घेरण्ड संहिता
घेरण्डसंहिता हठयोग के तीन प्रमुख ग्रन्थों में से एक है। अन्य दो गर्न्थ हैं - हठयोग प्रदीपिका तथा शिवसंहिता। इसकी रचना १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में की गयी थी। हठयोग के तीनों ग्रन्थों में यह सर्वाधिक विशाल एवं परिपूर्ण है। इसमें सप्तांग योग की व्यावहारिक शिक्षा दी गयी है। घेरण्डसंहिता सबसे प्राचीन और प्रथम ग्रन्थ है , जिसमे योग की आसन , मुद्रा , प्राणायाम, नेति , धौति आदि क्रियाओं का विशद वर्णन है। इस ग्रन्थ के उपदेशक घेरण्ड मुनि हैं जिन्होंने अपने शिष्य चंड कपालि को योग विषयक प्रश्न पूछने पर उपदेश दिया था।
परिचय[संपादित करें]
योग आसन , मुद्रा , बंध , प्राणायाम , योग की विभिन्न क्रियाओं का वर्णन आदि का जैसा वर्णन इस ग्रन्थ में है , ऐसा वर्णन अन्य कही उपलब्ध नहीं होता। पतंजलि मुनि को भले ही योग दर्शन के प्रवर्तक माना जाता हो परन्तु महर्षि पतंजलि कृत योगसूत्र में भी आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति, बंध आदि क्रियाओं कहीं भी वर्णन नहीं आया है। आज योग के जिन आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति, धौति, बंध आदि क्रियाओं का प्रचलन योग के नाम पर हो रहा है , उसका मुख्य स्रोत यह घेरण्ड संहिता नामक प्राचीन ग्रन्थ ही है। उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने शिव संहिता ग्रन्थ में तथा उनके उपरांत उसके शिष्य स्वामी स्वात्माराम जी ने हठयोग प्रदीपिका में आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति बंध आदि क्रियाओं का वर्णन किया है , परन्तु इन सब आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति बंध आदि क्रियाओं का मुख्य स्रोत यह प्राचीन ग्रन्थ घेरण्ड संहिता ही है।
इस घेरण्ड संहिता में कुल ३५० श्लोक हैं, जिसमे ७ अध्याय (सप्तोपदेश) : (षट्कर्म प्रकरणं , आसन प्रकरणं, मुद्रा कथनं, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यानयोग, समाधियोग ) का विशद वर्णन है। इस ग्रन्थ में प्राणायाम के साधना को प्रधानता दी गयी है।[1]
पातंजलि योग दर्शन से घेरंड संहिता का राजयोग भिन्न है। महर्षि का मत द्वैतवादी है एवं यह घेरंड संहिता अद्वैतवादी है। जीव की सत्ता ब्रह्म सत्ता से सर्वथा भिन्न नहीं है। अहं ब्रह्मास्मि का भाव इस संहिता का मूल सिद्धांत है। इसी सिद्धांत को श्री गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने ग्रन्थ योगबीज एवं महार्थमंजरी नामक ग्रन्थ में स्वीकार किया है। कश्मीर के शैव दर्शन में भी यह सिद्धांत माना गया है।
इस घेरंड संहिता ग्रन्थ में सात उपदेशों द्वारा योग विषयक सभी बातों का उपदेश दिया गया है। पहले उपदेश में महर्षि घेरंड ने अपने शिष्य चंडकपाली को योग के षटकर्म का उपदेश दिया है। दूसरे में आसन और उसके भिन्न-भिन्न प्रकार का विशद वर्णन किया है। तीसरे में मुद्रा के स्वरुप, लक्षण एवं उपयोग बताया गया है। चौथे में प्रत्याहार का विषय है। पांचवे में स्थान, काल मिताहार और नाडी सुद्धि के पश्चात प्राणायाम की विधि बताई गयी है। छठे में ध्यान करने की विधि और उपदेश बताये गए हैं। सातवें में समाधी-योग और उसके प्रकार (ध्यान-योग, नाद-योग, रसानंद-योग, लय-सिद्धि-योग, राजयोग) के भेद बताएं गए हैं। इस प्रकार ३५० श्लोकों वाले इस छोटे से ग्रन्थ में योग के सभी विषयों का वर्णन आया है। इस ग्रन्थ की प्रतिपादन शैली सरल, सुबोध एवं साधक क लिए अत्यंत उपयोगी है।
परिचय[संपादित करें]
योग आसन , मुद्रा , बंध , प्राणायाम , योग की विभिन्न क्रियाओं का वर्णन आदि का जैसा वर्णन इस ग्रन्थ में है , ऐसा वर्णन अन्य कही उपलब्ध नहीं होता। पतंजलि मुनि को भले ही योग दर्शन के प्रवर्तक माना जाता हो परन्तु महर्षि पतंजलि कृत योगसूत्र में भी आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति, बंध आदि क्रियाओं कहीं भी वर्णन नहीं आया है। आज योग के जिन आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति, धौति, बंध आदि क्रियाओं का प्रचलन योग के नाम पर हो रहा है , उसका मुख्य स्रोत यह घेरण्ड संहिता नामक प्राचीन ग्रन्थ ही है। उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने शिव संहिता ग्रन्थ में तथा उनके उपरांत उसके शिष्य स्वामी स्वात्माराम जी ने हठयोग प्रदीपिका में आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति बंध आदि क्रियाओं का वर्णन किया है , परन्तु इन सब आसन , प्राणायाम , मुद्रा, नेति , धौति बंध आदि क्रियाओं का मुख्य स्रोत यह प्राचीन ग्रन्थ घेरण्ड संहिता ही है।
इस घेरण्ड संहिता में कुल ३५० श्लोक हैं, जिसमे ७ अध्याय (सप्तोपदेश) : (षट्कर्म प्रकरणं , आसन प्रकरणं, मुद्रा कथनं, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यानयोग, समाधियोग ) का विशद वर्णन है। इस ग्रन्थ में प्राणायाम के साधना को प्रधानता दी गयी है।[1]
पातंजलि योग दर्शन से घेरंड संहिता का राजयोग भिन्न है। महर्षि का मत द्वैतवादी है एवं यह घेरंड संहिता अद्वैतवादी है। जीव की सत्ता ब्रह्म सत्ता से सर्वथा भिन्न नहीं है। अहं ब्रह्मास्मि का भाव इस संहिता का मूल सिद्धांत है। इसी सिद्धांत को श्री गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने ग्रन्थ योगबीज एवं महार्थमंजरी नामक ग्रन्थ में स्वीकार किया है। कश्मीर के शैव दर्शन में भी यह सिद्धांत माना गया है। आदि शंकराचार्य जी ने भी इसी अद्वैत मत का उपदेश दिया है।
इस घेरंड संहिता ग्रन्थ में सात उपदेशों द्वारा योग विषयक सभी बातों का उपदेश दिया गया है। पहले उपदेश में महर्षि घेरंड ने अपने शिष्य चंडकपाली को योग के षटकर्म का उपदेश दिया है। दूसरे में आसन और उसके भिन्न-भिन्न प्रकार का विशद वर्णन किया है। तीसरे में मुद्रा के स्वरुप, लक्षण एवं उपयोग बताया गया है। चौथे में प्रत्याहार का विषय है। पांचवे में स्थान, काल मिताहार और नाडी सुद्धि के पश्चात प्राणायाम की विधि बताई गयी है। छठे में ध्यान करने की विधि और उपदेश बताये गए हैं। सातवें में समाधी-योग और उसके प्रकार (ध्यान-योग, नाद-योग, रसानंद-योग, लय-सिद्धि-योग, राजयोग) के भेद बताएं गए हैं। इस प्रकार ३५० श्लोकों वाले इस छोटे से ग्रन्थ में योग के सभी विषयों का वर्णन आया है। इस ग्रन्थ की प्रतिपादन शैली सरल, सुबोध एवं साधक क लिए अत्यंत उपयोगी है।
घेरण्डसंहिता में वर्णित आसन | |||||
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नाम | छबि | घेरण्डसंहिता श्लोक सं.[2] |
हठयोगप्रदीपिका श्लोक सं.[2][3] |
शिवसंहिता श्लोक सं.[2] | |
सिद्धासन | 2.7 | 1.35-43 | 3.97-101 | ||
पद्मासन | 2.8 | 1.44-49 | 3.102-107 | ||
भद्रासन | 2.9-10 | 1.53-54 | नहीं है | ||
मुक्तासन | ![]() |
2.11 | नहीं है | नहीं है | |
वज्रासन | ![]() |
2.12 | नहीं है | नहीं है | |
स्वस्तिकासन | ![]() |
2.13 | 1.19 | 3.113-115 | |
सिंहासन | ![]() |
2.14-15 | 1.50-52 | नहीं है | |
गोमुखासन | ![]() ![]() |
2.16 | 1.20 | नहीं है | |
वीरासन | ![]() |
2.17 | नहीं है | 3.21 | |
धनुरासन | ![]() |
2.18 | 1.25 (variance) |
नहीं है | |
शवासन | ![]() |
2.19 | 1.32 | नहीं है | |
गुप्तासन | ![]() |
2.20 | नहीं है | नहीं है | |
मत्स्यासन | ![]() ![]() |
2.21 | नहीं है | नहीं है | |
अर्ध मत्स्येन्द्रासन | ![]() |
2.22-23 | 1.26-27 | नहीं है | |
गोरक्षासन | 2.24-25 | 1.28-29 | 3.108-112 | ||
पश्चिमोत्तासन | ![]() |
2.26 | नहीं है | नहीं है | |
उत्कटासन | ![]() |
2.27 | नहीं है | नहीं है | |
संकटासन | 2.28 | नहीं है | नहीं है | ||
मयूरासन | ![]() |
2.29-30 | 1.30-31 | नहीं है | |
कुक्कुटासन | ![]() |
2.31 | 1.23 | नहीं है | |
कूर्मासन | ![]() |
2.32 | 1.22 | नहीं है | |
उत्तान कूर्मासन | ![]() |
2.33 | 1.24 | नहीं है | |
मण्डूकासन | ![]() |
2.34 | नहीं है | नहीं है | |
उत्तान मण्डूकासन | ![]() |
2.35 | नहीं है | नहीं है | |
वृक्षासन | ![]() |
2.36 | नहीं है | नहीं है | |
गरुडासन | ![]() |
2.37 | नहीं है | नहीं है | |
त्रिशासन | 2.38 | नहीं है | नहीं है | ||
शलभासन | 2.39 | नहीं है | नहीं है | ||
मकरासन | ![]() |
2.40 | नहीं है | नहीं है | |
ऊष्ट्रासन | ![]() |
2.41 | नहीं है | नहीं है | |
भुजंगासन | ![]() |
2.42-43 | नहीं है | नहीं है | |
योगासन | 2.44-45 | नहीं है | नहीं है |
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- घेरण्डसंहिता (संस्कृत विकिस्रोत)
- घेरण्डसंहिता
- घेरण्ड संहिता (अंग्रेजी में अर्थ सहित)
- महर्षि घेरण्ड की योग शिक्षा पर भाष्य - (स्वामी निरंजनानंद सरस्वती)
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ अ आ घेरण्डसंहिता
- ↑ अ आ इ Richard Rosen 2012, पृ॰प॰ 80-81.
- ↑ Gerald James Larson, Ram Shankar Bhattacharya & Karl H. Potter 2008, पृ॰प॰ 491-492.