना, व्यंग, भाषात्मक, परिचय, आत्मक और व्यंजक।
- शैली के छः रूप मनोहर, क्रमशः है व्याख्यात्मक ॥
- बाबू जी थे प्रथम मनीषी, कलाकार आलोचक।
- दर्शन के पण्डित प्रकाण्ड थे, थे उच्च व्यंग के लेखक ॥
वर्ण्य विषय
[संपादित करें]गुलाब राय जी की रचनाएँ दो प्रकार की हैं- दार्शनिक और साहित्यिक। गुलाब राय जी की दार्शनिक रचनाएँ उनके गंभीर अध्ययन और चिंतन का परिणाम है। उन्होंने सर्व प्रथम हिंदी को अपने दार्शनिक विचारों का दान दिया। उनसे पूर्व हिंदी में इस विषय का सर्वथा अभाव था। गुलाबराय जी की साहित्यिक रचनाओं के अंतर्गत उनके आलोचनात्मक निबंध आते हैं। ये आलोचनात्मक निबंध सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों ही प्रकार के हैं। गुलाबराय जी ने सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक आदि विविध विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाकर हिंदी साहित्य की अभिवृद्धि की है।
भाषा-शैली
[संपादित करें]Read this गुलाबराय जी की भाषा शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ी बोली है। उसके मुख्यतः दो रूप देखने को मिलते हैं - क्लिष्ट तथा सरल। विचारात्मक निबंधों की भाषा क्लिष्ट और परिष्कृत हैं। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है, भावात्मक निबंधों की भाषा सरल है। उसमें हिंदी के प्रचलित शब्दों की प्रधानता है साथ उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। कहावतों और मुहावरों को भी अपनाया गया है। गुलाबराय जी की भाषा आडंबर शून्य है। संस्कृत के प्रकांड पंडित होते हुए भी गुलाबराय जी ने अपनी भाषा में कहीं भी पांडित्य-प्रदर्शन का प्रयत्न नहीं किया। संक्षेप में गुलाब राय जी का भाषा संयत, गंभीर और प्रवाहपूर्ण है।
गुलाब राय जी की रचनाओं में हमें निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते हैं-
१. विवेचनात्मक शैली- यह शैली गुलाब राय जी के आलोचनात्मक तथा विचारात्मक निबंधों में मिलती है। इस शैली में साहित्यिक तथा दार्शनिक विषयों पर गंभीरता से विचार करते समय वाक्य अपेक्षाकृत लंबे और दुरुह हो जाते हैं, किंतु जहाँ वर्तमान समस्याएँ, प्राचीन सिद्धांतों की व्याख्याएँ अथवा कवियों की व्याख्यात्मक आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं, वहाँ वाक्य सरल और भावपूर्ण हैं। इस शैली का एक उदाहरण- 'राष्ट्रीय पर्व' का मनाना कोरी भावुकता नहीं है। इस भावुकता का मूल्य है। भावुकता में संक्रामकता होती है और फिर शक्ति का संचार करती है। विचार हमारी दशा का निदर्शन कर सकते हैं किंतु कार्य संपादन की प्रबल प्रेरणा और शक्ति भावों में ही निहित रहती है।
२. भावात्मक शैली- गुलाब राय जी की इस शैली में विचारों और भावों का सुंदर समन्वय है। यह शैली प्रभावशालीन है और इसमें गद्य काव्य का सा आनंद आता है। इसकी भाषा अत्यंत सरल है। वाक्य छोटे-छोटे हैं और कहीं-कहीं उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। 'नर से नारायण' नामक निबंध से इस शैली का एक उदाहरण- 'सितंबर के महीने में आगरे में पानी की त्राहि-त्राहि मची थी। मैंने भी वैश्य धर्म के पालने के लिए पास के एक खेत में चरी 'बो' रखी थी। ज्वार की पत्तियाँ ऐंठ-ऐंठ कर बत्तियाँ बन गई थीं।
३. हास्य और विनोदपूर्ण शैली - गुलाब राय जी ने अपने निबंधों की नीरसता को दूर करने के लिए गंभीर विषयों के वर्णन में हास्य और व्यंग्य का पुट भी दिया है। इस विषय में उन्होंने लिखा है- 'अब मैं प्रायः गंभीर विषयों में भी हास्य का समावेश करने लगा हूँ। जहाँ हास्य के कारण अर्थ का अनर्थ होने की संभावना हो अथवा अत्यंत करुण प्रसंग हो तो हास्य से बचूँगा अन्यथा मैं प्रसंग गत हास्य का उतना ही स्वागत करता हूँ जितना कि कृपण या कोई भी अनायास आए हुए धन का।' इस शैली में हास्य का समावेश करने के लिए गुबाब राय जी या तो मुहावरों का सहारा लेते हैं या श्लेष का। इस शैली के वाक्य कुछ बड़े हैं। इसमें उर्दू, फारसी के शब्दों और मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है।
कृतियाँ
[संपादित करें]गुलाबराय जी ने मौलिक ग्रंथों की रचना के साथ-साथ अनेक ग्रंथों का संपादन भी किया है। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं-
आलोचनात्मक रचनाएँ- नवरस, हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास हिंदी, नाट्य विमर्श, आलोचना कुसुमांजलि, काव्य के रूप, सिद्धांत और अध्ययन आदि।
दर्शनसंबंधी- कर्तव्य शास्त्र, तर्क शास्त्र, बौद्ध धर्म, पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास, भारतीय संस्कृति की रूपरेखा।
निबंध संग्रह- प्रकार प्रभाकर, जीवन-पशु, ठलुआ क्लब, मेरी असफलताएँ, मेरे मानसिक उपादान आदि।
बाल साहित्य- विज्ञान वार्ता, बाल प्रबोध आदि।
संपादन ग्रंथ- सत्य हरिश्चंद्र, भाषा-भूषण, कादंबरी कथा-सार आदि।
इनके अतिरिक्त गुलाब राय जी की बहुत-सी स्फुट रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
- कृतियाँ एवं रचना-वर्ष
शांति धर्म - 1913 |
हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास - 1940 |
मन की बाते - 1954 |
विरासत
[संपादित करें]आधुनिक युग के निबंध लेखकों और आलोचकों में बाबू गुलाब राय का स्थान बहुत ऊँचा है। उन्होंने आलोचना और निबंध दोनों ही क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और मौलिकता का परिचय दिया है। हिंदी में सर्व प्रथम उन्होंने ही दर्शन संबंधी निबंधों की रचना की। गुलाब राय जी के निबंधों में नैतिकता का संदेश, समाज के लिए प्रगति, शील दृष्टिकोण, दर्शन के जटिल सिद्धातों की सरलतम व्याख्या और राष्ट्र प्रेम की उदात्त भावना है। एक मौलिक निबंधकार, उत्कृष्ट समालोचक एवं सफल संपादक के रूप में गुलाब राय जी ने हिंदी की जो सेवा की है, उसके लिए वे सदैव प्रशंसा और धन्यवाद के पात्र हैं। उनके सम्मान में भारतीय डाकतार विभाग ने २२ जून २००२ को एक टिकट जारी किया जिसका मूल्य ५ रुपये था और जिस पर बाबू गुलाबराय के चित्र के साथ उनकी तीन प्रमुख पुस्तकों को भी प्रदर्शित किया गया था।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- मेरे मानसिक उपादान (गूगल पुस्तक ; बाबू गुलाबराय के निबन्धों का संकलन)
- बाबू गुलाबराय ग्रन्थावली (सम्पादक - प्रो. विश्वम्भर अरुण)
- निबंध लेखन को ऊंचाई दी बाबू गुलाबराय ने[मृत कड़ियाँ]
- काव्यप्रकाश एवं 'काव्य के रूप' में व्यक्त काव्य विमर्श[मृत कड़ियाँ] (ताप्तीलोक)
- बाबू गुलाबराय के निबंध गंभीर थे, बोझिल नहीं (प्रभासाक्षी)