कमलाकर भट्ट
कमलाकर भट्ट एक प्रधान स्मार्त पंडित थे । उनके परदादा ऋग्वेदी देशस्थ ब्राह्मण रामेश्वर भट्ट १५२२ ई० मे पैठण छोड़कर वाराणसी चले आए थे । रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट अपने समय (लिखावटों की समय १५४०-१५७० ई०) के एक दिग्गज पंडित थे । त्रिस्थलीसेतु, अन्त्येष्टिपद्धति और प्रयोगरत्न उन्के प्रमुख रचनाए है । उन्के प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्ही के निर्देश मे टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया था । नारायण भट्ट ने ही वहा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की पुनःप्रतिष्ठा की थी, जिसके लिये वाराणसी के सारे पण्डितों ने मिलकर उन्कों 'जगद्गुरु' उपाधि दिया था । नारायण भट्ट के ज्येष्ठपुत्र तथा कमलाकर भट्ट के पिता रामकृष्ण भट्ट मीमांसा-दर्शन और स्मृतिशास्त्र के सुप्रसिद्ध पंडित थै । दुसरे पुत्र शंकर भट्ट भी मीमांसा-दर्शन के बड़े पंडित थे । शंकर भट्ट के पुत्र नीलकण्ठ भट्ट ने अपने पृष्ठपोषक (इटावा जिला मे स्थित) भरेह के राजा भगवन्तदेव सेंगर के नाम पर भगवन्तभास्कर नामक धर्म-कर्म के अनुष्ठान-पद्धति और धर्म के सिद्धांत से संबंधित एक विशाल ग्रंथ की रचना की है । गुजरात, महाराष्ट्र और कोंकण के हिन्दु लोग इस ग्रन्थ के विधानों को मानते है । कमलाकर भट्ट के बड़े भाई दिवाकर भट्ट के पुत्र विश्वेश्वर भट्ट (उर्फ गागा भट्ट) ने छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक किया था ।
इन्होने निम्नलिखित ग्रन्थकी रचना की है [1]
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न धर्म-कर्मों के अनुष्ठान-पद्धति और धर्म के मामले मे विशेष सिद्धांतों से संबंधित १६१२ ई० मे रचित निर्णयसिन्धु (इस ग्रन्थ मे करीब १०० स्मृतिआ और ३०० निबंधों से वचन उद्धृत किया गया है)[2]
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित के विभिन्न तरीक़े के शान्ति-स्वस्त्ययन के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित शान्तिरत्न
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीके के प्रायश्चित्तों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित प्रायश्चित्तरत्न
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित कर्मविपाक से संबंधित कर्मविपाकरत्न
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित भक्ति के विभिन्न लक्षण से संबंधित भक्तिरत्न
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न दानकर्मों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित दानकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित बावड़ी, कूया, तालाव, बगीचा, सेतु और घरों के निर्माणविधि और उन्के प्रतिष्ठा के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित पूर्तकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न देवताओं की मूर्ति और मंदिर के प्रतिष्ठा-पद्धति से संबंधित प्रतिष्ठाकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न संस्कारों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित संस्कारकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित राज्य-शासन के पद्धति से संबंधित नीतिकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीक़े के व्रतों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित व्रतकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित समय-गणना के विधि से संबंधित समयकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न मन्त्र के प्रयोग से संबंधित मन्त्रकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित कानूनी विचार-प्रक्रिया से संबंधित व्यवहारकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तीर्थस्थल के माहात्म्य और तीर्थयात्रा के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित तीर्थकमलाकर
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीक़े के श्राद्धों के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित श्राद्धसार
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित विभिन्न तरीक़े के सदाचारों से संबंधित आचारदीपिका
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित सम्पत्ति के उत्तराधिकार-विधि से संबंधित दायविभाग
- हिन्दुशास्त्रों के बीच मतभेद निरसन से संबंधित विवादताण्डव
- हिन्दुशास्त्रों मे वर्णित शूद्रों के विभिन्न अधिकारों से संबंधित शूद्रधर्मतत्त्व
- ब्राह्मणोके गोत्र से संबंधित गोत्रप्रवरदर्पण
- ऋग्वेदी ब्राह्मणोके सन्ध्यावन्दनादि दैनिक क्रियायो के अनुष्ठान-पद्धति से संबंधित बह्वृचाह्निकप्रयोग
- लापता वा अपहृत सामान और व्यक्ति को वापस पाने के लिये कार्तवीर्याजुन के उपासना से संबंधित कार्तवीर्यार्जुनदीपदानप्रयोग
- मीमांसा-सूत्र के उपर शास्त्रमाला नामक स्वरचित टीका
- कुमारिल भट्ट विरचित तन्त्रवार्तिक नामक मीमांसा-दर्शन के एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ के उपर तन्त्रवार्तिकटीका नामक स्वरचित टीका
- पार्थसारथि मिश्र के शास्त्रदीपिका नामक मीमांसा-सूत्र के भाष्य के उपर शास्त्रदीपिकालोक नामक स्वरचित टीका
- मीमांसा-दर्शन के विभिन्न तरीक़े के नियम ओर उन्के प्रयोग से संबंधित तत्त्वकमलाकर
- मीमांसा-दर्शन के उपर मीमांसा-कुतूहल नामक स्वरचित निबंध
- मम्मताचार्य विरचित काव्यप्रकाश नामक संस्कृत काव्यशास्त्र के एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ के उपर काव्यप्रकाशव्याखा नामक स्वरचित टीका
- रामकौतुक नामक स्वरचित संस्कृत काव्य
इन ग्रन्थों के देखने से विदित होता है कि कमलाकर भट्ट १६१०-१६४० ई० काल मे अपनी सारे लिखावटें की थी । अभी तक सिर्फ निर्णयसिन्धु, शान्तिरत्न और शूद्रधर्मतत्त्व - इन ३ किताबों को ही छपवाया गया है । बंगाल, असम और मिथिला को छोड़कर भारत के और सभी इलाकों के हिन्दु, विषेश करके जो उत्तर भारत मे रहते है, वो निर्णयसिन्धु और विवादताण्डव के विधान को मानते है । १८५४ ई० मे नेपालके प्रधानमंत्री जङ्गबहादुर राणा ने मुलुकी आइन नामक संविधान को निर्णयसिन्धु के आधार पर निर्माण किया था ।
कमलाकर भट्ट नामसे एक और विख्यात पंडित वाराणसी मे रहते थे । वे नृसिंह भट्ट के पुत्र, कृष्ण भट्ट के पौत्र और दिवाकर दैवज्ञ के प्रपौत्र थे । उन्के पूर्वजों का निवास महाराष्ट्र के परभणी जिला मे स्थित गोलग्राम मे था । उन्होंने सूर्यसिद्धान्त के उपर सौरवासना नामक स्वरचित टीका, गणितशास्त्र से संबंधित शेषवासना नामक स्वरचित ग्रन्थ और सिद्धान्ततत्त्वविवेक (१६५८ ई० मे रचित) नामक ज्योतिषशास्त्र से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ कि रचना की है ।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Google Books". Google. अभिगमन तिथि: 4 April 2025.
- ↑ "Google Books". Google. 10 September 2011. अभिगमन तिथि: 4 April 2025.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- निर्णयसिन्धु (ज्वालाप्रसाद मिश्र द्वारा हिन्दी टीका सहित)
- History of Dharmaśāstra Vol I Part II by M.M Pandurang Vaman Kane