नवगोपाल मित्र
नवगोपाल मित्र | |
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जन्म |
१८४० कोलकता |
मौत |
१८९४ |
पेशा | नाटककार, कवि और निबन्धकार |
नवगोपाल मित्र (1840–1894) भारतीय नाटककार, कवि, निबन्धकार तथा देशभक्त थे। हिन्दू राष्ट्रीयता के संस्थापकों में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। ऋषि राजनारायण बसु आदि के साथ मिलकर उन्होने हिन्दू मेले की स्थापना की थी। उन्होने नेशनल प्रेस, नेशनल पेपर, नेशनल सोसायटी, नेशनल थिएटर, नेशनल जिम्नेजियम (राष्ट्रीय व्यायामशाला), नेशनल सर्कस आदि की स्थापना की जिनसे उनका नाम ही 'नेशनल मित्र' पड़ गया।
आरम्भिक जीवन
[संपादित करें]नवगोपाल मित्र का जन्म कलकाता के एक सम्भ्रान्त बंगाली हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका परिवार कार्नवालिस स्ट्रीट के पास शङ्कर घोष गली में निवास करता था। उनके जन्मवर्ष को लेकर संशय है। अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि उनका जन्म जन्म १८४० ई में हुआ था, किन्तु कुछ लोग मानते हैं कि उनका जन्म १८४१ ई में मानते हैं। बचपन से ही ठाकुर परिवार के सङ्ग उनकी बहुत घनिष्ठता थी। सत्येन्द्रनाथ ठाकुर एवं गणेन्द्रनाथ ठाकुर हिन्दू स्कुल में उनके सहपाठ थे। समय के साथ वे देवेन्द्रनाथ ठाकुर के भी निकटतम सहयोगी रहे।
नवगोपाल मित्र एकता को राष्ट्रवाद के लिए एक मौलिक आवश्यकता मानते थे । उनका यह भी विचार था कि हिन्दुओं की एकता का मूल आधार हिन्दू धर्म ही है। उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की परिभाषित करने का भी प्रयास किया। उनके अनुसार, "हिंदू राष्ट्रीयता ... केवल बंगाल तक ही सीमित नहीं है। यह सम्पूर्ण हिन्दुस्तान के लिये है और हिन्दुओं के सभी सम्प्रदाय इसके अन्तर्गत आते हैं, चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों और किसी भी भाग के निवासी हों।
नेशनल पेपर
[संपादित करें]सन् १८६७ ई में उन्होंने 'नेशनल पेपर' नाम से एक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका प्रकाशित करना आरम्भ किया। महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने इसके लिये आर्थिक सहायता प्रदान किया था। इस पत्रिका के मुख्य सम्पादक होते हुए भी नवगोपाल मित्र अपने स्तम्भों में कभी भी सही अंग्रेजी नहीं लिखते थे। यदि कोई उसमें त्रुटि बताता था तो वे कहते थे कि अंग्रेजी मेरी मातृभाषा नहीं है, और यदि इसमें अंग्रेजी व्याकरण की कोई त्रुटि है तो क्या हुआ? यह उनकी अंग्रेजी के प्रति घृणा और अनादर था क्योंकि वे अंग्रेजी को अत्याचारियों की भाषा मानते थे। यह संस्कार उनमें महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर के संग के प्रभाव से आया था।
हिन्दू मेला
[संपादित करें]१८६७ ई में नेशनल पेपर में राजनारायण बसु ने 'बंगाल के शिक्षित निवासियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने वाली सोसायटी' के निर्माण के आशय की पुस्तिका प्रकाशित की। इस पुस्तिका से ही प्रेरित होकर नवगोपाल मित्र ने १८६७ ई में हिन्दू मेला एवं नेशनल सोसायटी की स्थापना की। इस मेले का नाम पहले 'जातीय मेला' (हिन्दी : राष्ट्रीय मेला) था।
उन्होने ज्योतिरिन्द्रनाथ ठाकुर से अनुरोध किया कि वे अपने द्वारा रचित कविताओं को मेले में सुनाएँ। युवा नरेन्द्रनाथ भी इस मेले में आया करते थे।
नेशनल जिम्नेशियम
[संपादित करें]हिन्दु मेले में नवगोपाल मित्र जिम्नास्टिक्स, मल्लयुद्ध एवं अन्य पारम्परिक खेलों पर बहुत बल देते थे। १८६८ ई में उन्होंने अपने घर पर एक जिम्नास्टिक स्कूल खोल लिया, जिसका नाम उन्होंने 'नेशनल जिम्नेशियम' रखा। यह बहुत लोकप्रिय हुआ और कुछ ही वर्षों में शारीरिक शिक्षा के अनेक अध्यापक तैयार हुए। १८७० के दशक के आरम्भिक दिनों में बंगाल के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर जॉर्ज कैम्पबेल ने एक नयी शिक्षा नीति आरम्भ की। इस नयी प्रणाली के अनुसार सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में यूरोपीय शैली के व्यायामशालाएँ खोलने का प्रावधान था। हिन्दू कॉलेज के जिम्नेजियम में 'पैरेलेल बार' (समान्तर पाइप) था, 'क्षैतिज बार' था और ट्रैपिज (trapeze) था। नवगोपाल मित्र के ज्येष्ठ जामाता (दामाद) वहाँ के प्रशिक्षक थे। इन उपकरणों के महत्व और आवश्यकता को समझकर नवगोपाल मित्र ने इन्हें परम्परागत भारतीय खेलों आदि में समाहित करने का प्रयत्न किया। नेशनल जिमेसियम में शारीरिक व्यायाम, मल्लयुद्ध, तलवार चालन एवं लाठी खेला के ऊपर अधिक बल था किन्तु धीरे-धीरे यूरोपीय शैली के उपकरण भी इसमें लगाये गये। यहाँ तक कि उन्होंने बंगाली हिन्दुओं को प्रशिक्षित करने के लिये एक ब्रितानी प्रशिकक्ष भी नियुक्त किया।
नेशनल स्कूल
[संपादित करें]१८७२ ई में नवगोपाल मित्र ने कार्नवालिस स्ट्रीट स्थित 'कलकत्ता ट्रेनिंग एकेदमी' के परिसर में 'नेशनल स्कूल' की स्थापना की। यहाँ पर ड्राइंग, मॉडेलिंग, ज्यामितीय ड्राइंग, आर्किटेक्चरल ड्राइंग, इंजीनियरी और सर्वेक्षण की शिक्षा दी जाती थी। शिक्षकों में प्रमुख थे, श्यामाचरण श्रीमानि एवं भारत की प्रथम शिल्प पत्रिका 'शिल्प पुष्पाञ्जलि' के संस्थापक कालिदास पाल।
नेशनल थिएटर
[संपादित करें]१८७२ में 'नेशनल थिएतर' की स्थापना हुई जिसमें नवगोपाल मित्र की महती भूमिका थी। यह नम उन्होंने ही सुझाया था। ७ दिसम्बर १८७३ को इसमें पहला नाटक 'नीलदर्पण' खेला गया।
नेशनल सर्कस
[संपादित करें]जून १८८१ में उन्होने 'नेशनल सर्कस' की स्थापना की। इसके लिये उनको अपना घर गिरवी रखना पड़ा।