"धर्मकीर्ति": अवतरणों में अंतर
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'''धर्मकीर्ति''' (७वीं सती) [[भारत]] के विद्वान एवं भारतीय दार्शनिक तर्कशास्त्र के संस्थापकों में से थे। बौद्ध [[परमाणुवाद]] के मूल सिद्धान्तकारों में उनकी गणना की जाती है। वे [[नालन्दा]] में कार्यरत थे। सातवीं सदी के बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति को यूरोपीय विचारक [[इमैनुअल कान्ट]] कहा था क्योंकि वे कान्ट की ही तरह ही तार्किक थे और विज्ञानबोध को महत्व देते थे। धर्मकीर्ति बौद्ध विज्ञानबोध के सबसे बड़े दार्शनिक [[दिङ्नाग]] के शिष्य थे। |
'''धर्मकीर्ति''' (७वीं सती) [[भारत]] के विद्वान एवं भारतीय दार्शनिक तर्कशास्त्र के संस्थापकों में से थे। बौद्ध [[परमाणुवाद]] के मूल सिद्धान्तकारों में उनकी गणना की जाती है। वे [[नालन्दा]] में कार्यरत थे। सातवीं सदी के बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति को यूरोपीय विचारक [[इमैनुअल कान्ट]] कहा था क्योंकि वे कान्ट की ही तरह ही तार्किक थे और विज्ञानबोध को महत्व देते थे। धर्मकीर्ति बौद्ध विज्ञानबोध के सबसे बड़े दार्शनिक [[दिङ्नाग]] के शिष्य थे। |
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धर्मकीर्ति, [[प्रमाण]] के महापण्डित थे। [[प्रमाणवार्तिक]] उसका सबसे बड़ा एवं सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसका प्रभाव भारत और तिब्बत के दार्शनिक चिन्तन पर पड़ा। इस पर अनेक भारतीय एवं तिब्बती विद्वानों ने टीका की है। वे [[योगाचार]] तथा सौत्रान्तिक सम्प्रदाय से भी सम्बन्धित थे। [[मीमांसा]], [[न्याय दर्शन|न्याय]], शैव और जैन सम्प्रदायों पर उनकी रचनाओं का प्रभाव पड़ा। |
धर्मकीर्ति, [[प्रमाण]] के महापण्डित थे। [[प्रमाणवार्तिक]] उसका सबसे बड़ा एवं सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसका प्रभाव भारत और तिब्बत के दार्शनिक चिन्तन पर पड़ा। इस पर अनेक भारतीय एवं तिब्बती विद्वानों ने टीका की है। वे [[योगाचार]] तथा [[सौत्रान्तिक]] सम्प्रदाय से भी सम्बन्धित थे। [[मीमांसा]], [[न्याय दर्शन|न्याय]], शैव और जैन सम्प्रदायों पर उनकी रचनाओं का प्रभाव पड़ा। |
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==कृतियाँ== |
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10:01, 7 अप्रैल 2017 का अवतरण
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धर्मकीर्ति (७वीं सती) भारत के विद्वान एवं भारतीय दार्शनिक तर्कशास्त्र के संस्थापकों में से थे। बौद्ध परमाणुवाद के मूल सिद्धान्तकारों में उनकी गणना की जाती है। वे नालन्दा में कार्यरत थे। सातवीं सदी के बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति को यूरोपीय विचारक इमैनुअल कान्ट कहा था क्योंकि वे कान्ट की ही तरह ही तार्किक थे और विज्ञानबोध को महत्व देते थे। धर्मकीर्ति बौद्ध विज्ञानबोध के सबसे बड़े दार्शनिक दिङ्नाग के शिष्य थे।
धर्मकीर्ति, प्रमाण के महापण्डित थे। प्रमाणवार्तिक उसका सबसे बड़ा एवं सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसका प्रभाव भारत और तिब्बत के दार्शनिक चिन्तन पर पड़ा। इस पर अनेक भारतीय एवं तिब्बती विद्वानों ने टीका की है। वे योगाचार तथा सौत्रान्तिक सम्प्रदाय से भी सम्बन्धित थे। मीमांसा, न्याय, शैव और जैन सम्प्रदायों पर उनकी रचनाओं का प्रभाव पड़ा।
कृतियाँ
- सम्बन्धपरीक्षावृत्ति
- प्रमाणविनिश्चय
- प्रमाणवार्त्तिककारिका
- प्रमाणवार्त्तिकस्ववृत्ति
- न्यायबिन्दुप्रकरण
- हेतुबिन्दुनामप्रकरण
- वादन्यायनामप्रकरण
- संतानान्तरसिद्धिनामप्रकरण
- रूपावतार
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- पाँच बौद्ध दार्शनिक (गूगल पुस्तक ; लेखक - राहुल सांकृत्यायन)