प्राणायाम

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प्राणायाम करते हुए एक व्यक्ति
मोनियर-विलियमस ने प्राणायाम को कुम्भक के रूप में इस प्रकार परिभाषित किया है। इसमें क्षैतिज अक्ष पर समत है, और ऊर्ध्व अक्ष पर फेफड़ों में वायु की मात्रा

प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है। अष्टांग योग में आठ प्रक्रियाएँ होती हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, तथा समाधिप्राणायाम = प्राण + आयाम । इसका शाब्दिक अर्थ है -  प्राण या श्वसन को लम्बा करना  या फिर   जीवनी शक्ति  को लम्बा करना । प्राणायाम का अर्थ कुछ हद तक श्वास को नियंत्रित करना हो सकता है | परन्तु स्वास को कम करना नहीं होता है | प्राण या श्वास का आयाम या विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है |

यह प्राण-शक्ति का प्रवाह कर व्यक्ति को जीवन शक्ति प्रदान करता है।

हठयोगप्रदीपिका में कहा गया है-

चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्
योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत्॥२॥
(अर्थात प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होने पर मन भी स्वत: निश्चल हो जाता है और योगी स्थाणु हो जाता है। अतः योगी को श्वांसों का नियंत्रण करना चाहिये।

यह भी कहा गया है-

यावद्वायुः स्थितो देहे तावज्जीवनमुच्यते।
मरणं तस्य निष्क्रान्तिः ततो वायुं निरोधयेत् ॥
( जब तक शरीर में वायु है तब तक जीवन है। वायु का निष्क्रमण (निकलना) ही मरण है। अतः वायु का निरोध करना चाहिये।)

परिचय[संपादित करें]

प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है- (प्राण+आयाम) पहला शब्द "प्राण" है दूसरा "आयाम"। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है। आयाम का अर्थ जानने के लिये इसका संधि विच्छेद करना होगा क्योंकि यह दो शब्दों के योग (आ+याम) से बना है। इसमें मूल शब्द '"याम" ' है 'आ' उपसर्ग लगा है। याम का अर्थ 'गमन होता है और '"आ" ' उपसर्ग 'उलटा ' के अर्थ में प्रयोग किया गया है अर्थात आयाम का अर्थ उलटा गमन होता है। अतः प्राणायाम में आयाम को 'उलटा गमन के अर्थ में प्रयोग किया गया है। इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ 'प्राण का उलटा गमन होता है। यहाँ यह ध्यान देने कि बात है कि प्राणायाम प्राण के उलटा गमन के विशेष क्रिया की संज्ञा है न कि उसका परिणाम। अर्थात प्राणायाम शब्द से प्राण के विशेष क्रिया का बोध होना चाहिये।

प्राणायाम के बारे में बहुत से ऋषियों ने अपने-अपने ढंग से कहा है लेकिन सभी के भाव एक ही है जैसे पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र एवं गीता में जिसमें पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र महत्वपूर्ण माना जाता है जो इस प्रकार है- तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा- श्वास प्रश्वास के गति को अलग करना प्राणायाम है। इस सूत्र के अनुसार प्राणायाम करने के लिये सबसे पहले सूत्र की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये लेकिन पतंजलि के प्राणायाम सूत्र की व्याख्या करने से पहले हमे इस बात का ध्यान देना चाहिये कि पतंजलि ने योग की क्रियाओं एवं उपायें को योगसूत्र नामक पुस्तक में सूत्र रूप से संकलित किया है और सूत्र का अर्थ ही होता है -एक निश्चित नियम जो गणितीय एवं विज्ञान सम्मत हो। यदि सूत्र की सही व्याख्या नहीं हुई तो उत्तर सत्य से दूर एवं परिणाम शून्य होगा। यदि पतंजलि के प्राणायाम सूत्र के अनुसार प्राणायाम करना है तो सबसे पहले उनके प्राणायाम सूत्र तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये जो शास्त्रानुसार, विज्ञान सम्मत, तार्किक, एवं गणितीय हो। इसी व्याख्या के अनुसार क्रिया करना होगा। इसके लिये सूत्र में प्रयुक्त शब्दों का अर्थबोध होना चाहिये तथा उसमें दी गयी गति विच्छेद की विशेष युक्ति को जानना होगा। इसके लिये पतंजलि के प्राणायाम सूत्र में प्रयुक्त शब्दो का अर्थ बोध होना चाहिये।

प्राणायाम प्राण अर्थात् साँस आयाम याने दो साँसो मे दूरी बढ़ाना, श्‍वास और नि:श्‍वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को कहा जाता है।

श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। हम साँस लेते है तो सिर्फ़ हवा नहीं खीचते तो उसके साथ ब्रह्मान्ड की सारी उर्जा को उसमे खींचते है। अब आपको लगेगा की सिर्फ़ साँस खीचने से ऐसा कैसा होगा। हम जो साँस फेफडो में खीचते है, वो सिर्फ़ साँस नहीं रहती उसमे सारे ब्रम्हन्ड की सारी उर्जा समायी रहती है। मान लो जो साँस आपके पूरे शरीर को चलाना जनती है, वो आपके शरीर को दुरुस्त करने की भी ताकत रखती है। प्राणायाम निम्न मंत्र (गायत्री महामंत्र) के उच्चारण के साथ किया जाना चाहिये।

ॐ भूः भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।

प्राणायाम के प्रकार -

घेरन्ड संहिता के अनुसार -

सहित: सूर्यभेदश्च उज्जायी शीतली तथा ।

भस्त्रिका भरमारी मूर्च्छा केवली चाष्टकुम्भका: ।।

घेरन्ड संहिता के अनुसार प्राणायाम के आठ भेद बताए गए हैं -

सहित, सूर्यभेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा और केवली ।

हठप्रदीपिका के अनुसार -

सूर्यभेदनमुज़्जायी सीत्कारी शीतली तथा ।

भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्ट कुम्भक: ।।

हठप्रदीपिका के अनुसार प्राणायाम के आठ भेद निम्न हैं -

सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा और प्लाविनी ये आठ प्रकार के कुम्भक (प्राणायाम ) होते हैं ।

महत्व[संपादित करें]

प्राणायाम का योग में बहुत महत्व है। आदि शंकराचार्य श्वेताश्वतर उपनिषद पर अपने भाष्य में कहते हैं, "प्राणायाम के द्वारा जिस मन का मैल धुल गया है वही मन ब्रह्म में स्थिर होता है। इसलिए शास्त्रों में प्राणायाम के विषय में उल्लेख है।"[1] स्वामी विवेकानंद इस विषय में अपना मत व्यक्त करते हैं, "इस प्राणायाम में सिद्ध होने पर हमारे लिए मानो अनंत शक्ति का द्वार खुल जाता है। मान लो, किसी व्यक्ति की समझ में यह प्राण का विषय पूरी तरह आ गया और वह उस पर विजय प्राप्त करने में भी कृतकार्य हो गया , तो फिर संसार में ऐसी कौन-सी शक्ति है, जो उसके अधिकार में न आए? उसकी आज्ञा से चन्द्र-सूर्य अपनी जगह से हिलने लगते हैं, क्षुद्रतम परमाणु से वृहत्तम सूर्य तक सभी उसके वशीभूत हो जाते हैं, क्योंकि उसने प्राण को जीत लिया है। प्रकृति को वशीभूत करने की शक्ति प्राप्त करना ही प्राणायाम की साधना का लक्ष्य है।"[2]

सावधानियाँ[संपादित करें]

  • सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास,सत्यभावना, दृढ़ता।
  • करने से पहले हमारा शरीर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए
एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
  • सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
  • प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
  • प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
  • प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
  • हर साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
  • जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
  • यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे धीरे अभ्यास करें।
  • हर साँस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप
  • ओम् का जाप का उपचारण करने से हमारे पूरे शरीर मे (सिर से ले कर पैर के अंगूठे तक ) एक वाइब्रेशन होती है जो हमारे अंदर की नगेस्टिव एनर्जी को बाहर निकल के मन और आत्मा को शुद्ध करती है।

भस्त्रिका प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। नाक से लंबी साँस फेफडों में ही भरें, फिर लंबी साँस फेफडोॆ से ही छोडें| साँस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे। हमें हमारी गलतियाँ सुधारनी है, एक तो हम पूरी साँस नहीं लेते; और दूसरा हमारी साँस पेट में चली जाती है। देखिये हमारे शरीर में दो रास्ते है, एक (नाक, श्वसन नलिका, फेफडे) और दूसरा (मुँह्, अन्ननलिका, पेट्)| जैसे फेफडो में हवा शुद्ध करने की प्रणाली है, वैसे पेट में नहीं है। उसी के का‍रण हमारे शरीर में आॅक्सीजन की कमी महसूस होती है और उसी के कारण हमारे शरीर में रोग जुड़ते है।

लाभ=[संपादित करें]

  • हमारा हृदय सशक्त बनाने के लिये है।
  • हमारे फेफड़ों को सशक्त बनाने के लिये है।
  • मस्तिष्क से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये भी यह लाभदायक है।
  • पार्किनसन, पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये।
  • भगवान से नाता जोडने के लिये।

कपालभाति प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें और साँस को बाहर फैंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इसमें सिर्फ साँस को छोड़ते रहना है। दो साँसों के बीच अपने आप साँस अन्दर चली जायेगी, जान-बूझ कर साँस को अन्दर नहीं लेना है। कपाल कहते है मस्तिष्क के अग्र भाग को, भाती कहते है ज्योति को, कान्ति को, तेज को; कपालभाति प्राणायाम लगातार करने से चहरे का लावण्य बढ़ता है। कपालभाति प्राणायाम धरती की सन्जीवनि कहलाता है। कपालभाती प्राणायाम करते समय मूलाधार चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना होता है। इससे मूलाधार चक्र जाग्रत हो कर कुन्डलिनी शक्ति जाग्रत होने में मदद होती है। कपालभाति प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है कि, हमारे शरीर के सारे नकारात्मक तत्व शरीर से बाहर जा रहे हैं। खाना मिले ना मिले मगर रोज कम से कम ५ मिनिट कपालभाति प्राणायाम करना ही है, यह दृढ़ संक्लप करना है।

विशेष

कपालभाति प्राणायाम के बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम अवश्य करें।ऐसा करने से कपालभाति प्राणायाम के लाभ और बढ जाते हैं।

लाभ[संपादित करें]

  • बालों की सारी समस्याओँ का समाधान प्राप्त होता है।
  • चेहरे की झुरियाँ, आँखो के नीचे के डार्क सर्कल मिट जायेंगे|
  • थायराॅइड की समस्या मिट जाती है।
  • सभी प्रकार की चर्म समस्या मिट जाती है।
  • आँखों की सभी प्रकार की समस्याऐं मिट जाती है और आँखो की रोशनी लौट आती है।
  • दाँतों की सभी प्रकार की समस्याऐं मिट जाती हैं और दाँतों की खतरनाक पायरिया जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है।
  • कपालभाति प्राणायाम से शरीर की बढ़ी चर्बी घटती है, यह इस प्राणायाम का सबसे बड़ा फायदा है।
  • कब्ज, ऐसिडिटी, गैस्टि्क जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं।
  • यूट्रस (महिलाओं) की सभी समस्याओँ का समाधान होता है।
  • डायबिटीज़ संपूर्णतय: ठीक हो जाता है।
  • कोलेस्ट्रोल को घटाने में भी सहायक है।
  • सभी प्रकार की ऐलर्जियाँ मिट जाती हैं।
  • सबसे खतरनाक कैन्सर रोग तक ठीक हो जाता है।
  • शरीर में स्वतः हीमोग्लोबिन तैयार होता है।
  • शरीर में स्वतः कैल्शियम तैयार होता है।
  • किडनी स्वतः स्वच्छ होती है, डायलेसिस करने की जरुरत नहीं पड़ती|

बाह्य प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। साँस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद साँस बाहर ही रोके रखने के बाद तीन बन्ध लगाते हैं।

१) जालंधर बन्ध :- गले को पूरा सिकोड कर ठोडी को छाती से सटा कर रखना है।

२) उड़ड्यान बन्ध :- पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खींचना है।

३) मूल बन्ध :- हमारी मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है।

लाभ[संपादित करें]

  • कब्ज, ऐसिडिटी, गैस जैसी पेट की सभी समस्याएें मिट जाती हैं।
  • हर्निया पूरी तरह ठीक हो जाता है।
  • धातु, और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिट जाती हैं।
  • मन की एकाग्रता बढ़ती है।
  • व्यंधत्व (संतान हीनता) से छुटकारा मिलने में भी सहायक है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, या वज्रासन में बैठें। शुरुआत और अन्त हमेशां बाँये नथुने (नोस्टिरल) से ही करनी है, नाक का दाँया नथुना बंद करें व बाँये से लंबी साँस लें, फिर बाँये को बंद करके, दाँये वाले से लंबी साँस छोडे़ं...अब दाँये से लंबी साँस लें और बाँयें वाले से छोडे़ं...यानि यह दाँया-दाँया बाँया-बाँया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| साँस लेते समय अपना ध्यान दोंनों आँखों के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए। और मन ही मन में साँस लेते समय ॐ-ॐ का जाप करते रहना चाहिए। हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सूक्ष्म नाड़ी शुद्ध हो जाती हैं। बाँयी नाड़ी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और दायीं नाडी को सूर्य (पीन्गला, यमुना) नाड़ी कहते हैं। चन्द्र नाडी से ठण्डी हवा अन्दर जाती है और सूर्य नाड़ी से गरम हवा अन्दर जाती है। ठण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रहता है। इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ जाती है।

लाभ[संपादित करें]

  • हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सूक्ष्म नाड़ी शुद्ध हो जाती है।
  • हार्ट की ब्लाॅकेज खुल जाते है।
  • हाई, लो दोंनों रक्त चाप ठीक हो जायेंगे|
  • आर्थराटिस, रह्यूमेटोइड आर्थराइटिस, कार्टीलेज घिसना जैसी बीमारियाँ ठीक हो जाती है।
  • टेढे़ लिगामेंट्स सीधे हो जायेंगे|
  • वैरीकोस वेन्स ठीक हो जाती हैं।
  • कोलेस्ट्रोल , टाँक्सिन्स, आँक्सीडैन्ट्स जैसे विजातीय पदार्थ शरीर के बाहर निकल जाते हैं।
  • सायकिक पेंशेन्ट्स को फायदा होता है।
  • किडनी प्राकृतिक रूप से स्वच्छ होती है, डायलेसिस करने की जरुरत नहीं पड़ती|
  • सबसे बड़ा खतरनाक कैन्सर तक ठीक हो जाता है।
  • सभी प्रकार की ऐलर्जीयाँ मिट जाती है।
  • मेमरी बढ़ाने के लिये।
  • सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है।
  • ब्रेन ट्यूमर भी ठीक हो जाता है।
  • सभी प्रकार के चर्म समस्या मिट जाती है।
  • मस्तिषक के सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
  • पार्किनसन्स, पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
  • सायनस की व्याधि मिट जाती है।
  • डायबीटीज़ पूरी तरह मिट जाती है।
  • टाँन्सिल्स की व्याधि मिट जाती है।

भ्रामरी प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। दोनो अंगूठों से कान पूरी तरह बन्द करके, दो उंगलिओं को माथे पर रख कर, छः उंगलियों को दोनो आँखों पर रख दे। और लंबी साँस लेते हुए कण्ठ से भवरें जैसा (म……) आवाज निकालना है ।

लाभ
  • सायकीक पेंशेट्स को फायदा होता है।
  • मायग्रेन पेन, डीप्रेशन, और मस्तिष्क से सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
  • मन और मस्तिषक की शांति मिलती है।
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ति करने के लिये।
  • मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये।

उद्गीथ प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और लंबी सास लेके मुँह से ओउम का जाप करना है।

लाभ[संपादित करें]

  • पॉजिटिव एनर्जी तैयार करता है।
  • सायटिका पेंशेट्स को फायदा होता है।
  • मायग्रेन पेन, डिप्रेशन, ऑर मस्तिष्क के सम्बधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।
  • मन और मस्तिष्क की शांति मिलती है।
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ति करने के लिये।
  • मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढाने के लिये।

प्रणव प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और मन ही मन में एकदम शान्त बैठ कर लंबी साँस लेते हुए ओउम का जाप करना है।

लाभ[संपादित करें]

  • पाँजटिव एनर्जी तैयार करता है।
  • सायटिका पेशेंट को फायदा होता है।
  • मायग्रेन पेन, डिप्रेशन और मस्तिषक के सम्बधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये।
  • मन और मस्तिष्क की शांति मिलती है।
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ति करने के लिये।
  • मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढाने के लिये।

अग्निसार क्रिया[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। यह क्रिया में कपालभाती प्राणायाम जैसा नहीं है, बार बार साँस बाहर नहीं करनी है। सास को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद बाहर ही रोक कर पेट को आगे पीछे करना है।

लाभ[संपादित करें]

  • कब्ज, ऐसिडिटी, गँसस्टीक, जैसी पेट की सभी समस्याऐं मिट जाती हैं।
  • हर्निया पूरी तरह मिट जाता है।
  • धातु, और पेशाब के संबंधित सभी समस्याऐं मिट जाती हैं।
  • मन की एकाग्रता बढ़ेगी।
  • व्यंधत्व से छुटकारा मिल जायेगा।

उज्जायी प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। सीकुडे हुवे गले से सास को अन्दर लेना है।

लाभ[संपादित करें]

  • थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है।
  • तुतलाना, हकलाना, ये शिकायत भी दूर होती है।
  • अनिद्रा, मानसिक तनाव भी कम करता है।
  • टी•बी•(क्षय) को मिटाने में मदद होती है।
  • गुंगे बच्चे भी बोलने लगेंगे|

सीत्कारी प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। जिव्हा तालू को लगाके दोनो जबड़े बन्द करके लेना और उस छोटी सी जगह से सीऽऽ सीऽऽ करत॓ हुए हवा को अन्दर खीचना है। और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड़ दे। जैसे ए• सी• के फिन्स होते है, उससे ए• सी• के काँम्प्रेसर पर कम दबाव आता है और गरम हवा बाहर फेकने से हमारी कक्षा की हवा ठंडी हो जाती है। वैसे ही हमे हमारे शरीर की अतिरिक्त गर्मी कम कर सकते है।

लाभ[संपादित करें]

  • शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये।
  • ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मीलता है।
  • पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये।
  • शरीर पर कही़ं भी आयी हुई फोड़ी को मिटाने की लिये।

शितली प्राणायाम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जीव्हा को बाहर निकालना, हमरी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है। और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड़ दे।

लाभ[संपादित करें]

  • शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये।
  • ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है।
  • पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये।
  • शरीर पर कहीं भी आई हुई फोड़ी को मिटाने की लिये।

शीतली प्राणायम[संपादित करें]

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जिव्हा को बाहर निकालना, हमारी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है। और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड़ दे।

लाभ[संपादित करें]

  • शरीर की अतिरिक्त गरमी को कम करने के लिये।
  • ज्यादा पसीना आने की शिकायत से आराम मिलता है।
  • पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये।
  • शरीर पर कहा भी आयी हुई फोड़ी को मिटाने की लिये।

चंदभेदी प्राणायाम[संपादित करें]

पद्मासन या सिद्धासन में बैठें, फिर दाहिने हाथ के अंगूठे का उपयोग करके (तर्जनी और मध्यमा को एक साथ बंद करते हुए) अपनी दाहिनी नासिका को बंद करें और धीरे-धीरे सांस अंदर लें, फिर सांस रोककर अपने बाएं नथुने को अनामिका से बंद करें, धीरे-धीरे दाएं नथुने से सांस छोड़ें।

लाभ[संपादित करें]

जैसा कि "सूय॔भेदी प्राणायाम" अनुभाग के अन्तर्गत वर्णित है।

अन्य प्राणायाम[संपादित करें]

इसके अलावा भी योग में अनेक प्रकार के प्राणायामों का वर्णन मिलता है जैसे-

1. अनुलोम-विलोम प्राणायाम

2. अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम

3. अग्नि प्रसारण प्राणायाम

4. एकांड स्तम्भ प्राणायाम

5. सीत्कारी प्राणायाम

6. सर्वद्वारबद्व प्राणायाम

7. सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम

8. सम्त व्याहृति प्राणायाम

9. चतुर्मुखी प्राणायाम,

10. प्रच्छर्दन प्राणायाम

11. चन्द्रभेदन प्राणायाम

12. यन्त्रगमन प्राणायाम

13. वामरेचन प्राणायाम

14. दक्षिण रेचन प्राणायाम

15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम

16. त्रिबन्धरेचक प्राणायाम

17. कपाल भाति प्राणायाम

18. हृदय स्तम्भ प्राणायाम

19. मध्य रेचन प्राणायाम

20. त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम

21. ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम

22. मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम

23. वायुवीय कुम्भक प्राणायाम

24. वक्षस्थल रेचन प्राणायाम

25. दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम

26. प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम

27. षन्मुखी रेचन प्राणायाम

28. कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम

29. सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम

30. नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. विवेकानंद, स्वामी. "साधना के प्राथमिक सोपान". मूल से 19 अगस्त 2019 को पुरालेखित.
  2. विवेकानंद, स्वामी. "राजयोग तृतीय अध्याय – प्राण". मूल से 22 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित.


बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]