"अली अक़बर ख़ाँ": अवतरणों में अंतर

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He is a past master at outlining a melody with great economy of stroke, which has stood him in good stead in his short 78 rpm records in the middle of the last century.
He is a past master at outlining a melody with great economy of stroke, which has stood him in good stead in his short 78 rpm records in the middle of the last century.
उनकी लंबी संगीत प्रस्तुतियाँ सामान्यत: शांत एवं सरल संगीत (आलाप, जोड़) से शुरु होकर काफी उत्साहित, तीव्र एवं उत्तेजना से भरपूर संगीत (गट, झाला) की तरफ जाती हैं। साथ ही वह दो वाद्य यंत्रों के बीच होने वाले "सवाल जवाब" को करने वाले बेहतरीन उदाहरण हैं। बढ़ती उम्र एवं बीमारी की वज़ह से उनकी संगीत प्रस्तुतियों की संख्या में कमी आई है पर संगीत के बारे में आपकी जानकारी उल्लेखनीय है।
उनकी लंबी संगीत प्रस्तुतियाँ सामान्यत: शांत एवं सरल संगीत के आलाप और जोड़ से शुरु होकर द्रुत गत और झाले की तरफ जाती हैं। साथ ही वह दो वाद्य यंत्रों के बीच होने वाले "सवाल जवाब" को प्रस्तुत करने वाले संगीतज्ञों का बेहतरीन उदाहरण हैं। बढ़ती उम्र एवं बीमारी की वज़ह से उनकी संगीत प्रस्तुतियों की संख्या में कमी आई है पर संगीत के बारे में उनकी जानकारी उल्लेखनीय है।
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His long concert performances progress from the meditative (alap, jod) to the exhilarating (gat, jhala) in a highly structured build-up in the Senia beenkar style. He is also possibly the best living exponent of "sawal-jawab", a dialogue between two instruments (usually one melodic and one percussion). Of late, ill health has reduced the frequency of his concerts and affected his physical dexterity on his instrument, but his musical depth is still very much extant.
His long concert performances progress from the meditative (alap, jod) to the exhilarating (gat, jhala) in a highly structured build-up in the Senia beenkar style. He is also possibly the best living exponent of "sawal-jawab", a dialogue between two instruments (usually one melodic and one percussion). Of late, ill health has reduced the frequency of his concerts and affected his physical dexterity on his instrument, but his musical depth is still very much extant.

23:05, 13 जुलाई 2007 का अवतरण

अली अक़बर ख़ाँ

अली अक़बर ख़ाँ
चित्र:Aliakbarkhan.jpg
अली अक़बर ख़ाँ
जन्म 14 अप्रैल, 1922
शिबपुर कोमिला, भारत(अब बांग्लादेश)


उस्ताद अली अक़बर ख़ाँ (बांग्ला: আলী আকবর খাঁ) मैहर घराने के भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञ और सरोद वादक हैं। उनकी विश्वव्यापी संगीत प्रस्तुतियों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत तथा सरोद वादन को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अली अक़बर ख़ाँ का जन्म 14 अप्रैल 1922 को वर्तमान बांग्लादेश में स्थित कोमिला ज़िले के शिबपुर गाँव में "बाबा" अलाउद्दीन खाँ और मदीना बेगम के घर हुआ । इन्होंने अपनी गायन तथा वादन की शिक्षा अपने पिता से दो वर्ष की आयु में प्रारम्भ की । इन्होंने अपने चाचा, फ़कीर अफ़्ताबुद्दीन से तबला भी सीखा । उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ ने इन्हें कई अन्य वाद्यों मे भी पारंगत किया, पर अन्तत: निश्चय किया कि इन्हें सरोद पर ही ध्यान देना चाहिए । कई वर्षों के कठिन प्रशिक्षण के बाद इन्होने अपनी पहली प्रस्तुति लगभग 13 वर्ष की आयु में दी । [1]२२ वर्ष की आयु में वे जोधपुर राज्य के दरबारी संगीतकार बन गए ।

आपने पूरे भारत मे प्रस्तुतियां दीं, सराहे गये और भारतीय शास्त्रीय संगीत को व्यापक बनाने के लिये कई विश्व यात्रायें कीं । यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि आप अमेरिका में (अलीस्टेर कूक के "ऒमनीबस" में, १९५५) टेलीविजन प्रस्तुति देने वाले पहले भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञ थे । भारतीय शास्त्रीय संगीत के अध्यापन और प्रसार के लिये, १९५६ मे इन्होने कोलकाता में अली अकबर संगीत महाविद्यालय की स्थापना की । दो साल बाद, बर्कले, कैलीफोर्निया (अमरीका), में इसी नाम से एक और विद्यालय की नींव रखी, १९६८ में यह विद्यालय अपने वर्तमान स्थान सान रफ़ेल, कैलीफोर्निया, कैलीफोर्निया आ गए। सान रफ़ेल स्कूल की स्थापना के साथ ही अली अकबर खां, संयुक्त राष्ट् अमेरिका में ही बस गये, यद्यपि यात्रायें करते रहे । फिर भी अस्वस्थता के कारण आज कल यह कम हुआ हैं । १९८५ में, इन्होने अली अकबर महाविद्यालय की एक और शाखा बेसिल, स्विट्ज़रलैंड में स्थापित की है ।


He is a past master at outlining a melody with great economy of stroke, which has stood him in good stead in his short 78 rpm records in the middle of the last century. उनकी लंबी संगीत प्रस्तुतियाँ सामान्यत: शांत एवं सरल संगीत के आलाप और जोड़ से शुरु होकर द्रुत गत और झाले की तरफ जाती हैं। साथ ही वह दो वाद्य यंत्रों के बीच होने वाले "सवाल जवाब" को प्रस्तुत करने वाले संगीतज्ञों का बेहतरीन उदाहरण हैं। बढ़ती उम्र एवं बीमारी की वज़ह से उनकी संगीत प्रस्तुतियों की संख्या में कमी आई है पर संगीत के बारे में उनकी जानकारी उल्लेखनीय है।

खाँ साहब ने कई शास्त्रीय जुगलबंदियों में भाग लिया। उसमें सबसे प्रसिद्ध जुगलबंदी उनके समकालीन विद्यार्थी एवं बहनोई सितार वादक रवि शंकर एवं निखिल बैनर्जी के साथ तथा वायलन वादक एल सुब्रमनियम जी के साथ है। विलायत ख़ान के साथ भी उनकी कुछ रिकार्डिंग उपलब्ध हैं। साथ ही उन्होंने कई पाश्चात्य संगीतकारों के साथ भी काम किया।

खाँ साहब को 1988 में भारत के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनको इसके अलावा भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 1997 में संयुक्त राज्य अमेरिका का कला के क्षेत्र में सबसे ऊँचा सम्मान नेशनल हैरिटेज फ़ेलोशिप दी गई। [1991]] में उन्हें मैकआर्थर जीनियस ग्रांट से सम्मानित किया गया। खाँ साहब को कई ग्रामी पुरस्कारों के लिये नामांकित भी किया गया। फिर भी, खाँ साहब अपने पिता द्वारा दी गई "स्वर सम्राट" की पदवी को बाकी सभी सम्मानों से ऊँचा दर्ज़ा देते हैं।


  1. "Ali Akbar Khan Biography" (एचटीएमएल) (अंग्रेज़ी में). अली अक़बर ख़ाँ. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)

बाहरी कड़ियाँ

अली अक़बर ख़ाँ का आधिकारिक जालघर http://www.ammp.com/