"वैश्विक स्थान-निर्धारण प्रणाली": अवतरणों में अंतर

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'''जीपीएस''' अथवा '''वैश्विक स्थान-निर्धारण प्रणाली''' ([[अंग्रेज़ी]]:''ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम''), एक वैश्विक [[नौवहन]] [[उपग्रह]] प्रणाली है जिसका विकास [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] के रक्षा विभाग ने किया है। [[२७ अप्रैल]], [[१९९५]] से इस प्रणाली ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया था। वर्तमान समय में जी.पी.एस का प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-85913.html जीपीएस]। हिन्दुस्तान लाइव। १५ दिसम्बर २००९</ref> इस प्रणाली के प्रमुख प्रयोग नक्शा बनाने, जमीन का सर्वेक्षण करने, वाणिज्यिक कार्य, वैज्ञानिक प्रयोग, सर्विलैंस और ट्रेकिंग करने तथा जियोकैचिंग के लिये भी होते हैं। पहले पहल उपग्रह नौवहन प्रणाली ट्रांजिट का प्रयोग [[अमेरिकी नौसेना]] ने [[१९६०]] में किया था। आरंभिक चरण में जीपीएस प्रणाली का प्रयोग सेना के लिए किया जाता था, लेकिन बाद में इसका प्रयोग नागरिक कार्यो में भी होने लगा।
'''जीपीएस''' अथवा '''वैश्विक स्थान-निर्धारण प्रणाली''' ([[अंग्रेज़ी]]:''ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम''), एक वैश्विक [[नौवहन]] [[उपग्रह]] प्रणाली है जिसका विकास [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] के रक्षा विभाग ने किया है। [[२७ अप्रैल]], [[१९९५]] से इस प्रणाली ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया था। वर्तमान समय में जी.पी.एस का प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-85913.html जीपीएस]। हिन्दुस्तान लाइव। १५ दिसम्बर २००९</ref> इस प्रणाली के प्रमुख प्रयोग नक्शा बनाने, जमीन का सर्वेक्षण करने, वाणिज्यिक कार्य, वैज्ञानिक प्रयोग, सर्विलैंस और ट्रेकिंग करने तथा जियोकैचिंग के लिये भी होते हैं। पहले पहल उपग्रह नौवहन प्रणाली ट्रांजिट का प्रयोग [[अमेरिकी नौसेना]] ने [[१९६०]] में किया था। आरंभिक चरण में जीपीएस प्रणाली का प्रयोग सेना के लिए किया जाता था, लेकिन बाद में इसका प्रयोग नागरिक कार्यो में भी होने लगा।


जीपीएस रिसीवर अपनी स्थिति का आकलन, [[पृथ्वी]] से ऊपर स्थित किये गए जीपीएस उपग्रहों के समूह द्वारा भेजे जाने वाले संकेतों के आधार पर करता है। प्रत्येक उपग्रह लगातार संदेश रूपी संकेत प्रसारित करता रहता है। रिसीवर प्रत्येक संदेश का ट्रांजिट समय भी दर्ज करता है और प्रत्येक उपग्रह से दूरी की गणना करता है। शोध और अध्ययन उपरांत ज्ञात हुआ है कि रिसीवर बेहतर गणना के लिए चार उपग्रहों का प्रयोग करता है। इससे उपयोक्ता की त्रिआयामी स्थिति ([[अक्षांश]], [[देशांतर रेखा]] और [[उन्नतांश]]) के बारे में पता चल जाता है।<ref name="हिन्दुस्तान"/> एक बार जीपीएस प्रणाली द्वारा स्थिति का ज्ञात होने के बाद, जीपीएस उपकरण द्वारा दूसरी जानकारियां जैसे कि गति, ट्रेक, ट्रिप, दूरी, जगह से दूरी, वहां के सूर्यास्त और सूर्योदय के समय के बारे में भी जानकारी एकत्र कर लेता है। वर्तमान में जीपीएस तीन प्रमुख क्षेत्रों से मिलकर बना हुआ है, स्पेस सेगमेंट, कंट्रोल सेगमेंट और यूजर सेगमेंट।
जीपीएस रिसीवर अपनी स्थिति का आकलन, [[पृथ्वी]] से ऊपर स्थित किये गए जीपीएस उपग्रहों के समूह द्वारा भेजे जाने वाले संकेतों के आधार पर करता है।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/science/2014/02/140220_gps_launch_mapping_tracking_sp|title=जीपीएस की निगाह से कोई बच नहीं सकता}}</ref> प्रत्येक उपग्रह लगातार संदेश रूपी संकेत प्रसारित करता रहता है। रिसीवर प्रत्येक संदेश का ट्रांजिट समय भी दर्ज करता है और प्रत्येक उपग्रह से दूरी की गणना करता है। शोध और अध्ययन उपरांत ज्ञात हुआ है कि रिसीवर बेहतर गणना के लिए चार उपग्रहों का प्रयोग करता है। इससे उपयोक्ता की त्रिआयामी स्थिति ([[अक्षांश]], [[देशांतर रेखा]] और [[उन्नतांश]]) के बारे में पता चल जाता है।<ref name="हिन्दुस्तान"/> एक बार जीपीएस प्रणाली द्वारा स्थिति का ज्ञात होने के बाद, जीपीएस उपकरण द्वारा दूसरी जानकारियां जैसे कि गति, ट्रेक, ट्रिप, दूरी, जगह से दूरी, वहां के सूर्यास्त और सूर्योदय के समय के बारे में भी जानकारी एकत्र कर लेता है। वर्तमान में जीपीएस तीन प्रमुख क्षेत्रों से मिलकर बना हुआ है, स्पेस सेगमेंट, कंट्रोल सेगमेंट और यूजर सेगमेंट।


== भारत में ==
== भारत में ==

18:14, 18 जून 2018 का अवतरण

जी.पी.एस. खंड द्वितीय-एफ़ उपग्रह की कक्षा में स्थिति का चित्रण
जी.पी.एस उपग्रह समुदाय का पृथ्वी की कक्षा में घूर्णन करते हुए एक चलित आरेख। देखें, पृथ्वी की सतह पर किसी एक बिन्दु से दिखाई देने वाले उपग्रहों की संख्या कैसे समय के साथ बदलती रहती है। यहां यह ४५°उ. पर है।

जीपीएस अथवा वैश्विक स्थान-निर्धारण प्रणाली (अंग्रेज़ी:ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम), एक वैश्विक नौवहन उपग्रह प्रणाली है जिसका विकास संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा विभाग ने किया है। २७ अप्रैल, १९९५ से इस प्रणाली ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया था। वर्तमान समय में जी.पी.एस का प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है।[1] इस प्रणाली के प्रमुख प्रयोग नक्शा बनाने, जमीन का सर्वेक्षण करने, वाणिज्यिक कार्य, वैज्ञानिक प्रयोग, सर्विलैंस और ट्रेकिंग करने तथा जियोकैचिंग के लिये भी होते हैं। पहले पहल उपग्रह नौवहन प्रणाली ट्रांजिट का प्रयोग अमेरिकी नौसेना ने १९६० में किया था। आरंभिक चरण में जीपीएस प्रणाली का प्रयोग सेना के लिए किया जाता था, लेकिन बाद में इसका प्रयोग नागरिक कार्यो में भी होने लगा।

जीपीएस रिसीवर अपनी स्थिति का आकलन, पृथ्वी से ऊपर स्थित किये गए जीपीएस उपग्रहों के समूह द्वारा भेजे जाने वाले संकेतों के आधार पर करता है।[2] प्रत्येक उपग्रह लगातार संदेश रूपी संकेत प्रसारित करता रहता है। रिसीवर प्रत्येक संदेश का ट्रांजिट समय भी दर्ज करता है और प्रत्येक उपग्रह से दूरी की गणना करता है। शोध और अध्ययन उपरांत ज्ञात हुआ है कि रिसीवर बेहतर गणना के लिए चार उपग्रहों का प्रयोग करता है। इससे उपयोक्ता की त्रिआयामी स्थिति (अक्षांश, देशांतर रेखा और उन्नतांश) के बारे में पता चल जाता है।[1] एक बार जीपीएस प्रणाली द्वारा स्थिति का ज्ञात होने के बाद, जीपीएस उपकरण द्वारा दूसरी जानकारियां जैसे कि गति, ट्रेक, ट्रिप, दूरी, जगह से दूरी, वहां के सूर्यास्त और सूर्योदय के समय के बारे में भी जानकारी एकत्र कर लेता है। वर्तमान में जीपीएस तीन प्रमुख क्षेत्रों से मिलकर बना हुआ है, स्पेस सेगमेंट, कंट्रोल सेगमेंट और यूजर सेगमेंट।

भारत में

भारत में भी इस प्रणाली के प्रयोग बढ़ते जा रहे हैं। दक्षिण रेलवे ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम पर आधारित यात्री सूचना प्रणाली वाली ईएमयू आरंभ कर रहा है। ऐसी पहली ईएमयू (बी-२६) ट्रेन ताम्बरम स्टेशन से चेन्नई बीच के मध्य चलेगी। इस ईएमयू में अत्याधुनिक ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम आधारित यात्री सूचना प्रणाली होगी जिसमें आने वाली ट्रेन का नाम, उस स्टेशन पर पहुंचने का अनुमानित समय, जनहित से जुड़े संदेश तथा यात्री सुरक्षा से संदेश प्रदर्शित किए जाएंगे। प्रत्येक कोच में दो प्रदर्शक पटल हैं, जो विस्तृत दृश्य कोण प्रकार के हैं, व इनमें उच्च गुणवत्ता प्रकाश निकालने वाले डायोड हैं, जिससे कि कोच के अंदर कहीं भी बैठे या खड़े यात्री प्रसारित किए जा रहे संदेश को आसानी से पढ़ सकेंगे।[3] इसके अलावा टैक्सियों में, खासकर रेडियो टैक्सी सेवा में इसका उपयोग बढ़ रहा है।[4] दिल्ली में दिल्ली परिवहन निगम की लो-फ्लोर बसों के नए बेड़े जुड़े हैं इनकी ट्रैकिंग हेतु यहां भी जीपीएस सुविधा का प्रयोग आरंभ हो रहा है।[5]

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अहमदाबाद के अंतरिक्ष अनुप्रयोग प्रयोगशाला ने डिस्ट्रेस अलार्म ट्रांसमीटर (डीएटी) नाम का एक छोटा यंत्र विकसित किया है। यह यंत्र ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम पर आधारित चेतावनी प्रणाली है और बैटरी-चालित इस यंत्र का यूनिक आईडी नंबर होता है जो चौबीस घंटे हर पांच मिनट के अंतराल पर चेतावनी भेजता रहता है। इसके द्वारा बचाव दल कंप्यूटर स्क्रीन पर समुद्र में नाव की स्थिति को जान सकते हैं। इसे तटरक्षाकों द्वारा तटीय क्षेत्रों में प्रयोग किया जा रहा है।[6]

चित्र दीर्घा

सन्दर्भ

  1. जीपीएस। हिन्दुस्तान लाइव। १५ दिसम्बर २००९
  2. "जीपीएस की निगाह से कोई बच नहीं सकता".
  3. ईएमयू में जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली। पत्रिका।
  4. टैक्सी में मददगार मोबाइल। वेब दुनिया। २८ नवम्बर २००७
  5. डीटीसी के बेड़े में सौ नई बसें शामिल। २४ नवम्बर २००९
  6. टाला जा सकता था मुंबई पर हमला!। १ जनवरी २०१०

बाहरी कड़ियाँ