निबन्ध

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(निबन्ध ): गद्य लेखन की एक विधा है। लेकिन इस शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना करने वाले लेखों के लिए भी किया जाता है। निबन्ध के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबन्ध ही है। इसे अंग्रेजी के कम्पोज़ीशन और एस्से के अर्थ में ग्रहण किया जाता है।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत में भी निबन्ध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबन्धों में धर्मशास्त्रीय सिद्धान्तों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबन्ध संस्कृत के निबन्धों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है।

इतिहास-बोध परम्परा की रूढ़ियों से मनुष्य के व्यक्तित्व को मुक्त करता है। निबन्ध की विधा का सम्बन्ध इसी इतिहास-बोध से है। यही कारण है कि निबन्ध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है।

निबन्ध की सबसे अच्छी परिभाषा है-

निबंध, नि+बंध इन दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है, किसी भी विषय पर सुव्यवस्थित, रचनात्मक, विचारपूर्वक और क्रमबद्ध रूप से लिखना।

पंडित श्यामसुंदर दास जी के अनुसार “निबंध वह लेख है, जिसमें किसी विषय पर विस्तारपूर्वक और पाठिडत्यपूर्वक तरीके से विचार किया गया हो।“ (स्रोत)

निबन्ध, लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है।

इस परिभाषा में अतिव्याप्ति दोष है। लेकिन निबन्ध का रूप साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा इतना स्वतन्त्र है कि उसकी सटीक परिभाषा करना अत्यन्त कठिन है।

परिभाषा - निबन्ध वह रचना है जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तार और पाण्डित्यपूर्ण विचार किया जाता है। वास्तव में, निबन्ध शब्द का अर्थ है-बन्धन। यह बन्धन विविध विचारों का होता है, जो एक-दूसरे से गुँथे होते हैं और किसी विषय की व्याख्या करते हैं।

अच्छे निबंध की विशेषता[संपादित करें]

'निबन्ध' गद्य-साहित्य की प्रमुख विधा है। निबन्ध को 'गद्य की कसौटी' कहा गया है। अंग्रेजी में निबन्ध को एस्से (Essay) कहते हैं। नि + बन्ध = निबन्ध का शाब्दिक अर्थ है-अच्छी प्रकार से बँधा हुआ अर्थात् वह गद्य-रचना जिसमें सीमित आकार के भीतर निजीपन, स्वच्छता, सौष्ठव, सजीवता और आवश्यक संगति से किसी विषय का वर्णन किया जाता है। शब्दों का चयन, वाक्यों की संरचना, अनुच्छेद का निर्माण, विचार एवं कल्पना की एकसूत्रता, भावों की क्रमबद्धता आदि सब कुछ निबंध का शरीर निर्मित करते हैं। भाषा की सरलता, स्पष्टता, कसावट और विषयानुकूलता निबंध के शरीर को सजाने में अपना योगदान देती हैं।

अच्छे निबन्ध की विशेषताएँ-

  • निबंध में विषय का वर्णन आवश्यक संगति तथा सम्बद्धता से किया गया हो अर्थात् विचारों में क्रमबद्धता और तारतम्यता होनी चाहिए।
  • निबंध में मौलिकता, सरसता, स्पष्टता और सजीवता होनी चाहिए।
  • निबंध की भाषा सरल, प्रभावशाली तथा व्याकरणसम्मत तथा विषयानुरूप होनी चाहिए।
  • निबंध संकेत बिन्दुओं के आधार पर अनुच्छेदों में लिखा जाना चाहिए।
  • निबंध लेखन से पूर्व रूपरेखा तय करके संकेत-बिन्दु बना लेने चाहिए।
  • निबंध निश्चित शब्द-सीमा में ही लिखा जाना चाहिए।
  • निबंध-लेखन में उद्धरणों, सूक्तियों, मुहावरों, लोकोक्तियों एवं काव्य-पंक्तियों का आवश्यकतानुसार यथास्थान

प्रयोग किया जाना चाहिए।

  • विषय से संबंधित समस्त तथ्यों की चर्चा की जानी चाहिए।
  • वाक्यों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।
  • निबंध के उपसंहार में निबंध का सारांश दिया जाना चाहिए।

निबंध के अंग-निबंध को लिखते समय इसकी विषय-वस्तु को सामान्य रूप से निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—

  • (1) भूमिका, प्रस्तावना या आरम्भ-

निबंध का प्रारम्भ जितना आकर्षक और प्रभावशाली होगा वह उतना ही अच्छा माना जाता है। निबंध का प्रारम्भ किसी सूक्ति, काव्य-पंक्ति और विषय की प्रकृति को ध्यान में रखकर भूमिका के आधार पर किया जाना चाहिए।

  • (2) मध्य भाग या प्रसार-इस भाग में निबंध के विषय को स्पष्ट किया जाता है। लेखक को भूमिका के आधार पर अपने विचारों और तथ्यों को रोचक ढंग से अनुच्छेदों में बाँट कर प्रस्तुत करते हुए चलना चाहिए या उप- शीर्षकों में विभक्त कर मूल विषय-वस्तु का ही विवेचन करते हुए चलना चाहिए। ध्यान रहे, सभी उप-शीर्षक निबंध-विकास की दृष्टि से एक-दूसरे से जुड़े हों और विषय से सम्बद्ध हों।
  • ( 3 ) उपसंहार या अंत-निबन्ध के प्रारम्भ की भाँति इसका अन्त भी अत्यन्त प्रभावशाली होना चाहिए। अंत

अर्थात् उपसंहार एक प्रकार से सम्पूर्ण निबंध का निचोड़ होता है। इसमें अपनी सम्मति भी दी जा सकती है। ।

निबंध के अंग और प्रकार[संपादित करें]

निबंध के दो प्रधान अंग बताए गए हैं, जिसमें प्रस्तावना, मुख्य विषय और उपसंहार शामिल हैं। निबंध के चार प्रकार होते है,

  • वर्णात्मक निबंध: इस प्रकार के निबंध में किसी सजीव या निर्जीव वस्तु का वर्णन किया जाता है। जिसमें किसी स्थान, परिस्थिति, दृश्य, वस्तु आदि को आधार बनाया जाता है।
  • विचारात्मक निबंध: इस तरह के निबंधों में किसी विषय के गुण-दोष का वर्णन किया जाता है, जिसमें लेखक अपनी कल्पना और चिंतन शक्ति के माध्यम से इस प्रकार के निबंध को लिखता है।
  • विवरणात्मक निबंध: किसी ऐतिहासिक, पौराणिक, आकस्मिक या इसी प्रकार की घटना का वर्णन करने वाले निबंध, विवरणात्मक निबंध कहलाते हैं।
  • भावात्मक निबंध: भावनात्मक निबंध में लेखक किसी विषय पर अपने भाव प्रकट करता है। इस प्रकार के निबंध में भाव प्रधान होता है।
निबंध के विषय[संपादित करें]

निबन्ध की विशेषता[संपादित करें]

सारी दुनिया की भाषाओं में निबन्ध को साहित्य की सृजनात्मक विधा के रूप में मान्यता आधुनिक युग में ही मिली है। आधुनिक युग में ही मध्ययुगीन धार्मिक, सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति का द्वार दिखाई पड़ा है। इस मुक्ति से निबन्ध का गहरा सम्बन्ध है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार-

"नए युग में जिन नवीन ढंग के निबन्धों का प्रचलन हुआ है वे व्यक्ति की स्वाधीन चिन्ता की उपज है।

इस प्रकार निबन्ध में निबन्धकार की स्वच्छन्दता का विशेष महत्त्व है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है:

" निबन्ध लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छन्द गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-सम्बन्ध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है।

इसका तात्पर्य यह है कि निबन्ध में किन्हीं ऐसे ठोस रचना-नियमों और तत्वों का निर्देश नहीं दिया जा सकता जिनका पालन करना निबन्धकार के लिए आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि निबन्ध एक ऐसी कलाकृति है जिसके नियम लेखक द्वारा ही आविष्कृत होते हैं। निबन्ध में सहज, सरल और आडम्बरहीन ढंग से व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है।

हिन्दी साहित्य कोश” के अनुसार:

"लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमन्त्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका निबन्ध पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा। इसी आत्मीयता के फलस्वरूप निबन्ध-लेखक पाठकों को अपने पाण्डित्य से अभिभूत नहीं करना चाहता।

इस प्रकार निबन्ध के दो विशेष गुण हैं-

1. व्यक्तित्व की अभिव्‍यक्ति

2. सहभागिता का आत्मीय या अनौपचारिक स्तर

निबन्ध का आरम्भ कैसे हो, बीच में क्या हो और अन्त किस प्रकार किया जाए, ऐसे किसी निर्देश और नियम को मानने के लिए निबन्धकार बाध्य नहीं है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि निबन्ध एक उच्छृंखल रचना है और निबन्धकार एक उच्छृंखल व्यक्ति। निबन्धकार अपनी प्रेरणा और विषय वस्तु की सम्भवनाओं के अनुसार अपने व्यक्तित्व का प्रकाशन और रचना का संगठन करता है। इसी कारण निबन्ध में शैली का विशेष महत्त्व है।

हिन्दी साहित्य में निबन्ध[संपादित करें]

हिन्दी निबन्ध का इतिहास देखिये।

हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग में भारतेन्दु और उनके सहयोगियों से निबन्ध लिखने की परम्परा का आरम्भ होता है। निबन्ध ही नहीं, गद्य की कई विधाओं का प्रचलन भारतेन्दु से होता है। यह इस बात का प्रमाण है कि गद्य और उसकी विधाएँ आधुनिक मनुष्य के स्वाधीन व्यक्तित्व के अधिक अनुकूल हैं। मोटे रूप में स्वाधीनता आधुनिक मनुष्य का केन्द्रीय भाव है। इस भाव के कारण परम्परा की रूढ़ियाँ दिखाई पड़ती हैं। सामयिक परिस्थितियों का दबाव अनुभव होता है। भविष्य की सम्भावनाएँ खुलती जान पड़ती हैं। इसी को इतिहास-बोध कहा जाता है। भारतेन्दु युग का साहित्य इस इतिहास-बोध के कारण आधुनिक माना जाता है।

प्रमुख हिन्दी निबन्धकार[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]