गौरगोविन्द राय
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गौरगोविन्द राय | |
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जन्म |
1841 घोराबोछा, पबना, (अब बांग्लादेश) |
मौत |
1912 कलकत्ता, भारत |
पेशा | धर्म सुधारक |
गौर गोविन्द राय, उपाध्याय (1841-1912) हिंदू धर्म और ब्रह्म समाज के एक जाने माने पण्डित थे। उन्होंने 40 वर्षों तक ब्रह्म समाज की धर्मतत्त्व नामक पत्रिका का संपादन किया। उन्होंने केशव चन्द्र सेन की सहायता से विभिन्न धर्म ग्रन्थों के उद्धरणों का संग्रह किया और उसे श्लोकसंग्रह नाम दिया।[1]
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]वे गौर मोहन राय के पुत्र थे और अपने चाचा की देख-रेख में बड़े हुए। उन्होंने रंगपुर माध्यमिक विद्यालय में दसवीं तक पढ़ाई की और फिर पढ़ाई छोड़ दी। उन्होंने घर पर ही संस्कृत और फारसी का अध्ययन किया और कुछ समय तक मुस्लिम फकीर के सान्निध्य में 'दरस' को पढ़ा।[2]
वे 1863-1866 तक उप-पुलिस अधीक्षक थे। 25 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और केशव चन्द्र सेन के शिष्य बनकर ब्रह्म समाज से जुड़ गए।[2]
लेखन
[संपादित करें]बंगाली में
[संपादित करें]- श्रीभगवद्गीतासामान्यभाष्य
- श्रीमद्भगवद्गीता प्रपूर्ति
- वेदान्तसामान्यभाष्यांग
- श्रीकृष्णेर जीबोन ओ धर्म
- आचार्य केशव चन्द्र (11 खंडों में)
- विवेक ओ बुद्धीर कठोपकथन
- आर्यधर्म ओ तद्ब्याख्यात्रिगान
- गायत्रीमूलक शचकरेर व्याख्यान ओ साधन [2][3]
बंगाली से संस्कृत में अनुवाद
[संपादित करें]- नव संहिता
- योग
- जीबोनवेद
- ब्रह्मगीतोपनिषद् [2]
स्रोत
[संपादित करें]- ↑ Kopf, David, The Brahmo Samaj and the Shaping of the Modern Indian Mind, 1979, pp. 235-6, Princeton University Press, ISBN 0-691-03125-8
- ↑ अ आ इ ई Sengupta, Subodh Chandra and Bose, Anjali (editors), 1976/1998, Sansad Bangali Charitabhidhan (Biographical dictionary) Vol I, बंगाली में, p. 146, ISBN 81-85626-65-0
- ↑ Ghosh, Nirvarpriya, The Evolution of Navavidhan, 1930, pp. 170-171.