पौड़ी
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पौड़ी गढ़वाल | |||||||
— शहर — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | ![]() | ||||||
राज्य | उत्तराखंड | ||||||
ज़िला | पौड़ी जिला | ||||||
जनसंख्या | 24,742 (2001 के अनुसार [update]) | ||||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
• 1,379 मीटर (4,524 फी॰) | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: 210.212.78.56/50cities/pauri/english/home.asp |
निर्देशांक: 30°09′N 78°47′E / 30.15°N 78.78°E
पौड़ी गढ़वाल भारतीय राज्य उत्तराखंड का एक शहर है। यह पौड़ी गढ़वाल जिला का मुख्यालय है। पौड़ी गढ़वाल जिला वृत्ताकार रूप में है। जिसमें हरिद्वार, देहरादून, टिहरी गढ़वाल, रूद्वप्रयाग, चमोली, अल्मोड़ा और नैनीताल सम्मिलित है। यहां स्थित हिमालय, नदियां, जंगल और ऊंचे-ऊंचे शिखर यहां की खूबसूरती को अधिक बढ़ाते हैं। पौड़ी समुद्र तल से लगभग 1814 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ से ढके हिमालय शिखर पौड़ी की खूबसूरती को कहीं अधिक बढ़ाते हैं।
पर्यटन स्थल[संपादित करें]
कंडोलिया[संपादित करें]
शिव मंदिर (कंडोलिया देवता) पौड़ी से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कंडोलिया देवता का यह मंदिर वहां के भूमि देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इस मंदिर के समीप ही खूबसूरत पार्क और खेल परिसर भी स्थित है। इससे कुछ मिनट की दूरी पर ही एशिया का सबसे ऊचा स्टेडियम रांसी भी है। गर्मियों के दौरान कंडोलिया पार्क में पर्यटकों की भारी मात्रा में भीड़ देखी जा सकती है। यहां आने वाले पर्यटक अपने परिवार के साथ यहां का पूरा-पूरा मजा उठाते हैं। इस पार्क के एक तरफ खुबसूरत पौड़ी शहर देखा जा सकता हैं वहीं दूसरी ओर गंगवारेशियन घाटी भी स्थित है। कन्डोलिया मन्दिर से सर्दियों में हिमालय बहुत सुंदर दिखाई देता है। हिमालय की बन्दर पूछ, केदारनाथ, चौखम्बा, नीलकन्ठ, त्रिशूल आदि चोटियों के यहाँ से बहुत खूबसूरत दर्शन होते हैं।
बिंसर महादेव[संपादित करें]
बिंसर महादेव मंदिर 2480 मी. ऊंचाई पर स्थित है। यह पौड़ी से 114 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सौन्दर्यता के लिए जानी जाती है। यह मंदिर भगवान हरगौरी, गणेश और महिषासुरमंदिनी के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लेकर यह माना जाता है कि यह मंदिर महाराजा पृथ्वी ने अपने पिता बिन्दु की याद में बनवाया था। इस मंदिर को बिंदेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
ताराकुंड[संपादित करें]
ताराकुंड समुद्र तल से 2,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ताराकुंड बहुत ही खूबसूरत एवं आकर्षित जगह है। जो पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर अधिक खींचती है। ताराकुंड अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से आस-पास का नजारा काफी मनमोहक लगता है। एक छोटी सी झील और बहुत पुराना मंदिर इस जगह को ओर अधिक सुंदर बनाता है। साथ ही ऊंची पहाड़ियों के बीच बने मंदिर के साथ नौ बांस गहरा कुआं भी है, जो खुद में एक आश्चर्य है, बताया जाता है कि स्वर्गारोहण के वक्त पांडव यहां आए थे और उन्होंने ही ये मंदिर बनाया था। यहां तीज का त्यौहार, यहां रहने वाले स्थानीय निवासियों द्वारा बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। क्योंकि यह त्यौहार विशेष रूप से भूमि देवता को समर्पित होता है। ताराकुंड पहुंचने का एक रास्ता सिरतोली गांव से होकर भी जाता है,
कण्वाश्रम[संपादित करें]
कण्वाश्रम मालिनी नदी के किनारे स्थित है। कोटद्वार से इस स्थान की दूरी 14 किलोमीटर है। यहां स्थित कण्व ऋषि आश्रम बहुत ही महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक जगह है। ऐसा माना जाता है कि सागा विश्वमित्रा ने यहां पर तपस्या की थी। भगवानों के देवता इंद्र उनकी तपस्या देखकर अत्यंत चिंतित होगए और उन्होंने उनकी तपस्या भंग करने के लिए मेनका को भेजा। मेनका विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने में सफल भी रही। इसके बाद मेनका ने कन्या के रूप में जन्म लिया और पुन: स्वर्ग आ गई। बाद में वहीं कन्या शकुन्तला के नाम से जाने जानी लगी। और उनका विवाह हस्तिनापुर के महाराजा से हो गया। शकुन्लता ने कुछ समय बाद एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम भारत रखा गया। भारत के राजा बनने के बाद ही हमारे देश का नाम भारत' रखा गया।
दूधातोली[संपादित करें]
दूधातोली 31,00मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान जंगल से घिरा हुआ है। यहां तक पंहुचने के लिए थलीसैन से होते हुए पीठसैण पंहुच कर पंहुचा जा सकता है।
सड़क द्वारा पीठसैण से दूधातोली की दूरी 10 किलोमीटर है। दूधातोलीपौड़ी के खूबसूरत स्थानों में से एक है। यह स्थान हिमालय के चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां का नजारा बहुत ही आकर्षक है जो यहां आने वाले पर्यटकों को सदैव ही अपनी ओर आकर्षित करता है। गढ़वाल के स्वतंत्रता सेनानी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली को भी यह स्थान काफी पसंद आया था। इसलिए उनकी यह अंन्तिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनके नाम से एक स्मारक यहां पर बनाया जाए। यह स्मारक ओक के बड़े-बड़े वृक्षों के बीच स्थित है। जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में 'नेवर से डाई' लिखा गया है।
ज्वाल्पा देवी मंदिर[संपादित करें]
यह क्षेत्र प्रसिद्ध शक्ति पीठ माता दुर्गा को समर्पित है। इस स्थान की दूरी पौड़ी कोटद्वार सड़क मार्ग 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान भी प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। हर साल भक्तगण भारी संख्या में माता के दर्शनों के लिए यहां आते हैं। पौड़ी कोटद्वार सड़क मार्ग से पौड़ी स्थित ज्वालपा देवी मंदिर की दूरी 34 किलोमीटर है। हर साल नवरात्रों के अवसर पर यहां ज्वालपा देवी विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर एक संस्कृत विद्यालय भी है, जहां दूर-दूर से आने वाले विद्यार्थी शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करते हैं
खिर्सू[संपादित करें]
खिर्सू मंडल मुख्यालय पौड़ी से 19 किमी की दूरी पर स्थित है। खिर्सू से हिमालय की रेंज के दीदार होते हैं, यह एक पर्यटक ग्राम है। यहीं कारण है कि यह जगह भारी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहां से बहुत से जाने-अनजाने नाम वाले शिखरों का नजारा देखा जा सकता है। यह पौड़ी से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। खिर्सू काफी शन्तिपूर्ण स्थल है। इसके अलावा खिर्सू पूरी तरह से प्रदूषण रहित जगह है। यह जगह ओक, देवदार और सेब के बगीचों से घिरी हुई है। यहां सबसे पुराने गंढीयाल देवता का मंदिर भी स्थित है।
आवागमन[संपादित करें]
- हवाई मार्ग
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोलीग्रांट है। पौढ़ी से इस स्थान की दूरी 155 किलोमीटर है।
- रेल मार्ग
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है जो कि 108 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- सड़क मार्ग
पौढ़ी देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार एवं अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है।