नन्द बाबा
नन्द बाबा | |
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नन्द व यसोदा बाल-कृष्ण को झूला झुलाते हुये। | |
जीवनसाथी | यशोदा |
माता-पिता |
परजन्य (पिता) वरेयसी (माता) |
संतान |
कृष्ण, बलराम (पालक पुत्र) योगमाया (जैविक पुत्री) |
क्षेत्र | गोकुलम |
नन्द (नन्द गोप , नन्द राय या नन्द बाबा), हरिवन्श व पुराणो के अनुसार "पावन ग्वाल" के रूप मे विख्यात यादव गोपालक जाति के मुखिया थे। वह एक राजा और क्षत्रिय थे।[1] वह भगवान कृष्ण के पालक पिता थे।[2]
नन्द प्राचीन यादव साम्राज्य के शक्तिशाली मंडलों में से एक, गोकुल मण्डल के मंडलाधीश या प्रमुख थे।[3] रिश्ते में नन्द और वसुदेव चचेरे भाई थे।[3][4] वसुदेव ने अपने नवजात शिशु कृष्ण को लालन पालन हेतु नन्द को सौंप दिया था। नन्द व उनकी पत्नी यशोदा ने कृष्ण व बलराम दोनों को पाला-पोसा। नन्द का पुत्र होने के नाते कृष्ण का एक नाम "नंद-नंदन" , नंदलाल , नंद कुमार भी है।[5][6] महाराज नंद को यादवों में मुख्य श्रेष्ठ भी कहा गया है।[7]
भागवत पुराण और गर्ग संहिता जैसे कुछ संस्कृत ग्रंथों में महाराज नंद को अहीर और यदुवंशी बताया गया है।[8][9][10]
नन्द पौराणिकी
[संपादित करें]राजा नन्द
[संपादित करें]अनेक शास्त्रों में नन्द को राजा नन्द (नन्द राय) के रूप में व्यक्त किया गया है।[11][12] नन्द राजा वसुदेव के संबंधी व चचेरे भाई थे[13]
कृष्ण चरित्र
[संपादित करें]भागवत पुराण के अनुसार, गोकुल राज्य के राजा नन्द, राजा वसुदेव के चचेरे भाई थे।[14]
राजा वसुदेव का विवाह मथुरा के राजा उग्रसेन के भाई देवक की पुत्री देवकी से हुआ था। देवकी कंस की चचेरी बहन थीं | कंस ने अपने पिता उग्रसेन को कारागार मे डाल कर मथुरा का राज्य स्वयं हड़प लिया था। देवकी के आठवें पुत्र द्वारा कंस के वध की आकाशवाणी के प्रभाव मे कंस ने देवकी सभी पुत्रो को जन्म के समय ही मार देने की योजना बनाई थी।[11] इस प्रकार देवकी के छः पुत्रों का वध कर दिया गया। परंतु सातवें पुत्र के गर्भ को योगमाया द्वारा रोहिणी के गर्भ मे स्थापित कर दिया गया,[15] ।[16][17]
नन्द गोपेश्वर
[संपादित करें]नन्द गोप एक बार शुक्लतीर्थ की यात्रा पर गए। रास्ते में उन्होने कोटेश्वर शिव की आराधना नित्य दस करोड़ ताजपुष्पों से की। कुछ समय पश्चात शिव प्रसन्न हुये व उन्हे अपने "गणों" में शामिल किया और इस प्रकार नन्द गोपेश्वर कहलाए।[18]
नन्द स्मारक
[संपादित करें]नंदगाँव
[संपादित करें]ब्रज मे बरसाना के निकट नंदगाँव एक धार्मिक स्थल है। यह अधीनस्थ सामंत नन्द बाबा की राजधानी था जहां वह अपने अनुयायियों व ग्वालों (गोपो )[19][20]साथ निवास करते थे।[21]
नन्द भवन (चौरासी खंबा मंदिर)
[संपादित करें]नन्द के निवास स्थल को नन्द भवन कहा जाता है, जहाँ कृष्ण बड़े हुये व अपने बाल्यकाल के कुछ वर्ष बिताए वहाँ महाबन का प्रमुख प्रसिद्ध मंदिर है। पीले रंग की इस इमारत के अंदर चौरासी खंभे हैं जिन पर कृष्ण के बाल्यकाल की अनेकों आकृतियाँ चित्रित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस भौतिक जगत मे 84000 प्रकार के जीव जन्तु हैं और प्रत्येक खंभा ब्रह्मांड मे निवास करने वाली 1000 योनियों का प्रतीक है।[22]
नन्द घाट
[संपादित करें]नन्द घाट पवित्र नदी यमुना के तट पर स्थित है। यह घाट इस घटना से संबन्धित बताया जाता है जबकि एक बार नन्द को यमुना नदी में स्नान करते समय बरुण भगवान के अनुयायियों ने बंदी बना लिया था और कृष्ण ने उन्हे छुड़ाया था। [23]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Soni, Lok Nath (2000). The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh (अंग्रेज़ी में). Anthropological Survey of India, Government of India, Ministry of Tourism and Culture, Department of Culture. पृ॰ 13. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85579-57-3.
- ↑ His Divine Grace A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupad. Krsna, the Supreme Personality of Godhead- Chepter-5. The Bhaktivedanta Book Trust. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789171495587. मूल से 5 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 नवंबर 2015.
- ↑ अ आ Gopal Chowdhary (2014). The Greatest Farce of History. Partridge Publishing. पृ॰ 119. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781482819250. मूल से 14 दिसंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 नवंबर 2015.
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