प्रवेशद्वार:जैन धर्म
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जैन धर्म प्रवेशद्वार
जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है । 'जैन' कहते हैं उन्हें, जो 'जिन' के अनुयायी हों। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने-जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म।
जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूलमंत्र है-
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥
अर्थात अरिहंतो को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सर्व साधुओं को नमस्कार। ये पाँच परमेष्ठी हैं।
जैन धर्म मे 24 तीर्थंकरों को माना जाता है |
चयनित लेख
वर्ष १९७५ में १००८ भगवान महावीर स्वामी जी के २५००वें निर्वाण वर्ष अवसर पर समस्त जैन समुदायों ने जैन धर्म के प्रतीक चिह्न का एक स्वरूप बनाकर उस पर सहमति प्रकट की थी। आजकल लगभग सभी जैन पत्र-पत्रिकाओं, वैवाहिक कार्ड, क्षमावाणी कार्ड, भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस, दीपावली आमंत्रण-पत्र एवं अन्य कार्यक्रमों की पत्रिकाओं में इस प्रतीक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। यह प्रतीक चिह्न हमारी अपनी परम्परा में श्रद्धा एवं विश्वास का द्योतक है। जैन प्रतीक चिह्न किसी भी विचारधारा, दर्शन या दल के ध्वज के समान है, जिसको देखने मात्र से पता लग जाता है कि यह किससे संबंधित है, परंतु इसके लिए किसी भी प्रतीक चिह्न का विशिष्ट (यूनीक) होना एवं सभी स्थानों पर समानुपाती होना बहुत ही आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि प्रतीक ध्वज का प्रारूप बनाते समय जो मूल भावनाएँ इसमें समाहित की गई थीं, उन सभी मूल भावनाओं को यह चिह्न अच्छी तरह से प्रकट करता है।
चयनित ग्रंथ
क्या आप जानते हैं??
- ...कि जैन दर्शन के अनुसार सात तत्त्व होते हैं
- ... कि जैन धर्म में भगवान, अरिहन्त और सिद्ध हैं
- ... कि जैन मतानुसार भी अक्ष माला में 108 दाने रखने का विधान है, और यह विधान गुणों पर आधारित है?
- ... कि प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के पिता नाभिराज थे
- ... कि कर्म बन्ध रोकने को संवर कहते हैं
- ... कि तत्त्वार्थसूत्र संस्कृत में लिखा गया प्रथम जैन ग्रन्थ हैं
- ... कि जैन मुनि २८ मूल गुणों का पालन करते हैं
विकिपरियोजनाएं
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श्रेणियाँ
मुख्य श्रेणी:
जैन धर्म पर ब्यौरेवार श्रेणियाँ निम्न हैं:-